RE: Bhabhi ki Chudai कमीना देवर
अब मैने भाभी के ज्यादा से ज्यादा करीब रहेने का विचार कर लिया। जब भी भाभी घर में अकेले मिलती मैं उससे काफ़ी सट कर या करीब खड़े रहने का ही प्रयास करता, और मौका मिलते ही मैं उसके गदराए बदन पर कहीं पर भी हाथ लगाने से नहीं चुकता और ऎसे जाहिर करता जैसे ये सब अन्जाने में हो गया है। भाभी के अकेले मेरे सामने से गुजरते ही मैं उसके रसीले बदन को निहरने लगता विशेषकर उसकी शानदार उभरों वाली रसीली छातीयों को . ऎसा नहीं है कि उसे ये सब पता नहीं था उसे अब मुझ पर कुछ कुछ शंका होने लगी थी, और मैं चाहता भी यही था कि तुझे कुछ समझ तो आए मेंरी जान . मै अकेले में जब भी उससे बात करता तो मेंरा ध्यान पूरी तरह से उसकी अनछुई कड़्क जवानी के रस से भरपूर छातीयों पर ही रहता . झिनी साड़ी के भीतर से दिखने वाले उसकी छाती के क्लिवेज का तो मैं दिवाना बन गया था। और मैं भी उसे बुरी तरह से घूर कर उसे पूरी तरह से समझा देता था कि मैं तेरे कौन से अंग को निहार रहा हूं। वो बुरी तरह से झेंप जाती थी,लेकिन हाय रे उसकी शरम वो चाह कर भी मेंरे सामने अपना पल्लु ठीक नहीं कर पाती थी, और मैं उसके शर्म का भरपूर फ़ायदा उठाते हुए उसके जिस्म को घूरने का पूरा मजा लेने लगा।और इसी शर्म का लाभ उठाते हुए मैं उसकी जवान बुर का रस भी पीना चाह्ता था।
इसी तरह से कुछ दिन बीत गये और मेंरे मन का ये ड़र निकल गया कि कहीं ये मेंरी हरकतों को घर में मेरी मां या बहन को न बता दे। इस बीच दो-तीन बार भाई का फ़ॊन आया लेकिन उसकी बातों से कहीं नही लगा कि मेंरी गदराई स्वप्न सुंदरी ने उसे इस बारे में कुछ भी बताया हो .
उसने एक बार मुझ से फ़ॊन पर कहा कि अपनी भाभी से खाली काम ही करवाता है कि उसे घूमाने भी ले जाता है, देख वो बहुत चुप रहने वाली लड़्की है उसे कोई तकलीफ़ भी होगी तो वो अपने मुंह से नही बोलेगी शरम और झिझक तो जैसे वो दहेज में लाई है। मां को तो अपने पूजा पाठ और किटी पार्टी से ही फ़ुर्सत नहीं मिलती होगी, और दिया (मेंरी छोटी बहन) को अपने कालेज,ट्यूशन,पढाई और दोस्तों से। तू अक्सर घर के काम से बाहर बजार वगैरे जाता है तो कभी ले जाय कर उसे साथ में , इसी बहाने उसे शहर के बारे में कुछ तो जानकारी होगी और उसका भी मन लगा रहेगा। मैं तो मन ही मन बड़ा खुश हो गया, उसने तो जैसे मेंरे मुह की बात छीन ली मुझ से। मैने भी फ़ौरन हां कर दी और भाभी के
सामने ही झूठ बोल दिया कि भैया मैं तो कहता हूं लेकिन वो ही नहीं चलती तो मैं क्या करुं, आप ही बोल दो भाभी को ऎसा कह कर मैंने भी को फ़ोन पकड़ा दिया। लेकिन वाह री भाभी उसने एक बार भी भाई से ये नहीं कहा कि मैंने तो ऎसा कभी बोला ही नहीं। वो तो बस जी, हां, अच्छा ऎसे ही बोलती
