Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 09:56 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
दूसरा कारण था ...सोनल पे ज़्यादा ज़ोर ना पड़े ..दो बच्चों को दूध पिलाने का......वक़्त बेवक़्त.......अब ये तो शायद विधि ने पहले से ही तय कर रखा था...कि ये तीन...बस तीन जिस्म और 1 जान ही बन के रहेंगे...लेकिन इनकी जिंदगी में एक उथल पुथल और होगी ...इस बात से ये अंजान थे ...क्यूंकी ..वक़्त के गर्भ में क्या है...ये तो अच्छे से अच्छा पंडित भी सही नही बता पाता..

इतना कुछ हो रहा था कि कोई इस बात पे ध्यान नही दे पा रहा था कि रूबी ...सोनल का साया बन चुकी थी .....उसके अरमान ...उसके सीने में ही दफ़न थे और दफ़न ही रह रहे थे...वो हर संभव काम कर रही थी ताकि सोनल सिर्फ़ बिस्तर पे लेटी रह सके उसे कुछ ना करना पड़े और सुमन पे भी घर के काम का ज़ोर ना पड़े....

एक बार सुनील ने उस से उसकी शादी की बात छेड़ी ...तो बड़ी आसानी से रूबी ...ने एमडी के बाद कुछ करने का कह दिया और सुनील चुप रह गया...


लेकिन एक दिन........

जैसे जैसे सोनल के उदर में बच्चे अपना आकर लेते जा रहे थे वैसे वैसे सुनेल के जिस्म में ताक़त आती जा रही थी...शायद ये एक वादा था एक बेटे की रूह का अपनी माँ की रूह से ..माफ़ करना माँ ...तुझे पीड़ा देनी पड़ी ..देख मेरा भाई कैसे धीरे धीरे बड़ा हो रहा है......आ रहा हूँ माँ ...जब तक वो आएगा तेरी गोद में मैं भी आ जाउन्गा...ना तेरा कसूर था..ना मेरा..वक़्त ने हमे जुदा कर दिया...वक़्त ही हमे मिलाएगा....आ रहा हूँ माँ ....

सुमन अभी तक नही समझ पाई थी ..कि वो इस सरोगसी के बाद इतनी खुश क्यूँ है
क्यूँ उसे बार बार ये एहसास होता था कि उसका बेटा तड़प रहा है उसकी गोद में आने के लिए ...जिसने 9 महीने बाद आना था ...वो तो अभी लात मारना भी शुरू नही किया था ....और सुमन ..ये नही समझ पा रही थी ....कि वो सुनेल है जो तड़प रहा था ...अपनी माँ से मिलने को...तरस रहा था उस गोद को जिससे वो बरसों दूर रहा...तरस रहा था उस भाई से गले लगने को ...जिसके लिए अपनी जान पे खेल गया था वो..

माना आज सुनील और सुमन का रिश्ता बदल चुका था....वो माँ बेटे की दुनिया छोड़ पत्नी और पति की दुनिया में चले गये थे.....पर इस का मतलब ये तो ना था कि जो बेटा ...अपनी माँ से ..बिना किसी कसूर के बरसों दूर रहा...जो माँ अपने बेटे ..को जो जिंदा है मरा हुआ समझती रही ..वो कैसे एक दूसरे से दूर रह पाएँगे..जब सुनेल जान चुका था कि उसकी असली माँ कों है...हॉस्पिटल में अपना इलाज़ करता हुआ वो हर पल उस पल का इंतेज़ार कर रहा था कि कब ..कब वो इस हालत में पहुँचेगा ...कि जा कर अपनी माँ से बोले..माँ देख मैं मरा नही था..मैं जिंदा हूँ...तेरा वो जुड़वा बेटा जिंदा है माँ.. एक बार गले से लगा ले ...अपनी ममता की चादर एक बार मेरे सर पे डाल दे ..मुझे और कुछ नही चाहिए ..बस इतना ही काफ़ी होगा मेरे जीने के लिए ..मुझे वो सब कुछ मिल जाएगा..जो मैने खोया ...

