RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"चलो, पर यह भी तो बताओ, वो वोडेफोन वाले फरन्ड से बात हुई, कोई डीटेल मिली तुम्हे उस कॉल की जिसकी बात कर रही थी " रिकी ने शीना को देख के पूछा
"हां देखा, बुत वो कॉल इनकमिंग थी, आउटगोयिंग नहीं, तो कुछ नहीं मिला.. और आउटगोयिंग में भी मुझे कोई भी नंबर कामन नहीं लगा, सब नंबर्स जाने पहचाने थे, लाइक हमारे घर के, या उसके भाई के.. इसके अलावा कोई नहीं.." शीना ने एक अजीब सा चेहरा बना के जवाब दिया जैसे मानो उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है..
"ह्म्म्म, आइ अंडरस्टॅंड, घर चल के कुछ करते हैं इसका..."
"नहीं, घर चल के सबसे पहले रिज़ॉर्ट का काम देखेंगे, यह केस तो वो इनस्पेक्टर देख रहा है ना, जब सही टाइम आएगा तब उसे बता देंगे, और रही बात विक्रम भाई की, तो सब कह रहे हैं लाइक कमिशनर अंकल और बाकी सब, कि दिस ईज़ आक्सिडेंट, उनकी बात सुन के ईवन आइ आम नोट स्योर अब कि उस दिन भाभी ने विक्रम भैया के लिए ही बात की थी के नहीं, बट सेकेंड थॉट यह भी आता है कि अगर ऐसा नहीं होता तो उस दिन जब मैने भाभी से कहा कि मैं जानती हूँ विक्रम भैया के बारे में तो वो डर गयी थी, मतलब कुछ तो है भाभी से लेना देना इस बात का" रिकी बड़े ध्यान से शीना की यह बात सुन रहा था
"ठीक है चलो, घर जाके देखेंगे अब, मैं ज़्यादा नहीं सोचना चाहती, ऐसा टाइम आपके साथ जाने कब मिलेगा दोबारा.." शीना ने फिर रिकी का हाथ थामा और दोनो रिज़ॉर्ट की तरफ निकल गये
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इधर,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
"पापा.. मे आइ कम इन.." ज्योति ने राजवीर का दरवाज़ा नॉक करके पूछा
"यस बेटा, आ जाओ, " राजवीर अंदर कुछ पेपर्स देख रहा था और उसमे से आँख निकाले बिना ही जवाब दे दिया
"उह पापा, " ज्योति ने राजवीर के सामने खड़े होके कहा
"यस बेटा.. टेल मी.." कहके जैसे ही राजवीर ने उसे सामने देखा उसका मूह खुला का खुला रह गया, सामने उसकी बेटी ऐसे खड़ी थी जैसे कोई मॉडेल आडिशन देने आई हो, रेड लो कट लूस टॉप और नीचे डेनिम शॉर्ट्स... ज्योति का बदन ऐसे देख राजवीर पागल हो गया, उसे फिर उस दिन के शॉपिंग के नज़ारे दिखने लगे, उसका चिकना सपाट पेट, गहरी नाभि सब उसकी आँखों के आगे था.. ज्योति ने यह देखा तो वो खुश हुई अंदर ही अंदर, कि बस अब बाकी गोआ का कदम है, फिर उसको मज़े मिलेंगे
"पापा, आर यू फाइन ?" ज्योति ने उसके करीब आके कहा
"उः, यस , बताओ बताओ.. उः ह्म हुहह" राजवीर ने अपना गला सॉफ करते हुए कहा
"पापा, कल हम राजस्थान चल रहे हैं ना..." ज्योति ने खड़े खड़े ही राजवीर से कहा, क्यूँ कि वो जानती थी कि इस पोज़िशन में राजवीर नीचे से उसके लूस टॉप से उसके चुचे देख सकता है
"हा..हॅन,, हान्न्न चल रहे हैं ना, उधर दो दिन रुकेंगे भी.." राजवीर ने फिर अपनी नज़रें हटाई वहाँ से और खड़ा हो गया ज्योति के सामने
"ओके, तो पापा मैं क्या सोच रही हूँ, कि प्रॉजेक्ट तो मेरा रेडी है ही.. तो बस सुबह को पहुँच के सब्मिट कर दूँगी और फिर आप शाम तक अपना काम निपटा देना जो भी ज़रूरी हो, वहाँ रुकने के बदले क्या हम लोग गोआ चलें प्लीज़..." ज्योति ने मुस्कान के साथ राजवीर से कहा, लेकिन राजवीर कुछ जवाब देता उससे पहले ज्योति ने अपना अगला कदम उठाया और आगे बढ़ के राजवीर से चिपक के खड़ी हो गयी, उसका हाथ पकड़ लिया और अपनी चूत को उसके लंड से चिपका दिया, ज्योति ने महसूस कर लिया कि उसे देख उसके बाप को मज़ा आ रहा है, और ज़्यादा ज़ोर देने के लिए ज्योति ने फिर अपना बदन चिपका लिया उससे और अपने हाथ उसकी कमर के पीछे डाल दिए
"चलिए ना, मेरे प्यारे पापा प्लीज़...प्लीज़..." ऐसा कह कह के ज्योति अपनी हाथ राजवीर के पीठ पे भी घूमने लगी, राजवीर पागल होता जा रहा था
"ओके ओके.. बेटी ओके, टिकेट्स कर दो," कहके राजवीर ने उसके हाथ कमर से हटाए और आगे ला दिए
"थॅंक यू थॅंक यू पापा.." कहके ज्योति ने राजवीर के गालों पे बच्चों जैसे चूमा और वहाँ से जाने लगी, जाने के लिए ज्योति जैसे ही मूडी, वो जानती थी कि राजवीर की आँखें उसका पीछा करेगी, इसके लिए अपनी गान्ड को ज़्यादा ही ठुमका के चल रही थी और धीरे धीरे बढ़ रही थी, दरवाज़े के पास पहुँचते ही उसने मज़ा करने का सोचा, वो अचानक ही थोड़ा सा मूडी, अपनी गान्ड थोड़ी ज़्यादा बह्ऱ निकाली और हँस के राजवीर से कहा
"गुड नाइट पापा"
ज्योति के ऐसा करने से राजवीर समझ गया कि ज्योति ने देख लिया उसकी गान्ड देखते हुए, इसलिए वो कुछ नहीं बोला और बस स्माइल कर के वापस अपने काम में लग गया..
