RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
बेडरूम में बहूरानी की कामुक कराहें और उसकी चूत से निकलतीं फचफच फचाफाच की आवाजें गूंज रहीं थीं उसकी चूत मेरे लंड से लोहा लेती हुई संघर्षरत थी.
जल्दी ही हम दोनों मंजिल के करीब जा पहुंचे और बहूरानी कामुक किलकारियां निकालती हुई कमर उछालने लगी और फिर उसने मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और टाँगे मेरी कमर में लपेट कर झड़ने लगी.
मैंने भी आठ दस धक्के पूरी ताकत से लगाये; बहूरानी अपनी बांहों और टांगो से मुझे जकड़े थी जिससे मेरे धक्कों से उसका बदन उठता और गिरता था लेकिन वो मुझसे चिपटी रही और कुछ ही पलों में लंड जैसे फटने को हुआ और रस की फुहारों से चूत को भरने लगा और शीघ्र ही वीरगति को प्राप्त होकर निढाल बाहर निकल गया.
तो मित्रो, अब ये मेरी सच्ची दास्तान समाप्ति पर है. फिर उस रात हम दोनों नंगे ही लिपट कर बेसुध होकर सो गए.
हमेशा की तरह पांच बजे मेरी नींद खुल गयी, बहूरानी का एक हाथ अभी भी मेरी गर्दन में लिपटा था और वो नींद में किसी अबोध शिशु की तरह गहरी गहरी सांसें लेती हुई निद्रामग्न थी. उसके नग्न उरोज सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे.
जैसा कि सुबह सुबह होता ही है, मेरे लंड महाराज टनाटन तैयार खड़े थे मन तो हुआ कि नंगी बहूरानी के पैर खोल कर लंड चूत में पहना कर फिर से आँख मूंद कर पड़ा रहूँ. लेकिन बहूरानी को जगाने का दिल नहीं किया सो चुपके से बहूरानी के आगोश से निकलने लगा.
जैसे ही उसका हाथ अपनी गर्दन से हटाया वो जाग गयी- ऊंऊं… कहाँ जा रहे हो पापा?
उसने मुझे फिर से लिपटा लिया.
“अरे सुबह हो गयी, मैं तो जल्दी उठ जाता हूँ न. तू सोती रह आराम से!”
“नहीं, आप भी यहीं रहो मेरे पास.” बहूरानी ने मुझे फिर से लिपटा लिया.
थोड़ी ही देर में बहूरानी को मस्ती चढ़ने लगी और उसने मेरा लंड पकड़ के खेलना शुरू कर दिया फिर मेरी कमर में अपना पैर फंसा कर मुझे अपनी तरफ खींच लिया और मुझे चूमने लगी. मैंने भी उसकी टांगें खोल के लंड को बहु की चूत पर रखा और धीरे से घकेल दिया भीतर.
“बस अब चुपचाप लेटे रहो पापा, धक्के नहीं लगाना.” वो बोली.
मुझे पता था इस पोजीशन का भी अपना अलग ही आनन्द है. चूत में लंड फंसाए पड़े रहो बस. ऐसी पोजीशन में भी बदन में अजीब सी सनसनाहट, सुरसुरी होती रहती है और फिर एक स्थिति ऐसी आ जाती है कि दोनों पार्टनर मिसमिसा कर लिपट जाते हैं और चूत लंड की लड़ाई होने लगती है.
हुआ भी वही. हम लोग ऐसे ही एक दूसरे के अंगों का आनन्द महसूस करते चिपटे हुए लेटे रहे. लगभग आधे घंटे बाद लंड अनचाहे ही चूत में अन्दर बाहर होने लगा, उधर चूत भी प्रत्युत्तर देने लगी, हमारे होंठ एक दूसरे से लड़ने लगे. बहू रानी की जीभ पता नहीं कब मेरे मुंह में घुस गयी और वो करवट लिए लिए ही अपनी चूत चलाने लगी. जल्दी ही लंड ने लावा उगल दिया और चूत फैल सिकुड़ कर लंड को निचोड़ने लगी.
सुबह की धूप बेडरूम में खिड़की से झांकने लगी थी. हमारे नंगे जिस्म अभी भी चुदाई की खुमारी में थे.
“उठने दो पापा. काम वाली आ जायेगी सात बजे!”
“अरे अभी छह ही तो बजे हैं, चली जाना.”
“नहीं पापा. उठो आप भी और ड्राइंग रूम में सो जाओ. मैं बिस्तर ठीक कर दूं. काम वाली आपको यहाँ सोते देख पता नहीं क्या सोचे… अच्छा नहीं लगेगा.” बहूरानी ने अपनी चिंता जताई.
बहूरानी की समझदारी पर मैं भी खुश होता हुआ बिस्तर से निकल गया.
अब सोना किसे था. मैं तैयार होकर सुबह की सैर पर निकल पड़ा. उसी दिन मेरा बेटा बैंगलोर से वापस लौट रहा था. मुझे भी आज ही रात घर लौटना था. मेरी ट्रेन भी रात में साढ़े दस पर थी. बहूरानी के साथ चुदाई के ये दस दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला.
शाम को सवा पांच बजे मैं और बहू रानी स्टेशन पहुंच गए. बेटे की ट्रेन राईट टाइम थी. फिर मेरे चार पांच घंटे बेटे के साथ अच्छे से गुजरे.
डिनर के बाद बेटा और बहू दस बजे मुझे स्टेशन छोड़ने आये.
तो मित्रो, मैंने इस रियल सेक्स स्टोरी को भरसक ईमानदारी से लिखा है. हाँ कहीं कहीं मिर्च मसाला भी लगाया है ताकि कथा की रोचकता बनी रहे और आप सबके लंड और सबकी चूतें मज़ा लेती रहें पढ़ते पढ़ते.
अब आप सबको अपने अपने कमेंट्स जरूर लिखे और अपने अमूल्य सुझाव देने हैं ताकि मैं अपनी अगली कहानियों में उचित सुधार कर सकूं.
बस दोस्तो अगर बहुरानी और ससुर के बीच आगे कुछ होता है तो आपको जरूर बताऊंगा तब तक के लिए विदा दीजिये
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