Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 09:57 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सागर की तस्वीर उसे बोलती हुई नज़र आई 'क्या सूमी ने अपने प्यार को तेरे साथ नही बाँटा, क्या सवी तेरी दुश्मन वो भी तो तेरी अपनी है,कुछ पल खुशियों के उसकी झोली में डाल देगी तो तेरा क्या बिगड़ेगा, उल्टा उसकी दुआएँ तेरे प्यार को और भी मजबूत कर देंगी - मान जा बेटी हां कर दे'

सुनील और सूमी दोनो ही सोनल के जवाब का इंतेज़ार कर रहे थे क्यूंकी उसे दुख दे कर सुनील कुछ नही करनेवाला था.

सोनल के चेहरे पे हँसी आ जाती है ' बुलाओ मेरी सौतेन को यहाँ'

सूमी उसके होंठों पे अपने होंठ रख देती है'लव यू डार्लिंग'

सोनल सूमी के होंठ चूसने लग गयी, जब से वो तीन महीने पार कर गयी थी तब से उसकी चुदाई बंद थी लेकिन सुनील रोज उसकी चूत को चूस कर शांत किया करता था और सोनल भी दिन में एक बार तो सुनील का लंड चूस्ति थी. अब इनके प्यार के सागर में एक और आनेवाली थी गोते लगाने.

सूमी ने सोनल के होंठों को छोड़ा और सवी को बुलाने चली गयी, सोनल ने सुनील को अपनी तरफ बुलाया और अपने लरजते हुए होंठ उसे चूसने को दे दिया.

सुनील सोनल के होंठों की मिठास में खो गया और दोनो को पता ही ना चला कब सूमी सवी को ले कर आ गयी और सवी दोनो को यूँ चिपके देख कुछ कुछ शरमा रही थी, उसने जाना चाहा पर सूमी ने उसे वहीं रोक दिया.

सोनल की सांस उखड़ने लगी तो सुनील ने उसे छोड़ा और दोनो अपनी सांस दुरुस्त करने लगे.

सोनल की नज़रें सवी पे पड़ी तो सोनल ने हान्फते हुए उसे पुकार ही लिया 'इधर आओ सौतेन रानी वहाँ क्यूँ खड़ी हो'

सवी सोनल के पास बैठ गयी और सूमी बिस्तर के दूसरी तरफ जा के सुनील से चिपक गयी.

सोनल : हां तो आप मेरी सौतेन बनना चाहती हैं, ज़रा अपने होंठों का रस तो चखाओ मैं भी तो देखूं मेरे मियाँ को क्या मिलने वाला है.

सवी : धत्त (और बूरी तरहा शरमा जाती है)

सोनल : आए हाई देखो तो सही कैसे शरमा रही है, तब क्या होगा जब सुहाग रात भी इसी कमरे में मेरे सामने मनाओगी.

सवी को ज़ोर का झटका लगा वो घबरा के सूमी और सुनील की तरफ देखने लगी.

सुनील : सवी डार्लिंग, यहाँ किसी से कुछ छुपाया नही जाता और मेरी बीवियाँ आपस में बहुत प्यार करती हैं.

सवी : लेकिन ...

सोनल : कोई लेकिन वेकीन नही इधर आओ ( सोनल सवी को अपनी तरफ खींचती है और उसके चेहरे को अपने हाथों में थाम उसके होंठ चूसने लग जाती है)

सवी की हालत खराब हो जाती है - ये सब तो उसने ख्वाब में भी नही सोचा था.

सोनल उसके होंठों को छोड़ती है और चटकारे लेते हुए बोलती है - मिया जी आपकी तो ऐश हो गयी बड़े मीठे हैं मेरी सौतेन के होंठ.

सवी के गाल शर्म के मारे लाल सुर्ख हो गये और सोनल उसे खींचने लगी तभी घर की बेल फिर बजी और सवी को मौका मिल गया अपनी जान छुड़ाने का, वो दरवाजा खोलने भागी और खोलते ही उसे तेज झटका लगा.

सामने विजय और आरती खड़े थे.

सवी उनको अंदर लाई हाल में बिठाया और सूमी के पास चली गयी.

सूमी और सुनील ने फटाफट कपड़े बदले और दोनो से मिलने हाल में चले गये. रूबी अब तक उठ चुकी थी वो किचन में सब के लिए चाइ कॉफी बना रही थी.

सवी को विजय और आरती का आना अच्छा नही लगा था वो अंदर सोनल के पास ही रहती है.

रूबी कॉफी ले कर हाल में जाती है क्यूंकी उसे हाल से आवाज़ें आती सुनाई देती है और वो भी विजय और आरती को देख हैरान होती है.

सुनील : विजय जी अचानक फोन कर देते तो मैं एरपोर्ट आ जाता.

आरती : बस बेटे अचानक ही प्रोग्राम बन गया, ये सवी कहाँ रह गयी मैं तो आई ही उससे मिलने हूँ, बिना बताए अचानक चली आई.

सूमी : वो अंदर सोनल के पास है.

आरती : मैं दोनो से मिल के आती हूँ.

सूमी : चलिए - और वो आरती को सोनल के पास ले गयी जहाँ सवी भी उसके पास बैठी थी.

आरती जब सोनल के कमरे में सूमी के साथ आई तो सोनल ने बिस्तर से उठने की कोशिश करी.

आरती : अरे नही नही आराम से लेटो.

सोनल : बड़ी खुशी हुई आंटी आपसे मिलके. कवि कैसी है वो भी आई है क्या.

आरती : नही बेटी आज कल तो वो अपनी एमडी की पढ़ाई में लगी रहती है.

सूमी : आप यहीं बैठो मैं चाइ यहीं ले आती हूँ.

सूमी के बाहर निकलने से पहले ही रूबी वहाँ सबके लिए चाइ ले आई.

सूमी : तू भी यहीं बैठ जा बेटी.

रूबी : नही मैं नाश्ते की तायारी करती हूँ. (कहके रूबी किचन की तरफ बढ़ गयी)

सवी : मैं भी आती हूँ जल्दी काम निबट जाएगा.

आरती : सवी जी मैं तो खास आपसे ही मिलने आई हूँ.

सवी : समधन जी मुझसे ऐसा क्या काम पड़ गया.

आरती : क्या हम अकेले कहीं...

सवी : समधन जी मेरी जिंदगी मेरे घरवालों के लिए खुली किताब है, आप को जो बात करनी है यहीं कर सकती हैं, सोनल से क्या छुपाना.

आरती को एक झटका सा लगा और सोनल को भी कुछ महसूस हुआ, सोनल के दिमाग़ में एक दम विजय और सवी की छवि उभर आई फिर उसने खुद ही इस बात को अपने दिमाग़ में नकार दिया, धागा बरसों पहले टूट चुका था और अब तो सवी के मन मंदिर में बस सुनील ही था, एक टीस सी उठी सोनल के दिल में जिसे उसने दबा डाला.
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