RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
मैने दीपिका मॅम के बूब्स पर अपना हाथ रक्खा, कुरती के कारण आधा ब्रा ही दिख रहा था ,आधा सलवार मे ढका हुआ था,लेकिन जितना भी दिख रहा था वही मेरे लिए कयामत था, मैने दीपिका मॅम का सर पकड़ा और उन्हे उठने के लिए कहा,क्यूंकी अब मेरा मन उसके गुलाबी होंठो को पीने का कर रहा था, मेरी मंशा को जानकार वो तुरंत खड़ी हुई और उस दिन की तरह मेरे उपर चढ़ गयी, तेज़ी से साँस भरती हुई उसकी छातियाँ मुझसे टकरा रही थी ,मैने पहले दीपिका मॅम के होंठो पर हल्का सा किस कयि बार किया और फिर धीरे धीरे उन्हे पूरा जकड लिया....वो भी मुझे कसकर पकड़ी हुई अच्छा रेस्पॉन्स दे रही थी....तभी साला मालूम नही दीपिका मॅम का मोबाइल कैसे बज उठा, उसने एक झटके मे मुझे अलग किया और मोबाइल को देखकर बोली....
"रिसेस ख़तम होने वाला है, तुम्हारे चक्कर मे मैं भी भूल गयी, वो तो अच्छा हुआ की मैने 10 मिनट. पहले का अलार्म सेट कर रक्खा है...."
मैं दीपिका मॅम के पास गया और उनके पीछे से उनकी कमर को कसकर पकड़ कर खुद से सटा लिया और उसकी गर्दन को चूमने लगा,...मेरा लंड इस वक़्त दीपिका मॅम के पिच्छवाड़े से टकरा कर बुरी तरह घायल हुआ जा रहा था,..
"कंट्रोल नही होता ...."उसकी चुचियों को कसकर दबाते हुए मैने कहा...
"अरमान, काबू करो अपने अरमानो पर, तुम्हे जाना होगा..."
"आज नही..."उनके पिच्छवाड़े पर अपना लंड रगड़ते हुए मैने कहा"आज तो चोद के जाउन्गा..."
"कहीं चोदने के चक्कर मे कॉलेज से ना निकाले जाओ..."मेरा हाथ पकड़ कर उसने दूर करने की कोशिश की लेकिन मैने तब और भी ज़ोर से उसकी चुचियों को दबाने लगा,...चुदना तो वो भी चाहती थी लेकिन समय की कमी की वजह से वो मुझे मना कर रही थी, उसकी आवाज़ मे अजीब सी कशमकश थी, वो मुझे जाने के लिए तो कह रही थी,लेकिन उसकी आवाज़ का टोन कुछ और ही था, और इसी बीच उसने अपना पिच्छवाड़ा पीछे की तरफ करके मेरे लंड को दबाया, मेरा तो बुरा हाल था ,मैने दीपिका मॅम को सीधा किया और उसके होंठो को चूसने लगा और तब दीपिका मॅम ने अपने लबों को आज़ाद किया और बोली...
"अरमानणन.....गो..."
और दीपिका मॅम का मोबाइल फिर से बज उठा, तो उसने मुझे दूर करते हुए कहा"होड़ सर आते होंगे..."
मुझे दूर करके उसने अपना उपर टंगा कुर्ता नीचे किया और मुझे आँखे दिखाकर जाने के लिए कहा...
"मैं नही जाउन्गा..."उसके पास आकर उसको वापस पकड़ते हुए मैने कहा,"आज भले ही हम दोनो पकड़े जाए, लेकिन आज मैं आपकी चूत मार कर रहूँगा..."
"अरमान, पागल मत बनो..."खुद को मुझसे छुड़ाने की नाकाम कोशिश करते हुए वो बोली...
आज मैं कंप्यूटर लॅब मे कुछ और भी सोचकर आया था, साली ने असाइनमेंट दे देकर परेशान कर रक्खा था,....
"एक शर्त पर जाउन्गा..."उसकी सलवार मैने फिर से उपर उठाकर उसकी पीठ को सहलाते हुए बोला"यदि मेरे सारे असाइनमेंट माफ़ कर दो ...."
"ओके..ओके, नाउ यू गो..."
