RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
मेरी दीदी की चूत जो मेरे चूसने की वजह से अब कुछ बाहर निकल आई थी। जिसके लबों के दरमिया से अब चूत का अन्द्रुनी हिस्सा झाकने लगा था। एक मुकम्मल और जवान चूत, भरपूर, मस्ती भरी रसभरी बेहद खूबसूरत।
और दूसरी तरफ मेरी छोटी बहन कामिनी, जो अपनी उमर की बेहतरीन साल में थी। यानी ** साल, उसके खूबसूरत मम्मे जो अब काफी उभर चुके थे मेरे चूसने और सहलाने से और उनकी नोकें गुलाबी और ऊपर को उठी हुई थी। उसकी कमर बेहद पतली और नाजुक थी। जिस्म की लचक तो इतनी की डर लगे कहीं टूट ही ना जाए। गान्ड गोल और बाहर निकलती हुई, और फिर इंतिहा नाजुक चूत। जब खुलती थी तो अंदर का मंजर, ताव लाना मुश्किल हो जाए। जब रस छोड़ती थी तो उस रस का मुकाब्बला ढूँढना नामुमकिन हो जाए। मुझको बहुत पसंद था अपनी बहनों की चूत चूसना।
शायद इसलिए की उस वक्त मुझको अपनी खुशियों की तकमील का सिर्फ़ यही एक रास्ता पता था। यानी चूत चूसना और लंड चुसवाना। और फिर जिंदगी में मजीद कुछ तब्दीली हुई। उस रात बेहद सर्दी थी। हम तीनों एक दूसरे के जिस्म में घुसे सोने की कोशिस कर रहे थे। झोंपड़े के एक कोने में आग जल रही थी। हमने अपने ऊपर घास-फूस डाल रखा था। लेकिन फिर भी हमारे जिस्म बुरी तरह काँप रहे थे।
आख़िर दीदी उठ बैठी, बोलीं-“तुम दोनों को सर्दी लग रही है ना…”
हम दोनों ने असबात में जवाब दिए।
दीदी ने कुछ सोचा। फिर बोलीं-“आओ आज हम एक नये तरीके से एक खेल खेलते हैं…”
हम दोनों दिलचस्पी से उठकर बैठ गये।
वो बोलीं-“आज तक हम लोग अलग अलग एक दूसरे को चुसते रहे, आज हम तीनों एक साथ एक दूसरे को प्यार करेंगे और सब एक दूसरे की मनी छुड़वाएूँगे…”
वाकई अच्छा खयाल था यह तो।
दीदी बोलीं-“प्रेम मैं नीचे लेटती हूँ। तुम इस तरह मेरे ऊपर लेट जाओ की तुम्हारा लंड मेरे मुँह पर हो…” यह कहकर दीदी लेट गईं और टांगों को खोल दिया। मैं उनके ऊपर लेट गया अब मेरा मुँह दीदी की खुली हुई चूत पर था। और मेरी नाक में उनकी चूत की खुशगवार महक घुस्सी जा रही थी और मैं बेताब था उसको मुँह में लेने के लिए।
दीदी फिर बोलीं-“अब कामिनी तुम्हारी टांगों में बैठकर अपनी चूत मेरी चूत से मिला लो…” कामिनी आगे आई और दीदी की खुली हुई टांगों के बीच अपनी टांगें खोल कर बैठ गई और आगे की तरफ खिसकने लगी। यहाँ तक की उसकी चूत दीदी की चूत से बिल्कुल मिल गई। अब मैं जलती हुई आग की हल्की सी रोशनी में दो जवान और हसीन चूतों को देख रहा था। दोनों थोड़ी थोड़ी खुली हुई थीं, दोनों बेताब थीं चूसने के लिए। दोनों में अंदर आग थी, दोनों में मधुर रस भरा था और वो दोनों मेरे सामने थीं।
अब दीदी बोलीं-“प्रेम तुम मेरी और कामिनी की चूत चूसो और कामिनी के मम्मे भी साथ ही चुसते रहना मैं तुम्हारा लंड चुसती हूँ…”
मैंने बेताबी से दीदी की चूत पर अपने होंठ रख दिए। बहुत गरम थी और नमकीन। कुछ देर चूसा फिर कामिनी की चूत से मुँह लगा दिया। आह… क्या समा था… क्या हसीन वक्त था… आज भी उस वक्त के लिए मैं अपनी पूरी जिंदगी देने को तैयार हूँ। काश वो वक्त लौट आए। काश…
कुछ देर यूँ ही चलिा रहा उन दोनों की सांसें तेज हो चुकीं थीं। और दीदी मेरा लंड मुँह में लिए उसे चाट रहीं थीं, चूस रहीं थीं, उसको मुँह में घुमा रहीं थीं, बहुत मजे में था मैं। अब कामिनी झुकी थोड़ा सा और अपने मम्मे मेरे होंठों से लगा दिए और मैं उसके जवान मम्मों के अनौखे स्वाद में खो सा गया। मैं उसके निप्पल चुसता रहा। फिर उसने खींचकर मेरे मुँह से निप्पल निकाला और मेरा मुँह दीदी की चूत पर रख दिया। दीदी की चूत रस छोड़ने लगी थी, मैं उसको चूसने लगा।
अचानक मुझे एक खयाल आया। मैंने कामिनी से कहा-“कामिनी तुम भी चूसो दीदी की चूत। देखो मनी छोड़ रही है यह पीकर देखो कितनी मजे की होती है…”
