RE: Kamukta Kahani अहसान
अपडेट-17
जैसे ही मैं घर पहुँचा तो नाज़ी ने दरवाज़ा खोला ऑर मुझे देखते ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई जिसका जवाब मैने भी एक मुस्कान के साथ दिया....
नाज़ी : इतनी जल्दी कैसे आ गये.
मैं : मैं वहाँ बीज लेने गया था घर बसाने नही (हँसते हुए)
नाज़ी : आज कल नीर साहब आपको बहुत बातें आ गई है (मुस्कुराते हुए)
मैं : बस जी आपकी सोहबत का असर है
नाज़ी : अच्छा जी...... देखना कही सोहबत मे बिगड़ ना जाना हमारी.
मैं : नही बिगड़ता जी आप तो बहुत अच्छी हो
नाज़ी : हमम्म तभी अच्छाई का फ़ायदा उठाते हो अंधेरे मे बदमाश... (हँसती हुई)
मैं : वो मैं वो.....(ज़मीन पर देखते हुए)
नाज़ी : बस...बस... अच्छा ये बताओ शहर से आ रहे हो मेरे लिए क्या लाए?
मैं : बीज लाया हूँ खाओगी (हाहहहहहहहाहा) ये लो तुम्हारे, बाबा ऑर फ़िज़ा जी के लिए ओर नये सूट लाया हूँ.
इतने मे फ़िज़ा की रसोई से आवाज़ आई...
फ़िज़ा : कौन आया है नाज़ी
नाज़ी : कोई नही भाभी एक बुधु है जो नये कपड़े लाया है (हँसती हुई)
मैं : अच्छा....बुधु वापिस करो नया सूट.....
नाज़ी : (भागते हुए) भाभी बचाओ......मेरा नया सूट ले रहे हैं.
इतने मे फ़िज़ा रसोई मे से बेलन लेके बाहर आ गई.....ऑर नाज़ी उपर कोठरी मे कपड़े लेके भाग गई ऑर अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया.....
फ़िज़ा : अर्रे नीर तुम हो ये पागल तो कह रही थी बुधु है कोई
मैं : जी वो बुद्धू आपके सामने है
फ़िज़ा : नाज़ी भी पागल है ऐसे ही डरा दिया.... मुझे लगा पता नही कौन है
मैं : ओह्ह अच्छा तो इसलिए आप बेलन लेके आई थी....हाहहहहहाहा
फ़िज़ा : अच्छा तुम इतनी जल्दी कैसे आ गये
मैं : वो बस सीधी मिल गई थी ना इसलिए
फ़िज़ा : लेकिन अपने गाव से तो शहर के लिए सीधी बस कोई है ही नही
मैं : वो कुछ लोग कार मे शहर जा रहे थे तो मुझे भी उन्होने शहर छोड़ दिया पैसे भी नही लिए (मैने फ़िज़ा को झूठ बोला क्योंकि हीना के बारे मे बोलता तो उसको अच्छा नही लगता इसलिए)
फ़िज़ा : ओह्ह अच्छा...ऐसे ही किसी अंजान के साथ ना जाया करो नीर अगर वो ग़लत लोग होते तो....अपने बारे मे नही तो कम से कम हमारे बारे मे ही सोच लिया करो....
मैं : अर्रे तुम तो ऐसे ही घबरा जाती हो देखो कुछ नही हुआ सही सलामत तो हूँ वैसे भी तुमको लगता है मेरा कोई कुछ बिगाड़ सकता है (मुस्कुराते हुए अपने डोले फ़िज़ा को दिखाते हुए)
फ़िज़ा : फिर भी आगे से ऐसे किसी अंजान के साथ नही जाना ठीक है
मैं : जो हुकुम सरकार का (मुस्कुराते हुए)
फ़िज़ा : अच्छा वो बीज मिल गये
मैं : हंजी मिल गये..... ये बाकी के पैसे भी रख लो ऑर इसमे से कुछ पैसे खर्च हो गये वो मैं नये कपड़े आपके नाज़ी ऑर बाबा के लिए लाया था वो नाज़ी उपर लेके भाग गई
फ़िज़ा : कोई बात नही.... नीर तुम सारे पैसे मुझे क्यो दे रहे हो कुछ अपने पास भी रखा करो तुम्हारी ज़रूरत के लिए
मैं : मेरा खर्चा ही क्या....ख़ाता यहाँ हूँ, रहता यहाँ हूँ ऑर कोई बुरी आदत मुझे है नही सिवाए तुम्हारे तो फिर पैसे किसलिए आप ही रखू.
फ़िज़ा : हमम्म पता है.....अब मैं बुरी आदत हो गई हूँ ना..... नीर तुम अपने लिए कुछ नही लाए.
मैं : नही वो अपने लिए मुझे कुछ पसंद ही नही आया
फ़िज़ा : अगली बार जब जाओगे तो या तो अपने लिए भी कुछ लेके आना नही तो ये भी वापिस कर आना मुझे नही चाहिए.
मैं : अर्रे ऐसे भी क्या कर रही हो मैं बहुत प्यार से लाया था
फ़िज़ा : जानती हूँ....लेकिन तुम अपने लिए अगर कुछ खरीद लोगे तो क्या हो जाएगा आख़िर मेरा भी मन करता है कि मेरा नीर अच्छे-अच्छे कपड़े पहने ऑर गाव मे सब आदमियो से सुंदर दिखे...
मैं : कुछ नही वो बस ऐसे ही पैसे बहुत लग गये थे इसलिए.....अच्छा छोड़ो ये सब बाबा कहाँ है....
फ़िज़ा : वो ज़रा पड़ोस मे हैदर साब के घर गये हैं उनके पोते का पता लेने
मैं : क्यो क्या हुआ
फ़िज़ा : कुछ नही दोपहर को वो छत से गिर गया था उसकी टाँग टूट गई
मैं : ओह्ह्ह अच्छा... तभी मैं सोच रहा था आज ये तितली इतना शोर कैसे मचा रही है
फ़िज़ा : इस तितली को जल्दी इस घर से रवाना करना पड़ेगा (मुस्कुराते हुए)
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