"थॅंक यू ,मॅम "मैने उस चूत की रानी को छोड़ा और खुद का हुलिया सही करके वहाँ से निकल गया, दीपिका मॅम भी उस दिन सोच रही होगी कि साला ये कल का आया हुआ लौंडा मेरी चूत और गान्ड सहला कर मुझे ही चुना लगा गया.....
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"ये चाकू देख रहा है..."टेबल पर रक्खे एक चाकू की तरफ इशारा करते हुए वरुण बोला"इसको ले कर अपने हाथ की लकीरे काट डालना था , तब शायद वो तुझे मिल जाती...."
वरुण की बात सुनकर मैं बाहर तो मुस्कुराया लेकिन अंदर रोया "किसी शायर ने कहा है...."
"नो...नो..."
"क्या हुआ.."
"तू बहुत घटिया और बोरिंग शायरी मारता है..."
"दारू पिलाई है तो बकवास तो सुनना ही पड़ेगा ,ले सुन..."बाहर से हँसते हुए और अंदर से रोते हुए मैने कहा" मैं अपने हाथो की उन लकीरो को कुरेद कर, काट कर मिटा भी देता जिसमे वो नही थी, उसका अक्श नही था,लेकिन एक कहावत इश्क़-ए-बाज़ार मे काफ़ी मशहूर है कि.....
"हद से ज़्यादा किसी चीज़ से प्यार करने पर...वो चीज़ नही मिलती....
ये सब तो किस्मत का खेल है यारो !!!
क्यूंकी हाथ की लकीरो को मिटाने से....कभी तक़दीर नही बदलती...."
"बोल वाह..."
"स्टोरी आगे बढ़ा, और बता फिर क्या हुआ..."
"फिर...."
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फिर क्या था, गौतम साला राइट टाइम पर आया , मेरे ख़याल से उसकी ट्रेन को लेट हो जाना चाहिए था या फिर उसे कोई ज़रूरी काम पड़ जाना चाहिए था ,जिसकी वजह से वो कुछ और हफ्ते तक कॉलेज ना आ पाए , लेकिन ऐसा नही हुआ...वो दूसरे दिन ही कॉलेज आया और एश के साथ आया.....एलेक्षन के लिए दोनो तरफ की पार्टियो मे तैयारिया चल रही थी, वरुण का हॉस्पिटल मे होना, उसकी पार्टी के लिए अच्छा साबित हुआ क्यूंकी फाइनल एअर के सभी स्टूडेंट्स सीडार की इस हरकत से उसके अगेन्स्ट हो गये थे और सुनने मे ये भी आया था कि कुछ लोग सीडार को एलेक्षन के बाद मारने का प्लान बना रहे थे....
मैं कॉलेज जाना चाहता था और कॉलेज जाकर फिर से एश से लड़ना चाहता था,लेकिन एलेक्षन की वजह से मैं ,मेरा खास दोस्त अरुण , सीडार और सीडार के कुछ खास दोस्त एक रूम मे पिछले दो घंटे से बंद थे और अपना-अपना दिमाग़ लगा रहे थे कि कैसे , कब ,कौन सी चाल चली जाए...तभी मेरे 1400 ग्राम के दिमाग़ मे एक फाडू आइडिया ने दस्तक दी...
"फाइनल एअर और सेकेंड एअर मे हमारे कितने कॅंडिडेट है..."मैं बोला...
"एक-एक..."
"दो-दो कर दो...."
"पागल है क्या..."सीडार मेरी तरफ देखकर बोला"एक को तो वैसे भी वोट नही मिलने वाला ,दो दो कॅंडिडेट खड़े करके हम अपना वोट क्यूँ कम करे, क्यूंकी वोट काउंट तो किसी एक का ही होगा ना...."
"एक बात बताओ...."मैने अरुण के मूह से सिगरेट छीन ली और सीडार की तरफ देखकर कहा"आप प्रजा-तन्त्र मे विश्वास रखते हो या राज-तन्त्र मे...."
"मैं अंग्रेज़ो के शासन मे यकीन रखता हूँ , अब बोल..."
"तो फिर अंग्रेज़ो का ही नियम और दिमाग़ लगाओ....फूट डालो और शासन करो...."
