RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
मेरे संग टैक्सी में बैठी हुई कम्मो बहुत उत्साहित थी. वो सबकुछ बड़े अचरज से देख रही थी जो कि स्वाभाविक भी था. गाँव की बाला जिसने अभी तक अपने खेत खलिहान ही देखे थे या आसपास कहीं किसी कस्बे में कभी कभार जाना हुआ होगा. दिल्ली की भीड़, ट्रैफिक, गगनचुम्बी इमारतें और सजे धजे बाज़ार ये सबकुछ अचंभित कर रहा था उसे.
“अंकल जी कितने ऊंचे ऊंचे मकान हैं न यहाँ पर?” वो आश्चर्य से भर कर बोल पड़ी.
“हां कम्मो, दिल्ली में और बड़े शहरों में ऐसे ही ऊंची ऊंची बिल्डिंग्स बनने लगी हैं अब. जगह की कमी है न सो कम जगह में कई मंजिला बिल्डिंग में बहुत से परिवार रह सकते हैं.” मैंने उसे समझाया.
टैक्सी में पिछली सीट पर कम्मो मेरे दायीं तरफ निकट ही बैठी थी, सट के तो नहीं पर हां काफी नजदीक थी कि उसके बदन से उठती हल्की हल्की सी आंच या तपिश मुझे महसूस होने लगी थी. सहारे के लिए कम्मो ने अपना बायां हाथ अगली सीट पर रख रखा था जिससे उसका मेरी साइड वाला स्तन अपने कहर ढाने वाले अंदाज में लुभाने लगा था. उसका उभार उसकी उठान मुझे आमंत्रित सी करती लगती कि दबोच लो, मसल दो या छू ही दो या अपनी कोहनी मार के छेड़ ही दो, हिला दो मुझे.
कम्मो मेरे मन में उठ रहे इन विचारों से अनजान सी बाहर के दृश्य देखने में मगन थी. मैंने जैसे तैसे खुद पर काबू पाया और अपना फोन निकाल कर यूं ही टाइम पास करने लगा. लालकिला तक पहुँचने में कम से कम एक सवा घंटा तो लगना ही था; फिर जैसे ट्रैफिक मिले उस पर भी निर्भर था.
थोड़ी देर यूं ही चलते हुए कैब रेड लाइट पर रुक गयी.
“अंकल जी वो देखो गोलगप्पे वाला, हम यहां रुक कर गोलगप्पे खा सकते हैं न?” कम्मो ने उंगली से इशारा करते हुए मुझसे कहा.
मैंने कम्मो की जांघ पर एक हाथ रखकर आगे झुक कर टैक्सी से बाहर देखने का उपक्रम किया. कुंवारी जवान लड़की की जांघ पर हाथ धरते ही उत्तेजना की लहर मेरे पूरे जिस्म में बिजली की तरह दौड़ गयी; मैंने देखा कि परली तरफ वाली पटरी पर कोई गोलगप्पे का ठेला लगाए था.
“कम्मो ऐसे नहीं रुक सकते यहां, गोलगप्पे भी खा लेंगे अभी बाद में!” मैंने कहा.
“ठीक है अंकल जी!” वो संक्षिप्त स्वर में बोली. मेरा हाथ अभी भी उसकी जांघ पर रखा हुआ था जिसे हटाने का उसने कोई प्रयास नहीं किया.
“कम्मो, और बता तुझे क्या क्या पसंद है खाने में. आज तेरी हर फरमाइश पूरी होगी?” मैंने कहा और उसकी जांघ को हौले से सहलाया. बस इतने से ही मेरे लंड में तनाव भर गया.
“अंकल जी, जो जो आप खिला दोगे, मैं तो सब खा लूंगी आज. बहुत भूखी हूं मैं!” उसने मेरी ओर कनखियों से देखते हुए हंस कर जवाब दिया और अपना सिर सामने वाली सीट से टिका दिया. छोरी कम नहीं थी … इतना समझ आ गया मुझे! और अब मुझे कम्मो को चोद पाने की अपार संभावनाएं नजर आने लगीं थीं.
कम्मो की चूत के बारे में सोचते ही मेरा लंड हिनहिनाया. मैंने देखा कि कम्मो ने अब अपने पैर खोल लिए थे और अगली सीट से सिर टिकाये झुकी हुयी नज़रों से अपने पैरों की तरफ देख रही थी. तो कम्मो का यूं अपनी टाँगें चौड़ी कर देना क्या मेरे लिए आमंत्रण था या वो सिर्फ अपने कम्फर्ट के लिए पैर ऐसे किये बैठी थी?
यह सोचते हुए मैं किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाया. मेरी कोई भी हरकत या ओवर एक्टिंग मुझे महंगी भी पड़ सकती थी. यही सोच कर मैंने अपने कदम फूंक फूंक कर रखने का फैसला किया.
“कम्मो बताओ न लंच में क्या क्या खाने का मन है तेरा?” मैंने अपने हाथ का दबाव उसकी जांघ पर बढ़ाते हुए पूछा.
“हम्म्म … अच्छा सोच के बताती हूं.” वो बोली और फिर थोड़ी सीधी होकर सीट से टिक कर बैठ गयी और अपना सिर ऊपर करके सीट की पिछले हिस्से पर टिका लिया और आँखें बंद कर लीं जैसे गहरे सोच में हो.
इधर मेरी उंगलियां फड़क रहीं थीं कि मैं उसकी चूत को सलवार के ऊपर से थोड़ा सा छू कर ही देख लूं. लेकिन मैंने ऐसा करने की हिम्मत या हिमाकत फिलहाल मैंने नहीं की.
“अंकल जी. मैं इडली डोसा वगैरह खाऊंगी. कई साल हो गये एक शादी में खाया था. तब से नहीं मिला खाने को. हमारे गांव में तो कोई बनाता नहीं ऐसी चीजें!” वो सोचकर बोली.
“वैरी गुड. कम्मो … मेरा भी यही सब खाने का मन था.” मैंने उसकी हां में हां मिलाई. कम्मो ने मुझे मुस्कुरा कर देखा और मेरा हाथ अपनी जांघ पर से उठा कर धीरे से मेरी गोद में रख दिया और उसकी उंगलियां मेरे अलसाए से लंड को कुछ पलों तक टच करती रहीं.
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