उसकी आँखों में बसे इस दर्द को सब समझ रहे थे ..पर सभी असमर्थ थे ....किसी में हिम्मत नही थी ..कि जा कर सुमन से बोलें...देख तेरा बेटा बेटा मरा नही था...चाहे सवी ..एक प्रायश्चित करना चाहती थी ..माँ-बेटे को मिला कर ...पर हिम्मत तो उसमें भी नही थी..उस कहर को झेलने की ..जो सुमन के मुँह से निकलता ...सच जानने के बाद..

इस कहर को बस एक ही इंसान रोक सकता था..और वो था सुनेल...जिसकी प्यासी नज़रों के सामने ..एक माँ अपने आप पिघल जाती...

सुनेल आइसीयू से रूम में शिफ्ट हो चुका था ...महीनो से जो बिस्तर का दास बन के रह गया था ..उसकी हड्डियाँ तक जाम हो गयी थी...और धीरे धीरे घड़ी की चलती हुई सुई से भी धीरे उसमे सुधार हो रहा था....वो अपनी खोई हुई ताक़त, अपने टूटे हुए आत्मबल को प्राप्त कर रहा था...पर दिन में सेकड़ों बार उसके मुँह से या तो सुनील निकलता ..या फिर माँ....सवी भी उस तड़प को नही मिटा पा रही थी ....और मिनी उसकी तड़प से तड़पति रहती......

कितनी बार मिनी ने कोशिश करी ...सुनेल को वो सुनहरे पल याद दिलाए ..जो कभी दोनो ने साथ बिताए थे ..उसके मन की दशा को मोड़ने की ..लेकिन जो तड़प एक बेटे के.दिल-ओ-दिमाग़ में छाई हुई थी ..अपनी माँ से मिलने की ...उस तड़प का वो कोई इलाज़ नही कर पा रही थी...कितनी ही बार उसने सवी और विजय को आँखों में अर्चना भरे देखा...बहुत हो गया...अब तो माँ और बेटे को मिला दो..मुझ से नही देखी जाती इनकी तड़प....क्यूँ देर कर रहे हो..क्या पंडित से महुरत निकलवाना है......आँखें नाम पड़ जाती ...पर उसे बस यही जवाब मिलता ...कि अभी सही समय नही आया.....कब आएगा वो सही समय ...कब..कब..कब...उसकी आत्मा की चीख..उसकी पुकार ..अनसुनी रह जाती ...

शायद सबको ये खबर मिल चुकी थी ...कि सोनल प्रेग्नेंट है...और ऐसे हालत में...इस तरहा का झटका शायद वो बर्दाश्त ना कर पाए ...शायद उन आनेवाले बच्चों पे कोई असर ना पड़ जाए ..इसलिए दिल पे पत्थर रख सब इंतेज़ार कर रहे थे ..उस घड़ी का...जब सुनेल भी बिल्कुल ठीक हो जाए ...और घर के नये चिराग भी घर को रोशन करने और जगमगाने के लिए अपना पदार्पण कर लें......

सब के जीवन में रह गया था बस एक ही भाव..इंतेज़ार ..इंतेज़ार....इंतेज़ार

कोई कहता है प्यार का दर्द मीठा होता है, तो कोई कहता है कि ये नासूर होता है, कोई कहता है प्यार जीवन को महका देता है तो कोई कहता है ..प्यार का मतलब ही कुर्बानी होता है ....

आज तक.....रूबी को ये समझ नही आ रहा था कि प्यार का कॉन सा अर्थ उसके जीवन पे लागू हो गया ....वो प्यार करता है बहुत करता है...पर वो प्यार बिल्कुल भी नही करता ...तराजू के दो पलडो में बैठा प्यार ...अपना ही उपहास उड़ते हुए देख रहा था रूबी की आँखों में..क्यूँ कि प्यार का जो अर्थ वो चाहती थी ..वो उसे नही मिल रहा था...और जो प्यार उसके जीवन का नासूर बन गया था..वही प्यार एक दूसरा रंग ले कर उसके पास आ रहा था....वो भाई.बहन का प्यार ....जो अपना रंग बदल बैठा था ...