"अबे तू कहना क्या चाहता है..."सीडार ने मेरे हाथ से सिगरेट ले ली और बोला"एक्सप्लेन कर..."
"सेकेंड एअर और फाइनल एअर मे से ऐसे दो बन्दो को पकडो, जो वरुण की टीम मे हो और उन्हे हमारी तरफ से खड़ा करो..."
"उससे क्या होगा..."
"उससे ये होगा कि उनके वोट बॅट जाएँगे, जैसे कि यदि सेकेंड एअर मे गौतम खड़ा है, तो उसी के किसी दोस्त को हमारी पार्टी से खड़ा करो, इससे गौतम के दोस्त दो ग्रूप मे बात जाएँगे और उनके वोट.........कम"
"ग़ज़ब , अब कहलाया तू अरुण का दोस्त..."मेरे कंधे पर हाथ रखकर अरुण ने शान से कहा, और मैने भी शान से सुना.....
सीडार ने अपना सोर्स लगाया और दो ऐसे बंदे ढूँढ लिए जो सीडार के लिए काम करने को तैयार थे , मैं और अरुण वहाँ से निकले और लंच के बाद वाली क्लास अटेंड करने के लिए कॉलेज पहुचे...
"मॅम, मे आइ..."
"कम इन..."हम दोनो को देखकर दीपिका मॅम बोली,..
"ये तो दंमो रानी की क्लास है, ये दीपिका जानेमन कहाँ से टपक पड़ी..."अंदर आकर मैं अपनी सीट पर बैठा और.....और कुछ नही किया सिर्फ़ बैठा ही रहा ,क्यूंकी दीपिका मॅम टेस्ट की कॉपी दे रही थी...
"अरमान,.."
"यस मॅम.."मैं अपनी जगह पर खड़ा हुआ...
"तुम्हे क्या लगता है, कितने नंबर आ जाएँगे..."
पहले ही मेरे अंदर थरक इतनी भरी हुई थी कि मैने कुछ दूसरा ही नंबर बोल दिया,...
"मेरे ख़याल से 36 होगा..."
"क्या...?"दीपिका मॅम चौक कर बोली, क्यूंकी वो तो समझ गयी थी कि मैं किस नंबर की बात कर रहा था, बाकी पूरी क्लास इस बात को कॉमेडी मानकर हंस रही थी, सबको हंसता देख जैसे मुझे होश आया और मैने एक नज़र दीपिका मॅम पर डाली, वो मुझे आँखे दिखाकर कुछ कहना चाह रही थी....
"ओह सॉरी मॅम..."
"कितना, नंबर आ सकता है ,तुम्हारा...."दीपिका मॅम ने मुझसे फिर पुछा और इस बार उसकी आवाज़ थोड़ी तेज़ भी थी...
"अब मैं क्या बताऊ, मेरी आदत नही है कि एग्ज़ॅम के बाद मैं उस सब्जेक्ट के बारे मे सोचु...आप ही बता दो..."
"18 नंबर. गुड..."
"क्या "अबकी बार मैं चौका क्यूंकी 5 मार्क्स का एक क्वेस्चन तो मैं छोड़ कर ही आया था ,फिर 18 नंबर. कैसे
"कॉपी देखना है..."
"बिल्कुल..."मैं दीपिका मॅम के पास गया और कॉपी लेकर अपनी जगह पर लौटा और मेरा अंदाज़ा सही था उसने मुझे एक्सट्रा मार्क्स दिए थे,
"साले, तूने तो बोला था कि 5 नंबर. का एक क्वेस्चन तूने छोड़ दिया है ,फिर तेरे 18 कैसे आए..."मेरे हाथ से कॉपी लेते हुए अरुण ने कहा....
"गयी भैंस पानी मे, कहीं साला हल्ला ना कर दे क्लास मे..."
लेकिन तभी लंड की प्यासी दीपिका मॅम हमारे पास आई और अरुण के हाथ से मेरी और टेबल पर रक्खी उसकी कॉपी उठाकर बोली"खुद मेहनत करो, दूसरो की कॉपी मे ताक-झाक करना अच्छि बात नही..."
