RE: Bhabhi ki Chudai कमीना देवर
सनी के मुंह से इस तरह की बात सुन कर नेहा एकदम से सकते में आ जाती है। शर्म और भीरुता का आपस में चोली दामन का साथ होता है। जो भीरु याने ड़रपोक होते हैं वो अक्सर शर्म को अपना सहारा बनाते हैं खुद को ड़रपोक कहलाने से बचने के लिये, नेहा भी वास्तव में ड़रपोक ही थी। सनी की बातों ने उसके मन और मस्तिष्क में गहरा असर ड़ाला और वो मन ही मन बुरी तरह से ड़र गई। उसे अब अपनी बदनामी का ही ड़र सताने लगा और वो सोचने लगी यदि इसने ऐसा कुछ कर दिया
तो दोनों ही परिवारों के सभी सदस्यों की चौतरफ़ा बदनामी होगी, और मेंरी दोनो बहनों की तो क्या? इसकी अपनी बहन की दिया की शादि में समस्या खड़ी हो जायेगी। सनी की बातों ने उसे बुरी तरह से झकझोर दिया था और वो अपनी वर्तमान नग्न अवस्था को भूल कर सनी की बातों का ही मंथन करने में उलझ गई।
इधर सनी नेहा की तरफ़ बारीकि से देख रहा था और अपने शब्दों की उस पर प्रतिक्रिया की थाह लेने की कोशिश कर रहा था . उसने देखा कि नेहा पूरी तरह से विचार मग्न है और बुरी तरह से चिंतित भी है। वो समझ गया कि उसका तीर एकदम निशाने पर लगा है। नेहा को इस तरह शांत बैठे देख वो मुस्कुरा दिया , इसी तरह जब दो, तीन मीनट तक वो इसी तरह प्रतिक्रिया विहीन बैठी रही तो वो समझ गया कि अब इसके तरकश में तीर नहीं बचे है और एक प्रकार से इसने हथियार ड़ाल दिये है।
वो कुछ देर फ़िर रुका रहा ये देखने के लिये कि शायद कुछ सामान्य होने के बाद ये फ़िर कुछ प्रतिक्रिया दे लेकिन अब नेहा कुछ बोल नहीं पा रही थी केवल फ़र्श पर नंगी बैठी हुई अपनी किस्मत और दुविधा दोनों पर आंसू बहा रही थी। ये बात एकदम सही थी कि यदि सनी ने जो बोला था वो कर दे तो वाकई एक बड़ा धमाका हो सकता था और दोनों ही परिवारों की प्रतिष्ठा समाज में धूमिल हो जाती। लेकिन सनी बड़ा ही कमीना और मक्कार था उसका ऐसा कोई इरादा नहीं था, वो तो केवल नेहा को ड़राने के लिये ऐसा बोल रहा था। और इसी ड़र की आड़ ले कर वो अपनी भाभी की बुर हासिल करना चाहता था। लेकिन बेचारी नेहा तो नादान थी वो कोई ईश्वर की तरह अन्तर्यामी तो थी नहीं कि वो सनी के मन की बात समझ सकती लिहाजा एक इंसान के रुप में उसका ड़रना और भयभीत होना लाजिमी था।
नेहा उठ कर अपने कपड़ों तक जाना चाहती थी और कपड़े पहन किसी तरह रुम से बाहर निकल जाना चाहती थी, लेकिन अपनी नग्नता के अहसास ने उसे जमीन पर चिपका कर रखा था। उसे यूं सनी के सामने नंगी चल कर जाने में बेहद लज्जा का अनुभव हो रहा था। वो इसी उहापोह मे पड़ी थी कि उसे उठ कर जाना चाहिये या नहीं इसी बीच सनी उसके पास आ कर बैठ गया और उसकी नंगी पीठ पर हौले हौले हाथ घुमाने लगा। नेहा का कलेजा जोर जोर से धक धक करने लगा, उसे लगने लगा कि यदि तत्काल कुछ नहीं किया तो इसके हाथों से अब बचना मुश्किल होगा। घबराहट के मारे उसकी रुलाई छूट पड़ी और वो फ़फ़कने लगी उसकी आंखों से आंसू की मोटी मोटी धारा निकलने लगी। वो कुछ कहने के लिये मुंह खोलना चाहती ही थी कि उसे सनी की आत्महत्या की धमकी याद आ गई। उसके मस्तिष्क में एक के बाद एक अनेंक विचार आने लगे लेकिन वो किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थी। यही नेहा की सबसे बड़ी कमजोरी थी कि मुश्किल घड़ी में वो कभी ना तो सही सोच पाती थी और ना ही सही निर्णय ले पाती थी।
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