RE: Kamukta Kahani अहसान
हम ऐसे ही बाते कर रहे थे कि तभी पिछे से नाज़ी की आवाज़ आई....
नाज़ी :भाभी नीर अगर कमरे मे चले गये तो मैं नीचे आ जाउ
फ़िज़ा : हाँ नीचे आजा वो बुद्धू अपने कमरे मे चला गया (हँसती हुई)
मैं : तुम भी बुधु....ठीक है (नाराज़ होके जाते हुए)
फ़िज़ा : अर्रे जान गुस्सा क्यो होते हो मैं तो मज़ाक कर रही थी अच्छा लो कान पकड़े अब तो माफ़ कर दो अपनी फ़िज़ा को.
मैं : (मुस्कुराते हुए) तुम ऑर नाज़ी दोनो एक जैसी हो एक नंबर की ड्रामेबाज़.
नाज़ी : क्यो जी आप मेरी भाभी से कान क्यो पकड़वा रहे हो (अपने दोनो हाथ कमर पर रखते हुए)
मैं : मैने तो कुछ भी नही कहा जी आपकी प्यारी भाभी को ये खुद ही कान पकड़े खड़ी है.
फ़िज़ा : देखो नाज़ी ये हम सब के लिए नये कपड़े लाए हैं ऑर अपने लिए कुछ नही लाए.
नाज़ी : क्यो जी अपने लिए कुछ क्यो नही लाए
मैं : अर्रे ग़लती हो गई अगली बार जब जाउन्गा तो ले आउन्गा अब तो खुश हो दोनो
फ़िज़ा : ठीक है फिर हम सब एक साथ ही नये कपड़े पहनेगे तब तक नाज़ी मेरे कपड़े भी संभालकर अंदर रख दो
अभी हम तीनो ऐसे ही बात कर रहे थे कि इतने मे बाबा भी आ गये ऑर मुझे घर मे देखकर खुश होते हुए बोले....
बाबा : आ गये बेटा
मैं : जी बाबा आप बीज देख लीजिए ठीक लाया हूँ या नही
बाबा : (बीज हाथ मे लेके देखते हुए) बहुत अच्छे बीज लाए हो बेटा अब तो तुम लगभग सारा काम ही सीख चुके हो.
मैं : जी ये सब तो मुझे फ़िज़ा जी ने सिखाया है
बाबा : हाँ बेटा ये मेरी सबसे लायक बच्ची है
फ़िज़ा : (नज़रे झुका के मुस्कुराते हुए)
नाज़ी : ऑर मैं.....बाबा मैं आपकी लायक बच्ची नही हूँ (रोने जैसा मुँह बनाके)
बाबा : ऑह्हूनो तुम्हारे सामने तो बात करना ही बेकार है जाने तुम्हारा बच्पना कब जाएगा
फ़िज़ा : बाबा अब हम को इसके लिए कोई अच्छा सा लड़का देखना शुरू कर देना चाहिए सिर पर ज़िम्मेदारी आएगी तो खुद ही बचपना करना छोड़ देगी.
नाज़ी : क्या भाभी आप भी.... (मुस्कुराते हुए ऑर मेरी तरफ देखते हुए)
बाबा : बेटी कोई अच्छा लड़का भी तो मिले तब ही बात चलाए तुम्हारी नज़र मे कोई हो तो बता दो
फ़िज़ा : नही बाबा मैं तो ऐसे ही मज़ाक कर रही थी अभी तो इसके खेलने खाने के दिन है....
बाबा : चलो फिर ये ज़िम्मेदारी भी मैं तुमको ही देता हूँ जब तुमको लगे कि ये शादी के लायक हो गई है तो खुद ही इसके लिए लड़का ढूँढ लेना मुझे तुम्हारी पसंद पर पूरा भरोसा है.
फ़िज़ा : जी बाबा..... अच्छा बाबा आप ऑर नीर बाते करो मैं रसोई मे ज़रा खाना बना लूँ
बाबा : हाँ बेटा अच्छा याद करवाया फ़िज़ा ने.... मुझे तुमसे एक ज़रूरी बात करनी थी.
मैं : जी बाबा हुकुम कीजिए
बाबा : बेटा अब तो तुम सब काम देखने लग गये हो ऑर तुम तो जानते हो कि अपनी फ़िज़ा बेटी भी अब उम्मीद से है तो इस हालत मे इसका काम करना सही नही है ऑर खेत का मेहनत वाला काम तो बिल्कुल भी नही तो मैं सोच रहा हूँ कि जब तक बच्चा नही हो जाता तुम अकेले ही खेत का सारी देखभाल करो क्योंकि फ़िज़ा के बाद एक तुम ही हो जिस पर मैं भरोसा कर सकता हूँ क़ासिम का तो तुम जानते ही हो वो हुआ ना हुआ एक बराबर है.... बाकी नाज़ी को तुम चाहो तो अपनी मदद के लिए साथ लेके जाना चाहो तो ले जाना तुम्हे मेरे फ़ैसले से कोई ऐतराज़ तो नही.