अरुण अपना सा मूह लेकर रह गया और साइलेंट मोड मे दीपिका मॅम को कुछ बोला , यदि मैं सही था तो उसके अनुसार अरुण ने दीपिका मॅम को माँ की गली दी थी , दीपिका मॅम जब तक क्लास मे रही तब तक मेरा सब कुछ वाइब्रट करता रहा, बीच मे वो भी कभी-कभी मुझे देखकर मुस्कुराती और कयि बार ये तक बोल देती कि"अरमान इतना मुस्कुरा क्यूँ रहे हो....."
और जवाब मे मैं फिर से मुस्कुरा देता और साथ मे सारी क्लास हंस देती....वो पल बहुत खुशनुमा था जो मैं आज भी बहुत मिस करता हूँ, उस क्लास की रंगत मुझे भाने लगी थी, उस क्लास मे बैठे लोग मुझे अच्छे लगने लगे थे, उनकी बाते और फिर रिसेस मे दोस्तो के साथ बक्चोदि, सब कुछ मुझे एक नयी ज़िंदगी मे ले जा रहा था और वो मेरी ज़िंदगी का शायद पहला ऐसा मौका था जब मैं दिल से जी रहा था, जब मैं अपने मन की कर रहा था, आस-पास कोई रोकने टोकने वाला नही था,उस वक़्त यदि कोई मुझसे दो ख्वाहिश माँगने के लिए कहता तो मैं उसे यही कहता कि एश से मेरा स्ट्रॉंग बॉन्ड बन जाए और ये कॉलेज लाइफ का वक़्त हमेशा चलता रहे, मेरा खास दोस्त अरुण हमेशा मेरे साथ रहे, लेकिन वक़्त किसी के लिए नही रुकता, मेरे लिए भी नही रुका.....
जिस दिन दीपिका मॅम ने मुझे एक्सट्रा मार्क्स दिए थे, उसके दूसरे दिन भी मैने कॉलेज के स्टार्टिंग पीरियड्स अटेंड नही किए, रीज़न एलेक्षन ही था, जब मैं कॉलेज नही गया तो फिर मेरा खास दोस्त अरुण कैसे कॉलेज जाता, वो भी मेरे साथ इधर-उधर घूमता और मुझे गालियाँ बकता कि मैं ये किस झमेले मे पड़ गया हूँ ओए जब वो ज़्यादा ही भड़क जाता तो एक सिगरेट निकालकर उसके मूह मे ठूंस देता...कल की तरह मैने आज भी रिसेस के बाद कॉलेज जाना का सोचा , लेकिन अरुण कुछ काम बोलकर वहाँ से हॉस्टिल की तरफ निकल गया और मुझे बोला कि वो मुझे कॅंटीन मे मिलेगा, अरुण के जाने के बाद मैने मोबाइल मे टाइम देखा ,अभी लंच ख़तम होने मे 40 मिनट. बाकी थी , इसका मतलब मैं कॅंटीन मे जाकर 40 मिनट. तक एश पर लाइन मार सकता था, मैने अपना मोबाइल निकाला और सीडार को मेस्सेज कर दिया कि मैं कॅंटीन मे हूँ, नज़र मारते रहना......
ज़िंदगी कभी उस हिसाब से नही चलती जैसा हम चाहते है, उसे कोई फरक नही पड़ता कि हम अपनी ज़िंदगी को किस तरह और कैसे जीना चाहते है, लाइफ तो बस यूनिफॉर्म वेलोसिटी से अपने मनचाहे डाइरेक्षन मे आगे बढ़ती रहती है, और ये हमेशा होता है, उसी तरह मैं शायद उस कॉलेज का अकेला अरमान नही था, जिसके अरमान इतने ज़्यादा थे...उस कॉलेज मे और भी काई होंगे जो कुछ सोचकर या फिर अपना एक लक्ष्य बना कर वहाँ आए थे, मैं और गौतम उस कॉलेज मे अकेले नही थी, जिसे एश पसंद थी और भी कयि लड़के थे जो एश को अपनी बाँहो मे देखना चाहते थे, लेकिन वहाँ उस कॅंटीन मे आधे घंटे से एश का इंतेज़ार करने वालो मे से मैं अकेला था, मेरे सिवा वहाँ कोई ऐसा नही था जो आधे घंटे से बैठकर एश का इंतेज़ार कर रहा हो, लेकिन कोई फ़ायदा नही हुआ, एसा आज कॅंटीन नही आई और मैं अपने चेहरे को कभी एक हाथ मे टिकाता तो कभी दूसरे हाथ मे...एक अलग ही उदासी मेरे अंदर भरती जा रही थी, जिसे सिर्फ़ और सिर्फ़ दो लोग निकल सकते थे...एक तो थी एश और दूसरा मुझे सिगरेट कैसे पीना चाहिए ,ये बताने वाला मेरा खास ,एकदम खास दोस्त अरुण.....एश तो नही आई और अरुण को आने मे वहाँ अभी वक़्त था....
