Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 09:26 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी

कविता को धीरे से बिस्तर पे बिठाने के बाद राजेश उसके चेहरे को निहारने लगा ...जैसे बरसों के प्यासे को ओस की चन्द बूँदें दिखाई दे गयी हों....कविता ने शर्म के मारे अपना चेहरा ढांप लिया अपने हाथों से ....राजेश ने धीरे से उसके हाथ हटाए और उसके लब गुनगुनाने लगे....

चौदहवीं का चाँद हो या आफताब हो
जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो

जुल्फे हैं जैसे कंधे पे बादल झुके हुए
आँखे हैं जैसे मय के प्याले भरे हुए
मस्ती है जिसमे प्यार की तुम वो शराब हो
चौदहवीं का चाँद हो.........

चेहरा है जैसे झील मे खिलता हुवा कंवल
या जिंदगी के साझ पे छेड़ी हुई .
जाने बहार तुम किसी शायर का ख्वाब हो
चौदहवीं का चाँद हो.........

होंठो पे खेलती हैं तबस्सुम की बिजलिया
सजदे तुम्हारी राह मे करती हैं कहकशां
दुनिया के हुसनो इश्क का तुम ही शबाब हो
चौदहवीं का चाँद हो.........

गुनगुनाते हुए राजेश धीरे धीरे कविता के सभी जेवेर उतारने लगा ..उनके लिए तो ये सुहाग रात ही थी ....कविता शरमाती सकुचाती रही .....और जब गाना ख़तम हुआ राजेश उसके और भी करीब आ गया ....दोनो की साँसे टकराने लगी....कविता के दिल की धड़कन आनेवाले पलों को सोच बढ़ गयी ...जिस्म के रोंगटे खड़े हो गये......होंठ कपकपाने लगे और राजेश ने धीरे धीरे झुकते हुए उसके होंठों पे अपने होंठ रख दिए..


राजेश धीरे धीरे कविता के होंठों की लाली चुराने लगा .....और कविता की आँखें खुमारी में बंद होती चली गयी......कल कल करती समुन्द्र की लहरें बार बार बंग्लॉ के पिल्लर्स से टकरा रही थी ....अफ ये बेचैनी का आलम .....चारों तरफ फैलता जा रहा था ....उँची उँची उठती हुई लहरें जैसे चाँद से कह रही थी ...अपनी किर्नो को इस तरहा घूमाओ ...कि उस अप्सरा के बदन को छू कर हम पर गिरे और हमारे अस्तित्व को एक माइना मिल जाए.

दोनो का चुंबन गहरा होता चला गया...यहाँ ताकि की साँस लेना भी भूल गये बस एक दूसरे के होंठों का रस चुराने में लगे रहे......

कविता अपना जिस्म ढीला छोड़ चुकी थी ....वो जानी पहचानी तरंगे जो उसने पहली बार महसूस करी थी राजेश के साथ वो अपना सर उठा चुकी थी और उसके जिस्म में पल पल रोमांच बढ़ता जा रहा था ...दोनो इस कदर एक दूसरे में डूब गये कि सांस उखाड़ने लगी तब जा कर अलग हुए.... कविता हाँफती हुई बिस्तर पे पीछे लूड़क गयी ...........राजेश अपनी साँसे दुरुस्त करते हुए उठा और कविता जो नया सूटकेस लाई थी उसे खोल उसमे से उसके लिए एक अच्छी लाइनाये निकाल ली और उसे पकड़ा दी ताकि वो भारी कपड़ों से आज़ाद हो जाए.....कविता वो लाइनाये ले बाथरूम में घुस गयी और जब पहनी तो खुद को शीशे में देख शरमा गयी.....उफ्फ कैसे कैसे कपड़े पहनते हैं...सब दिख रहा है इसमे.....छि कैसे जाउ उनके सामने ......


जब ज़रूरत से ज़्यादा देर हो गयी तो .......राजेश समझ गया ...उसकी बीवी ....शर्म-ओ-हया की दीवारों में फस गयी है......वो उठ के बाथरूम के बाहर खड़ा हो गया ........बेगम साहिबा नाचीज़ आपके दीदार के लिए तड़प रहा है ......

अंदर कविता ......उईईइ माँ देखो कितने उतावले हो रहे हैं.......और दिल की धड़कनो को संभालते हुए बाहर दरवाजे तक आई ....और राजेश तो बेहोश होते होते बचा ...........उसकी ये हालत देख कविता को खुद पे गुमान हो आया ...कॉन बीवी नही चाहेगी कि उसका शोहार उसकी ताब के आगे जल ना जाए ........

राजेश के मुँह से सीटी निकल गयी और कविता शरमा के पलट गयी .....

'अरे अरे ....रात बाथरूम में गुजारने का इरादा है क्या' .....राजेश ने फट उसे खींच गोद में उठा लिया ....और कविता ने उसके गले में बाँहें डाल दी .......

'आज तो मेरा कतल हो कर ही रहेगा......' राजेश ने उसके माथे को चूमते हुए कहा

'धत्त' और मन में सोच यही रही थी ......कत्ल किसका होगा....ये तो मुझे मालूम है ....हाउ हाई ...मैं भी क्या सोचने लगी ...छि

'कवि तुम नही जानती तुमने मुझे मेरी जिंदगी वापस दे दी ...वरना मैं शायद ज़्यादा दिन .......'

'गंदी बातें मत बोलिए .....आप नही जानते मुझ पे क्या क्या गुज़री है ....' कवि की आँखें नम हो गयी .....

'अरे सॉरी ...मेरी जान की आँखें मेरी वजह से नम हो गयी......'

'मारूँगी...तंग करोगे तो...'

'ओए ओए ....मेरी शेरनी बोलने लगी.....'

