RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
"यही बात प्यार से भी तो कह सकती थी,खामाखाँ नाख़ून गढ़ा दिया और तूने ये डायन जैसे नाख़ून क्यूँ पाल रखे है,कटवाती क्यूँ नही..."
अपने लिए डायन शब्द सुनकर निशा मुझपर भड़क उठी और अपनी आँखे बड़ी करके एक बार और अपने डायन वाले नाख़ून को मेरे हाथ पर गढ़ा दिया....
"चुभता है यार..."
"तो फिर मुझे डायन मत बोलना और यही तो आज कल का फॅशन है..."
"वाह रे फॅशन...पहले तो जानवरो की तरह अपने नाख़ून बड़े करो फिर उसमे हज़ार तरह की नेल पोलिश थोपो...तुम लड़कियो के पास बहुत एक्सट्रा टाइम होता है क्या..."
तब तक वेटर ने दो कप कॉफी लाकर हमारे टेबल पर रख दी ,कॉफी की चुस्किया लेते हुए मैने कहा"हां तो बोलो ,क्या बोल रही थी..."
"डू यू लव मी..."
"आइ डॉन'ट नो..."
"डॉन'ट नो ऑर डॉन'ट लोवे, सॉफ-सॉफ बताओ..."
"सच मे मिस. पेरेज़ ,आइ डॉन'ट नो..."
"ओके ! तो ये बताओ कि तुम मुझसे शादी करोगे..."
"शादी...."मुझे उस वक़्त कुछ नही सूझ रहा था कि मैं निशा को क्या कहूँ, अपने रूम से निकलने के पहले ही मैं जान गया था कि वो इस तरह के ही सवाल पुछेगि लेकिन लाख सोचने के बावजूद अभी तक मैं इस बारे मे कुछ सोच नही पाया था और यही वजह थी कि मैं हर बार बात को किसी ना किसी बहाने टाल देता था और इस बार भी मैने वैसा ही करने की कोशिश की ...जब मुझे निशा को उसके सवाल का जवाब देना था तभी मैने वेटर को आवाज़ दी और दो प्लेट समोसे का ऑर्डर दिया...इस बात से बेख़बर कि मेरी इस हरक़त का निशा पर क्या असर होगा...मैने ये बिल्कुल भी नही सोचा कि वो समझ जाएगी कि मैं उसको टाल रहा हूँ....
और ऐसा हुआ भी...जब कुछ देर और मैने उसकी बात का जवाब नही दिया तो उसकी आँखो मे किसी छोटी बच्ची की तरह आँसू आ गये ,वो तुरंत टेबल से उठी और बाहर की तरफ जाने लगी....
"मैं अभी आया..."वेटर को इशारा करते हुए मैं भी निशा के पीछे हो लिया और सीधे जाकर उसके सामने खड़ा हो गया
"ओये डायन चल आजा...आइ लव यू..."
"सच..."
"101 % सच..."
और उसके बाद हम दोनो एक दोनो की बाहो मे बाहे डालकर वापस रेस्टोरेंट के अंदर आए, अब मुझे भी अहसास होने लगा था कि मुझे निशा के मामले मे जो करना है उसके बारे मे जल्दी सोचना होगा...
"तो तुमने क्या सोचा..."
"कल बताऊ तो चलेगा..."
"ह्म..."
हम दोनो ने एम.बी.डी. रेस्टोरेंट मे कुछ वक़्त और बिताया और फिर निशा ने मुझे मेरे रूम पर ड्रॉप कर दिया,...अपने फ्लॅट की बेल बजाने के बाद मुझे याद आया कि वरुण ने तो मुझे दारू लाने के लिए कहा था, वो तो मैं लाना ही भूल गया और वरुण ने भी रूम का दरवाजा खोलने से पहले ये देखा कि मेरे हाथ मे कुछ है या मैं खाली हाथ ही आया हूँ...
"उस दिन तूने दीपिका मॅम को फिर चोदा कि नही..."मुझे देखते ही वरुण का पहला रियेक्शन यही था...
उसके इस सवाल से मैं सकते मे आ गया और अरुण की तरफ देख कर इशारा मे पुछा...लेकिन अरुण तो फुल लोड था...वो अंडरवेर पहने हुए बिस्तर से उठा और लड़खड़ाते हुए बोला...
"अरमान, अच्छा हुआ, तू आ गया...इसने पुच्छ-पुच्छ कर दिमाग़ का बड़ा पाव बना दिया है...जब से तू गया है हज़ार बार ये मुझसे यही पुच्छ रहा है...यही पुच्छ रहा हाऐईयइ....."
