non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
07-29-2019, 11:58 AM,
#19
RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया
कामिनी ने करवट बदली और मेरे सीने से बच्चे की तरह लिपट कर रोने लगी-“भाई बहुत दर्द हुआ है मुझे और आप निकाल ही नहीं रहे थे, अंदर डाले ही जा रहे थे…”

कामिनी अगर मैं नहीं डालता तो और दर्द होता अब देखो आराम हो गया ना, चलो अब नदी पर चलें वहाँ तुम अपनी चूत धोओगी ना तो सुकून मिलेगा…”

वह बोली-“नहीं भाई मुझसे तो चला भी नहीं जाएगा, मेरी रानें चूत को छूती हैं तो दर्द होता है…”

मैंने अपनी नाजुक सी हसीन बहन को अपने बाजुओं पर उठाया और नदी की तरफ चल पड़ा। वहाँ जाकर वह पानी में उतर गई और मैं उसकी हसीन चूत देखता रहा, किनारे पर बैठा। मैंने भी अपना खून से भरा लंड धोया, कुछ देर बाद वह अपनी चूत लिए पानी से बाहर आई, वह अजीब तरह गान्ड निकाल कर चल रही थी।

मैं बोला-“चल कामिनी अब घोड़ी बन जा मैं तुझे एक बार और चोदता हूँ तेरा दर्द बिल्कुल ख़तम हो जाएगा…”

वह घबरा गई-“नहीं भैया… अब आज नहीं… मेरी चूत सो गई है। कल चोद लेना…”

मैं बोला-“नहीं कामिनी कल तेरी चूत और सूज जाएगी, आज ही अपने सुराख को और बड़ा करवा ले दर्द कल तक कम हो जाएगा…”

वह कुछ देर बाद बहस करके आख़िर वहीं घास पर घोड़ी बन गई-“भाई अब आहिस्ता चोदना…” वह बोली।

और मैं अपनी हसीन घोड़ी के पीछे आ खड़ा हुआ, उसकी गान्ड का सुराख भी सामने था, ना जाने कब यह सुराख भी खोलूँगा मैं, अभी कितना नाजुक और बंद है, मैं बेइखतियार होकर उसकी गान्ड का सुराख चाटने लगा, उसको भी मजा आया, और वह पालतू ब्रबल्ली की तरह गान्ड हिला हिला कर चटवाने लगी। मैं खड़ा हुआ और उसकी चूत को उंगलियों से खोला, वाकई बहुत तबाही मचाई थी मेरे लंड ने वहाँ। गुलाबी रंग लाली में बदल गया था।

लेकिन दीदी की चूत भी तो ऐसी ही हुई थी। बाद में सब ठीक हो जाता है, यह सोचकर मैं पीछे उकड़ू बैठा और बगैर इंतजार किए पूरा लंड अंदर घुस्सा दिया। वह फिर दर्द से चीखने लगी, अबकी दफा वह तीनन बार अपनी मनी छोड़कर निढाल हो गई थी। मैं अभी तक झटके मार रहा था, और फिर मेरी मनी मेरी बहन की चूत को सराबोर करने लगी और हम दोनों घास के फर्श पर निढाल गिर गये। मेरी खूबसूरत बहन जवान हो गई थी, आज बहुत खूबसूरत दिन था मेरे लिए, और यह मजे मैं अब रोज लूट सकता था। अब उसकी चूत का रास्ता हमेशा के लिए मेरे लंड के लिए खुल चुका था, हम लेटे थे की दीदी हमें तलाश करती आ पहुँची, हमें यूँ पड़ा देखकर वह चौंकीं। और कामिनी की रानें खोलकर उसकी चूत के लब खोल दिए।

और खून के धब्बे देखकर बोली-“यह क्या प्रेम, चोद दिया तुमने कामिनी को…”

मैं मुश्कुराने लगा।

दीदी भी हँस पड़ीं-“शैतान एक दिन भी बगैर चूत के नहीं रह सकता था। बेचारी बच्ची की इतनी नाजुक सी चूत को फाड़ दिया, चीखी नहीं यह…”

“बहुत दर्द हुआ दीदी, भाई ने इतना बड़ा लंड पूरा डाल दिया और मैं तड़पती रही…”

दीदी कामिनी की छोटी सी चूत सहलाने लगीं, और बोलीं-“खबदाफर प्रेम… अगर तुम दो दिन तक कामिनी की चूत के पास अपना लंड लेकर गये, बच्ची है अभी… तुमने तो एक ही दिन में दो दफा उसकी चूत खोल दी, बीमार हो गई तो…”


और वाकई कामिनी को रात में दर्द से बुखार आ गया, मैं शर्मिंदा था अब। मैंने अपनी छोटी बहन की चूत किस बेददी से खोली थी, खैर अब क्या हो सकता था, अब तो खुल चुकी थी, अब तो दुनियाँ की कोई ताक़त उस चूत को पहले जैसा नहीं कर सकतीं थी, दूर से देखने से ही उसकी चूत के लब कुछ फासले पर हटते नजर आ रहे थे।
***** *****