"क्यूँ बे उजड़े चमन, ऐसे क्यूँ बैठा है...किसी ने गान्ड मार ली क्या..."
मैं इस आवाज़ को पहचान गया और बिना उसके तरफ देखे ही बोला"बैठ बे अरुण, आज तेरी भाभी नही आई..."
"कौन दीपिका..."
"अबे तेरी तो....मैं एश की बात करिंग..."
"वो तो तेरी सबसे प्यारे दोस्त तेरे जिगरी यार गौतम की सेट्टिंग है..."
"उड़ा ले बेटा मज़ाक..."
"चल छोड़, क्लास चलते है..."
"चल..."उठाते हुए मैने कहा"लेकिन पहले यहाँ का बिल भर..."
"कितना हुआ.."अपना जेब चेक करते हुए अरुण ने पुछा
"2500 पैसे..."
"लवडा, पर्स हॉस्टिल मे ही छूट गया , तू ही दे दे..."
"यदि मैं पर्स लाया होता तो क्या तुझे बोलता, बाकलोल कही के..."कॅंटीन वाले लड़के के पास जाकर मैने बोला कि वो बिल मेरे अकाउंट मे एड कर दे, लेकिन ना तो मेरा वहाँ कोई अकाउंट था और ना ही उसने उधारी करने की बात मानी,...
"अपुन को तो कॅश ही माँगता, यदि रोकडा है तो रोकडा दो..वरना अपना कुछ समान रख के जाओ..."
"अबे उल्लू, मैं तेरे 25 के लिए अपना 10000 का मोबाइल गिरवी रक्खु क्या..."
"वो अपना मॅटर नही है..."
साला कॅंटीन वाला मान नही रहा था और नेक्स्ट क्लास भी स्टार्ट होने वाली थी, तभी सीडार का कॉल आया, सीडार ने ये पुछने के लिए कॉल किया था की वहाँ कोई लफडा तो नही है,और तभी मेरे खुराफाती दिमाग़ मे एक सॉलिड आइडिया आया और मैने कॅंटीन वाले से बोला...
"सीडार के खाते मे डाल..."
"वो तुमको जानता है..."
"ये देख ,उसी की कॉल आई थी अभी..."मोबाइल मे कॉल हिस्टरी दिखाते हुए मैने कहा और वो मान गया....
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"ओये अरमान, सुन..."चलती क्लास के बीच मे नवीन ,जो कि आज आगे वाली बेंच मे बैठा था वो मुझे बोला"वरुण आज कॉलेज आया है, साले के सर मे पट्टी बँधी है..."
"आज भी, रोला झाड़ रहा था क्या ..."
"ना, आज तो साला भीगी बिल्ली की तरह बस मे बैठा था, उसके दोस्त भी उसके साथ थे...लेकिन कोई कुछ नही बोल रहा था..."
"और उसकी आइटम विभा ,आई है क्या..."
"आई तो है,लेकिन वो आज वरुण से दूर बैठी थी...लगता है दोनो का ब्रेक-अप हो गया..."
मैं और नवीन धीरे धीरे बात कर रहे थे कि तभी अरुण शेर की तरह दहाड़ मारकर बोला"अब उसे मैं सेट करूँगा...:"
"कौन है बदतमीज़..." होड़ सर ने जहाँ हम बैठे थे, उस तरफ देखकर कहा"जिसने भी ये हरकत की है ,वो सीधे से निकल जाए,वरना पूरी क्लास का सेक्षनल ज़ीरो कर दूँगा..."
