Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-18-2019, 12:45 PM,
#55
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
रोने की आवाज़ें सुन सोनल कमरे से बाहर निकल आई ---- सामने जो मंज़र देखा ------तो उसका दिल भी रोने को करने लग गया ---- उसने अपनी बाँहें फैला दी और रूबी – अपनी माँ और मासी के जिस्मो से रगड़ती हुई अपनी बड़ी बहन की बाँहों में – समा गयी --- दोनो बहने रोने लगी .

दो दो बहनो का जोड़ा रो रहा था --- और दरवाजे पे खड़ा सुनील इस मिलन को देख खुद को रोक ना सका --- उसकी भी आँखों में आँसू आ गये --- पर जिंदगी तो आगे बढ़ानी थी ----- ‘मोम अंदर तो आने दे --- मासी माँ को अपने कमरे में ले जा’

सुमन अपनी बहन को देख ये तो भूल ही गयी थी – कि उसका बेटा सारा समान लिए अभी तक दरवाजे पे खड़ा है – वो एक जंग लड़ने गया था और जीत के वापस आया था – उसके डॅड ने उसे जो हुकुम दिया था – सेव रूबी --- उस हुकुम की उसने तामील कर ली थी . वो सीना चौड़ा कर के बोल सकता था – डॅड –आपके भरोसे को टूटने नही दूँगा.

सुमन को अभी ये तो पता नही था कि सविता क्यूँ आई है --- पर रूबी को देख --- उसे ये यकीन हो गया था – सुनील सागर की जगह ले चुका है.

दोनो बहने अपने आँसू पोंछते हुए अलग हुई और सुमन लपक के सुनील के सीने से लग गयी – ‘आइ आम प्राउड ऑफ यू’

दोनो माँ बेटा घर के अंदर आ गये –

सविता का दिल कर रहा था अपने इस बेटे के साथ चिपक –रो-रो के अपनी सारी भडास निकाल ले – पर वो सुनील को और दुखी नही करना चाहती थी – वो देख रही थी – समझ रही थी – कैसे एक चट्टान की तरहा उभर के सामने आया है --- उसे नाज़ था – घमंड होने लग गया था – कि वो इसकी मासी भी है और सोतेली माँ भी .

‘मोम बहुत थक गया हूँ – भूख भी लगी है’ इससे पहले सुमन कुछ बोलती सोनल ने रूबी को खुद से अलग किया और किचन की तरफ भागी – उसका प्यार भूखा जो था.

सुमन और सविता भी किचन की तरफ लपकी . सुनील ने सारा लगेज घर के अंदर किया – दरवाजा बंद किया और सोफे पे निढाल होके गिर पड़ा --- उसे यूँ गिरते देख रूबी जो दूर खड़ी सब देख रही थी – चिल्लाती हुई लपकी ‘भाईईईईईईईईईई’

रूबी जा के सुनील से चिपक गयी ‘ भाई ठीक हो ना’

‘जिसकी तेरी जैसे प्यारी बहन हो – उस भाई को कुछ हो सकता है क्या – अहह’ सुनील के जिस्म का पोर पोर दर्द कर रहा था – एक पल का चैन भी तो नही मिला था – जब से सागर उस से जुदा हुआ था.

सुनील के जाने के बाद ना सुमन ने कुछ खाया था ना सोनल ने --- आज भी खाना पड़ोसी ही दे के गये थे जिसे सोनल गरम करने पे लगी हुई थी – सुमन और सविता भी उसका हाथ बटाने लगी .

सुनील अधमरा सा सोफे पे पड़ा हुआ था – और रूबी उसके सर को दबा रही थी – बहन के हाथों में कितना जादू होता है – सुनील की आँखें बंद हो गयी – उसे नींद आ गयी.

सोनल और बाकी खाना ले के जब हॉल में आए तो देखा किस तरहा सुनील अधमरा सा पड़ा था – रूबी उसका सर दबा रही थी --- एक साथ तीन लोगो की अलग भावनाएँ उठ खड़ी हुई –
सोनल : तेरा सारा दर्द हर लूँगी – एक मोका तो दे

सुमन : मेरे लाल तुझे किसी की नज़र ना लगे

सविता : बेटी आज तूने मेरा मान रख लिया

तीनो ने डाइनिंग टेबल पे खाना रखा और सुनील की तरफ बढ़े जहाँ रूबी आँखों से आँसू टपकाती अपने भाई को सकुन पहुँचाने की कोशिश कर रही थी.