"उठा साले को और वापस बिस्तर पर पटक दे..."
अरुण को बिस्तर पर जमाने के बाद वरुण ने कुछ खाने के लिए बनाया और फिर एक-एक कप चाय के साथ हम दोनो बैठ गये....
"अरमान,उसके बाद क्या हुआ..."
"खाने देगा, बाद मे बताउन्गा..."
"बता ना..."
"बाद मे..."
"यदि अभी बताएगा तो मेरे हिस्से का खाना तेरा..."
"ठीक है..."उसकी प्लेट अपनी तरफ सरकाते हुए मैं बोला"चाय पी ले,तू भी क्या याद रखेगा..."
"चल आगे बता..."
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आगे.....मैं भी यही चाहता था कि मैं एक दो बार और दीपिका को गरम करूँ लेकिन एक बार झड़ने के बाद कुछ ही पॅलो मे मुझे नींद आ गयी, लेकिन दीपिका मॅम को छोड़ने की चाह मे मेरी नींद सुबह के 5 बजे खुल ही गयी, मैने आस-पास हाथ मारा... दीपिका मॅम मेरे बगल मे ही सो रही थी,मैने उनको दोबारा पेलने के जुगाड़ मे लाइट ऑन की और तुरंत उनके उपर चढ़ गया.....
"फिर..."वरुण चाय की एक लंबी चुस्की लेते हुए बोला
"फिर क्या ,मैं तो नंगा था ही ,वो भी बिना कपड़ो के ही थी...मैने पहले उसके बॉडी के कुछ प्राइवेट पार्ट्स दबाए,उन्हे चूसा...और फिर उनको उल्टा लिटा कर चोदने की तैयारी कर ही रहा था कि दीपिका मॅम बोली..."
"क्या बोली..."
"यही कि उनकी तबीयत खराब है और मैं उनके उपर से उतार जाउ..."
"तो तूने क्या किया..."
"मैने उनकी बात मान ली...लेकिन यदि मैं चाहता तो वो सब कुछ कर सकता था..लेकिन दीपिका मॅम की आवाज़ और उनके शरीर की गर्मी से मैं जान गया था कि वो अभी फिलहाल तैयार नही है...इसलिए मैं वापस बिस्तर पर लेट गया और सुबह होते ही हॉस्टिल आ गया..."
"तेरी बाते सुनकर ऐसा लग रहा है कि मैने बेकार मे ही अपना खाना छोड़ दिया ,चल आगे बता "
.
आगे वो हुआ जो मैने कभी एक्सपेक्ट नही किया था, मैं दूसरे दिन अपने हॉस्टिल पहुचा ही था कि मेरे भाई का कॉल आ धमका, मैने सोचा कि यूँ ही हाल-चाल पुछने के लिए कॉल किया होगा, लेकिन कॉल उठाते ही मालूम चला कि बड़े भैया तो रेलवे स्टेशन मे है और वो आधे घंटे मे मेरे हॉस्टिल पहुचने वाले है.....
"अबीईययययी अरुण..."मैने पूरी ताक़त से चीख कर कहा"बड़े भैया आ रहे है,जल्दी से रूम सॉफ कर...वरना आज ही मेरी टी.सी. कट जाएगी..."
"क्या सच..."वो बिस्तर से कूद कर ज़मीन पर आया और मुझसे बोला"तू अपनी साइड सॉफ कर ,मैं अपनी साइड सॉफ करता हूँ..."
"चल तू शुरू कर मैं झाड़ू का जुगाड़ करता हूँ..."
वहाँ से मैं तुरंत भू के रूम मे घुसा और झाड़ू माँगा....
"नही है..."
"बीसी, बोसे ड्के,जैसी बदसूरत शकल है...वैसी शकल रूम की भी बना रखी है...कभी सॉफ भी कर लिया करो...."
गालियाँ बकते हुए मैं दूसरे रूम मे घुसा और फिर तीसरे...लेकिन हालत सब जगह यही थी....इसलिए मैं जल्दी से भाग कर अपने रूम मे आया और न्यूज़ पेपर को हाथो मे लेकर रूम का सारा कचरा बाहर कर दिया और अरुण की एक टी-शर्ट को पानी मे भिगो कर अपना स्टडी टेबल सॉफ करके दो-चार बुक ,खोल कर रख दिया.....
"ला बे, वो गीला कपड़ा मुझे भी दे..."
