RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
पहला दिन काम का... या पहले दिन अपनी ज़िंदगी के पहले जुए का... रिकी अमर को निराश नहीं करना चाहता था, इसलिए पहले दिन से ही अपने नेटवर्क को समझने में लग गया, राजवीर ने जब यह देखा कि वो नेटवर्क देखना चाहता था तो उसे काफ़ी खुशी हुई, क्यूँ कि जब अमर ने विक्रम को पहली बार बताया था, तब विक्रम भी सबसे पहले नेटवर्क समझने में लगा था.. बेट्टिंग का भाव कहाँ से आता है, कैसे आता है, उसमे रिकी और उसके साथियों का क्या रोल रहेगा, उनका क्या मार्जिन, क्या कमिशन, यह सब काफ़ी मुश्किल चीज़ें थी, इसलिए रिकी ने इन्हे पहले चुना...
"हेलो स्वीटहार्ट..." रिकी पहले दिन ही अपने नेटवर्क के काफ़ी बुक्कीस से मिला, सब से उनका रोल समझा... दिन 11 बजे शुरू होके शाम के 6 बजे ख़तम हुआ था, लेकिन रिकी दिमागी टॉर पे काफ़ी तक चुका था, पहले दिन ही वो धंधे की नब्ज़ पकड़ना चाहता था तो यह तो होना ही था...
"हाई..." शीना ने बस इतना ही कहा और अपनी बाल्कनी से समंदर की लहरों को देखने लगी.. रिकी को थोड़ा अजीब लगा शीना का ऐसा मूड देख
"क्या हुआ जी मेरी स्वीटहार्ट को..." रिकी ने अपनी बाहें शीना के पीछे से गले में डालने की कोशिश की, लेकिन शीना ने तुरंत उसका हाथ हटाया
"डॉन'ट टच मी... पूरा दिन कोई फोन नहीं, कोई मेसेज नहीं... एक ही दिन हुआ है और यह हाल है, और काम भी कौनसा फिज़िकल है जो बिज़ी थे इतने, मुझे पता है, बस सब काम फोन पे हो जाता है, फिर इसमे क्या टाइम नहीं मिला जो मुझसे बात तक नहीं की पूरे दिन..." शीना ने अपनी नाराज़गी जताते हुए कहा और आँखें सामने ही रखी
"ओह हो... तो तुम इसलिए नाराज़ हो... अच्छा चलो, क्या करूँ ऐसा जो तुम मुझे माफ़ कर दोगि मेरी इस खता के लिए.." रिकी ने एक दम मासूम सा चेहरा बना के हाथ जोड़ के शीना को देखते हुए कहा
"पता नही... यह भी मैं सोचूँ... एक दिन में आदमी बदल जाता है, पहले सुना था आज दिख भी गया..." शीना ने एक नज़र रिकी को देखा और फिर नज़रें सामने कर दी
"ओके.. लेट मी डू इट माइ वे देन.." कहके रिकी ने अपनी पॉकेट से एक सिल्क ब्लॅक कपड़ा निकाला और धीरे धीरे उससे शीना की आँखें बंद करने लगा... शीना समझ गयी कि रिकी क्यूँ ऐसा कर रहा है, इसलिए उसने ज़्यादा ना नुकुर नही की
"इट बेटर बी दा बेस्ट ओके... ऑर एल्स फर्गेट माफी वाफी.." शीना को कुछ दिख नहीं रहा था इसलिए अपने चेहरे को गोल गोल घुमा के उंगली दिखाते हुए रिकी से कहा
"सस्शह... साइलेन्स..." रिकी ने अपनी उंगली शीना के होंठों पे रखी और उसका एक हाथ अपने हाथों में ले लिया... धीरे धीरे उसके हाथों के साथ खेल के, उसकी उंगलियों को धीरे धीरे रब करके शीना को अपने पास खींचा
"ओके हनी.. ओपन युवर आइज़.." कहके रिकी थोड़ा दूर हो गया और अपनी एक उंगली उपर कर दी... जैसे ही शीना ने अपनी पट्टी खोली, उसका ध्यान सबे पहले अपने राइट हॅंड की इंडेक्स फिंगर पे गया...