रही। फ़िर उसने फ़ोन मां को दिया, भाई ने मां को भी वही बात बोली जो उसने मुझ से कही थी, मां ने हंसते हुए कहा तुझे वहां बैठ कर भी चैन नहीं है क्या ? सारा दिन क्या नेहा (मेंरी भाभी) के बारे में ही सोचता है, काम में मन लगता है कि नहीं ? तू चिंता न कर बेटा मैं सनी से कह दूंगी वो कभी घर के काम से बाहर जायगा तो कभी नेहा को ले जाया करेगा। मां ने भाभी की तरफ़ देख कर व्यंग से कहा मुझे तो शक है कि इसके मुंह मे जुबान भी है या नहीं। खैर तू छोड़ बेटा इन सब बातों को हम सब सम्भाल लेंगे मैने तेरे लिये मिर्ची का अचार बना कर रखा है, अगली बार जब तू आयेगा तो ले जाना अपने साथ। खाने का ध्यान रखता है कि नहीं ? जवाब मे उसने कहा तू चिंता न कर मां लेकिन इस बार चेवड़ा और लड्डू ज्यादा देना मेरे कमीने दोस्तों को ये कुछ ज्यादा पसंद है और ये समय से पहले ही खतम हो जाते हैं। मां ने खिलखिलाते हुए कहा ठीक है बेटा इस बार मैं ज्यादा बना दुंगी।
और सुन इस बार तुझे इन चीजों में नया स्वाद मिलेगा क्योंकि इस बार ये सब तेरी गूंगी गुड़ीया से बनवाउंगी। इसी तरह मां बेटे में घरेलु बातें होती रही।
मां जब फ़ोन पर बात कर रही थी तो उसकी पीठ हमारी तरफ़ थी। इसलिये मैं बेखौफ़ भाभी से लगभग सट कर खड़ा था और मेंरा हाथ भाभी के पंजो से टकरा रहे थे। और वो किंकर्तव्यमूढ़ अपना सर जमीन की तरफ़ कर के खड़ी थी। उसके इस निर्विरोध रवैये से मेंरा हौसला बढा और मैने और थोड़ा जोर से उसके हाथों अपना हाथ टकराने लगा। अब मैं पूरी तरह से भाभी से सट कर खड़ा हो गया और मेंरा पूरा हाथ भाभी से चिपक गया . उसके नाजुक बदन की गर्मी से मेंरा लण्ड़ खड़ा हो गया। अब मैने अपना हाथ भाभी की जांघो से धीरे धीरे टकराना शुरु कर दिया। वो पूर्ववत खड़ी रही। अब मैने थोड़ी और हिम्मत करते हुए हाथ हल्का सा पिछे करते हुए उसकी गांड़ पर अपना हाथ मारने लगा। कुछ सेकण्ड़ तक उसकी गांड़ में हाथ टकराने के बाद मैंने अपना हाथ उसकी गांड़ पर ही रख दिया और धीरे से अपना हाथ घूमाते हुए अपना पंजा उसकी गांड़ पर रख दिया। पंजा उसकी गांड़ पर रख्ते ही वो थोड़ी चिंहुकी और हौले से मेंरी तरफ़ देखा। लेकिन मैं पूरी तरह अन्जान बन कर खड़ा रहा और मां बेटे के फ़ोन पर बात को सुनने का और जबरन मुस्कुराने का नाटक करता रहा। मेंरे लिये ये लिका छिपी अब बर्दाश्त के बाहर होते जा रही थी मैं जल्द ही नतीजा हासिल करना चाह्ता था लेकिन अपने जोश पर होश का कंट्रोल जरुरी था। खैर मैने थोड़ा और प्रयास करते हुए उसकी दांई गांड़ से अपना हाथ घुमाते
हुए उसकी बाई गांड़ पर घुमाते हुए उसके कमर और पीठ पर घुमाते हुए उसके कंधो पर रख दिया जैसे दोस्तों के कंधो पर रख्ते है।
|