"ले थाम..."
"कुत्ते, ये तूने क्या किया...ये मेरी नयी टी-शर्ट थी..."टेबल सॉफ करने के बाद अरुण चिल्लाया
"मुझे मालूम नही था यार, मैं तो इससे अपने शूस भी सॉफ करता हूँ, आइ आम रियली सॉरी यार..."
"तेरी ये बात सीधे दिल मे लगी है..."
"दिल पे नही ,मुँह मे ले ले और अभी रोना बंद कर ,बड़े भैया आते ही होंगे..."
उसके बाद बड़े भैया का एक और कॉल आया जब वो हॉस्टिल के बाहर खड़े थे...मैं तुरंत भाग कर बाहर गया और उनके पैर छुकर उनके हाथ मे जो भी खाने-पीने का समान माँ ने घर से मेरे लिए भिजवाया था उसे अपने हाथो मे लेकर भैया के साथ अपने रूम पर आया....
हमारे हॉस्टिल मे रहने वाले लौन्डो की सबसे बुरी आदत ये थी कि यदि उन्हे मालूम चल जाए कि फलाना लड़के के घर से कोई मिलने आया है तो वो उस फलाना लड़के के रूम मे किसी ना किसी बहाने से जाकर ये देखेंगे कि खाने का समान आया है कि नही और यदि खाने का समान आया है तो कितना आया है.....मेरे साथ भी यही हो रहा था, जब से बड़े भैया रूम मे बैठे थे तब से कयि लड़के रूम मे आते ,बड़े भैया को नमस्कार करते और फिर बिस्तर पर पड़े खाने के बॅग को देखकर चले जाते.....
"तेरे हॉस्टिल के लड़को को कोई काम धाम नही है क्या ,जब से देख रहा हूँ ,10-12 लड़के तेरे रूम का चक्कर लगा चुके है...."बड़े भैया ने पुछा...
"वो सब छोड़ो और ये बताओ कि इस तरह अचानक कैसे आना हुआ..."
"वो पिताजी ने कहा था कि मैं तुझे बिना बताए ही आउ,जिससे हमे मालूम चल सके कि तू रहता किस हाल मे है..."पूरे रूम की तरफ सी.आइ.डी. वाली नज़र डालते हुए बड़े भैया ने आगे कहा"वेल...रूम तो सॉफ करके रखा है...गुड"
"थॅंक यू भैया..."
"तेरा नाम क्या है भाई..."अरुण की तरफ देखते हुए बड़े भैया ने कहा...
अरुण इस वक़्त बुक खोलकर पढ़ने की नौटंकी कर रहा था, जैसे ही बड़े भैया ने सवाल पुछा उसने तपाक से अपना नाम बताया और फिर पढ़ने मे बिज़ी हो गया...
"अरमान,दट'स दा स्पिरिट,...ऐसे होते है पढ़ने वाले लड़के..."अरुण का एग्ज़ॅंपल देते हुए उन्होने अरुण से उसके फर्स्ट सेमेस्टर के रिज़ल्ट के बारे पुछा...
"ऑल क्लियर..."
"क्लियर तो सिर्फ़ एक दिन पढ़ने वाले भी कर लेते है यार..."
"8.9 ,क्लास मे 3र्ड रंक.."अरुण ने एक दम सीरीयस होते हुए जवाब दिया और फिर दूसरी बुक खोलकर पढ़ने बैठ गया....
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जब बड़े भैया अरुण से सवाल-जवाब कर रहे थे तभिच मुझे ध्यान आया कि आलमरी मे सिगरेट की कुछ पॅकेट्स रखी हुई है...
"कहीं भैया आलमरी ना खोल दे, वरना सारी इज़्ज़त का कबाड़ा हो जाएगा "
"ये तेरी आलमरी है..."
"हां...ना..मेरा मतलब हां,लेकिन क्यूँ...आपने क्यूँ पुछा..."
"खोल तो..."
"वो अभी नही खुल सकती..."
"अभी नही खुल सकती...ऐसा क्यूँ, क्या कोई सूभ महूरत मे ही आलमरी खोलता है क्या..."
"इसकी चाभी गुम हो गयी ,आज सुबह-सुबह..."
"तो फिर ला ,ताला तोड़ देते है..."बड़े भैया आलमरी की तरफ जाते हुए बोले...
"बड़े भैया...रूको..."मैं एक दम से कूद कर आलमरी और बड़े भैया के बीच मे आ गया...
"आर यू ओके"
"आइ'म ओक..."
