Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 04:00 PM,
#56
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"ह्म्‍म्म, राजवीर क्या कहते हो.. इस ज़मीन के बारे में.." अमर और राजवीर अपने सामने पड़े एक चार्ट पेपर को देख रहे थे और साथ ही साथ अपना जाम पी रहे थे.. दोनो इस वक़्त अमर के उसी वीकेंड होम में थे जहाँ कुछ वक़्त पहले उनके बच्चे आए थे



"ज़मीन तो बढ़िया है भाई साब, शहर के बीचो बीच है तो हर जगह से डिस्टेन्स सेम ही रहेगा, फिर चाहे वो मार्केट हो, या साइट सीयिंग प्लेसस..." राजवीर ने भी अपने ग्लास उठाया और अमर की हां में हां मिला दी



"ठीक है चलो इसे फाइनल कर देते हैं, कल सुबह तक क्लोज़ कर देते हैं.."



"पर भाई साब, बिना किसी भाव तोल के, मतलब अगर यह ज़मीन सस्ते में मिलती है तो इसमे हर्ज़ ही क्या है.." राजवीर ने बिल्कुल सही बात कही थी अमर से.. जब डीलर ने उन्हे वो ज़मीन दिखाई तो अमर ने भाव पूछे बिना उसे कह दिया कि अगर पसंद आएगी तो जल्दी निपटा देंगे काग़ज़ात के काम को



"ठीक है राजवीर, भाव तोल करना मेरी फ़ितरत नहीं, चीज़ पसंद आ गयी तो उसे खरीद लो, अगर पैसे का बारे में सोचोगे तो शायद चीज़ नहीं मिल पाएगी तुम्हे"



"सही कह रहे हैं भाई साब, लेकिन आप खुद सोचिए, कि अगर हम इस ज़मीन का भाव तोल करेंगे तो सस्ते में मिलेगी और ऐसा कोई हमारा कॉंपिटिटर नहीं है यहाँ जो ज़मीन ले जाएगा छीन के.. आज डीलर से मेरी बात हुई तो यह ज़मीन 2000 के भाव से दे रहा है जिसका मतलब यह ज़मीन हमे करीब 28-30 करोड़ के बीच मिलेगी, लेकिन हम अगर उससे अगर 300 भी कम कर लेते हैं तो मेरा खर्चा 28-30 करोड़ के बदले सीधा 25 के नीचे आ जाएगा, मतलब 5 करोड़ की सीधी बचत" राजवीर ने अपनी कॅल्क्युलेशन दिखा के कहा



"मुझे नहीं देखना यह सब राजवीर, मेरे नेचर में भाव तोल करना नहीं है, और ना ही मैं वो करना चाहता हूँ.. आज इतने ब्रोकर्स और डीलर्स आए थे हमारे पास क्यूँ कि वो जानते हैं कि अमर कभी भी औरतों के साथ सब्ज़ी मंडी नहीं जाता.." अमर ने एक ठहाका लगाते हुए कहा और दोनो ग्लासस फिर भर दिए



अमर की यह बात राजवीर को बिल्कुल पसंद नहीं आई, लेकिन उसने खामोश रहना ठीक समझा.. चुप चाप दोनो अपने अपने ग्लास में से दारू पी रहे थे तभी अमर को उस डीलर का फोन आया



"हां जी , देशपांडे साब.. आप तो बड़े बिज़ी हो गये हैं.." अमर ने फोन उठा के कहा



"हां जी ज़मीन तो पसंद है हमें, बस अब आप सुबह आ जाइए, कागज़ी काम काज निपटाना चाहता हूँ कल ही.." अमर ने अपने ग्लास से एक और चुस्की लेते हुए कहा, और ठीक उसके सामने राजवीर उसकी बातें सुन रहा था और साथ ही उसकी डील करने के तरीके को अब्ज़र्व कर रहा था



"अच्छा, लेकिन अभी राजवीर ने तो 2000 बताया मुझे.." अमर ने राजवीर की ओर देखते हुए कहा जिससे राजवीर ने अपना ग्लास नीचे रखा और अमर के चेहरे के भाव पढ़ने लगा



"ना जी, कोई दिक्कत नही, 2500 में डन करेंगे...लेकिन हां इस बात का ध्यान रहे, मुझे इस ज़मीन पे कोई नाटक नहीं चाहिए खरीदने के बाद, क्लिर्नेस और पेपर सब ठीक होगा तब ही पूरा पैसा दूँगा, पेपर्स साइन होंगे, मैं चेक करवाउन्गा, सब ठीक निकला तो आपके पैसे आपके पास पहुँच जाएँगे..." अमर ने अपनी छाती चौड़ी करते हुए कहा



"ठीक है चलिए, " कहके अमर ने जैसे ही फोन रखा राजवीर ने बोलना शुरू किया



"भाई साब, दोपहर को मेरी बात 2000 में हुई, अभी 2500 कैसे.. कॉस्टिंग 25 % से बढ़ जाएगी , अब 28 के बदले हमें 35-40 करोड़ देने पड़ेंगे.." राजवीर बिना कुछ सुने अपनी बात कहने लगा



