RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
साढ़े चार बजे बहू ने मुझे चाय के लिए जगा दिया- उठ जाइए पापा जी, टी टाइम!बहूरानी मुझे हिला कर जगा रहीं थीं. मैंने अलसाई आँखों से देखा तो वो मेरे ऊपर झुकी हुईं मेरा कन्धा हिला हिला के मुझे जगा रही थी. वही बंजारिन की वेशभूषा में थीं; मेरे ऊपर झुके होने के कारण उनके मम्मों की गहरी घाटी मेरे मुंह से कुछ ही इंच के फासले पर थी. मैंने शैतानी की और झट से मुंह ऊपर कर के दोनों मम्मों को चोली के ऊपर से ही बारी बारी से चूम लिया.
“आपके तो पास आना ही अपनी आफत बुलाना है. कोई शर्म लिहाज तो है नहीं … इतने लोगों के बीच भी सब्र नहीं है आपको?” बहूरानी मुझे झिड़कती हुई बोली.“क्या करूं बेटा, बंजारिन के कपड़ों में तू इतनी हॉट लग रही है कि बस. मेरा बस चले तो …”“रहने दो पापा जी, यहां कोई बस वस नहीं चलने वाला आपका … बस तो बस स्टैंड से चलती है वहीं चले जाओ.” बहूरानी खनकती हुई हंसी हंस दी.
“अच्छा उठो तो सही वर्ना चाय ठंडी हो जायेगी; कहो तो यहीं ला दूं?” वो बोलीं.“चल, चाय यहीं ले आ साथ में एक गिलास पानी भी लेटी आइयो!” मैं अलसाए स्वर से बोला.
कुछ ही देर में बहूरानी दो पेपर कप्स में चाय ले के आ गयी और कुर्सी डाल के मेरे पास ही बैठ के चाय सिप करने लगीं. चाय पीते हुए हमलोग शादी के सम्बन्ध में ही बातें करने लगे जैसे कि जनरल, घरेलू बातचीत होती ही है.
कुछ ही देर में अदिति बहू के अंकल जिनके बेटे की शादी थी आकर मेरे ही नजदीक बैठ गये. थोड़ी औपचारिक बातों के बाद वे अदिति से बोले- अदिति, जरा चल के एक बार शादी के गहने, कपड़े और बाकी सामान चेक कर लो कहीं कोई कमी न रह जाय. कुछ और लाना हो तो बताओ देख के; पूरा सामान उधर कोने वाले कमरे में रखा है. ये लो चाबियां और हां किसी को भी कमरे में मत आने देना, तू तो जानती है सब तरह के लोग आते हैं शादी में किसी का कोई भरोसा नहीं. इसलिए तुम कमरा भीतर से बंद कर लेना. और हां मैं और तुम्हारी आंटी बाजार जा रहें हैं शाम को आठ साढ़े आठ तक लौटेंगे. तुम सब चेक कर करा के कोई कमी हो तो बताना कल पूरी कर लेंगे. ध्यान रखना कोई भी कमरे में न आने पाये, बहू के चढ़ावे के गहने भी वहीं संदूक में रखे हैं.
“और हां भाई साब, आप भी कष्ट कर लेना एक नज़र सब देख लेना अदिति के साथ जा के!” अदिति के अंकल ऐसे मुझसे कहते हुए चाबियों का एक गुच्छा अदिति के हाथ में थमा कर चले गये.
अदिति ने चाबियां लेकर दो तीन बार उछाल उछाल कर मेरी ओर मुस्कुरा के अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा. इधर मेरे दिमाग की बत्ती भी भक्क से जल उठी; सामान वाले बंद कमरे में मैं और अदिति बहूरानी … मतलब बंजारिन को चोदने का पूरा इंतजाम खुद ब खुद हो गया था.“पापा जी, लाटरी निकल गयी आपकी तो, ये बंजारिन मिलने वाली है आपको. अब तो खुश हो न?” अदिति मेरी आँखों में आँखें डाल के बोली.