"फिर हट सामने से..."
"ताला तोड़ने की ज़रूरत नही है...मेरे पास एक्सट्रा चाभी है..."
"तो ला दे वो एक्सट्रा चाभी..."
"एक्सट्रा चाभी ही तो गुमी है...शाम तक मिल जाएगी..."
"पहले बोलता है कि एक्सट्रा चाभी है, फिर बोलता है कि एक्सट्रा चाभी ही गुम हो चुकी है और अब बोल रहा है कि शाम तक चाभी मिल जाएगी....तू पागल तो नही हो गया"
"मैं एक दम ठीक हूँ भैया, वो क्या है ना कि, ये चाभी मुझसे हमेशा खो जाती है,लेकिन फिर इधर-उधर पड़ी मिल जाती है...."
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मेरे इस बर्ताव पर बड़े भैया कुछ देर तक चुप रहे और फिर बहुत देर तक मुझे घूरते रहे...
"तू काफ़ी बदला-बदला लग रहा है..."
"काफ़ी से याद आया, चलिए आपको कॉफी पिलाता हूँ, पास वाले दुकान के पास एक दम झक्कास कॉफी मिलती है..."
"पर आते वक़्त तो मुझे कोई भी दुकान आस-पास नही दिखी..."
"है ना ,2 किलोमेटेर की दूरी पर,आपने ध्यान नही दिया होगा..."
"2 किलोमेटेर दूर को तू आस-पास बोलता है..."
"कौन सा पैदल जाना है, बाइक से पहुचने मे 5 मिनिट्स भी नही लगते..."
"ज़्यादा बड़ा हो गया है तू,..मुझे कोई कॉफी नही पीनी,चुप चाप इधर ही बैठ वरना खींच के एक लाफा दूँगा..."
मैं क्या करता..चुप चाप अरुण के बिस्तर पर बैठ गया...
"तेरे साथ मुझे नही,विपेन्द्र भैया को ही रहना चाहिए...तभी तू शांत रहेगा..."धीमी आवाज़ मे अरुण बोला...
"चुप कर वरना...यही ठोक दूँगा..."मैं भी खुस्फुसाया और विपिन भैया की तरफ देखा, मुझे हड़का कर बिस्तर पर सो रहे थे...और जैसे कि उन्होने मुझे बताया था उसके हिसाब से उनकी ट्रेन शाम को थी...मैं हर आधे घंटे मे अपनी घड़ी देखता और इंतज़ार करता की जल्द से जल्द शाम हो जाए और मुझे मुक्ति मिले...दोपहर को खाना खाने के लिए मैने बड़े भैया को उठाया, लेकिन उन्होने हॉस्टिल की कॅंटीन मे खाने के लिए मना कर दिया और घर से जो लाए थे उससे अपना पेट-पूजा करके कुछ देर तक मुझसे और अरुण से बाते की और फिर ये बोलकर सो गये कि शाम को 4 बजे मैं उन्हे उठा दूं....भैया को सोता देख मैने राहत की साँस ली
"चल बे एक साइड..."अरुण को एक लात मारकर साइड होने के लिए मैने कहा...
"अरमान...खाने वाला बॅग खोल ना..."
"मुँह बंद कर नही तो जूता ,चप्पल डाल दूँगा मुँह मे..."
"यदि ऐसा करेगा तो फिर मैं बड़े भैया से बोल दूँगा कि तू सिगरेट पीता है,दारू भी पीता है,मार-पीट भी करता है और साथ मे लौंडियबाज़ी ,सीटियाँबाजी भी करता है...."
"अच्छा , फिर मैं बड़े भैया से बोलूँगा कि मुझे सिगरेट पीना तूने सिखाया, दारू की लत तूने डाली और लौंडियबाज़ी मे तू भी मेरे साथ रहता है..."
"अरमान, यू आर प्लेयिंग वित माइ लेफ्ट साइड..."
"अब बकवास बंद और ये बता कि तूने अपना रिज़ल्ट ग़लत क्यूँ बताया..."
"इंप्रेशन...बेटा इंप्रेशन...तू खुद सोच कि तेरे भाई को यदि ये मालूम होता कि मेरी फर्स्ट सेमेस्टर मे बॅक लगी हुई है तब उनका इंप्रेशन क्या होता..."
"चल खड़ा हो और वो मिठाई का डिब्बा उठा..."
"सच..."अरुण खुशी से बोला..
"नही मज़ाक कर रहा हूँ, अबे चल जा..."
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