Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 03:58 PM,
#49
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
राइचंद'स में घर वाले धीरे धीरे विक्रम की मौत को भूलने की कोशिश कर रहे थे... सुबह सुबह जब सुहसनी और अमर रुटीन वॉक कर रहे थे, तभी इनस्पेक्टर निखिल वहाँ आ पहुँचता है....



"इनस्पेक्टर, जब भी आते हैं सुबह को ही आते हैं, कभी लेट भी हो जाया करो, सुहसनी, इनके लिए चाइ और नाश्ते का प्रबंध करो.." अमर ने निखिल से बैठने का इशारा किया



"सॉरी सर, बट सुबह के वक़्त ही आपके पास टाइम रहता है , फिर आप बिज़ी होते हैं इसलिए मैं इसी वक़्त आता हूँ, और आगे भी इसी वक़्त आउन्गा.." निखिल ने अपने ग्लास निकाल के कहा



"कोई बात नहीं, बताइए, क्या कर सकता हूँ मैं.."



"सर, जिस दिन विक्रम जी यहाँ से गये थे, उस दिन उन्होने अपने फरन्डस के साथ पार्टी की थी, और हम ने उनकी गवाही भी ले ली है..लेकिन..." निखिल कहते कहते रुक गया



"लेकिन पे रुकना बुरी बात है इनस्पेक्टर, ज़िंदगी में अपनी बात या तो बेबाकी से बोलना सीखो या तो चुप रहना सीखो..." अमर ने धीरे लेकिन कड़क टोन में कहा



"लेकिन सर, उनका एक फ्रेंड है. उसने गवाही में कहा, कि जिस रात उन्होने पार्टी थी, उस दिन वो सब लोग काफ़ी शराब पी रहे थे और मस्ती मज़ाक कर रहे थे, लेकिन विक्रम सर का दिमाग़ उनके साथ नही था, वो अपनी कुछ अलग सोच में डूबे हुए थे... कुछ देर में जब पार्टी ओवर हुई, तो उनके सब दोस्तों को नींद आने लगी, लेकिन विक्रम सर वैसे के वैसे ही थे.. मतलब कि वो या तो पी नहीं रहे थे या तो वो बहुत कम पी रहे थे... इसका कारण यह हो सकता है कि वो अपने दोस्तों के सो जाने का वेट कर रहे थे.." निखिल ने इतना ही कहा कि अमर ने बीच में टोक दिया



"लेकिन विक्रम ऐसा क्यूँ करेगा इनस्पेक्टर.."



"सर, उसी पे आ रहा हूँ मैं... जब मुझे उनके फ्रेंड ने यह कहा, तब मैने भी यही सवाल उससे पूछा, हाला कि उसे खुद नहीं पता था कि ऐसा क्यूँ कर रहे हैं विक्रम जी, लेकिन रात को जब सब लोग सो गये थे, इस बंदे ने जो विक्रम जी का दोस्त है, रात को उनकी आँख हल्की खुली थी, उन्होने जब आँख खोल के देखा तो विक्रम जी उस रूम की खिड़की पे कुछ देख रहे थे, फिर अचानक विक्रम जी ने उस खिड़की से छलाँग लगा ली जो थोड़ी दूर जाके जंगल में जाती है... जब तक उनके दोस्त को कुछ आइडिया आता, तब तक वो फिर नशे की वजह से सो गये... उनके सभी दोस्तों ने सेम गवाही दी है, लेकिन इस दोस्त की गवाही में सिर्फ़ यह बात ही अलग है, बाकी सब सेम है.. मतलब यह कि कोई झूठ नहीं बोल रहा, और हम ने सब का लाइव डिटेक्टर टेस्ट भी करवाया है.." निखिल ने अपनी बात ख़तम की और तब सुहसनी भी चाइ लेकर आ गयी...



