Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 09:30 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
उसने कभी ख्वाब में भी नही सोचा था कि जिंदगी को एक मक़सद मिल जाएगा....
.जब सुनील को छोड़ के आई थी तो बहुत ही निराश और टूटी हुई थी ...
अब तक जिंदगी में जितने आदमियों से पाला पड़ा था वो जिस्म के भूखे थे एक सुनील ही उसे ऐसा मिला जिसने उसकी तरफ देखा तक नही....

यही वो वजह थी ..कि सुनील उसकी रग रग में बस गया था....उसकी ही नही उसकी बेटी की रग रग में भी ...
क्या ऐसा कभी होता है..के मा और बेटी एक ही इंसान को अपने दिल में बसा लें ....और वो इंसान उनकी तरफ देखे तक ना.....

जिंदगी का ये पहलू सवी की समझ से परे था ...क्यूंकी ये सब उसे एक अजूबा लगता था....मर्द तो औरत की चूत की तरफ भागता है ...यही उसने जाना और समझा था ...लेकिन सुनील ने उसकी सभी धारणाओं को फैल कर दिया था.....क्या सही मर्द ऐसा ही होता है.....अगर हां...तो उसके नसीब में ऐसा मर्द क्यूँ नही आया ....ये सोच सोच कर उसे सुमन से जलन होती थी....क्या नही मिला सुमन को.....पहले सागर और अब सुनील.....मैने ऐसे क्या पाप किए ...जो एक ही माँ की कोख से जनम लेने पर भी मेरी जिंदगी में काँटे और उसकी जिंदगी में फूल ही फूल.......

अपनी जिंदगी के पुराने पन्ने पलटते हुए वो उन दिनो में पहुँच गयी ....जब वो बॅंगलुर में रहते थे........कॉलेज के दिनो में उसे एक लड़के से प्यार हो गया था.....लेकिन उस लड़के के साथ कुछ ऐसा हुआ ....कि वो एक दिन उसे आ कर बोला ....कि मुझे भूल जाओ ......मेरी जिंदगी अब काँटों का गुलदस्ता बन चुकी है...और मैं कभी नही चाहूँगा कि तुम्हें उन कांटो की हल्की सी भी चुबन महसूस हो......इतना कह वो चला गया.....

दूर इतना दूर की पता ही ना चला वो कहाँ गया.....अपने इस प्यार को हमेशा सूमी से छुपा के ही रखा था.....
उसके बाद जिंदगी में कभी कोई पसंद ही नही आया ....और एक दिन ...समर से उसकी शादी हो गयी........और

यहीं से हुई शुरुआत उसके पतन की ....कहते हैं कि जिंदगी में इंसान चाहे अनचाहे जो पाप करता है ....उसकी सज़ा इसी जनम में मिल जाती है.......और यही तो हो रहा था उसके साथ ....जब पाप किए तो उनके फल तो भुगतने ही पड़ेंगे ....
वो फल कब किस रूप में भुगतने पड़े ...ये कोई नही जानता...क्यूंकी सब कुछ वक़्त के गर्भ में छुपा रहता है......
.जो धीरे धीरे अपनी चल चलता रहता है और इंसान को पता भी नही चलता ....कि वो वक़्त आ गया...
जब उसे अपने किए गये पापों का फल भोगना पड़ेगा.....

ये पाप ही तो था कि समर की बातों में आ कर ऐसा जाल बुना कि सुमन को स्वापिंग के लिए मजबूर होना पड़ा .....ये पाप ही तो था ...कि सुमन को ये बोला कि दूसरा बेटा मरा हुआ पैदा हुआ ताकि समर उसे अपनी बहन की झोली में डाल सके....
.एक दूध पीते बच्चे को उसकी असली माँ से जुदा करना ....संसार का सबसे बड़ा पाप होता है .....
और समर के साथ मिल ये पाप भी तो किया था......

एक ठंडी साँस भर वो सोचने लगी...इन्ही पापों की तो अब सज़ा मिल रही है......
.कहाँ सुमन के पास सब कुछ ...एक जान छिड़कनेवाला नया पति ....सुनील...
कहाँ मैं...नितांत अकेली...जिंदगी की लड़ाई अकेले लड़ते हुए ....

ये पाप ही तो थे जिनकी वजह से सुनील ने ठुकरा दिया .....वरना क्या वो अपना नही सकता था......बिल्कुल अपना सकता था...पर नही....उसके संस्कार...उसकी मर्यादा ....