"अवववववववव..... दिस ईज़ दा ब्यूटिफुल थिंग आइ हॅव एवर सीन.." शीना ने अपने हाथ में प्लॅटिनम लव बॅंड देख के कहा, और जब अपनी नज़रें सीधी रिकी के सामने की, तो उसके हाथों में भी सेम रिंग पहनी हुई थी
"यू बॉट दिस... फॉर अस..... अववववव, आइ लव यू आ लॉट...." शीना की आँखों से हल्के हल्के आँसू बहने लगे और दौड़ के रिकी से गले लग गयी... गले लगते ही शीना का रोना थोड़ा तेज़ हो गया, खुशी के आँसू... छोटी से छोटी बात पे भी आँखों में आ जाते हैं, शीना के लिए इससे ज़्यादा खुशी क्या हो सकती थी कि उसके प्रेमी ने उसे पहले तन से स्वीकारा ही था, लेकिन आज मन से भी स्वीकार लिया... यह दोनो रिंग्स गवाही दे रही थी इस बात की, कि यह दोनो अब एक दूजे के हो चुके हैं... पहले शरीर और आज आत्मा का भी मिलन संपूर्ण हो गया था...
"अब रोना ही है तो मुझसे दूर हटो, शर्ट खराब करोगी..." रिकी ने चिढ़ाते हुए कहा जिससे शीना ने गुस्से में आके तीन चार मुक्के रिकी को मारे, लेकिन उससे लिपटी ही रही..
"दूर कभी नहीं जाउन्गी आपसे.... अगर अब दूर गयी तो हमेशा के लिए जाउन्गी, उससे पहले नहीं.." शीना ने रिकी के गले से लिपट के ही यह बात कही
"वो कभी नहीं होने दूँगा मैं... कभी भी नहीं.." रिकी ने शीना से हल्की आवाज़ में कहा और उसके साथ बाल्कनी में ही बैठ गया
"इतना अच्छा सर्प्राइज़ दिया, बदले में मुझे तो कुछ दो.." रिकी ने फिर मज़ाक में शीना को देख के कहा
"ओके...कम वित मी... लेट मी शो इट टू यू.." शीना ने रिकी का हाथ पकड़ा और खीच के उसे अपने कमरे के बाहर ले गयी...
"वेट वेट, दरवाज़ा मत खोलो, पहले यह बाँध लो, नो चीटिंग ओके..." शीना ने रिकी से कहा और उसके हाथ में सेम ब्लॅक कपड़ा दे दिया
"ओके, बट मेरे रूम में क्या सर्प्राइज़ होगा... चलो लो इट्स डन" रिकी ने कहा और एक बार फिर शीना ने उसका हाथ पकड़ा, और धीरे से उसके कमरे में उसके साथ चलने लगी.... कुछ सेकेंड्स हुए के शीना ने रूम की लाइट्स ऑन कर दी और रिकी की आँखों की पट्टी भी उतार दी
"ओपन युवर आइज़ आंड टेल मी हाउ ईज़ इट.." शीना ने धीरे से रिकी के कानो में कहा... रिकी ने जैसे जैसे अपनी आँखें खोली, उसकी आँखों का धुँधलापन कम हुआ और सामे का नज़ारा देख शॉक और सर्प्राइज़ उसकी आँखें बड़ी हो गयी...