वो हिचकिचाई फिर अगले ही लम्हे उसके नरम लब दीदी की चूत पर थे। दीदी एक लम्हे को चौंकी गर्दन उठाकर अपनी चूत पर झुकी कामिनी को देखा और फिर मुश्कुरा कर आँख बंद कर, मेरा लंड मुँह में घुसा लिया। जैसे इस सारी दुनियाँ में इस लंड के सिवा उन्हें कुछ अजीज ही ना हो। मैं गर्दन उठाए कुछ देर कामिनी को दीदी की चूत चुसते देखता रहा। फिर खुद भी दीदी की रानों पर झुक कर प्यार करने लगा और चाटने लगा। और दीदी की चूत पर मुँह मारने लगा।
कुछ देर बाद कामिनी अपना मुँह मेरे होंठों से टकरा देती थी। और मैं जबान से उसके लबों को चाटने लगता जो दीदी की चूत के रस से नमकीन हो रहे होते थे। इसी तरह अचानक दीदी की चूत एक दम फैलने लगी। मैं समझ गया अब दीदी की मनी निकलने का टाइम आ गया था। मैंने कामिनी का मुँह दीदी की चूत से चिपका दिया और उसके कान में बोला-दीदी मनी छोड़ने वालीं हैं उसको चूसो खूब जोर से। उधर दीदी मेरा पूरा लंड अपने मुँह में लिए अब निहायत ही तेज़ी से अंदर बाहर कर रहीं थीं, उसको होंठों से दबा रहीं थीं। बस वो छूटने को थीं।
और फिर दीदी ने अपना रस छोड़ा, कामिनी को एक झटका सा लगा क्योंकी मेरे कहने की वजह से उसने अपनी पूरी साँस खींचकर दीदी की चूत को प्रेसर लाक किया हुआ था। दीदी की मनी चूत से निकलते ही गोली की तरह कामिनी की हलक तक पहुँची होगी। कामिनी ने पूरी मनी चाटकर जब अपने लब दीदी की चूत से खींचकर अलग किए तो उसके होंठों से दीदी की मनी अब तक टपक रही थी। दीदी शांत हो चुकी थी।
अब वह उठी, मुझको ऊपर से उठाया और बोली-“वाह मेरी बहन ने तो आज काम कर दिखाया…”
अब उन्होंने हमें फिर हिदायत दीं। अबकी दफा मैं नीचे लेटा फिर दीदी ने कामिनी को अपनी चूत खोलकर उकड़ू मेरे मुँह पर बैठ जाने को कहा, वो अपनी चूत मेरे मुँह पर रखकर बैठ गई। मैंने अपने हाथ उसकी कमर में डालकर उसकी चूत अपने मुँह पर लाक की और उसका सारा रस पीने लगा। वो उकड़ू बैठे बैठे हल्के हल्के अपनी चूत को मेरे मुँह पर रगड़ने लगी। लगता था इस तरीके से चुसवा कर उसको वाकई बहुत लुफ्त मिल रहा था। बैठने की वजह से क्योंकी उसकी चूत खुल गई थी और मेरे चूसने की वजह से उसकी चूत ऊपर उभरी हुई गुठली सी मेरे मुँह में लटकी थी और पूरा गुलाबी घिलाफ की सूरत मेरे मुँह में मेरे हर साँस के साथ मेरे मुँह में आ जाता।
और साँस छोड़ने के साथ वापस सिमट कर उसकी चूत में वापिस चला जाता। वो बहुत मजे में थी और मैं भी उसकी चूत का बेहतरीन मजा लूट रहा था और उसकी चूत से टपकने वाले रस का एक एक क़तरा मेरे हलक में गिरता और मैं फौरन ही उसे हलक से नीचे उतार लेता। अब दीदी ने एक नई फिराक की। वो पहले तो बैठी मेरा लंड चुसती रहीं। फिर मेरी टांगों के बीच में बैठकर मेरे मुँह पर बैठी कामिनी के मम्मे चूसने लगीं और दीदी भी चूंकी उकड़ू ही बैठी थीं तो उसकी चूत मेरे लंड से रगड ने लगी। एक अजीब नशा, एक अजीब सुरूर मेरे रगों में उतरने लगा।
वो अपनी खुली हुई चूत जो अभी तक गीली थी और टांगें खोलकर उकड़ू बैठने की वजह से पूरी तरह खुली हुई थी, यानी चूत के दोनों लब तो उन दोनों गुलाबी लबों ने मेरे लंड पर एक गुलाबी रेशमी घलाफ सा चढ़ाहा दिया और दीदी उन लबों को मेरे लंड पर आहिस्ता आहिस्ता फेरने लगीं। और कामिनी के मम्मे चुसती रहीं। उनको भी बेहद मजा आ रहा था। शायद मेरा लंड उनकी चूत को रगड़ कर उनको एक अनोखा ही मजा दे रहा था। यानी जो हाल मेरा था वोही उनका था। और मेरी तो एक आग भड़क उठी थी, मैंने उसी के जोर-ए-असर आकर कामिनी की चूत को इस बुरी तरह चूसा की उसकी सिसकियाँ पूरे झोंपड़े में गूंज उठीं। और उसकी चूत तेज़ी से पानी छोड़ने लगी, जिसको मैं मुँह भर भर कर पीने लगा। और फिर उसने दीदी को अपने सीने में भींच लिया।
|