मैं : ऐतराज़ किस बात का बाबा आपका हुकुम सिर आँखो पर
बाबा : खुश रहो बेटा मुझे तुमसे यही उम्मीद थी....अल्लाह सबको ऐसी लायक औलाद दे
(इतना कह कर बाबा नाज़ी को आवाज़ लगते हुए अपने कमरे मे चले गये)
मैं वही पर बैठा बाबा के फ़ैसले के बारे मे सोचने लगा ऑर साथ ही अपने असल नाम के बारे मे सोच रहा था. काफ़ी देर मैं बाहर खड़ा रहा ऑर अपनी पुरानी जिंदगी को याद करने की कोशिश करता रहा लेकिन मुझे कुछ भी पिच्छला याद नही आ रहा था. अब मैं सोच रहा था कि अपने नाम के बारे मे सबको बताऊ या चुप रहूं बरहाल मैने ये फ़ैसला किया कि मैं इस बारे मे किसी को भी कुछ नही बताउन्गा ऑर जब तक मुझे कुछ ऑर बाते अपने बारे मे पता नही चल जाती या फिर याद नही आ जाती अपने बारे मे तब तक चुप रहूँगा. रात को खाने के वक़्त मैं नाज़ी ऑर फ़िज़ा तीनो खाने पर बैठ गये ऑर रोज़ की तरह बाबा आज भी जल्दी सो गये थे. खाने के वक़्त मैने सबको बाबा का फ़ैसला सुना दिया. जिस पर पहले तो फ़िज़ा नही मानी लेकिन मेरे इसरार पर वो मान गई ऑर घर मे रहने का फ़ैसला कर लिया. लेकिन उसने ये शर्त रखी कि मैं अकेले काम नही करूँगा ऑर नाज़ी को भी अपने साथ लेके जाउन्गा ताकि वो मेरी खेत मे मदद कर सके जिस पर नाज़ी खुशी-खुशी मान गई. फिर हम तीनो खाना खाने लग गये.
नाज़ी : अच्छा भाभी बाबा ने मुझे आपके लिए कुछ हिदायतें दी है.
फ़िज़ा : (खाना खाते हुए) क्या कहा बाबा ने
नाज़ी : वो शाम को बाबा ने मुझे कमरे मे बुलाया था तो कह रहे थे कि अब हमारे घर मे कोई बड़ी बुजुर्ग औरत तो है नही जो तुम्हारी भाभी का ख्याल रख सके इसलिए मैं ही अबसे तुम्हारा ख्याल रखूँगी.
फ़िज़ा : (हँसती हुई) अच्छा जी..... खुद को संभाल नही सकती मेरा ख्याल रखेगी.
नाज़ी : (चिड़ते हुए) हँसो मत ना भाभी मैं सच कह रही हूँ अब से आप ना तो रसोई मे ज़्यादा काम करेंगी ना ही कोई सॉफ-सफाई करेंगी.
फ़िज़ा : चलो जी.... तो खाना कौन बनाएगा घर कौन सॉफ करेगा महारानी जी.
नाज़ी : मैं हूँ ना मैं सब संभाल लूँगी इतना तो आपसे काम सीख ही लिया है
फ़िज़ा : कोई बात नही कल सुबह देख लेंगे तुम कितने पानी मे हो. (हँसते हुए)
नाज़ी : हाँ...हाँ....देख लेना
फ़िज़ा : मज़ाक छोड़ ना नाज़ी मैं कर लूँगी तू रहने दे तुझसे अकेले नही संभाला जाएगा ये सब.
नाज़ी : आप भी तो संभालती हो ना...फिर मैं भी संभाल लूँगी फिकर ना करो.
फ़िज़ा : लेकिन अभी तो मुझे बस दूसरा महीना लगा है तुम सब अभी से मुझे बिस्तर पर डाल रहे हो ये तो ग़लत है अभी तो मैं काम करने लायक हूँ सच मे.
नाज़ी : मैं कुछ नही जानती बाबा का हुकुम है उन्ही को जाके बोलो मुझे ना सूनाओ हाँ.