तो दोस्तों, आप मेरे साथ मेरे दास्तान के उस हिस्से पर आ गये हैं, जहाँ से मैंने अपनी जिंदगी का बेहतरीन दौर गुजारा, अब आगे के वाकियात मैं आपको बाद में क्यों ना सूनाऊूँ। मैं जरा अपने बीते दिन याद कर लूं और अपने खयालों में वापिस उसी जजीरे पर जा पहुँचू जहाँ मेरे सामने मेरी छोटी बहन कामिनी अपनी चूत पहली बार खुलवा कर साकित पड़ी थी,

तो दोस्तों अब इजाज़त… बस मैं कह चुका। मेरे दोस्तों अब मैं आपको जो वाकियात सुनाऊंगा, हो सकता है वो आपको बहुत अजीब लगें, आपको शरम महसूस हो, तो दोस्तों उसकी वजह यह है की आप यह दास्तान अपने आरामदेह कमरे में बिस्तर में घुस्से पढ़ रहे हैं, आपके इर्दगिर्द एक मुहजीब मश्रा है, आप किसी ना किसी बस्ती, गाँव या शहर में रहते हैं, जहाँ तहज़ीब है, जहाँ रस्म-ओ-ररवाज हैं, जहाँ आपको इंसानी ज़रूरत की हर चीज मुयस्सर है, लेकिन मैं, जिन कमजोर लम्हों की दास्तान आपको सुना रहा हूँ। उन लम्हों में यह चीजें मेरे लिए एक भूली बिसरी कहानी के सिवा कुछ अहमियत नहीं रखती थीं।

और हाँ अब मैं अपनी दास्तान का तासूलसूल जोड़ते हुये अपने दोस्तों को याद दिलाता चलूं, की यह 1949 की शुरू की या 1948 की बात है जो मैंमें बयान कर रहा हूँ, हमें यहाँ आए दसवा साल गुज़रता जा रहा है, और 11 साल होने को हैं, मैं जो 9 साल की उमर में यहाँ आया था। 20 साल का होने को हूँ। मेरी बहन राधा जो 15 साल की थी अब 26 की हो रही है, और मेरी बहन कामिनी जो सिर्फ़ 6 साल की कमसिन उमर में यहाँ आई थी आज 17 साल की भरपूर जवान है, और आज वोही भरपूर जवानी मैंने मसल दी थी।

क्या मस्त रसभरी होती है यह जवानी भी, आज उमर के इस हिस्से में गुजरी जवानी को याद करना भी बेहद हसीन तजुर्बा है, आज जब मैं यह दास्तान आपको सुना रहा हूँ, मैं उमर की कई मंज़िल तय कर चुका हूँ, और ना जाने कब जिंदगी की शाम हो जाए, बस कुछ ही वक्त है मेरे पास, आज इस दुनियाँ बेसबात में ना कामिनी है और ना राधा, दोनों मुझे छोड़कर जा चुके हैं, लेकिन यह दास्तान सुनाते हुये मैं आज भी अपनी दोनों बहनों को अपने बहुत पास, बिल्कुल अपने करीब बैठे महसूस कर सकता हूँ, जैसे वो यहीं हों और दिलचस्पी से मेरी दास्तान को सुनकर मुश्कुरा रही हों । जैसे कह रही हों, देखो हमने कैसा वक्त गुजारा है, आज भी मैं अपनी दोनों बहनों की जिस्म की खुशबू महसूस कर सकता हूँ, उनके कंवारे जिस्मों की खुशबू, जिन को मैंने कुछ साल गुजरे अपने इन्हीं हाथों से आग के सुपुर्द किया था।

आज भी उनके बे-लिबास जिस्म मुझे वापिस उसी पुरीसरार जजीरे के नाम और खूबसूरत फ़िज़ा में वापिस ले जाते हैं, जहाँ मैं होता हूँ, मेरी हसीन और कमसिन बहन कामिनी की शोखियाँ होतीं हैं, या हमें फितरत के हसीन राज सिखलाती दीदी के ज़ज्बात और शरम से लरजती आवाज, आज भी मैं वो मौसम महसूस कर सकता हूँ, वो सर्दी की हसीन रातें अपने जिस्म पर वैसे ही महसूस करता हूँ जब हम तीनों एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे की मनी से लिथरे बेसूध सो जाया करते थे। अपनी बहनों की चूत से टपकती उनकी कंवारी मनी की खुशबू आज भी मेरी सांसों में जिंदा है, वो ना रहीं तो क्या हुआ, उनकी यादें तो अभी जिंदा हैं, मैं तो अभी जिंदा हूँ, बातें बहुत हो गईं। आप भी मुझ बूढ़े से तंग आ जाते होंगे, कितनी बातें करता हूँ। लेकिन दोस्तों भला मेरे पास इन यादों के सिवा है ही क्या, तो बातों को फिर किसी वक्त के लिए उठा रखते हैं, आप आगे के वाकियात मुलाहिजा फरमायें।
***** *****
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RE: non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया - by sexstories - 07-29-2019, 11:58 AM

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