non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
07-29-2019, 11:56 AM,
#9
RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
लेकिन दोस्तों वक्त का काम गुजरना है चाहे धीमी रफ़्तार से ही क्यों ना सही, गुजर ही जाता है। शायद मैं कुछ ज्यादा ही बोल गया। क्या करूँ बूढ़ा हो गया हूँ ना, यहाँ कोई बात करने वाला नहीं। अब आपसे ही अपने दिल की हर बात कह डालूं फिर ना जाने कभी बोलने का मोका ही ना ममल्ले, जिंदगी का कोई भरोसा नहीं दोस्तों। बस हसरत है की मेरी मौत इस कहानी के ख़तम होने के बाद आए ताकि दुनियाँ को मेरे बारे में पता चल सके, मुझ पर जो गुजरी वो आपके सीनों में महफूज हो जाए। बस अब आप कहानी की तरफ चलें।
***** *****
चलिए उस जजीरे पर वापिस जहाँ मैं और कामिनी नदी पर नहाने जा रहे हैं।

हाथ में हाथ दिए, गुनगुनाते हुये, बहुत मस्त कर देने वाली हवा चल रही है। बहुत सुहाना मंजर है। शायद यह हमारे जिस्मों में होनी वाली तब्दीलियो का नतीजा हो। शायद हम फितरत के रजून से आगाही हाँसिल कर रहे थे यह उसका असार हो। ना जाने क्या था लेकिन बहुत हसीन दिन था आज।

मुझे आज कामिनी बहुत हसीन लग रही थी। उसकी चूत से जो पानी उस वक्त छूटा था। मुझे और दीदी को लुफ्त लेते देखते हुये वो अब जम सा गया था और एक खुश्क लकीर सी उसकी रानों पर दिखाई देती थी वो खुश्क होकर एक सफेद सी नरम गोंद जैसी शकल इकतियार कर चुकी थी। जिसकी कुछ ममकदर उसकी रानों के बीच दबी नाजुक सी बंद चूत के दोनों मसरों पर लगी थी और फिर वहां से घुटनों तक एक हल्की पतली दूधिया सी लकीर की सूरत में फैली हुई थी। काफी खूबसूरत मंजर लगा मुझको तो यह… ना जाने क्यों?

खैर, आपको याद ही होगा की इस वक्त मेरी बहन कामिनी की उमर सिर्फ़ ** साल है लेकिन हमें पिछले दो-तीन सालों से दीदी ने जिस काम पर लगाया हुआ था यानी वो जिस तरह अपने जिस्म की मालिश करवा कर अपनी आग बुझाने की नाकाम कोशिस किया करति थीं उससे मेरी दोनों बहनों का जिस्म काफी खूबसूरत हो चुका था।

उस मालिश की वजह से मेरी **** साला बहन का जिस्म बेहद खूबसूरत हो चुका था। खूबसूरत उभरते हुये मम्मे जिन की नोकें गुलाबी थीं। जिनके सिरे ऊपर को उठे थे। जो अभी छोटे लेकिन सख़्त थे और दिन ब दिन उभरते 18

जा रहे थे। कूल्हे अभी कमर की मुनामसबि से बड़े ना थे जैसा की दीदी की कमर काफी पतली और कूल्हे यानी गान्ड बहुत भारी हो गई थी।

कामिनी की गान्ड अभी भारी ना थी लेकिन शेप में आ रही थी हल्की सी बाहर निकलती हुई महसूस होती थी। और चूत तो वो अभी बिल्कुल खुली ही नहीं थी। उसका मुँह बेहद सख्ती से बंद था। हाँ कभी वो आलटी पालती मार कर खाना खाने बैठती तो उसकी चूत का मुँह थोड़ा खुल जाता और अंदर का गुलाबी हिस्सा वाजह हो जाता। जिससे अंदाजा होता की चूत के इन बंद लबों के पीछे क्या कयामत बंद है।

