Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 04:03 PM,
#69
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"चलें... नहीं तो देर ना हो.." राजवीर ने बाथरूम जाते हुए कहा



"ऐसे कैसे, आप यह कपड़े पहनिए, बीच पे कोई जीन्स पहनता है क्या.." ज्योति ने राजवीर को एक स्पोर्ट वेस्ट और टाइट बॉक्सर देते हुए कहा... काफ़ी ना नुकुर करके ज्योति ने उससे अपनी बात मनवाई, कपड़े चेंज करके जैसे ही राजवीर बाहर आया, ज्योति की नज़र सबसे पहले राजवीर के लंड की तरफ गयी , बाहर से ही ज्योति को अंदाज़ा आ गया कि राजवीर का लंड तना हुआ था, और टाइट बॉक्सर की वजह से वो कुछ ज़्यादा ही कसा हुआ लग रहा था.. तब तक ज्योति ने भी अपने उपर एक स्विम सूट पहेन लिया और हाथ में हाथ डाल के राजवीर के साथ बीच की तरफ चल दी... विवांता से थोड़ी ही दूरी के वॉक पर ज्योति राजवीर को कांडॉलिम बीच ले गयी.. क्यूँ कि ज्योति पहले यहाँ आ चुकी थी इसलिए जानती थी के कौन्से बीच पे कम भीड़ रहती है.. कांडॉलिम बीच पे लोग काफ़ी कम आते थे, जितने भी आते उनमे सबसे ज़्यादा फॉरिनर्स रहते इसलिए ज्योति ने वो बीच चुना..



"यहाँ तो कुछ नहीं है.. स्पोर्ट्स कहाँ है.." राजवीर ने बीच के आस पास नज़र फिराते हुए कहा



"हां पापा, अभी बंद हो गया होगा, कोई बात नहीं हम सुबह को कर लेंगे, अभी तो यहाँ टहलते हैं आइए ना.." कहके ज्योति ने फिर राजवीर की बाहों में अपना हाथ डाला और वॉक करने लगे... अपनी बेटी के साथ वॉक करना कुछ अलग नहीं था, लेकिन वोही बेटी जो पिछले कुछ दिनो से अपने बाप के आगे अंग प्रदर्शन करने में लगी हुई है, वोही बेटी बार बार जान बुझ के राजवीर को उकसा रही है, वोही बेटी अब कुछ सीमायें पार कर रही है.. यह सोच के राजवीर थोड़ा अनकंफर्टबल फील करने लगा, लेकिन चलते चलते जैसे राजवीर बीच पे नज़र घुमाता, वैसे वैसे उसकी नज़र फिरंगियों पे पड़ती जो बिंदास होके घूम रहे थे, बिकिनी में घूम रही गोरियाँ उसके खड़े लंड पे और ज़्यादा वार कर रही थी..



"क्या हुआ पापा.. इतने खामोश क्यूँ हो" ज्योति ने जैसे राजवीर की चोरी पकड़ते हुए कहा



"कुछ नहीं बेटी, बस अब तेरी पढ़ाई ख़तम हो तो शादी करवा दूं तेरी, कब तक अपने पापा के साथ घूमेगी तू भी.." राजवीर ने खुद को संभाला और नॉर्मल टोन में आगे देख के जवाब दिया..



"शादी में तो बहुत टाइम है पापा, उससे पहले लाइफ तो एंजाय कर लूँ.. पता नहीं ससुराल में जाके ऐसा वक़्त फिर मिले भी कि नहीं.." ज्योति ने चलते चलते अपना सर राजवीर के कंधे पे रखा



"बस... अब और नहीं चलूँगा मैं... मैं एक काम करता हूँ, मैं वहाँ सामने बैठता हूँ, तुम्हे जो करना है करो...ओके.." कहके राजवीर उससे अलग होके सामने पड़ी चेर पे जा बैठा..करीब 20 फुट की दूरी होगी उन दोनो में, राजवीर के बैठने पे ज्योति उसकी आँखों में घूरते घूरते एक हाथ सूट के ज़िपर पे ले गयी और धीरे धीरे से उसे अपने शरीर से अलग करने लगी.. जब उसका ज़िपर उसके शरीर से अलग हुआ राजवीर पे मानो जैसे आसमान टूट पड़ा हो.. सामने ज्योति को खड़ा देख वो खुद को संभाल नहीं पा रहा था.. उसका लंड अब खुद को बाहर निकलने के लिए तरस रहा था.. स्लो मोशन में ज्योति ने दोनो हाथ हल्के से उपर किए और अपने बाल सँवारते सँवारते राजवीर को ही देखती रही और उसे एक कातिलाना स्माइल दी




ज्योति पलट के धीरे धीरे समंदर के पास गयी और पानी के साथ खेलते खेलते स्विम्मिंग करने लगी... राजवीर अब भी उसे ही देख रहा था के तभी उसका फोन बजा..