फ़िज़ा : (मुझे देखते हुए) तुम ही समझाओ ना इसे
मैं : (अभी तक चुप-चाप बस इनकी बाते सुन रहा था) यार मैं क्या समझाऊ बाबा का हुकुम है तो मैं क्या बोल सकता हूँ इसमे.
फ़िज़ा : ठीक है सब मिलकर मुझे मरीज़ बना दो (रोने जैसा मुँह बनाते हुए)
नाज़ी : ये हुई ना बात (फ़िज़ा का गाल चूमते हुए) मेरी प्यारी भाभी.
ऐसे ही हम बाते करते हुए खाना खाते रहे फिर खाने के बाद मैं तबेले मे पशुओ को बाँधने चला गया ऑर फ़िज़ा ऑर नाज़ी रसोई मे काम निबटाने मे लग गई. मैं मेरे सब काम से फारिग होके जब अंदर आया तब तक नाज़ी ऑर फ़िज़ा भी लगभग अपना सारा काम निबटा चुकी थी. तभी फ़िज़ा ने मुझे इशारे से रसोई मे बुलाया. जब मैं अंदर गया तो नाज़ी वहाँ नही थी ऑर फ़िज़ा मुझे कुछ परेशान सी लग रही थी.
मैं : क्या हुआ परेशान हो?
फ़िज़ा : जान एक ऑर गड़-बॅड हो गई है (मुँह रोने जैसा बनाते हुए)
मैं : क्या हुआ सब ख़ैरियत तो है
फ़िज़ा : आज से नाज़ी भी मेरे साथ मेरे कमरे मे सोया करेगी ताकि रात को अगर मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो मेरी मदद कर सके.
मैं : तो इसमे रोने जैसा मुँह बनाने की क्या बात है ये तो अच्छी बात है तुमने तो मुझे भी बेकार मे डरा दिया.
फ़िज़ा : नहियिइ..... जान तुम मेरी बात नही समझे.
मैं : अब क्या हुआ है यार बाबा ठीक ही तो कह रहे हैं अब मैं या बाबा तो तुम्हारे साथ सो नही सकते ना इसलिए नाज़ी एक दम सही है.
फ़िज़ा : लेकिन फिर मैं मेरी जान को प्यार कैसे करूँगी (रोने जैसा मुँह बनाते हुए)
मैं : अच्छा तो ऐसा बोलो ना फिर.....
फ़िज़ा : ये बाबा ने तो सब गड़बड़ कर दिया अब हम क्या करेंगे. (मेरे कंधे पर सिर रखते हुए)
मैं : मैं सोचता हूँ कुछ आज-आज का दिन कैसे भी गुज़ार लो कल देखेंगे ठीक है
फ़िज़ा : कल रात भी हमने प्यार नही किया एक-दूसरे को ऑर ऐसे ही सो गये थे जान....
मैं : अब कर भी क्या सकते हैं मुझे बस एक दिन दो कुछ सोचता हूँ मैं तुम भी कुछ सोचो.
फ़िज़ा : हमम्म
मैं : ये नाज़ी कहाँ है
फ़िज़ा : तुम्हारा बिस्तर करने गई है (मुस्कुराते हुए)
मैं : तभी तुम इतना चिपक के खड़ी हो.
फ़िज़ा : क्यो अब चिपक भी नही सकती.....मेरी जान है (मुझे ज़ोर से गले लगाती हुई)
मैं : अच्छा अब छोड़ो नही तो नाज़ी आ जाएगी तो क्या सोचेगी.
फ़िज़ा : म्म्म्मडमम थोड़ी देर बसस्स....फिर चले जाना वैसे भी रात को सोना ही तो है.
मैं : जैसी तुम्हारी मर्ज़ी. (फ़िज़ा को गले से लगाते हुए)
इतना मे नाज़ी की आवाज़ आई ऑर हम को ना चाहते हुए भी अलग होना पड़ा.
नाज़ी : क्या बात है आज तुम भी रसोई मे (मुझे देखते हुए) बर्तन धुलवाने आए हो क्या.
फ़िज़ा : जी नही इनको मैने बुलाया था
नाज़ी : क्यो कोई काम था तो मुझे बुला लेती.
फ़िज़ा : अर्रे नही वो बस कल से तुम दोनो ने ही खेत जाना है तो इनको सब काम अच्छे से समझा रही थी ऑर कौनसा समान मैने कहाँ रखा है वो सब बता रही थी.
नाज़ी : वो सब तो इनको पहले से ही पता है भाभी तुम तो ऐसे कर रही हो जैसे हम पहली बार खेत जा रहे हैं (हँसती हुई)
फ़िज़ा : नही फिर भी बताना तो मेरा फ़र्ज़ है ना.
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