उसकी चूत में मेरा लंड नहीं गया था। वो कोरी थी, कंवारी थी, अनछुई थी। और हाँ याद आया कभी वो पेशाब करने बैठती तो पेशाब आने से पहले उसकी चूत के लब खुलते और चूत का गुलाबी हिस्सा थोड़ा सा फैलता और फिर एक मोटी धार की सूरत में पेशाब बाहर आता। क्योंकी उसकी चूत से पेशाब निकलने का तरीका मुझसे जुदा था तो बाज दफा तो मैंने दीदी और कामिनी को सामने करीब बैठकर पेशाब करते देखा। मुझे बहुत पसंद था उनकी चूतों से पेशाब निकलते देखना।

आपको बहुत अजीब लगे शायद मेरी यह बात। लेकिन आप जेहन में यह बात ताज़ाकर लें की मैं नहीं जानता था की सेक्स क्या होता है। क्या सही है क्या ग़लत। कोई बताने वाला ना था और जो बता सकता था यानी दीदी उसने जो सिखाया वोही मैं कर रहा था।

मेरे लिए तो यह एक नयापन था। यह मेरे पेशाब करने की जगह मेरी बहनों से इतनी जुदा क्यों है। मेरा पेशाब एक पतली धार की सूरत में निकलता है लेकिन मेरी बहनों के सुराख से इतनी मोटी धार क्यों निकलती है। आप समझ रहे हैं ना। यह हालात की देन था यह, आगाही थी जो फितरत मुझे दे रही थी। तो आप जानें यह मेरे लिए एक तफरीह के सिवा कुछ ना था। मैं कामिनी को पेशाब करते देखते तो जब वो पेशाब कर रही होती और करने के बाद जब उसकी चूत का गुलाबी हिस्सा कतरे टपका ता अंदर चूत में वापिस जाता तो मुझको बहुत खूबसूरत लगता।

काफी खूबसूरत मंजर होता।

इतनी लंबी तह्मीद का मकसाद आपको आने वाले लम्हात और दिनों के लिए जेहनी तौर पर तैयार करना था ताकि आप मेरी नजरों से उन नजरों को देखें और जो कुछ मैं सोच रहा था वो आप भी सोचें और हमारे जेहन हम अहंग हो जायं।

तो जब मैं और कामिनी नदी पर पहुँच गये तो मैं तो पानी में उतर गया और कामिनी सामने बैठकर पेशाब करने लगी। उसकी चूत का नजारा काफी दिलचस्प था और चूत से मुझको अभी जो मजा दीदी ने दिया था तो अब इस मजेदार चीज यानी चूत से मेरी दिलचस्पी बढ़ गई थी। बिलाशुबा बहुत गरम और मजेदार चीज थी यह चूत और उसका बहता रस। जो आज पहली बार जिसका जायका दीदी ने चखाया था। अचानक मेरे दिमाग़ में एक अनोखा खयाल आया। यह पेशाब भी तो कामिनी की चूत से ही निकल रहा था। अगर दीदी की चूत से निकला रस इतना मजेदार था तो चूत से निकला पेशाब भी पी कर देखना चाहिए।

यह खयाल आया ही था की मैंने कामिनी को आवाज दी-“कामिनी…”

वो अपनी चूत को देखते पेशाब करने में मगन थी। मैं चीखा-“कामिनी रुक… पूरा पेशाब ना करना दीदी की चूत का रस इतना मजे का था। अपनी चूत का पेशाब तो चखा…”

वो बोली-“प्रेम भैया पागल तो नहीं हो गये यह गंदा होगा…”

मैं भागता हुआ नदी से बाहर निकला। मुझको देखकर कामिनी खड़ी हो गई पेशाब करते करते। लेकिन अभी पेशाब निकल रहा था, क्योंकी खड़े होने की वजह से चूत का मुँह बंद हो गया था इसलिए पेशाब अब धार की सूरत में गिरने के बजाए बे-हंगम तरीके से घुटनों पर बह रहा था।

मैं उसके पास पहुँचा और कंधे पर हाथ रखकर फिर उसको उकड़ू बिठा दिया और जैसे ही उसकी चूत का मुँह खुलकर गुलाबी हिस्सा बाहर आया मैंने अपना पूरा मुँह उसपर चिपका दिया। क्योंकी अब पेशाब कर चुकी थी वो, इसलिए रुक रुक कर आ रहा था लेकिन आ रहा था। मेरा पूरा मुँह भर गया और मैंने अपनी बहन के पेशाब का पहला घूंट भरा।

