Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 04:49 PM,
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"यह लड़की... खैर, ज्योति, तुम्हारी फ्लाइट तक हम छोड़ आते हैं तुम्हे.." अमर ने ज्योति से कहा




"और एक बात है ताऊ जी.. बैठिए, आप सब भी प्लीज़ ध्यान से सुनें.." ज्योति ने सब की आँखों में एक एक कर देखा और अपनी बात कहना शुरू किया




"आज काफ़ी वक़्त के बाद रिज़ॉर्ट बस बनने ही वाला है, बस कुछ फिनिशिंग टचस हैं जिसकी वजह से विलसन और रिकी भैया का मिलना ज़रूरी है, रिकी भैया जा रहे हैं तो क्यूँ ना एक बार स्नेहा भाभी भी उनके साथ जाए" ज्योति अपनी बात कहके सबकी प्रतिक्रिया का वेट करने लगी.. अमर और राजवीर के चेहरे पे कुछ भाव नहीं थे, लेकिन सुहसनी और रिकी के चेहरे पे अलग अलग भाव उमड़ आए.. सुहसनी का चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था वहीं रिकी भी हैरान था उसकी यह बात सुन..




"ठीक है ज्योति.. तुम सही कह रही हो, स्नेहा को जब प्रॉपर्टी मिली है तो फिर उसे इन सब कामो में भी आक्टिव रहना पड़ेगा.. स्नेहा , बेटी तैयार हो जाओ, जाके देख आओ आज अपनी प्रॉपर्टी को.." अमर ने पहले ज्योति से कहा और फिर स्नेहा से कहा.. स्नेहा बिना कुछ कहे अपने कमरे में तैयार होने चली गयी..




"रिकी.. तुम्हे कोई प्राब्लम तो नहीं.." अमर ने रिकी से पूछा, जिसका जवाब रिकी ने सिर्फ़ ना में गर्दन हिला कर जवाब दिया




"चलो ज्योति.. वी आर वेटिंग आउटसाइड, बॅग ले आओ अपना.. " राजवीर ने ज्योति से कहा और अमर और सुहसनी के साथ बाहर जाने लगा..




"व्हाई वाज़ दिस नीडेड... शुड हॅव आस्क्ड मी." रिकी ने ज्योति से कहा जैसे ही अमर और बाकी के लोग वहाँ से निकल गये




"भैया, सब साइड में, लेकिन मेरे हिसाब से भाभी रो रही थी तो शायद उन्हे कुछ अच्छा ना लग रहा हो, आपके साथ बाहर जाएगी तो शायद उनका मन अच्छा फील करने लगे.." ज्योति ने बड़ी सरलता से जवाब दिया




"तुम्हे इतनी फ़िक्र क्यूँ है यार भाभी की, आख़िर.."




"वो जो भी हो, कोई रोता है तो अच्छा नही लगता.. प्लीज़ मेरी यह बात मान लीजिए.. आंड प्लीज़ शीना को नहीं कहना, नहीं तो वो फिर मुझसे नाराज़ हो जाएगी.. चलिए बाइ.. टेक केर" ज्योति ने रिकी के गालों को चूम कर कहा और बाहर चली गयी..





उधर स्नेहा जब अपने कमरे में आई, उसका मन बिल्कुल नहीं था कहीं बाहर जाने का.. जबसे प्रेम की चिंता हुई थी उसे, तब से उसका मन बुझ सा गया था हर चीज़ से.. अभी भी अमर के कहने पे जा रही थी नहीं तो पिछले काफ़ी दिनो से वो अकेली अकेली सी रहती, ना किसी से बात करती, ना कुछ. बस घर के कुछ काम करती और अपने कमरे में बैठे बैठे प्रेम की चिंता में डूबी रहती.. अभी भी भुजे हुए मन से वो तैयार हो रही थी कि उसका फोन बजने लगा.. फोन की स्क्रीन पे एक नज़र डालते ही स्नेहा के चेहरे पे एक बहुत बड़ी मुस्कान तैर आई और उसका दिल झूमने लगा नंबर देख..








"भाभी... यह है मेन हॉल.. इधर तकरीबन 250-300 लोग बड़े आराम से अयमडेट हो जाएँगे विच ईज़ गुड कभी फंक्षन जैसा किसी को रखना हो तो.." रिकी स्नेहा को रिज़ॉर्ट का मुआयना करवा रहा था , अब तक जितना काम हो चुका था उस बारे में सब बता रहा था... स्नेहा और रिकी जब से मुंबई से निकले थे, तब से रिकी काफ़ी अनकंफर्टबल महसूस कर रहा था स्नेहा के साथ.. पता नहीं क्यूँ लेकिन स्नेहा रिकी को एक नज़र नहीं भाती, उपर से आज स्नेहा ने जैसी ड्रेसिंग की थी वैसे देख तो कोई भी उसके उपर दीवाना हो जाता.. सफेद डिज़ाइनर शिफ्फॉन की साड़ी के साथ स्लीवेलेस्स ब्लाउस जो उसकी बाहों को कुछ ज़्यादा ही एक्सपोज़ कर रहा था, बाल खुले हुए और बदन से आती एक तेज़ तरार खुश्बू.. जब जब स्नेहा रिकी के करीब आती या गुज़रती तो वो खुश्बू रिकी को पागल कर देती.. पूरे रास्ते में यह खुश्बू रिकी को काफ़ी परेशानी में डाल रही थी, उपर से एसी की वजह से वो खुश्बू पूरी गाड़ी में फेल गयी, जिस वजह से रिकी साँस भी लेता तो उसमे स्नेहा की खुश्बू समा जाती..




"उः... रिकी, इधर वॉशरूम है.." स्नेहा ने उसे बीच में रोकते हुए कहा




"हां भाभी, गो अप, टू दा लेफ्ट आंड राइट, वेरेवर यू लाइक इट.." रिकी ने इशारा करके कहा.. स्नेहा ने रिकी के इशारों पे चलना शुरू किया और एक एक कदम सीढ़ी पे रख के उपर जाने लगी.. स्नेहा बड़े ही आराम से, अपनी गान्ड मटका मटका के उपर चढ़े जा रही थी और चुप के से रिकी की नज़रों को भी देखती, लेकिन यहाँ उसे निराशा हाथ लगी, रिकी उसे नहीं बल्कि अपने फोन पे कुछ देख रहा था.. यह देख स्नेहा तेज़ी से वॉशरूम की ओर बढ़ गयी रिकी को मन में गालियाँ देते हुए...




"यह तो मेरी तरफ देख ही नहीं रहा... क्या करूँ कि यह फँस जाए.." स्नेहा ने खुद से कहा और शीशे के सामने खड़े रहके अपने बाल बनाने लगी... बाल बनाते बनाते उसकी नज़र अपने चुचों पे गयी और एक मादक सी मुस्कान तैर गयी उसके चेहरे पे..




"मैं तुझसे बाद में बात करता हूँ चल.." रिकी ने फोन पे कहा जब उसे स्नेहा के सॅंडल्ज़ की आवाज़ सुनाई दी.. सामने से सीडीयों से उतरती स्नेहा एक एक कदम रख बहुत ही कमसिन सी चाल चलके नीच की तरफ आ रही थी और रिकी भी उसे घूरे जा रहा था




"रिकी, अभी क्या देखोगे.... ऊप्सस्स...." स्नेहा जैसे ही उसके पास पहुँची, उसका पेर हल्का सा फिसला जिससे उसकी साड़ी का पल्लू उसके चुचों के उपर से खिसक के नीचे गिर गया
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RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा - by sexstories - 07-03-2019, 04:49 PM

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