आज वही प्यार सुनील की आँखों में देख उसे वो दिन याद आ जाते ...जब इस प्यार ने करवट ले ली थी .....और रमण के साथ उसका जिस्मानी रिश्ता बन गया था ...ये प्यार रूप बदल चुका था ..प्रेमियों का प्यार ..पर ये प्यार स्थाई नही रह पाया .......एक टीस उठ जाती ..जो पूरे बदन में दर्द की लहरें छोड़ जाती ...

सारा दिन रूबी सोनल की देखभाल करती ..सुमन को काम ही नही करने देती ......इन दोनो में सुनील की जान थी ..और सुनील उसकी जान था...फिर किस तरहा वो अपनी जान को ज़रा सी भी तकलीफ़ होने देती......पल पल सोनल और सुमन की सोच ..रूबी के लिए बदलती जा रही थी..लेकिन इस बदलाव को दिल के किसी कोने में सख्ती से बंद कर रखा था..कहीं इसकी भनक सुनील को ना पड़ जाए ...चाह के भी उस कोने की तरफ नही जाती थी ...कहीं सुनील...उनके अंदर आते हुए इस बदलाव को महसूस ना कर ले....डर लगता था दोनो को ....क्यूंकी जानती थी...सुनील ये बदलाव सह नही पाएगा.....

पर जिंदगी कहाँ रुकती है ..वो तो बदलाव चाहती है..अब ये बदलाव अच्छा हो या बुरा ..जिंदगी ये नही सोचती ...एक दिन तो ये बदलाव सामने आएगा ही ..जिंदगी भी शायद उस पल का इंतेज़ार कर रही थी.

सवी, मिनी और सुनेल अपने मकान पे आ चुके थे ...विजय और राजेश बीच बीच में खबर लेते रहते ...पर सवी हमेशा विजय को अवाय्ड करने की कोशिश करती ...

पलक का इलाज़ हो रहा था और उसमें धीरे धीरे सुधार आने लगा था ..पर मंज़िल अभी बहुत दूर थी...

विमल दो पाटों में फसा हुआ था ...एक तरफ उसका प्यार था ...जिसे वो पा ना सका...और दूसरी तरफ उसकी बहन थी...सब कुछ होने के बाद भी उसकी और राजेश की दोस्ती में कोई फरक नही आया था...

कवि ने मुंबई में ही एमडी की अड्मिशन ले ली थी ...कवि आगे ना पढ़ कर घर को देखना चाहती थी..पर राजेश नही माना और कवि को समझा कर राज़ी करा ही लिया कि वो मुंबई से ही एमडी करे और पूरी तरहा से एक अच्छे डॉक्टर का फ़र्ज़ निभाए..

सुनेल के करियर का सत्यानाश हो चुका था......विजय और राजेश ने मिनी को ढाँढस दिया था कि सुनेल जब ठीक हो जाएगा ...उसे वो अपने बिज़्नेस में लगा लेंगे ...मिनी को सुनेल के कैरियर की चिंता करने की ज़रूरत नही ...पर सुनेल ने कुछ और सोच रखा था...वो अपने भी और माँ की तरहा डॉक्टर ही बनना चाहता था...लेकिन जब तक वो अपने पैरों पर खड़ा हो पहले की तरहा अपनी हिम्मत और आत्म विश्वास को वापस नही पा लेता वो असमर्थ था कुछ भी करने से ...

मिनी के द्वारा उसने लंडन में अपने कॉलेज सारी मेडिकल रिपोर्ट्स भिजवा दी थी ..ताकि उसे अपना कोर्स पूरा करने की इज़ाज़त मिल जाए ..ऑन मेडिकल ग्राउंड्स .....जिसके लिए उसका खुद भी वहाँ जा कर प्रिन्सिपल से बात करना ज़रूरी था..

इस दौरान..मिनी ने यूके एंबसी बात कर ..उसका पासपोर्ट दुबारा बनवा लिया था..और विजय ने बाकी सारी फॉरमॅलिटीस पूरी करवा ली थी ताकि वो आराम से इंडिया में रह सके जब तक वो ठीक नही होता...