अजीब नमकीन जायका था। तेज और तल्ख़ सा, और उसमें महक बहुत ज्यादा थी। शुरू में हलक से उतारने के बाद वो तल्ख़ लगा लेकिन फिर अच्छा लगा। और मैंने दोबारा मुँह उसकी चूत पर रख दिया। पेशाब फिर मेरे मुँह में भरने लगा और मैं पीने लगा। कुछ ही देर बाद, मैं उसकी चूत से टपकता पेशाब चाट चाट कर साफ कर रहा था। और कामिनी भी आँख बंद किए हुये थी। खैर फिर हम दोनों उठे।

वो मेरी तरफ देखते हुये बोली-“प्रेम भाई कैसा जायका था। मनी जैसा था क्या?”

मैं बोला-“नहीं उससे बहुत अलग था लेकिन अच्छा था। तू पीएगी…”

वो बोली-“अरे मेरा मुँह मेरी चूत तक कैसे जाएगा?”

मैं बोला-“अरे जब मुझको पेशाब आए तो तू मेरे लंड से पी लेना…”

वो बोली-“ठीक है… लेकिन प्रेम भाई आप मेरी चूत से मनी कब निकलवाओगे। उसकी निगाहों में एक हसरत थी…”

मैं बोला-“चल अभी करते हैं फिर नहा लेंगे…”

वो बोली-“आप बीमर तो नहीं पड़ जाओगे प्रेम भाई…”

फिर बोली-“दीदी ने कहा था की ज्यादा मनी निकलना सही नहीं होता…”

मैं बोला-“यार तू भी ना। तुझको पता है दीदी ने अपनी मनी 3 या 4 बार मेरे मुँह में भरी थी, तब वो शांत हुई थीं और हमको नसीहत कर रहीं हैं…”
कामिनी हैरत से बोली-“दीदी की चूत ने इतनी मनी छोड़ी थी, और तुम वो सब पी गये…”

मैं बोला-“हाँ… इतने मजे की जो थी…”

वो बोली-“प्रेम भैया… मेरी चूत से निकली मनी मुझको भी चखाओ ना…”

वो मासूम थी, और मैं भी। हमारी बातें आपको ना जाने कैसी लग रहीं हों और आप ना जाने क्या सोच रहे हों। लेकिन आप की दुनियाँ तहज़ीब की दुनियाँ है जहाँ कुछ कानून लागू होते हैं। हम पर कोई कानून लागू ना था। हम मासूम थे। और हर वो चीज हमको दिलचस्पी प्रदान कर रही थी जो नई थी।

खैर, मैं और कामिनी नदी के करीब लगे दरख़्तों में से एक घने दरख़्त की छांव में आकर लेट गये। मैं कामिनी के मम्मों पर सिर रख लेटा था। वो मेरा सिर सहला रही थी। मैं आहिस्ता आहिस्ता उसकी चूत पर हाथ फेर रहा था। मैं बस उसकी चूत की खूबसूरती को महसूस कर रहा था। लेकिन उसकी सांसें तेज होनी लगीं और टांगें आहिस्ता आहिस्ता खुलने लगीं। मैं उठ बैठा और उसकी टांगें खोलकर दरम्यान में जाकर बैठ गया और गौर से उसकी चूत की तरफ देखने लगा।

मैं बोला-“देख कामिनी तेरी चूत कितनी हसीन है…”

यह सुनकर वो भी उठकर बैठ गई और अपनी टांगें खोलकर झुक कर अपनी चूत को देखने लगी बोली-“अब चूसोगे कब तुम या देखते ही रहोगे…”

मैंने उसको लिटाया और उसकी खुली हुई गरम चूत पर अपना मुँह रख दिया। क्या गरम और नरम थी कामिनी की चूत और दोस्तों में सच कह रहा हूँ उसका टेस्ट दीदी की चूत से बिल्कुल अलग था। मैंने जबान की नोक अंदर दाखिल की, जैसा दीदी ने सिखाया था उसकी हल्की सी सिसकियों की आवाज आई।
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