RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
डोसा इडली वगैरह साउथ इंडियन फ़ूड खाने की मेरी पसंदीदा जगह तो वैसे इंडियन कॉफ़ी हाउस है; क्योंकि वहां जैसा स्वाद कहीं और मिलता ही नहीं है. कारण है कि जिसके देस का खाना हो उसी के हाथ का बना अच्छा लगता है. यूं तो उत्तर भारत में साउथ इंडियन खाने के तमाम रेस्टोरेंट्स हैं पर वो स्वाद आ ही नहीं पाता. लगभग हर बड़े शहर में इंडियन कॉफ़ी हाउस की शाखाएं हैं. यहां दिल्ली में भी कई ब्रांचेज होंगी पर वो सब देखने ढूँढने का समय नहीं था हमारे पास.
“अंकल जी, एक बात कहूं?” कम्मो चलते चलते बोली.
“हां हां कहो बेटा क्या बात है?”
“अंकल जी, पहले हम लोग फोन खरीद लेते हैं. खाना उसके बाद खा लेंगे” कम्मो थोड़ी व्यग्रता से बोली. मैं कम्मो के मन की व्यग्रता और चाह समझ रहा था. उसका मन तो फोन में ही अटका था. सही भी था वो अपने फोन लेने, देखने, छूने, महसूस करने की जल्दबाजी स्वाभाविक भी थी.
“ठीक है कम्मो. चलो पहले फोन ही लेते हैं” मैंने कहा.
मैंने वहीं पास की दूकान से फोन की दुकानों की जानकारी ले ली; पास में ही कई दुकानें थीं.
वहीं एक मोबाइल स्टोर में हमलोग जा पहुंचे. उनके शो केस में तमाम फोन लगे थे.
मैंने कम्मो से कह दिया कि कोई भी फोन पसंद कर ले.
“अंकल जी, फोन बाहर से देखने से क्या; इनके अन्दर क्या अच्छा है क्या बुरा है, कौन सा लेना ठीक रहेगा ये तो आप ही समझ सकते हो.” वो बोली.
बात तो सही थी कम्मो की. फोन्स की टेक्निकल बातें वो क्या जाने. मैंने इस बारे में दुकानदार से बात की तो उसने लेटेस्ट फोन्स के रिव्यू मुझे नेट पर पढ़ने की सलाह दी. तो मैंने वहीं बैठ कर अपने फोन से तमाम फोन्स के रिव्यू चेक किये. मैंने दो तीन फोन सिलेक्ट करके उन्हें नेट पर कम्पेयर करके देखा. कम्मो के हिसाब से मुझे रेडमी का नोट 5 प्रो ज्यादा अच्छा लगा, तेरह हजार के क़रीब कीमत थी. मैंने दुकानदार से वही दिखाने को कहा. दुकानदार ने रेडमी नोट 5 प्रो का सेट शो केस से निकाल कर हमें दे दिया.
“देख कम्मो ये वाला ले ले अच्छा रहेगा तेरे लिए!” मैंने कहा. तो कम्मो ने मेरे हाथ से फोन ले लिया और उस पर हाथ फिरा कर उलट पलट कर देखा.
“अंकल जी कितने का है ये?” कम्मो ने पूछा.
“तेरह हजार के आस पास है. लेकिन तू पैसे की चिंता मत कर!” मैंने कहा
“नहीं अंकल जी. मुझे तो जो फोन मेरे आठ हजार में आ जाए वही दिलवा दो आप तो!” वो जोर देकर बोली.
“अरे बेटा फोन तो दो हजार में भी मिल जाएगा. पर तू पैसों की मत सोच. मैं भी तो तेरा कुछ लगता हूं कि नहीं?” मैंने उसे ऐसे तरह तरह से समझाया.
अन्त में कम्मो झिझकते हुए मान गयी और उसने डार्क ब्राउन कलर का फोन सेलेक्ट कर लिया. मैंने दुकानदार से फोन का सील्ड पैकेट मांगा तो उसने भीतर से लाकर दे दिया. मैंने अपने फोन से पेमेंट कर दिया और बिल कमलेश के नाम से बनवा दिया. इसके बाद वहीं पास के जियो सेंटर से मैंने जियो की नयी सिम भी अपने आधार कार्ड से ले कर एक्टिवेट करवा कर ले ली. उम्मीद थी की थोड़ी देर में सिम चालू हो जायेगी.
“अंकल जी, चलो अब खाना खाते हैं. जोरों की भूख लग गयी अब तो!” कम्मो बोली.
“ओके बेटा चलो!” मैंने कहा.
हम लोग आगे चांदनी चौक में चल रहे थे. रास्ते में किसी से मैंने पूछा तो उन्होंने मुझे साउथ इंडियन फ़ूड के एक अच्छे रेस्तरां का रास्ता समझा दिया.
वहां पहुंच कर हम दोनों एक फॅमिली केबिन में जा बैठे और मीनू कार्ड देखकर, कम्मो से पूछ पूछ कर खाने का आर्डर कर दिया.
“सर बीस पच्चीस मिनट लगेंगे आर्डर लाने में!” वेटर बोला.
“ओके ठीक है!” मैंने कहा.
वेटर के जाते ही मैंने केबिन का मुआयना किया. वहां एक अच्छे किस्म का सोफा डला हुआ था सामने कांच की सुन्दर मेज थी जिस पर प्लास्टिक के फूलों से सजा गुलदस्ता रखा था. रौशनी की लिए अच्छे डेकोरेटिव वाल लैम्प्स लगे थे जो पर्याप्त रोशनी बिखेर रहे थे. मैंने खूब बारीकी से चेक किया केबिन में कोई भी सीसीटीवी कैमरा नहीं था; केबिन का दरवाजा भी ठीक ठाक था; कहने का मतलब वहां पूरी प्राइवेसी थी. एसी की कूलिंग भी बढ़िया थी. हम लोग धूप में चल कर आये थे तो एसी कुछ ज्यादा ही सुखद लग रहा था.
अब मैं और देसी गर्ल कम्मो अगल बगल में सट कर बैठे थे. फोन लेकर कम्मो बहुत खुश नजर आ रही थी.
“अब तो खुश न?” मैंने उससे कहा.
“हां अंकल जी. थैंक यू” वो हंस कर बोली.
“सिर्फ थैंक यू? कंजूस कहीं की!” मैंने कहा.
“फिर?”
“अरे एक चुम्मी ही दे देतीं कम से कम!” मैंने तपाक से कहा.
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