RE: Desi Porn Kahani संगसार
भरा - पूरा घर एकाएक खाली हो गया और आसिया तन्हा रह गई. उसे वे दिन याद आने लगे जब बाबा ज़िंदा थे. आसिया और आसमा के बीच एक भाई भी था जो पाँच साल का होकर डिप्थिरिया से मर गया था. दादा - दादी थे जिनकी मौत के कुछ दिन बाद बाबा को हार्ट - अटैक हुआ था. घर की आबादी और ख़ुशहाली घटकर सन्नाटे में बदलने लगी थी. जाने कितनी घटनाएँ थीं जिन्होंने आसमा और आसिया को बहन से ज़्यादा सहेली बनने में मदद की थी. तरह - तरह के खेल, ऊटपटाँग बातें, हार - जीत, लड़ाई - आँसू, शिक़वे - शिकायत, जलन, दु:ख सुख के बाद जब आसमा की शादी हो गई तो वह एकाएक अकेली हो गई. हर जगह आसमा की कमी खटकती. पढ़ना - लिखना, घूमना - फिरना फीका फीका लगता.
जब आसमा कुछ दिन बाद अपने शौहर के साथ घर लौटी तो वह बजाय आसिया के साथ बैठने के अपने शौहर के आगे - पीछे घूमती रहती थी. वे दोनों आपस में बातें करते ठहाके लगाते. यह देखकर आसिया को गहरा आघात लगा और जलन में मुँह से निकला था - 'बेईमान...' फिर एक बच्चे के बाद दूसरा बच्चा आसमा को उससे इतनी दूर ले गया कि उसे अपनी ही बहन से चिढ़ होने लगी थी. मगर कल रात, इतने दिनों बाद उसे अपनी बहन वापस मिली थी. खुशी का एहसास पुरानी उदासी को पोंछ गया था.
पुरानी यादों को उमंग से भरी आसिया उठी और उसने आलमारी से एलबम निकाले. बचपन की अपनी सारी तस्वीरें देखकर वह हँसने लगी. दोनो बहनें एक - सी लंबी फ्रॉकें पहन गले में बाँहें डाले आगे से टूटे दाँत दिखाती हँस रही थी. दूसरी तस्वीर में उसकी दो कसी चोटियाँ सीने पर पड़ी थीं. आसमा ने बाल मोड़कर बना रखे थे. कान के दोनों तरफ बड़े - बड़े रिबन के फूल लगे थे मगर धूप से बचने के लिए उसने अजीब तरह से मुँह बिचकाकर आँखें बंद कर रखी थीं.
दूसरे एलबम में सबकी शादियों की तस्वीरें थीं. पहले पन्ने पर माँ और बाबा खड़े थे. माँ की शकल कभी आसमा की तरह लगती, कभी अपनी तरह. फ़िर दूसरे पन्ने पर आसमा और राशिद का रंगीन फोटोग्राफ था. तीसरे पन्ने पर उसका और अफ़ज़ल का.... वह शरमाई खड़ी है और अफ़ज़ल किसी से हाथ मिला रहा है.
'कहते हैं ज़न्नत में जोड़े बन जाते हैं और उनकी शादी भी वहीं हो जाती है. मेरी शादी जन्नत में भला किससे हुई होगी, अफ़ज़ल से या उससे?' उसने सोचा.
काफ़ी देर तस्वीरों को देखने के बाद वह उठी और रात के खाने के इंतज़ाम में लग गई. उसने रेडियो खोल रखा था, ठीक पहले की तरह, ताकि उसे तनहाई का एहसास न हो. गानों के साथ कभी वह गुनगुनाती, कभी उसकी लय पर काम करते हुए हाथ तेजी से चलाती.
खाना ख़ुद पकाया जा सकता है, पैसा भी ख़ुद कमाया जा सकता है, मगर ख़ुद अपना महबूब आप नहीं बनाया जा सकता है.' सोचते हुए हँस पड़ी आसिया.
खाना पक गया तो वह सामान समेटकर बैठक में लौट आई. उसने एलबम उठाए और उन्हें वापस आलमारी में रखने लगी. तभी उसमें से एक लिफ़ाफ़ा नीचे गिरा. झुककर उसने लिफ़ाफ़ा उठाया और खोला. कुछ रंगीन तस्वीरें थीं. शादी के कुछ दिनों बाद ही पहली ईद पड़ी थी.
आसिया की आँखों के सामने शादी के शुरू के दिन घूम गए. ईद का दिन. घर मेहमानों से भरा है. दूर - क़रीब के रिश्ते की ननदें भाभी को घेरकर मज़ाक और दुलार दिखा रही हैं. चूँकि शादी के बाद उसकी यह पहली ईद है इसलिए ईदों के साथ शादी के दिन न आ सकने वालों से उसे मुँह दिखाई भी मिल रही है. रस्म के मुताबिक उसने झुककर सबके आगे शीरीनी की सेनी बढ़ाई.
"बहू सलीक़े की है." अफ़ज़ल की दादी की आवाज़ में संतोष था.
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