“अदिति बेटा, जब तेरे अंकल खुद तेरी चुदाई का इंतजाम कर के गये हैं तो उनका मान तो रखना ही पड़ेगा … आखिर सगे चाचा जी है तेरे!”“अब रहने भी दो पापा, सोचो कि बिल्ली के भाग्य से छींका टूट गया वर्ना इस बंजारिन को छूने के ही ख्वाब देखते रह जाते!” बहू थोड़ा इठला के बोली“हां हां चल ठीक है …चलो चलें सामान वाले रूम में. शुभ काम में देरी नहीं करते!” मैं खुश हो के बोला.
“अभी से? अभी तो पांच ही बजे हैं. सात बजे तक चलेंगे रूम में.” बहूरानी बोलीं और निकल ली.तो बहूरानी को चोदने का मौका मिलने ही वाला था. मैंने खुश होते हुए चाय ख़तम की और टहलने के लिए बाहर निकल गया.
मैं धर्मशाला से निकल यूं ही आसपास दिल्ली की सड़कों पर टहलता रहा. उफ्फ, बेशुमार ट्रैफिक और भीड़ जहां सांस लेना भी मुश्किल. बाजारों में काफी रौनक लग रही थी.यूं ही टाइम पास करते करते सात बजने को हो गये तो वापिस लौटा.
धर्मशाला में काफी कम लोग नज़र आ रहे थे. शादी तो अगले दिन थी और शाम का टाइम सो लोग घूमने फिरने निकल गये थे पर मेरी नज़रें तो बहूरानी को ढूँढ रहीं थीं. सब जगह देखने के बाद वो फर्स्ट फ्लोर पर एक रूम में किसी लड़की से बतिया रहीं थीं. नजदीक जाकर देखा तो वो उसी गाँव वाली छोरी से बातें कर रहीं थीं जिसे मैं दोपहर में ताड़ रहा था.
“अरे अदिति, तू यहां बैठी है? मैं तुझे सब जगह ढूंढता फिर रहा हूं. चल वो शादी का सब सामान चेक करना है न, जो तेरे अंकल कह कर गये थे.”
“पापा जी, बैठो तो सही अभी चलती हूं. मुझे पता है कि आपको बहुत चिंता हो रही है ‘वो वाला’ सामान चेक करने की!” बहूरानी द्वीअर्थी बात मुस्कुरा कर बोली.बहू ‘वो वाला सामान’ शब्द जोर देकर बोली और एक कुर्सी मेरे लिए खिसका दी.
“पापा जी, इनसे मिलो. ये मेरी भतीजी लगती हैं. मेरठ के पास के गाँव से आई हैं. कमलेश नाम है इनका वैसे सब इन्हें कम्मो नाम से बुलाते हैं. पापा जी, रिश्ते से तो कम्मो मेरी भतीजी हैं पर हम सहेलियां ज्यादा हैं.” बहूरानी ने उस गाँव की गोरी से मेरा परिचय कराया.
“कम्मो, ये मेरे ससुर जी हैं इन्हें पापा कहती हूं मैं. इन्हीं के संग बैंगलोर से आई थी मैं; तुझे बताया था न अभी!” बहूरानी कम्मो से बोलीं.यह सुनकर कम्मो उठी और मेरे पांव छूते हुए नमस्ते कहने लगी.“आशीर्वाद है कमलेश बिटिया. खुश रहो!” मैंने उसे आशीर्वाद दिया; वो मेरे सामने झुकी थी वो मेरा हाथ खुद ब खुद उसकी पीठ पर जा पहुंचा. उसकी नर्म गुदाज गर्म सी पीठ का मुझे स्पर्श हुआ और मेरी उंगलियाँ उसकी ब्रा के हुक पर जा कर अटक सीं गयीं. यौवनमयी जवान देह का स्पर्श पाते ही मेरे लंड ने जैसे ठुमका लगाया और एक मीठी सी तरंग मेरे पूरे बदन में तैर गयी. फिर वो सीधी हुई तो उसके खूब गहरे क्लीवेज की झलक मेरी आँखों में कौंधी और वो अपनी कुर्सी पर जा बैठी.
|