तीनो उस से लिपटना चाहती थी ---- पर पहला हक़ तो सुमन का ही था. घुटनो के बल बैठ – अपने राजदुलारे के चेहरे को छूते हुए – ‘ खाना खा ले बेटा’

सुनील की आँख अपनी माँ की आवाज़ सुन खुल गयी और देखा – उसकी वो बहन जो जिंदगी भर उस से दूर रही कैसे उसका सर दबा रही थी --- उसके दोनो हाथों को अपने हाथों में थाम बस यही बोल पाया ‘मैं हूँ ना’ – ये तीन शब्द ना सिर्फ़ रूबी की रूह को छू गये – बल्कि सुमन – सविता और सोनल ----तीनो पे असर पड़ा – पर वो असर अलग अलग किस्म का था.

वो असर क्या था – ये तो बस वो तीनो ही जानते थे – थका हुआ दर्द से भरा हुआ भूक से बिलबिलाता हुआ – बहन के हाथों कुछ आराम पाता हुआ सुनील उठ खड़ा हुआ --- और डाइनिंग टेबल पे बैठ गया ----- सब ने खाना खाया ----- आज सुनील का जिस्म उसका साथ छोड़ रहा था – वो बुरी तरहा थक चुका था जिस्म से भी और दिल-ओ-दिमाग़ से भी – वो बस अब गिरना चाहता था.

सुमन : सोनल रूबी को अपने कमरे में ले जा

सोनल कुछ वक़्त सुनील के साथ बिताना चाहती थी – पर वो बहन जो कभी कभी मिलती थी उसका मोह भी था – वो रूबी को अपने कमरे में ले गयी.

खुलती बंद होती आँखों के साथ सुनील बोला – मैं अपने कमरे में जाता हूँ मोम.

सुमन उसका हाथ पकड़ उसे अपने कमरे में ले गयी (क्या ये शुरुआत थी सुनील का उस एक और हुकुम मानने की – जिसे सुमन ने भी मान लिया था) - ना अभी ऐसा कुछ नही था – अभी तो बस एक माँ अपने बेटे को कुछ सकुन देना चाहती थी – जिंदगी कुछ आगे बढ़ चुकी थी – गम के बादल कुछ छाँट गये थे – सुनील को इस वक़्त बस एक बिस्तर चाहिए था – वो बिस्तर पे गिर पड़ा .

उसके एक तरफ सविता सो गयी और एक तरफ सुमन --- पर सुमन की आँखों में नींद कहाँ थी – उसने सुनील के जिस्म की दबाई शुरू कर दी. – सविता भी कहाँ पीछे हट ती उसने सुनील की टाँगों को दबाना शुरू कर दिया – सुनील हड़बड़ा के उठ गया – ये क्या….

सुमन ने उसे बोलने नही दिया --- चुप चाप सो जा

माँ की डाँट के आगे बेबस सुनील अपनी आँखें बंद कर लेट गया --- दोनो बहने – घर के एक्लोते मर्द को कुछ सकुन पहुचाने की कोशिश करने लगी – कब वो दोनो सोई पता ही ना चला.

अब वक़्त आ चुका था जिंदगी को आगे बढ़ाने का – अगले दिन सुबह उठते ही सुनील के मन में एक डर समा गया – कि रात को रूबी ने कहीं कुछ बोल तो नही दिया तो सोनल – वो बिल्कुल नही चाहता था कि सोनल को कुछ पता चले और उसकी नज़रों में माँ बाप की प्रतिष्ठा की धज्जियाँ उड़ जाए. इसलिए सबसे पहले उसने रूबी को खोजा और इस बात की सख्ती से ताकीद कर दी – कि वो अपनी ज़ुबान सारी जिंदगी बंद रखेगी.

आज कितने दिनो बाद घर का कोई शक्स किचन में घुसा था. सोनल ने सबके लिए चाइ बनाई.

पूरा परिवार एक साथ बैठा – सबने चाइ पी और फिर सभी फ्रेश हुए.

आज दिन था सागर की अस्थियों को विसर्जन करने का. सुनील अकेला जाना चाहता था ताकि बाकी लोग आराम कर सकें – पर सुमन और सोनल कहाँ मानने वाली थी – सविता और रूबी भी पीछे नही हटी – तो यही तय हुआ के पूरा परिवार ऋषिकेश जाएगा.
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