"अब आप जब भी आँखें खॉलोगे, मैं रहूं या ना रहूं.. मुझे हमेशा अपने नज़दीक महसूस करोगे, जब भी आँखें बंद करोगे, हमेशा यह आश्वासन रहेगा कि आप अकेले नहीं हो.. जब भी कभी मेरी ज़रूरत पड़ेगी, मैं आपके सामने ही मौजूद हूँ.. मेरे जीते जी और कभी अगर मुझे कुछ हो भी गया उसके बाद भी... मैं हमेशा इधर आपके पास ही रहूंगी.." शीना ने रिकी का हाथ पकड़ के उसकी आँखों में देखते हुए कहा... दरअसल शीना ने अपनी आर्किटेक्ट फ्रेंड की मदद से रिकी के रूम की दीवारों को बदल दिया था, वॉलपेपर लगाए गये थे चारों और, हर वॉलपेपर में बस शीना और रिकी की तस्वीरें ही थी.. बचपन से लेके उन्होने जो अब तक साथ खीची थी, वो सब
तस्वीरें एक कॉलेज के रूप में रिकी के रूम में वॉलपेपर्स बन चुकी थी.. रिकी बस हर दीवार को देख रहा था, हर फोटो के नज़दीक जाके उसपे हाथ रख के जैसे वो लम्हे फिर से महसूस कर रहा था..
"आंड डॅड को कन्विन्स करना आसान था, इन केस इफ़ यूआर वंडरिंग..." शीना ने रिकी के हाव भाव देख के कहा, यह सुन रिकी कुछ कहता इससे पहले शीना बोल पड़ी
"कल मेरे रूम में भी ऐसा हो जाएगा... वी आर इनसेपरबल नाउ मिस्टर राइचंद.."शीना ने अपने कदम रिकी की तरफ बढ़ाए और रिकी को कॉलर से खींच के कहा
"वी आर इनसेपरबल... अगर कभी अलग हुए ना याद रखना, पहले तुम्हे मारूँगी, और फिर खुद को..." शीना ने बस इतना ही कहा के रिकी ने उसे टोकते हुए कहा
"हां, फिर भूत बनके भी मेरा पीछा करना...हाहहहा, ओके सॉरी सॉरी... बट दिस ईज़ वेरी वेरी प्रेटी... बियॉंड माइ थॉट्स, कभी कभी सोचता हूँ कि तुम वोही शीना हो जो कभी कोई एमोशन्स नहीं दिखाती थी और हमेशा अपने दोस्तों के इर्द गिर्द रहती थी.." रिकी ने शीना के बाल सहलाते हुए कहा
"मैं तो हमेशा से अपनी फीलिंग्स आपके साथ शेर करती थी, आप नहीं समझते थे, लेकिन अच्छा हुआ... जितना देर से आपने इस बात को समझा, मेरा प्यार आपके लिए उतना ही मज़बूत होता गया.. आज मैं जो भी हूँ इसलिए हू क्यूँ कि आपने मुझे अपनाया, मेरे प्यार को अपनाया.. अगर वैसा ना होता तो मैं शायद टूट चुकी होती, ज़िंदा रहती लेकिन बिना ज़िंदगी के होती... रंग होते मेरी ज़िंदगी में लेकिन वो खुशी के नहीं होते, साँस होती, लेकिन उस साँस में आपका नाम नहीं होता....हर वक़्त हर कदम मैं और सिर्फ़ मेरी तन्हाई.. मैं बहुत खुश किस्मत हूँ के आप आए मेरी ज़िंदगी में... अभी थोड़ी देर पहले जो मैने कहा वो झूठ था, अगर आप कभी मुझसे दूर हुए तो मैं आपको नहीं करूँगी कुछ... क्यूँ कि आपको देख देख के ही तो साँसें लेती हूँ, आपको देख के ही तो रोज़ जीवन में नयी उमंग आती है, आप हो तो सब कुछ है... लेकिन आप से दूर होके मैं खुद नहीं जी पाउन्गी, और आपसे दूर हो जाउन्गी.. हमेशा हमेशा के लिए... लेकिन जहाँ भी जाउन्गी, वहाँ से भी बस आपको देख के ही खुश रहूंगी..." शीना ने नम
आँखों के साथ कहा
"शीना... शीना, लुक अट मी प्लीज़.." रिकी ने शीना के चेहरे को अपने हाथों में थामा और उसकी नम आँखों में देखने लगा, प्यार से उन्हे अपने हाथों से सॉफ किया
"आज क्यूँ ऐसी बातें कर रही हो... मैं कही नहीं जा रहा.." रिकी ने धीरे से शीना की आँखों में देख के कहा
"आज मुझे बहुत डर लग रहा है... पता नही क्यूँ ऐसा लग रहा है कि आप मुझसे दूर चले जाओगे... मैं ऐसे नहीं रह पाउन्गी..." शीना ने अपनी आँखें नीची कर के कहा और रिकी से गले लग गयी
"हे हे... कुछ नहीं होगा, मैं यहीं हूँ.. तुम्हारे साथ.. तुम्हारे पास... तुम्हारे लिए.... हमेशा के लिए... " रिकी ने हल्के से शीना को फिर अपनी ओर खींचा और उसके मस्तक पे चूम लिया.. दोनो कुछ देर यूही खड़े रहे, एक दूसरे के गले लगे हुए थे..