वक़्त गुज़रता है ..एक महीने बाद सुनेल बिल्कुल ठीक हो जाता है ...सोनल की डेलिवरी में अभी काफ़ी वक़्त था ...सुनेल वापस लंडन जाने का फ़ैसला करता है ..इस वादे के साथ कि वो सोनल की डेलिवरी वाले दिन वापस आएगा अपनी माँ से मिलने ...

सवी अकेले रह जाती ....आरती चाहती थी ...कि वो उनके साथ रहे ..पर सवी मना कर देती है..सुनेल के ज़िद करने पे सवी मान जाती है..वापस सुमन के पास जाने के लिए ..आख़िर उसकी बेटी रूबी भी तो वहाँ थी ..और कोई नही ..रूबी का तो सहारा होगा ही.

तो यही तय होता है...सवी सुमन के पास जाती है और सुनेल मिनी को साथ ले लंडन के लिए निकल पड़ता है ....

लंडन पहुँच कर सुनेल और मिनी एक दिन आराम करते हैं ...और अगले दिन सुनेल ..अपने कॉलेज जा प्रिन्सिपल से बात करता है..सारी पोज़िशन एक्सप्लेन करता है ..कैसे कब आक्सिडेंट हुआ..सारे मेडिकल प्रूफ के साथ ..और कॉलेज की कमिट मेडिकल ग्राउंड्स की बिना पर उसे अपना कोर्स पूरा करने की इज़ाज़त दे देती है..

ये दिन मिनी के लिए बहुत खुशी का था......इस सारे काम के बाद सुनेल होटेल छोड़ कॉलेज के नज़दीक 1 रूम का एक स्टूडियो अपार्टमेंट किराए पे लेलेता है.....

विजय ने बहुत ज़ोर दिया था कि वो खर्चे की परवाह मत करे ....उसे जितना जब चाहिए होगा मिलता रहेगा...सुनेल नही मान रहा था ..क्यूंकी सवी ने उसका सारा खर्चा उठाने के लिए कहा था...पर राजेश और कवि के ज़ोर देने पे सुनेल इस शर्त के साथ मान गया ..कि वो सब एक उधार होगा..जिसे सुनेल डॉक्टर बनने के बाद किष्तों में चुका देगा.

सुनेल के पास इस वक़्त 5000 पौंड थे ..जिसमे से 1000 तो कॉलेज में चले गये कुछ अपार्टमेंट के डेपॉज़िट में चले गये.......मिनी ने किचन के लिए कुछ ज़रूरी बर्तन खरीदे और किचन के लिए जो समान ज़रूरी था वो खरीदा. दोनो पैसे को बचाने के लिए बाहर नही खाना चाहते थे..किचन की सारी ज़िम्मेवारी मिनी ने उठा ली थी.

दिन भर की भाग दौड़ के बाद शाम को दोनो कमरे में बैठे थे......

मिनी दोनो के लिए कॉफी बना लाई थी और दोनो चुस्कियाँ ले रहे थे गरगरम कॉफी की...

मिनी ...ऐसे क्या देख रहे हो....

सुनेल..कुछ नही बस सोच रहा था..मैने तुमको कितने दुख दिए ....

मिनी ..कोई दुख नही दिया आपने..वो तो होनी थी ..उसे कोन रोक सकता था.....कॉन जानता था कि आपको ..अपने कड़वे सच का पता चलेगा..फिर आप माँ से मिलने आओगे..और आपको भाई की जान ख़तरे में दिखेगी...फिर जो भी हुआ ...उसमे आपका क्या कसूर...वो उपरवाला हमे दूर रखना चाहता था..अपना खेल खेलना चाहता था..उसने खेल लिया..लेकिन हमे मिला भी तो दिया.....अब पुरानी बातें छोड़ो और अपनी पढ़ाई पे ध्यान दो...आपको भाई की तरहा , माँ की तरहा एक अच्छा डॉक्टर बनना है....बस अब आप जीत जाइए...
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RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी - by sexstories - 07-20-2019, 09:56 PM

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