non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
07-29-2019, 11:56 AM,
#10
RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
मैं समझ गया उसको मजा आया है। मैं जबान अंदर बाहर करने लगा। मेरी नाक उसकी कोरी चूत के ऊपरी हिस्से पर टिकी थी और उसकी कुंवारेपन की हसीन महक मेरे तन मन में समाती जा रही थी। मेरी आँख बंद हुई जा रहीं थीं।
बेहद मस्त कर देने वाली चूत थी मेरी बहन कामिनी की। बहुत नशा था उसमें। मैं बेताब होकर उसके गुलाबी लब होंठों में दबाकर चूसने लगा। और जबान चूत के अंदर ही थी। उसकी मुत्ठियाँ भिन्ची हुई थीं। और फिर उसने मेरे बाल पकड़कर बिल्कुल दीदी की तरह अपनी चूत से मुझको चिपका दिया और मैंने चूसना शुरू किया।

ऐसा लगता था, उसका खून सिमटकर उसके चेहरे पर आ गया था। उसकी गिरफ़्ट मेरे बालों पर सख़्त से सख़्त होती जा रही थी। और मैं और लंबी सांसें खींच रहा था। और उसकी चूत के अन्द्रुनी हिस्सों तक से सिमट कर उसका मजेदार रस मेरे मुँह में आता जा रहा था। और फिर वो बहुत शानदार तरीके से फारिग हुई। बेहद ज्यादा मनी छोड़ी थी उसने। और एकदम ढीली पड़ गई। मैं सारी मनी पीता रहा। उसके हाथ उसके पहलू में पड़े थे, सांसें मध्यम होती जा रहीं थीं। चेहरा मामूल पर आ रहा था। आँख बंद थीं और एक लफानी मुश्कुराहट उसके लबों पर थी।

लेकिन मैं तो अभी उसकी चूत का आख़िरी क़तरा भी अपने लबों से चूसने में मगन था। जब आख़िर चूत से रस बहना बंद हुआ तो मैंने आख़िरी दफा एक जोरदार सांस खींचा और पटाखे की आवाज “चटख” के साथ चूत को अपने होंठों से छोड़ा। मेरे इतनी देर चूसने की वजह से वो सफेद हो चली थी। लेकिन फिर गुलाबी होनी लगी। मैं दोबारा कामिनी के सीने पर लेट गया उसने कोई फिराक ना की। मैंने उसको हिलाया, वो उठ गई उसकी आँख गुलाबी हो चुकी थीं।

वो बोली-“बहुत मजा आया प्रेम भाई…”

मैं बोला-“तू ने मेरा लंड तो चूसा नहीं…”

वो बोली-“अब चूसूं?”

मैं बोला-“कुछ देर आराम कर ले फिर दोनों एक दूसरे को चूसेंगे…”

वो सिर हिलाकर खामोश हो गई और आँख बंद कर लीं।

थोड़ी देर बाद मैं दोबारा उसकी चूत पर मुँह रखे मजे से उसका रस चूस रहा था लेकिन अबकी दफा वो खुद भी मेरा लंड मुँह में लिए हुए थी। हम करवट के बल पड़े थे, मेरा मुँह उसकी चूत पर था और उसका मुँह मेरे लंड पर, मैं उससे लंबा था इसलिए उसकी चूत को मुँह में लेने के लिए मुझको थोड़ा सा टेढ़ा लेटना पड़ा। वो बहुत आराम से मेरा लंड चूस रही थी और बिल्कुल दीदी की कापी कर रही थी मेरे नीचे लटकते हुये टट्टे भी चाट रही थी, और हलक तक मेरा लंड लेने की कोशिस करती, लेकिन नाकाम रहती। उसके लिए वो बड़ा था। खैर वो दोबारा फारिग हुई, अबकी दफा कम मनी छोड़ी। लेकिन मेरी मनी भी उसके साथ ही निकली और उसके हलक में एक धार की सूरत में गई।