कहते हैं कि पापों की सज़ा तो मिलती ही है पर प्रायश्चित करने का भी मौका मिलता है......
समझदार उस मोके को पहचान लेता है ...और जाहिल उस मोके को गवाँ देता है.....

सवी को भी वो मौका नज़र आने लगा.......लेकिन साथ साथ बहुत सी कठिनाइयाँ भी नज़र आने लगी .......
अगर वो इस मोके को दबोच लेती है ...तो दिल बहुत हल्का हो जाएगा.....मगर जो तुफ्फान कुछ लोगो की ज़िंदगियों में आएगा ....
वो .वो.....उनका क्या ...कैसे झेलेंगे वो इस तुफ्फान को.....

आज सवी को ये फ़ैसला लेना था ........ये रात बहुत भारी गुजरनेवाली थी सवी पर ........ये फ़ैसला लेना कोई आसान काम नही था........

अमर सो चुका था ...पर सवी की आँखों से नींद दूर थी......बिस्तर से उठ वो खिड़की पास आ खड़ी हो गयी और आसमान पे छाए चाँद को देखने लगी .....होंठों पे आपने आप लफ्ज़ आने लगे .....कितनी कोशिश करी कि सुनील को भूल जाए....पर ये हो ना सका.....आज भी सुनील उसकी नस नस में समाया हुआ था.....

यह रात खुशनसीब है, जो अपने चाँद को
कलेजे से लगाए सो रही है
यहाँ तो गम की सेज पर, हमारी आरज़ू
अकेली मुँह छुपाए रो रही है
यह रात खुशनसीब है, जो अपने चाँद को
कलेजे से लगाए सो रही है

साथी मैने पाके तुझे खोया, कैसा है यह अपना नसीब, ओह
तुझसे बिछड़ गयी मैं तो, यादें तेरी हैं मेरे करीब, ओह
तू मेरी वाफाओं में, तू मेरी सदाओं में
तू मेरी दुआओं में
यह रात खुशनसीब है, जो अपने चाँद को
कलेजे से लगाए सो रही है

कट ती नहीं हैं मेरी रातें, कट ते नहीं हैं मेरे दिन, ओह
मेरे सारे सपने अधूरे, ज़िंदगी अधूरी तेरे बिन, ओह
ख्वाबों में, निगाहों में, प्यार की पनाहों में
आ छुपा ले बाहों में
यह रात खुशनसीब है, जो अपने चाँद को
कलेजे से लगाए सो रही है
यहाँ तो गम की सेज पर, हमारी आरज़ू
अकेली मुँह छुपाए रो रही है

चाँद को देखते हुए जिंदगी से गिला करते हुए ...ये रात भी गुजर गयी.
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जहाँ एक तरफ वो बहुत खुश थी कि रूबी की जिंदगी को एक माइना मिल जाएगा.....वहीं अपने बारे में सोच वो उदासी के बादलों में खो जाती थी....
यकीन ही नही होता था...के उसकी जिंदगी में ऐसे भी दौर आएँगे ...जब वो नितांत अकेली पड़ जाएगी.......
अपने साथ लेटी रूबी को देख ...
मिनी ने आज काफ़ी दिनो के बाद खुद के बारे में सोचना शुरू कर दिया......
जिंदगी के वो सुहाने पल एक एक कर उसकी नज़रों के सामने गुजरने लगे ...माँ बाप की लाडली ...
पूरे गाँव में सबसे ज़्यादा पड़ी लिखी ....
क्यूंकी उसकी माँ चाहती थी कि वो पढ़े लिखे अपने पैरों पे खड़ी होये.....

फार्मेसी का कोर्स करने उसे मुंबई के एक कॉलेज में डाल दिया गया ..
जिसके बिल्कुल साथ ही मेडिकल कॉलेज भी था.....
वहीं तो आया था वो लड़का ...जिसके माँ बाप यूके में थे और वो कॉलेज के एक्सचेंज प्रोग्राम
में कुछ महीनो के लिए मुंबई आया था इस कॉलेज में .......आज भी वो शाम मिनी नही भूल पाती थी..जब उसकी पहली मुलाकात हुई थी सुनेल से......

कितनी हँसीन बन गयी थी वो शाम जब वो अपनी सहेलियों के साथ पास ही के एक फेमस चाइनीस रेस्टोरेंट में गयी थी .
......अभी उनको बैठे हुए कुछ ही पल गुज़रे थे कि 4 लड़के खिलखिलाते हुए उसी रेस्टोरेंट में घुसे और बिल्कुल उनके सामने वाली टेबल पे बैठ गये.........
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