"अच्छा, चलो बताओ.. कुछ बात हुई जकार्ता में, कब आ रहे हैं वो लोग.." रिकी ने शीना से पूछा, लेकिन उसे अपने से अलग नहीं किया
"3 दिन में.. मैने पापा से कहा, ही सेड ओक लॅंड वाली डील क्लोस्ड है... तो ऐज सून ऐज दे कम, हम काम शुरू करेंगे, मेरी फरन्ड भी इन्वॉल्व्ड रहेगी ऐज आइ हॅव कमिटेड टू हर, और हां आपके मॅनेज्मेंट की बात रही, तो मंडे टू फ्राइडे यू स्टे हियर, सॅटर्डे वहाँ चलना और काम देखते रहना.. आपको बस अब्ज़र्व ही करना है, मैं वहाँ 5 दिन आक्टिव रहूंगी... लाइक, वहाँ जाके सुबह सुबह सब काम देख के बॅक हियर बाइ 9 पीएम डेली ओके.. आंड वीकेंड्स पे साथ चलेंगे दोनो, फिर आप भी देखना सब काम... अब अगर यह फॉलो नहीं किया ना, तो याद रखना..." शीना ने इस बार थोड़ा सा अलग होके जवाब दिया लेकिन उसके हाथ रिकी के कंधों पे ही थे
"बाप रे... सब सोच लिया है, चलो ठीक है, अब यह हो जाएगा, नो टफ हाँ" रिकी ने जवाब दिया और दोनो फिर वहीं बैठ के दिन भर की बातें करने लगे
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राजवीर का चाँटा ज्योति के दिल पे लगा था, एक पल के लिए ज्योति रुकी ज़रूर थी यह सोच के शायद राजवीर सही था, वो रास्ता भटक रही है, लेकिन फिर रिकी को खोने का एहसास आया और फिर उसका दिल उन रास्तों पे चल दिया जो उसे ग़लत दिशा में ले जाने को थे.. अपने कमरे में बैठे बैठे ज्योति बस आगे के बारे में सोच रही थी , वो सोच रही थी कि कौन है वो जो स्नेहा को हुकुम देता है, और कैसे वो उसे रिज़ॉर्ट का प्रॉजेक्ट दिलाएगा... फिलहाल अपने दिमाग़ पे काबू रखने के लिए सिगरेट छोड़ने की कोशिश में थी ज्योति, इसलिए बस बाल्कनी में खड़े रह के सामने की ओर देख रही थी के तभी राजवीर की आवाज़ से वो पीछे मूडी
"ज्योति... क्या देख रही हो सामने..." राजवीर की आवाज़ से चोंक के पीछे मूडी और फिर अपनी नज़रें सामने कर दी... यह शरम की वजह से था या गुस्सा, वो खुद नहीं जानती थी, वो बस खामोश ही रही
"तुमने जो सोचा, तुमने जो कोशिश की, मुझे उसकी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी.. मुझे हमेशा लगा था कि तुम मेरा गुरूर बनोगी... मैं पाबंदी हमेशा इसलिए रखता था ताकि तुम कभी किसी ग़लत इंसान के साथ ना मिलो, लेकिन मुझे क्या पता था, मेरा तरीका ही मेरा दुश्मन बनेगा... खैर मैं नहीं जानता यह सब करने का ख़याल क्यूँ आया तुम्हारे ज़हेन में, और मुझे यकीन है कि तुम खुद भी इस असमंजस में फसि हो के तुम सही हो या ग़लत, लेकिन बच्चे.. मर्यादा की दीवारों को तोड़ने की कोशिश नहीं करो, वो हमारे लिए अच्छा है..." राजवीर ज्योति से कह रहा था जो अभी भी अपनी नज़रें सामने करे हुई थी