कवि ने प्यार से राजेश की बाजू पे दो तीन थप्पड़ लगा दिए ....

'अहह' राजेश ऐसे चिल्लाया जैसे बहुत ज़ोर की लग गयी हो.......

'हाई राम.....आपको कोई चोट लगी है क्या.....'

'हां लगी तो है...पर बाजू पे नही दिल पे '

'उम्म्म' कवि ने राजेश की छाती पे चेहरा छुपा लिया .....और राजेश ने उसे बिस्तर पे बिठा दिया....

चाँद बादलो के पीछे छुपता बाहर निकलता और शरमा के फिर छुप जाता .....और राजेश ...तो बस उस चाँद को निहार रहा था ...जो उसकी नज़रों के सामने था ...उसकी दिलरुबा...उसकी शरीके हयात ...उसकी जान .....उसकी हर धड़कन का वजूद .......

'ऐसे मत देखो ...प्लीज़...'

'क्यूँ हम तो देखेंगे ...'

'लाज आती है ना....'

'ये लाज को आज डिब्बे में बंद कर दो ...और चलो मेरे साथ ...मिलन के उस रास्ते पे...जो हमे कभी जुदा नही होने देगा'

'आप तो पूरे बेशर्म हो....'

'बीवी से प्यार करना कब से बेशर्मी हो गयी....'

'छि मुझे तो शर्म आती है ना ......'

'किस बात से...'

'वो वो जो आप ....हाउ .....गंदे....'

'चलो आज हम पूरे गंदे हो जाते हैं......'

'ओउुउऊचह'

कविता चीख ही पड़ी जब राजेश के हाथों ने उसे मम्मो को छू लिया ........राजेश धीरे धीरे उसकी गर्दन को चूमने लगा और कवि का जिस्म शर्म के मारे अकड़ने लगा ...उसकी आँखें अपने आप ही बंद हो गयी......राजेश के हाथ उसके जिस्म पे घूमने लगे और कवि की सिसकियाँ निकलने लगी.........

गर्दन को चूमते हुए राजेश ने जब अपनी ज़ुबान उसके उरोजो की मध्य घाटी की शुरुआत पे फेरी तो कवि मचल उठी और अपने आप ही उसके हाथ राजेश के बालों से खेलने लगी ...उसकी आँखें कभी खुलती और कभी बंद होती ......

राजेश ने अपने कपड़े उतार लिए सिर्फ़ अंडरवेर में रह गया और झुक के कविता के पेट को चूम लिया....अहह सिसक उठी कविता उसके गर्म होठों का अहसास अपने पेट पर पा कर ......राजेश ने धीरे से उसकी लाइनाये की डोरी खोल दी और कविता के उरोज़ एक दम सामने आ गये .....शरमा कर कविता पलट गयी और राजेश के लिए तो ये अच्छा ही हुआ ....आराम से उसकी लाइनाये उतार डाली ......अब कविता सिर्फ़ पैंटी में थी ..........

शर्म और कामोउत्तेजना का मिला जुला कॉकटेल कविता के जिस्म को कपकपा रहा था......

राजेश धीरे धीरे कवि की पीठ पे चुंबन अंकित करने लगा ......और कवि हर चुंबन के साथ सिसक पड़ती ...............बहुत ही धीरे धीरे वो कवि की पीठ को चूमते हुए नीचे की तरफ बढ़ रहा था ....और कवि उत्तेजना में जलती हुई सिसकियाँ भर रही थी और अपनी एडियों को रगड़ रही थी ...........

राजेश जब सरकता हुआ उसकी कमर तक पहुँचा तो कविता से बर्दाश्त ना हुआ और वो बल खाने लगी ..........

फिर राजेश ने कविता को पलट दिया तो उसने अपनी आँखें बंद करते हुए अपनी जाँघो को कस के आपस में सटा लिया और जैसे ही राजेश के होंठ उसकी नाभि को छुए ...सिसकते हुए वो बिस्तर को मुठियों में भीचने लगी...

धीरे धीरे राजेश उपर बढ़ा और जैसे ही उसने कवि के निपल को अपनी ज़ुबान से छेड़ा .......अहह म्म्म्मा आआअ कविता ज़ोर से सिसकी और और अपने पैर पटाकने लगी .......निपल से उठती तरंगे कविता का हाल बहाल करने लगी ......

राजेश उसने निपल को चूसने लगा .........उूुउउइईईईईई माआआआआअ

कविता के निपल सख़्त और कड़े हो गये ........उसका जिस्म झंझनाने लगा



अहह हााईयईईईई उफफफफफफफफफफ्फ़ कविता की सिसकियाँ कमरे में गूंजने लगी और खुली खिड़की से आती हुई हवाओं की साइं साइ के साथ मिल कमरे के महॉल को और भी उत्तेजक करने लगी......राजेश कभी एक निपल को चूस्ता तो कभी दूसरे को.....



फिर उसने दोनो उरोजो का मर्दन शुरू कर दिया और ज़ोर ज़ोर से कविता के निपल चूसने लगा...

अहह सीईईईईईई आआअहह सस्स्सिईईईईई उफफफफफ्फ़

कविता ज़ोर ज़ोर से सिसकने लगी .....और तड़प के उसने राजेश के सर को अपने उरोज़ पे दबा डाला ........

राजेश का लंड अंडरवेर फाड़ के बाहर आने को तयार हो चुका था और उसे अंडर वेर में तकलीफ़ हो रही थी....

उसने कविता को छोड़ा और अपना अंडरवेर उतार फेंका ....कविता की नज़र जब उसके लंबे मोटे लंड पे पड़ी तो घबरा के आँखें बंद कर ली.........राजेश ने झुक कर पैंटी के उपर से ही उसकी चूत को छुआ .... अहह
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