"अब बस भी करो राजवीर, हम ने फ़ैसला कर लिया तो कर लिया.. अब ज़्यादा किच किच नहीं चाहिए इस बात पे मुझे " अमर ने अपना ग्लास खाली किया और फिर उसे भरने लगा



"माफ़ कीजिएगा भाई साब, अगर मेरी कोई बात सुननी नहीं थी, तो फिर मुझे यहाँ लाए ही क्यूँ आप.. अकेले भी आ सकते थे, " राजवीर ने झल्ला के कहा



"अपनी टोन को काबू में रखो राजवीर, मुझ से ऐसे बात नहीं करो तुम" अमर ने कड़क आवाज़ में जैसे हिदायत देते हुए कहा जिसे सुन राजवीर कुछ देर के लिए खामोश हो गया



"आज हमारे पास जो भी है, सब ऐसे ही नहीं बना है, मेहनत के साथ साथ दिमाग़ भी लगाया है.." अमर ने फिर गुरूर दिखा के कहा



"जानता हूँ भाई साब, विक्रम ने आप से ज़्यादा मेहनत ही नहीं की , लेकिन आज अगर प्रॉपर्टी जितनी भी है, उसमे काफ़ी योगदान विक्रम का भी रहा है, और आज अगर वो आपकी जगह होता तो ऐसे डील नहीं करता वो... शेर हैं आप जंगल के, लेकिन यह भी मान लीजिए कि अब शेर बूढ़ा हो गया है... जब शेर बूढ़ा होता है तो उसकी ताक़त कम नहीं होती, पर उसकी चालाकी कम होती है, इसलिए वो कमज़ोरी का बहाना बनाता है और उसे जो मिलता है वो खाने लगता है.. आप ज़्यादा सोच नहीं सकते अब, इसलिए बस जो भी मिल रहा है, जैसा भी मिल रहा है वो ले रहे हैं..' राजवीर ने अपनी आँखें अमर की आँखों से मिलाते हुए कहा. अमर यह बात सुन अपने दाँत पीसने लगा और तैश में आके एक ही झटके में अपना जाम ख़तम कर दिया



"यह भी तुम्हारी वजह से है राजवीर, अगर तुम मुझे छोड़ के अकेले नहीं जाते तो आज हम भाई साथ रहते और मेरे बच्चे को इस बेट्टिंग के दलदल में नहीं आना पड़ता और शायद उसका भविश्य अलग होता.. लेकिन तुम्हारी वजह से मैं अकेला हुआ और मजबूरन विक्रम को मुझे इस काम में धकेलना पड़ा.."



"मैं भी आपकी ज़िद्द की वजह से ही गया था भशब, आपने ही मेरी ज़िंदगी बर्बाद की.. आपके रुतबे और शान शौकत की वजह से मुझे यहाँ से जाना पड़ा, अगर आज मैं अपनी ज़िंदगी अपनी मर्ज़ी से जी रहा होता तो शायद आज सुखी होता मैं, लेकिन.."



"लेकिन क्या राजवीर... आज किस चीज़ की कमी है, पैसा रुतबा एक सुशील लड़की, और क्या चाहिए तुम्हे... सुख के लिए इंसान को इन सबसे ज़्यादा और कुछ नहीं चाहिए राजवीर, वहम से निकलो" अमर ने राजवीर को टोकते हुए कहा



"यह सब आपको लगता है भाई साब.. आज मेरी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा कमी है प्यार की, जिसे शायद आप कभी समझ नहीं पाए...और रही बात मेरी लड़की की, तो वो भी मैं ज़िद्द करके अडॉप्ट करके लाया, अगर आपके कहने पे चलता तो शायद ज़िंदगी भर अकेला ही रहना पड़ता और घुट घुट के जीता"



"अपनी ज़बान पे काबू रखो राजवीर... अगर होश में नहीं हो तो दफ़ा हो जाओ यहाँ से और जा के सो जाओ,. लेकिन यह बात जो मुझे कही, अगर कभी भूल से ज्योति के आगे कही तो मैं भूल जाउन्गा के तुम मेरे भाई हो.." अमर ने चिल्ला के कहा



"भूल तो आप मुझे कब के गये हैं भाई साब, आज अगर मैं अकेला हूँ तो सब आपकी वजह से.. आपकी वजह से.... आप.... कीईईई.. व्जहह.." राजवीर होश खोने लगा शराब के नशे की वजह से और वहीं पड़े सोफे पे बेहोश सा हो गया



बेहोश होने से पहले आज राजवीर ने अपने दिल की काफ़ी भडास बाहर निकाली, ज्योति राजवीर की अपनी बेटी नहीं बल्कि उसकी गोद ली हुई बेटी थी... अमर ने जैसे ही यह बात सुनी, अमर के दिमाग़ में वक़्त के पन्ने पलटने लगे और काफ़ी पुरानी बातें याद आने लगी... जो राज़ अब तक अमर के सीने में दफ़्न थे, शायद अब वो धीरे धीरे कर बाहर निकलेंगे
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RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - by sexstories - 07-03-2019, 04:00 PM

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