हालांकी मैंने मनी छोड़ते हुये उसका मुँह अपनी रानों में दबा लिया था और फिर उसके मुँह में मनी छोड़ी थी। लेकिन पहली मनी की धार ने उसको बोखला दिया और उसको गंदा लग गया और मनी उछलकर उसके चेहरे पर फैल गई। उसको खासी हो रही थी, और वो मेरी पूरी मनी ना पी सकी। बाद में उसने निकली हुई मनी चाटकर देखी लेकिन अब वो जमती जा रही थी। फिर हम दोनों नहा कर बाहर आए।

मैं कामिनी से बोला-“कामिनी पेशाब आ रहा है मुझको पीएगी…”

वो बोली-“हाँ… प्रेम भाई। मनी तो पी नहीं सकी पेशाब ही पी कर देख लेती हूँ…”

मैं खड़ा होकर पेशाब करने लगा।

वो मेरे पास बैठ गई उकड़ू और लंड से पेशाब निकलते देखने लगी। जब पेशाब की धार हल्की हुई तो उसने लंड को हाथों में पकड़कर अपने मुँह में ले लिया, पेशाब की धार उसके मुँह में गायब हो गई। कुछ उसकी बगलों से बाहर आने लगा और जितना उसके हलक से उतर सकता था। वो पीने लगी। आख़िर पेशाब आना बंद हो गया। उसने मुँह को बंद किया, मेरा लंड मुँह में दबाकर चुसते हुये छोड़ दिया।

वो कहने लगी-“अच्छा था प्रेम भाई। लेकिन मनी ज्यादा अच्छी थी। तुम सही कह रहे थे…”

मैं बोला-“अब तुझे तेरी चूत से निकली मनी चखाऊूँगा किसी दिन…”

वो सिर हिलाते हुई चल पड़ी और हम दोनों झोंपड़े की तरफ बढ़ने लगे। जब हम पहुँचे तो दीदी खाना बनाकर हमारा इंतिजार कर रहीं थीं। हमको देखकर बोलीं-“कहाँ मजे कर रहे थे तुम दोनों…”

कामिनी फौरन बोली-“दीदी अभी भाई ने मेरा पेशाब पिया था और मैंने उनका…”

दीदी ने चौंक कर कहा-“क्यों प्रेम… तू ने पेशाब क्यों पिया कामिनी का। किसने सिखाया तुझको…”

मैं बोला-“दीदी कामिनी की चूत से निकलता पेशाब देखकर मैंने सोचा की मनी भी तो चूत से निकलती है वो इतनी मजेदार थी तो पेशाब भी मजे दार होगा…”

दीदी बोली-“पागल आयन्दा नहीं पीना। बीमार हो जाओगे। मनी पीना बुरी बात नहीं और ना ही उसको पीकर बीमार होते हैं लेकिन पेशाब तो गंदगी है…”

मैं बोला-“लेकिन दीदी कामिनी का पेशाब तो इतने मजे का था…”

दीदी ने कामिनी की तरफ देखा और कहा-“तू ने भी पिया इसका पेशाब कामिनी…”

कामिनी ने सिर हिला दिया।

दीदी बोलीं-“अच्छा देखो कभी कभी जब बहुत ही मन करे तो पेशाब बस चख लिया करो, सिर्फ़ चखना पीना मत। ठीक है, वरना मनी ही चूसा करो एक दूसरे की…”


मैं बोला-“दीदी मैंने अभी कामिनी की मनी दो बार चूसी है और कामिनी ने मेरी एक बार…”

दीदी बोलीं-“अच्छा तो तुम दोनों वहाँ यह खेल खेल रहे थे…”

हम दोनों मुश्कुराने लगे। दीदी बोलीं-“अच्छा अब खाना खा लो, भूखे होगे तुम दोनों। मैं जरा नहाकर आ जाऊूँ नदी से, प्रेम की मनी मेरे सीने पर और मेरी चूत से निकली मनी अब खारिश कर रही है…” यह कहते हुये वो नदी की तरफ चली गई।
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