"सही जगह पे ग़लत इंसान के साथ आया हूँ, अब क्या करूँ मैं.." राजवीर ने फोन उठाते ही सुहसनी से कहा



"ग़लत इंसान क्यूँ.." सुहसनी ने हन्स के जवाब दिया



"अरे भाभी, यहाँ आप होती तो मज़ा ही अलग था, कसम से कह रहा हूँ.. रात को समंदर के किनारे यहाँ की रेत पे आपके बदन की गर्मी में जो मज़ा आता वो कैसे मिलेगा अब.." राजवीर ने अपने खड़े लंड पे हाथ फेरते हुए कहा लेकिन उसकी आँखें अभी भी ज्योति पे थी जो स्विम्मिंग में लगी हुई थी



"तुम्हारी बेटी का जिस्म भी गरम ही है राजवीर... हाथ सेक लो, जानती हूँ कि तुम सही ग़लत सोचोगे, लेकिन लंड और चूत का जब मिलन होता है तब कोई रिश्ता नहीं टिकता, तब तो बस अपनी अपनी प्यास भुजाना ही महत्व का काम होता है..." सुहसनी ने कहा



"और हां, वो तो फिर भी तेरी गोद ली हुई बेटी है, जब तूने मुझे पहली बार बिस्तर पे सुलाया था तब कहाँ थी यह सोच.. मैं तो तेरी सग़ी भाभी हूँ.. खून का रिश्ता ना तेरा मुझसे है ना ही ज्योति से.. फिर कैसी हिचकिचाहट... देख, कहीं बाहर वाले से मूह लग गयी तो फिर तुझे इतना पॅक माल कहीं से नहीं मिलेगा... फिर ढूँढते रहना अपने लिए सील पॅक माल.." सुहसनी ने हँसते हुए कहा



"सील पॅक तो शीना भी है ना भाभी, उसके बारे में क्या कहोगी" राजवीर के लंड ने अंदर तूफान मचा रखा था और वो उसे हाथ फिरकर ठंडा करने की कोशिश कर रहा था



"कौन जाने... शीना और रिकी साथ ही गये हैं, अब जब प्यार करते हैं तो यह तो होना ही था, अब जब साथ गये हैं इतना दूर, तो क्या चुदवायेगी नहीं.. शीना तो तेरे हाथ से गयी, अब भी बोलती हूँ, ज्योति को मसल डाल अपने नीचे.. वो भी खुश, तू भी खुश" सुहसनी ने फिर ऐसे जवाब दिया जैसे वो कोई बाज़ारू औरत हो और राजवीर उसका ग्राहक



"दोनो साथ कैसे.... " राजवीर ने इतना ही कहा के अगले पल वो फिर बोल उठा



"ओह हां, जान गया, तुमने ट्रॅवेल एजेंट से पता किया होगा, उस दिन जब कमरे में दोनो एक दूसरे को चूमने जा रहे थे, तब से तुमने उनका पीछा किया होगा, "



"नहीं नहीं, पीछा नहीं किया, वो तो कल बिल सेटल्मेंट के लिए आया था, अमर नहीं थे तो मुझे पता चला... अमर होते तो ज़्यादा कुरेदते इस मामले को" सुहसनी ने फिर जवाब दिया और खामोश रही.. राजवीर भी कुछ कहने जा रहा था तभी ज्योति आती दिखाई दी उसे, फोन कट करके अपने खड़े लंड को छुपाने की ना काम कोशिश करने लगा





इधर...........................
अमर जब लोनवाला से वापस घर आया तब काफ़ी परेशान था, सुहसनी ने कई बार पूछा लेकिन अमर ने उसे कुछ नहीं बताया... अमर गार्डेन में बैठा ही था कि उसकी नज़र गाड़ी से उतरते रिकी और शीना पे पड़ी..



"अरे बेटा, आ गये , इतनी जल्दी और साथ में कैसे" अमर ने दोनो को बैठने का इशारा करते हुए कहा



"मैं तो 2 दिन के लिए ही गयी थी पापा, " शीना ने यह कहा कि रिकी फिर बोल पड़ा



"हां पापा, तभी मैने शीना को फोन किया कि एक दिन और रुक जाए, फिर ऑस्ट्रेलिया से जकार्ता और जकार्ता से हम साथ आएँगे.. शीना मान गयी और हम आ गये"



"ओके बेटा, हाउ वाज़ युवर ट्रिप, आंड आर्किटेक्ट्स से मिले, एनी प्रोग्रेस देअर्.." अमर ने रिकी और शीना दोनो से पूछा



"हां पापा.. बस कुछ दिन में उनकी टीम यहाँ आएगी और हम लोग काम स्टार्ट करेंगे.." रिकी ने पूरे विश्वास से जवाब दिया और अमर को देखने लगा, लेकिन अमर उसको ना देख के कहीं और ही डूबा हुआ था, परेशानी उसके चेहरे से सॉफ झलक रही थी जिसे शीना ने भी देख लिया



"पापा, एवेरितिंग ऑलराइट..." शीना ने अमर से पूछा और एक नज़र रिकी को देखा



"बेटी, वो फार्महाउस में.." अमर ने उन्हें सारी बातें बता दी



"ओह माइ गॉड.. अब क्या होगा पापा..." शीना ने परेशानी से कहा, वो निखिल को स्नेहा के बारे में बताना चाहती थी लेकिन निखिल की मौत का सुन के उसके उपर जैसे किसी ने इतना बड़ा हमला कर दिया था जो वो उम्मीद भी नहीं कर सकती थी.. उपर से अमर की वो नोट वाली बात उसे और तकलीफ़ दे रही थी



"पता नहीं बेटी, फार्महाउस तो नहीं बेचना अब मुझे, पर मैं यह सोच सोच के परेशान हो रहा हूँ कि आख़िर कौन कर रहा है यह सब.. " अमर ने शीना को देखा और रिकी को... दोनो की हालत सेम थी इस वक़्त.. कुछ देर की खामोशी के बाद शीना वहाँ से उठी और थोड़ी दूरी पे जाके अपने फोन से किसी को फोन मिलाया



"दा नंबर यू आर कॉलिंग ईज़ आउट ऑफ सर्विस.." यह सुन के शीना के पेर के नीचे से ज़मीन खिसकने लगी..



"ओह माइ गॉड.... ईज़ ही फाइन...." शीना ने अपने माथे से पसीना पोछते हुए खुद से कहा
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RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - by sexstories - 07-03-2019, 04:03 PM

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