"इससे ज़्यादा तुम खुद समझदार हो, लेकिन मैं उम्मीद करता हूँ कि शायद तुम होश में आओ, और अपनी पढ़ाई पे ध्यान दो.. जिसके लिए तुम यहाँ रुकी हो... और रही बात मेरी और भाभी के बीच में, ग़लती जान बुझ के नहीं करता कोई, जो तुम कर रही हो वो ग़लती नहीं है, जो हम से हुआ वो ग़लती थी.." कहके राजवीर पीछे मूड के जाने लगा
"आख़िर क्यूँ डॅड...." ज्योति ने इस बार पीछे मूड के जवाब दिया जिसे सुन राजवीर रुक गया और मूड के ज्योति की आँखों में देखा..
"क्यूँ प्यार कर रहे हैं आख़िर इतना मुझे, मैं तो आपकी अपनी बेटी भी नहीं हूँ... फिर क्यूँ, मुझे कोई फरक नही पड़ेगा इन सब से तो आप को क्या प्राब्लम है.." ज्योति ने एक दम ठंडी आवाज़ में कहा, मानो एक दम एमोशनलेस्स..
"तुमसे किसने कहा ज्योति कि तुम मेरी बेटी नहीं हो... किसने डाली यह बात तुम्हारे दिमाग़ में..." राजवीर ने आगे बढ़ के कहा
"मैने सुना आपको और ताई जी को बात करते हुए... ताई जी झूठ नही बोलेगी, और ना ही आपने उन्हे कुछ कहा था, ज़ाहिर है वो सही कह रही थी" इस बार ज्योति की आवाज़ में एक ताक़त थी
"हमारी ज़िंदगी में हम जो भी करते हैं, उनमे से आधी चीज़ें इसलिए करते हैं क्यूँ कि हम बस सुनी सुनाई बातों पे यकीन कर लेते हैं... और बाकी की चीज़ें इसलिए होती हैं क्यूँ कि हम कुछ देखते हैं और उसपे विश्वास कर लेते हैं.... दोनो परिस्थितियों में हम सच जानने की कोशिश नहीं करते... खैर यह बात फिर कभी, लेकिन ज्योति अगर मुझपे ज़रा भी विश्वास करती हो तो इस बात को दिल से निकाल दो.. तुम मेरी ही बेटी हो..." राजवीर ने कहा
"तो फिर उस दिन जो आप बात कर रहे थे, उसका सच क्या है डॅड.. बताइए" ज्योति ने फिर ज़ोर से कहा
"सच कोई नहीं जानता ज्योति.... तुम भी नहीं..." राजवीर ने कहा और वहाँ से निकल गया.. जाते जाते ज्योति को फिर दुविधा में डाल गया.... अगर मैं इनकी असली बेटी हूँ तो फिर ताई जी ने ऐसा क्यूँ कहा उस दिन... और डॅड ने भी मना नही किया और फिर आज की यह बात.... आख़िर क्या है यह सब, ज्योति मन में सोचने लगी
राजवीर जैसे ही ज्योति को छोड़ के वहाँ से निकला, सीधा अपने कमरे में घुसा और दरवाज़े को अंदर से लॉक कर के एक लंबी राहत की साँस ली...
