RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
चलिए कहानी को आगे बढ़ाते हैं. ज़माना तो हमेशा रंग बदलता ही रहता है.
शादी में आये मेहमानों की भीडभाड़ में टाइट जीन्स और टॉप पहने अपने अपने मम्मों की छटा बिखेरती चहचहातीं ये छोरियां हर किसी को लुभा रहीं थीं. लौंडे भी कम नहीं थे, सब के सब किसी न किसी हसीना को इम्प्रेस करने की फिराक में थे.आजकल की शादियों में ऐसे नज़ारे अब आम हो गये हैं. एक विशेष परिवर्तन जो मैंने नोट किया कि अब कुंवारी, अधपकी नादान लड़कियां भी लिपस्टिक लगाने लगीं हैं. शादीशुदा लेडीज का तो कहना ही क्या; जैसे अपने कपड़े जेवर और बदन दिखाने ही आयीं हों शादी में.बहरहाल कुल मिला कर सब अच्छा लग रहा था.
“पापा जी कुछ चाहिये तो नहीं न आपको?” अदिति बहूरानी की आवाज ने मुझे चौंकाया.वो मेरे बगल में आ खड़ी हुई पूछ रही थी.“नहीं बेटा, सब ठीक है.” मैंने संक्षिप्त सा उत्तर दिया और फिर बहूरानी की ओर देखा. पहली नज़र में तो वो पहचान में ही नहीं आई; घुमक्कड़ बंजारिनों जैसे कपड़े पहन रखे थे उसने… लहंगा चोली ओढ़नी और मैचिंग चूड़ियां वगैरह और उसके होंठो पर सजती वही मीठी मुस्कान. चोली में से उसके भरपूर, तने हुए मम्में, नीचे की ओर सपाट पेट और गहरा नाभि कूप और लहंगे में से आभास देता उसकी सुडौल जांघों का आकार. उसका लहंगा भी घुटनों से कुछ ही नीचे तक था जिससे उनकी गोरी गुदाज मांसल गुलाबी पिंडलियां जो बेहद सेक्सी लुक दे रहीं थीं और पैरों में बंजारिनों जैसे मोटे मोटे चांदी के कड़े.
मैं कुछ क्षणों तक मुंह बाए उसे देखता ही रह गया. मैंने बहूरानी को हर रूप में देखा था, हर रूप में हर तरह से चोदा था उसे … पर ये वाला रूपरंग पहली बार ही देख रहा था.“क्या हुआ पापा जी; ऐसे क्या देख रहे हो? आपकी अदिति बहू ही हूं मैं!” वो चहक कर बोली.“कुछ नहीं बेटा, तुझे इस रूप में आज पहली बार देखा तो नीयत खराब हो गयी.” मैंने धीमे से कहा.
“अच्छा? पापा जी, पिछले दो तीन दिनों में मुझे आप कई कई बार फक कर चुके हो ट्रेन में … फिर भी …?” वो भी धीमे से बोली.“हां बेटा … फिर भी दिल नहीं भरा. जी करता है तेरा लहंगा ऊपर उठा कर तुझे गोद में बैठा लूं अभी और …”“और क्या पापा?”“और तेरी पैंटी साइड में खिसका कर अपना ये पहना दूं तेरी पिंकी में … पैंटी पहन रखी है या नहीं?” मैंने पैंट के ऊपर से अपना लंड सहलाते हुए कहा.
“धत्त …” बहूरानी बोलीं और अंगूठा दिखा कर निकल लीं. वो तो यूं धत्त कह के निकल लीं, जाने से पहले एक बार मुस्कुरा के कातिल निगाहों से मुझपर एक भरपूर वार किया और कूल्हे मटकाते हुए चलीं गयीं और मैं उनके थिरकते नितम्ब ताकता रह गया. अपनी बहूरानी को राजस्थानी बंजारिन के भेष में देखकर उन्हें इसी रूप में चोदने को मन मचलने लगा.
आखिर ऐसा होता क्यों है? मेरी पिछली कहानियों से आप सब जानते हैं कि बंगलौर से दिल्ली ट्रेन से आते आते उन छत्तीस घंटों में मैंने अदिति बहूरानी को कई कई बार तरह तरह की आसन लगा के चोद चुका था फिर अभी कुछ ही घंटों बाद उन्हें फिर से भोग लेने की ये दीवानगी कैसी?
किसी पहुंचे हुए ने सच ही कहा है कि लड़की की चूत नहीं उसका नाम, उसका हुस्न, उसका रुतबा, उसका व्यक्तित्व, उसकी शख्सियत, उसका रूपरंग, उसमें बसी उस औरत को, उसके मान सम्मान को चोदा जाता है; चूत का तो बस नाम होता है. ये आपकी इच्छा पर निर्भर करता है कि उसकी चूत के नाम पर उसका क्या क्या चोदना चाहते हैं. तो मेरा मन तो बंजारिन को चोदने के लिए मचल उठा था वरना अदिति बहूरानी की चूत की गहराई तो मेरा लंड कई कई बार पहले ही नाप चुका था.
अब इस भीड़ भाड़ वाले माहौल में इस अल्हड़ बंजारिन को कैसे चोदा जा सकता है, मेरे मन में यही प्लानिंग चलने लगी थी.
टाइम देखा तो साढ़े ग्यारह हो रहे थे. नाश्ता वगैरह तो हो चुका था और सब लोग अपने अपने हिसाब से टाइम पास कर रहे थे. बहूरानी के जाने के बाद मेरा ध्यान फिर से उन छोरियों के झुण्ड की ओर चला गया जहां वे सब कुर्सियों का गोलचक्कर बना के बैठी किसी मोबाइल में आँखें गड़ाये चहचहा रहीं थीं.मेरा ध्यान उस थोड़ी सांवली सी लड़की ने खींचा जो सबसे अलग सी पर सबके साथ मिल के बैठी थी. एकदम गोल भोला सा चेहरा, सुन्दर झील सी आँखें जिनकी बनावट बादाम के आकार जैसी थी और उसका निचला होंठ रस से भरा भरा सा लगता था. क़रीब साढ़े पांच फुट का कद और घने काले बाल जिन्हें उसने चोटी से कस के बांध रखा था.
शहरी छोरियों से अलग वो किसी गाँव आयी हुई लगती थी; कपड़े भी उसके हालांकि नये से लगते थे पर आधुनिक फैशन के नहीं थे. सादा सिम्पल सा सलवार कुर्ता पहन रखा था उसने, सीने पर दुपट्टा डाल रखा था. उसका दुपट्टा काफी उभरा उभरा सा दिखता था जिससे अंदाज होता था दुपट्टे के नीचे कुर्ती और ब्रा में कैद उसके मम्में जरूर एक एक किलो के तो होंगे ही. उसकी बॉडी लैंग्वेज से यही लगता था कि वो किसी मध्यम वर्गीय ग्रामीण परिवार से आई है.
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