Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 04:39 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
रिकी ने फोन निकाला और बात करने की आक्टिंग करने लगा..



"यस सर... नो देयर आर नो कॅम्स हियर.." रिकी ने फोन पे कहा और साथ ही नज़रों से मॅनेजर की पुष्टि भी ले ली इस बात की



"कॅन यू प्लीज़ एक्सक्यूस मी.. आइ वॉंट टू डिसकस सम कॉन्फिडेन्षियल थिंग्स, गिव मी 2 मिनट" रिकी ने मॅनेजर से धीरे से कहा , मॅनेजर बिना कुछ कहे बाहर गया और दरवाज़ा लॉक करके बाहर ही वेट करने लगा..



"चलो जी, सोलंकी साब.. अब काम पे लगो" रिकी ने फोन जेब में रखा और खुद रूम को देखने लगा.. बेड के पास एक फ्लवर वेस पड़ा था.. रिकी ने जल्दी से अपनी पॉकेट से एक माइक निकाला और उसे उसमे छुपा दिया.. माइक को सही पोज़िशन मे रख के खुद बाहर निकला



"नेक्स्ट टाइम इफ़ दे एवर कम टू यू.. उन्हे यही रूम देना, और पहचान तो आप कर ही लेंगे, रिसेप्षन पे कॅमरा तो है, रन दट, मॅच युवर टाइम आंड युवर गुड टू रेकग्नाइज़ देम.." रिकी ने मॅनेजर से कहा जिसका जवाब मॅनेजर ने सिर्फ़ गर्दन को हां में हिला के दिया..



"ठीक है सर, थॅंक्स आ लॉट. मुंबई पोलीस आपकी आभारी है.." रिकी ने मॅनेजर से अलविदा कहा और शीना को चलने का इशारा किया.. शीना भी बिना कुछ कहे उसके साथ बाहर जाने लगी और गाड़ी का इंतेज़ार करने लगी..



"तो क्या हुआ... वो कौनसा कार्ड था, " शीना आगे कुछ कहती इससे पहले रिकी ने उसे वो कार्ड दिया और गाड़ी में बैठ गये दोनो.



"ओह हो.. डीएसपी कदम साहेब.. यह कैसे आया आपके पास वो बाद में देखूँगी.. बट बताओ, क्या पता चला.."



"नतिंग.. यह दोनो यहाँ नहीं थे.. ज्योति को ग़लत फहमी हुई है.." रिकी ने जवाब दिया और गाड़ी आगे बढ़ने लगा


"नहीं ज्योति.. हम सही कह रहे हैं, भाई ने खुद जाके उधर चेक किया.." शीना ने ज्योति से कहा.. होटेल से आने के बाद रिकी और शीना सीधा ज्योति से मिलने उसके कमरे में गये..



"ऐसा नहीं हो सकता शीना, मैने खुद पापा और भाभी को देखा है गाड़ी से बाहर निकालते हुए.." ज्योति ने फिर वोही चीज़ कही जो पिछले आधे घंटे से वो दोनो को कह रही थी



"अच्छा ज्योति एक बात बताओ..तुमने चाचू और भाभी को कितनी दूरी से देखा.." इस बार रिकी ने सवाल किया



"डिस्टेन्स तो शायद..भैया, तकरीबन 40-50 फीट का था, शायद, एग्ज़ॅक्ट नहीं कह सकती मैं" ज्योति की आवाज़ में पहली बार विश्वास नीचा होता हुआ दिखा



"ओके.. और क्या वो लोग वॉक कर रहे थे, आइ मीन पैदल निकल रहे थे क्या होटेल से, या एनितिंग लाइक दट.." रिकी ने फिर सवाल पूछा



"नहीं, मैं मेरी ड्रेस लेने के लिए उतरी ही थी कि मैने सामने एक वोल्वो गाड़ी जाते देखी.. पहले तो उसका नंबर देखा, फिर जब रीकॉल हुआ तो याद आया यह गाड़ी हमारे घर की है, लेकिन फिर आगे जाके गाड़ी ने एक राइट टर्न घुमाया जिससे मुझे भाभी और पापा का चेहरा दिखा..."



"ज्योति, 40-50 फीट का डिस्टेन्स और उसपर गाड़ी की स्पीड भी कम से कम 50 की तो होगी.. ऐसी स्पीड और इतना ज़्यादा फासला, कोई भी ग़लत फहमी खा सकता है यार.."



"नहीं भैया, आइ आम श्योर के वो पापा और भाभी ही थे.."



"ओके, चल इस बात पे भी आइ अग्री..." शीना ने बीच में कहा



"बट टेल मी डार्लिंग, अगर तूने गाड़ी मेन रोड पे देखी तो यह कहाँ से आया के गाड़ी होटेल से निकली थी.. ऐसा भी हो सकता है कि वो लोग कहीं और गये हो, या कहीं जा रहे थे किसी काम से, तब तूने देखा हो.. तेरे पूरे इन्सिडेंट में मुझे तो एक बार भी नहीं दिखा के यह लोग होटेल से निकले.." शीना ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा... शीना की यह पॉइंट सुनकर ज्योति खामोश हो गयी और उसके चेहरे पे भी अब असमंजस के भाव थे..



"देखा, कि ना वालिद पॉइंट..कब्से हम कह रहे हैं कि भाई ने होटेल चेक किया लेकिन वहाँ यह दोनो थे ही नहीं..." शीना ने इस बार ज्योति के गले में हाथ डाल कहा



"हां, वो ठीक है..पर..."