"फेवव...... तुम्हारी वजह से मैं क्या क्या कर रहा हूँ, सीधा सीधा चूत मेरे पास आ रही है, लेकिन आक्टिंग करवा दी खमखा.." राजवीर ने सामने बैठी सुहसनी से कहा
"चिंता नहीं करो, जितना ज़्यादा दूर जाओगे, उतना ज़्यादा ही वो तुम्हारे पास आएगी.. एक बार में ही हां कह देते तो क्या अच्छा लगता, उसे लगता उसका बाप तो दुनिया का जैसे सबसे बड़ा ठर्की है..." सुहसनी ने हल्के ठहाके के साथ कहा
"वो सब ठीक है भाभी... अगर नहीं आई तो.. फिर तो शीना के उपर चढ़ुंगा मैं, फिर रोकना नहीं.." राजवीर ने अपने होंठों पे जीभ घुमा के कहा
"शीना के ख्वाब देखना छोड़ो, राइचंद का खून है.. तू इसे पेल ना, जो पता नहीं कौन है, बस अमर ने लाके तुम्हे दे दी और तुमने भी रख दी.. कभी पूछा ही नहीं कि कौन है यह, कहाँ से आई है.." सुहसनी ने मूह बना के कहा
"अरे जानता हूँ भाभी, कहाँ से आई है... लेकिन अब मुद्दे की बात यह नहीं है कि कहाँ से आई है, बात अभी यह है कि यहाँ मेरे पास आएगी कि नहीं.. कसम से कहता हूँ भाभी, गोआ में जो अपना नंगा शरीर दिखा रही थी, दिल किया उसी वक़्त रगड़ डालूं, लेकिन आपके एक फोन ने मेरा पूरा प्लान बदल दिया..." राजवीर ने अपने लिए और सुहसनी के लिए सिगरेट जला के कहा
सुहसनी कुछ कहती उससे पहले उसका फोन बज पड़ा... अमर कहीं बाहर गया था इसलिए शायद वो होगा यह सोच के उसने राजवीर को चुप करने का इशारा किया, लेकिन स्क्रीन पे नाम देखते ही उसके चेहरे पे मुस्कान फेल गयी.. स्क्रीन पहले राजवीर को दिखाई और फिर फोन आन्सर किया
"हां ज्योति बेटा... बताइए" सुहसनी ने सुट्टा मार के कहा
"ताई जी.... आप कहाँ हैं, मुझे कुछ ज़रूरी बात करनी है आपसे.." ज्योति ने बेचेन होके पूछा
"बेटा हम तो तुम्हारे ताऊ जी के साथ बाहर हैं, क्या हुआ, कोई ज़रूरी काम था क्या" सुहसनी ने आक्टिंग करते हुए पूछा और साथ ही राजवीर को फ्लाइयिंग किस देने लगी
"हाँ ताई जी, आप कब तक लौटेंगे..." ज्योति ने फिर थोड़ी सहमी सी आवाज़ में कहा
"बेटी, बहुत बेचेन लग रही हो... हम अभी 15 मिनट में आते हैं, तुम्हारे ताऊ जी से कुछ बहाना बना के आते हैं, और हमारे कमरे में नहीं आना.. एक काम करती हूँ, घर पहुँच के सीधा तुम्हारे पास आती हूँ.. ठीक है बेटी... चलो बाइ.." कहके सुहसनी ने फोन काटा और राजवीर के मूह पे सिगरेट के धुएँ का छल्ला बना दिया
"बस आ गयी, अब और क्या चाहिए तुझे... शीना को भूल जा, अगर कभी उसके बारे में ऐसा सोचा तो याद रखना, मैं कुछ भी कर सकती हूँ.." सुहसनी ने भड़क के कहा जिसे देख एक पल राजवीर भी घबरा गया और खामोश रहा
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