आवाज़ अरुण ने किया था ,इसलिए होड़ सर हमारी बेंच और उसी के आस-पास देखकर बोल रहे थे, और जैसे ही उन्होने अरुण की तरफ देखा तो मेरा गान्डु दोस्त अरुण होशियारी मारते हुए बोला..
"सर , मुझे नही मालूम कि आवाज़ किसने निकाली, शायद पीछे से कोई बोला..."
"चल खड़े हो और बाहर निकल..."
"लेकिन सर, मैने कुछ नही किया "
"कुछ देर पहले जो आवाज़ हुई थी, उससे तेरी आवाज़ मॅच हो गयी है...चल बाहर जा..."
"सॉरी सर"
"बाहर जा..."
अरुण बाहर गया और होड़ सर फिर से बोर्ड पर ड्रॉयिंग बनाने लगे,
"तुझे कैसे मालूम कि, विभा और वरुण का ब्रेक-अप हो गया..."होड़ सर के सामने मुड़ते ही मैने एकदम धीमी आवाज़ मे नवीन से बोला"तू तो बाइक से आता है ना..."
"आज बस से आया, तभी देखा...वरुण ,विभा से बात करने की कोशिश मे लगा हुआ था लेकिन विभा हर बार यहिच डाइलॉग मारती कि...लीव मी अलोन..."
"और फिर..."
"और फिर क्या होना था, अपना थोबड़ा लेकर वरुण चुप चाप सिटी बस मे पीछे की तरफ बैठ गया और उसके बाद मैने एक मस्त चीज़ नोटीस की..."शरमाते हुए नवीन ने कहा"विभा मुझे लाइन दे रही थी"
"हे, तुम भी खड़े हो...."होड़ सर ने अबकी बार नवीन को खड़ा किया"यहाँ तुम गुपशप अड्डा खोल के बैठे हो..."
"नही सर...वो"
"क्या नही सर..."होड़ सर की लाल होती आँखो से ज्वालामुखी बस फटने ही वाला था...
"सर मैं, पेन माँग रहा था..."
"अच्छा..."होड़ सर ने बुक टेबल पर रक्खी और जहाँ हम बैठे थे वहाँ आकर नवीन के हाथ मे से पेन लिया और चला के देखा....
"तुम्हारा पेन तो ठीक चल रहा है, फिर क्या दोनो हाथ से लिखने के लिए पेन माँग रहे थे"
नवीन अपना सर नीचे करके एकदम चुप होकर ऐसे बैठा ,जैसे उसने कुछ किया ही ना हो,...
"बाहर जाओ..."
नवीन जब बाहर जाने लगा तो होड़ सर ने उसे रोका और पुछा कि वो पेन किससे माँग रहा था....
"सर, अरमान से..."
"कौन है ,अरमान..."
"सर मैं..."अपना हाथ उठाते हुए मैने कहा...
होड़ सर मेरे पास आए और बोले कि मैं उन्हे अपना पेन दिखाऊ, लेकिन सला मेरे पास तो एक भी पेन नही था , मैं तो इतनी देर से सिर्फ़ कॉपी खोल कर बैठा था
"वाह , पेन भी उस बंदे से माँग रहे थे,जिसके पास पेन ही ना हो"और फिर मुझे देखकर होड़ सर ने बड़ा सा "गेट ओउुुउउट" बोला....
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"चल बाथरूम मे मूठ मार के आते है..."जब हम तीनो क्लास से बाहर निकल आए तब नवीन ने कहा....
"मैं नही मारूँगा आज सुबह ही राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम पर हवेली पढ़कर हिलाया है..."अरुण बोला....
"तुम दोनो यहीं खड़े रहो ,मैं अभी आया, कुछ एलेक्षन रिलेटेड काम आ गया है..."
"मैं भी चलता हूँ..."
लेकिन मैं नही माना, और अरुण को नवीन के साथ रुकने के लिए बोलकर वहाँ से निकल गया और मेरी गाड़ी जाकर सीधे कंप्यूटर लॅब मे रुकी, जहाँ दीपिका मॅम अपनी टांगे चौड़ी किए हुए पीसी पर शायद बीएफ देख रही थी...........
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