"पर वर कुछ नहीं यार.. हम ने कहा ना अब वो फाइनल है.. और हां मेरी बात, कि वो दोनो कहीं जा रहे थे या कहीं से आ रहे थे, तो वो भाई पता कर लेंगे..है ना भाई..." शीना ने बड़े विश्वास से रिकी की तरफ देखा



"अब तुमने कह दिया है तो करना ही पड़ेगा, मेरे पास कोई चाय्स थोड़ी है.. बट आइ विल नीड सम टाइम.." रिकी ने ज्योति को आश्वासन देते हुए कहा



"नहीं भैया, दट'स ओके.. अगर आप लोग इतने श्योर हैं तो लेट इट बी..वैसे भी पापा पूरा दिन खुद में बिज़ी रहते हैं, अगर वो कहीं गये भी भाभी के साथ तो दट'स ओके..उसमे इतनी बड़ी प्राब्लम नहीं होनी चाहिए मुझे.." ज्योति ने खुद को संभालते हुए कहा



"नही, वो सब ठीक है..बट फिर भी भाई, आपको जो कहा है वो करना..." शीना ने रिकी से कहा और उसके जवाब का वेट किए बिना ज्योति की तरफ रुख़ कर दिया..



"अच्छा, अब एक काम करो, कल वीकेंड है ना...भाई, आप तो रिज़ॉर्ट जाएँगे ही कल, मुझे भी ले चलिए ना प्लीज़..मैं भी देखूं तो कैसा है, आज 3 मंत्स होने आए हैं.."



"2 मंत्स.. 3 मंत कैसे.. आंड तुम्हारी हालत देखो, पापा मम्मी से हम क्या कहेंगे..." रिकी ने जवाब दिया



"कोई बात नहीं भैया, ताऊ जी से मैं बोल दूँगी, वो मुझे मना नहीं करेंगे.." ज्योति ने शीना को फिर गले लगा लिया और दोनो बहने हँसने लगी..



"यो.. दट माइ सिस.." शीना ने जवाब में सिर्फ़ इतना कहा और दोनो अपनी अपनी बातों में लग गये.. दोनो को यूँ देख रिकी को काफ़ी खुशी हुई, कुछ ज़्यादा कहे बिना, वो वहाँ से निकला और अपने कमरे में चला गया



"क्या हुआ..." सामने वाले ने रिकी को फोन करके सबसे पहले यह सवाल पूछा



"कुछ भी नहीं..क्या होगा" रिकी ने सुस्त अंदाज़ में कहा



"तो फिर , ऐसी आवाज़ क्यूँ"



"थक गया हूँ.. पता नहीं यह सब कब ख़तम होगा..."



"अभी से थक गया.. अभी तो काफ़ी चीज़े बाकी हैं, पर सबसे ज़रूरी बात वो रिज़ॉर्ट का बनना.. वो सब हो जाए, फिर काम पूरा कर देंगे.."



"वो सब ठीक है, बस दिमाग़ को शांति चाहिए..कुछ दिन बाहर होके आउ"



"घुमके आ..मैं जानता हूँ तू एक जगह ज़्यादा टाइम नहीं रह सकता, और यह सब मेरे कहने पे कर रहा है.. एक काम कर, ऐसी जगह जा जहाँ पे तेरे दिमाग़ को सुकून मिले, और हां, हो सके तो मेरे पास आजा.."



"दिमाग़ की शांति चाहिए, दिमाग़ का झंड नहीं करना.. वैसे भी तेरे पास आउन्गा तो दारू और सिगरेट के अलावा कुछ करवाएगा नहीं.. मैं यह सब छोड़ने की कोशिश कर रहा हूँ.."



"करता रह भाई, मैं क्या कहूँ.. एक काम कर, ज्योति को अपने साथ ले जा, सुलझी हुई लड़की है, तुझे अच्छी लगेगी उसकी कंपनी.."



"उसको क्यूँ भाई, और रही बात कंपनी की.. तो आप तो उसके आशिक़ हो, कहीं ग़लती हो गयी मुझसे तो"



"नहीं करेगा तू ऐसा कुछ काम..आइ ट्रस्ट यू स्वीटहार्ट..और उसकी बात इसलिए कि क्यूँ की काफ़ी दिन से स्ट्रेस्ड आउट है, अपने बाप और भाभी की बात को लेके..अबे भैन..के भाई.. यह बता उन दोनो के सीन का पूछ रहा था, क्या हुआ उसका.." सामने वाले को अचानक जैसे याद आया कि उसने क्यूँ फोन किया था



"हां यार, वो मैने चेक किया.. दोनो होटेल में तो थे, पर उससे आगे कुछ नहीं मिला.. और हां, आपकी प्यारी स्नेहा तो उसके साथ भी सो ली.. टॉप की रंडी लाए हो, मान गये आपको.." रिकी ने उखड़े हुए स्वर के कहा



"हां, वो तो है, वैसे तू जबसे आया है, तबसे मैने उससे कुछ नहीं करवाया.. शी ईज़ यूस्लेस.. अंत में उसे भी निपटाना पड़ेगा"



"सब को निपटा देना भाई..सब को, किसी को नहीं छोड़ना..चल अब मैं रखता हूँ.." कहके रिकी ने बिना कुछ सुने फोन कट किया और राजवीर और स्नेहा के बारे में सोचने लगा..



"आख़िर क्या बात हो सकती है.. दोनो का यूँ मिलना, जिस्मानी संबंध बनाना.... स्नेहा जितनी चालाक दिखाती है खुद को, उतनी वो है नहीं, लेकिन मैं जानता हूँ राजवीर जैसे मर्द को बहकने में उसे वक़्त नहीं लगेगा..." रिकी ने खुद से कहा और एक पल के लिए कमरे के बाहर जाके बाल्कनी में खड़ा हो गया..कुछ देर हल्की ठंडी हवा ख़ाके उसके दिमाग़ को सुकून मिला...
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RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - by sexstories - 07-03-2019, 04:39 PM

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