"लेकिन इनस्पेक्टर, खिड़की के नीचे छलाँग क्यूँ लगाई, मतलब कि उसने ज़रूर कुछ अजीब होता हुआ देखा होगा, " अमर ने सुहसनी के जाते ही कहा



"या फिर किसी और को देखा हो..." निखिल ने यह बात अमर की आँख में आँख डाल के कही और दोनो की आँखें बड़ी हो गयी इस बात से... अमर को जैसे एक झटका सा लगा हो



"सर, आप चाहें तो यह सवाल स्किप कर सकते हैं, लेकिन क्या वजह है जो आप वो फार्म हाउस बेच रहे हैं.." निखिल ने अपनी चाइ लेते हुए कहा



अमर और निखिल यह बात कर ही रहे थे कि शीना खिड़की से यह सब देख रही थी और फोन पे किसी से बातें भी कर रही थी... उपर खड़े रहते रहते उसने देखा कि अमर और निखिल बहुत गंभीर होते जा रहे हैं, अमर अब अपनी शकल घुमा के कुछ बता रहा था, जैसे की कोई फ्लश बॅक या कुछ और बात जो सीरीयस थी..



"चल सुन बाइ, हां बाबा, आ जाउन्गी मैं यार, तू ना बहुत लोड देती है आज कल आर्किटेक्ट बन के" कहके शीना ने फोन रखा और जैसे ही पीछे मूडी, अपने सामने रिकी को खड़ा पाया



"गुड मॉर्निंग भाई.. " शीना ने आगे बढ़ के कहा



"गुड मॉर्निंग शीना, सुबह सुबह क्या देख रही हो.." रिकी ने कमरे से बाहर आते हुए कहा और शीना भी उसके पीछे चल दी



"कुछ नहीं भाई, अच्छी चीज़ हो तो बताऊ.. जब देखो यह इनस्पेक्टर सुबह सुबह आता है और पूरा दिन फिर यह सोचते रहते हैं कि यह क्यूँ आया.. और पापा भी कुछ नहीं बताते हमें तो.." शीना और रिकी दोनो डाइनिंग टेबल पे बैठ गये और नाश्ता करने लगे... यह दोनो बातें ही कर रहे थे कि राजवीर और ज्योति के साथ सुहसनी भी आ गयी और सब नाश्ता करने लगे...



"भाभी, सुबह सुबह यह इनस्पेक्टर, क्या हुआ.. और स्नेहा भी नहीं दिख रही आज नाश्ते पे.." राजवीर ने सुहसनी से पूछा, लेकिन सुहसनी कुछ बोलती उससे पहले शीना बोल पड़ी



"चाचू, भाभी को मैं बुला लेती हूँ, लेकिन यह इनस्पेक्टर क्यूँ आया है, वो तो पापा ही बता सकते हैं..." कहके शीना स्नेहा को बुलाने चली गयी



"ह्म्‍म्म, सर अगर आप पर्मिशन दें तो क्या मैं उस फार्म हाउस में टाइम स्पेंड कर सकता हूँ... अगर आपकी इजाज़त हो तो ही.." निखिल और अमर अब खड़े रहके ही बातें कर रहे थे



"हां इनस्पेक्टर, आप मुझे बता देना कब जाना चाहते हैं, मैं अरेंज्मेंट्स करवा दूँगा.." उमेर ने फाइनली अपना मूह निखिल की तरफ घुमाया



"ठीक है सर, मैं आपसे कह दूँगा, बट आप वहाँ किसी को नही बोलें कि मैं इनस्पेक्टर हूँ, आप बस उनसे यह कहें कि दोस्त या दोस्त का बेटा है... या जो भी आपको सही लगे, बट इनस्पेक्टर.. बिल्कुल नही..."



"समझ गया मैं इनस्पेक्टर, डोंट वरी.. आप मुझे एक दिन पहले कह देना, मैं सब कर दूँगा.."



"ठीक है सर, मैं चलता हूँ फिलहाल तो.. उम्मीद है नेक्स्ट टाइम भी आपसे सुबह ही मुलाकात होगी.." निखिल ने हल्की सी हसी के साथ कहा और वहाँ से निकल गया
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RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - by sexstories - 07-03-2019, 03:58 PM

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