उधर इनस्पेक्टर निखिल अमर के फार्म हाउस में पहुँच चुका था अपनी टीम के साथ, वहाँ के दो तीन स्टाफ के लोगों को यह कहा गया था कि यह अमर के दोस्त के बेटे हैं और उसके दोस्त, उनका अच्छे से ख़याल रखा जाए... फार्म हाउस देखने के बहाने निखिल ने सेक्यूरिटी गार्ड से हर कमरे के लॉक की चाबी माँगी
"अरे साब, यह सब रूम का दरवाज़ा एक ही चाबी से खुलेगा, सब की चाबी एक ही है. यह लीजिए.." गार्ड ने निखिल को एक चाबी देते हुए कहा
"सब की एक चाबी, क्यूँ... आइ मीन..." निखिल ने बस इतना ही कहा के गार्ड फिर बोल पड़ा
"सर, पता नहीं हम को, पर विक्रम साब जब भी आते हैं तो हमेशा यही कहते हैं कि अच्छा है एक चाबी है, नहीं तो इतनी संभालेगा कौन.."
"ह्म्म्म, विक्रम साब कब आते हैं यहाँ.." निखिल ने सेक्यूरिटी गार्ड से पूछा क्यूँ कि सेक्यूरिटी गार्ड को पता नहीं था कि विक्रम की मौत हुई है
"उनको तो काफ़ी टाइम हो गया सर, पिछली बार जब आए थे, तब दो दिन रुके थे, एक रात तो खूब मस्ती की दोस्तों के साथ, दूसरे दिन दोस्त चले गये और खुद रात को निकले" सेक्यूरिटी गार्ड आगे चलते हुए बोलने लगा
"मतलब, विकी दूसरे दिन यहाँ से निकला था, और अगर इसने देखा है तो ठीक ही होगा, तो फिर उसकी मौत यहाँ नहीं हुई है, लेकिन फिर भी मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कि शायद उसकी मौत का राज़ यहीं से जुड़ा है" निखिल ने खुद से कहा और कुछ सोचता हुआ आगे बढ़ने लगा
"अच्छा यह बताओ, तुम यहाँ अकेले रहते हो, आइ मीन तुम दो तीन लोग, डर वर्र नहीं लगता" निखिल ने फिर सेक्यूरिटी गार्ड के चेहरे की तरफ देखा
"नहीं सिर, डर कैसा, लाइट जलता रहता है, और हर तीन घंटे में पोलीस पट्रोलिंग होता है, हां पीछे जंगल है वहाँ से कभी जानवरों की आवाज़ आती है, लेकिन उनसे कैसा डर साब, कॅबिन के बाहर ठंडियों में एक मशाल जला लेते हैं, जानवर उससे डरते हैं इसलिए.. यह लीजिए आप का कमरा आ गया.." सेक्यूरिटी गार्ड ने एक कमरा खोल के कहा
"अरे, विकी से बात हुई मेरी आज, उसने कहा जिस रूम में वो रुकता है वहाँ रुकना चाहता हूँ मैं, तो."
"यही कमरा है सर, विकी साब के दोस्त जब आते हैं हम से यही कहते हैं, इसलिए आपके कहने से पहले यहाँ आ गये..लीजिए चाबी, कुछ चाहिए तो हमे फोन कर दें, हम तीनो लोग बाहर ही रहते हैं" कहके सेक्यूरिटी गार्ड वहाँ से निकला और निखिल भी उस कमरे में घुस गया
इंडोनेषिया... मुंबई और लोनावाला.... इन तीनो से काफ़ी दूर दो जगहों पर कुछ क्रिया हो रही थी.. धार्मिक क्रिया... एक जगह स्मशाण में एक लाश को जलाया जा रहा था और एक जगह चर्च में दूसरी लाश को दफ़नाया जा रहा था....
"ह्म्म्म्म.... चलो यह तो निपट लिए, अब थोड़ा आराम किया जाए.." किसी ने खुद से कहा और सिगरेट के धुएँ छोड़ने लगा.
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