RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
हम दोनो कॉलेज पहुँचे , आज सॅटर्डे था इसलिए सिर्फ़ तीन पीरियड ही लगते थे, इसके बाद कुच्छ स्टूडेंट मूवी देखने जाते थे तो कुच्छ घर/हॉस्टिल जाकर सोते थे और कुच्छ जो कि कॉलेज को गेम रेप्रेज़ेंट करते थे वो ग्राउंड मे प्रॅक्टीस करते थे....मेरा विचार जाकर सोने का था..क्यूंकी मैं आज रात भर स्टडी करने के मूड मे था...लेकिन तभी सेकेंड एअर का एक सीनियर मेरे रास्ते मे टपक पड़ा....
"अरमान तू ही है ना..."उसने मुझसे पुछा...
"नही ये है अरमान ,अब बोल.."अरुण की तरफ उंगली दिखाते हुए मैने उसे अरमान बना दिया....
"मुझे चूतिया मत बना, मैं जानता हूँ कि तू ही अरमान है..."
"जब जानता था कि मैं ही अरमान हूँ तो फिर मुझसे पुछ्कर टाइम पास क्यूँ कर रहा था..."
"बॅस्केटबॉल के कोच ने बॅस्केटबॉल कोर्ट मे बुलाया है..."
"मिल लूँगा...और कुच्छ..."
"तेरा सीनियर हूँ मैं थोड़ा तमीज़ से बात किया कर..."
मैं अरुण के साथ आगे बढ़ा...मैं उस सीनियर से रूड बिहेवियर इसलिए कर रहा था क्यूंकी वो सिटी का था और इससे भी बड़ी वजह ये थी कि वो गौतम के खास दोस्तो मे से एक था....
"अरमान उसने तुझे बत्ती दी..."
"मैं भी यही सोच रहा था..."उसके बाद मैं तुरंत पीछे मुड़ा और उस सीनियर को आवाज़ देकर कहा"सुन बे घासलेट, दोबारा से ये गिव रेस्पेक्ट,टेक रेस्पेक्ट वाली शानपट्टी झड़ी तो ऐसा झाडुन्गा कि सर के बचे-कुचे बाल भी झड जाएँगे...साले टकले,अपनी औकात मे रहकर बात किया कर..."
.
"एक दम मस्त झाड़ा साले को...मैं तो उसको पेलने के मूड मे आ गया था..."कुच्छ देर बाद अरुण बोला...
"अब चुप रह,बॅस्केटबॉल ग्राउंड आ चुका है और कोच पास मे ही है..."
.
मेरे वहाँ पहुचते ही जहाँ गौतम और उसके दोस्तो का रंग बदल गया वही एश जो गौतम के साथ वहाँ आई थी ,उसके भी चेहरे की रंगत थोड़ी बदल सी गयी...
"3 चान्स है, बास्केट करो..."कोच , बॅस्केटबॉल मेरी तरफ फैंकते हुए बोले...
"ये तीन चान्स किसलिए, तीन बास्केट करना है क्या..."
"पहले एक तो करके दिखा..."गौतम बीच मे टपकते हुए बोल पड़ा...
"उसके लिए तीन चान्स की क्या ज़रूरत,एक ही काफ़ी है..."मैने बॅस्केटबॉल हाथ मे पकड़ी और सीधे रिंग मे घुसा दिया...
"वन्स मोर..."एक लड़की जो कि एश के पास खड़ी थी उसने रोमॅंटिक अंदाज़ मे मुझसे कहा...
"तुम शांत रहो "कोच ने उस लड़की को तेज आवाज़ मे बोला और मेरी तरफ देखते हुए बोले"यू कंटिन्यू..."
.
उसके बाद मैने एक और बार बॅस्केटबॉल रिंग मे डाल दी लेकिन थर्ड टाइम मैं मिस हो गया...और इस तरह तीन चान्स मे मैं सिर्फ़ दो बास्केट ही कर पाया....मैं एक बास्केट और नही कर पाया,इस बात से गौतम और उसके दोस्त खुश थे ,लेकिन कोच का नज़रिया कुच्छ और ही था...उन्होने मेरी पीठ थपथपाई और टीम मे शामिल होने के लिए कहा....
अभी कोच ने मुझे टीम मे शामिल होने के लिए कहा ही था की गौतम बीच मे फिर टपका...
"सर...हमारे सभी प्लेयर आपके द्वारा दिए गये तीन चान्सस मे तीनो बार बास्केट कर देंगे...इसे लेने का कोई फ़ायदा नही,खाम खा इसे लेकर हम अपनी टीम को बिगाड़ देंगे...."
"गौतम...मुझे मालूम है कि तुम्हारी टीम बहुत अच्छी है,लेकिन शायद तुमने कल के मॅच मे आख़िरी के 20 मिनिट्स के खेल को ध्यान से नही देखा....मैने इस तरह का गेम,जो कि अपने आप मे एक अजीब है, कभी नही देखा...ही ईज़ वेरी टॅलेंटेड प्लेयर..."
"लेकिन सर..."
"चुप रहोगे...प्लीज़ "कोच ने मेरी तरफ़दारी की इसलिए गौतम ने बुरी शकल बना ली..
"डॉन'ट वरी गौतम...आइ आम नोट इंट्रेस्टेड टू प्ले वित यू..."मैने मुस्कुराते हुए कहा....
"मी टू..."
"तुम दोनो अब बस भी करोगे...गौतम तुम अब कुच्छ मत बोलना और अरमान तुम आज से प्रॅक्टीस शुरू कर दो..."
"सॉरी सर, पर मेरी एक शर्त है...सॉरी एक नही दो...दो भी नही तीन...सिर्फ़ तीन..."
"कैसी शर्त..."
"पहली शर्त ये कि मैं प्रॅक्टीस करने तभी आउन्गा जब मेरा मन होगा...."मेरी पहली शर्त सुनकर ही वहाँ खड़े सब लोगो के मुँह फट गये ,और मेरे खास दोस्त अरुण का मुँह भी 2 इंच फट गया,मैने आगे कहा"दूसरी शर्त ये कि ,मैं जिसे चाहूँगा उसे ही मॅच मे आप खिलाओगे और आख़िरी शर्त ये कि मैं टीम का कॅप्टन रहूँगा..."
मेरी तीसरी शर्त सुनकर सबका मुँह आधा इंच और खुल गया ,गौतम तो तीसरी शर्त सुनकर भड़क ही उठा लेकिन कोच ने अपनी आँखे बड़ी करके जब गौतम को दिखाई तो उसे शांत होना पड़ा...
"और यदि मैं तुम्हारी एक भी शर्त ना मानु तो..."
"तो फिर अरमान नेम की कीट बनवाने का आपका सपना अधूरा रह जाएगा..."
"लीव..."
"मैने पहले ही कहा था ..चल अरुण चिलम शॉट के आते है"
.
अरुण का मुँह अब भी ढाई इंच खुला था...
"मुँह बंद कर ले वरना लवडा घुसा दूँगा..."
अरुण ने मुँह बंद किया और फिर कुच्छ कहने के लिए जैसे ही अपना मुँह फिर से फाड़ने लगा,तभी एक लड़की ,जो एश के साथ थी वो खुशी से उच्छलते हुए मेरे सामने आ खड़ी हुई...
"हीईीईई...अरमाआअंन्न"
"तू कौन "
"मे दिव्या..."शरमाते हुए उसने अपना नाम बताया और दिव्या नाम सुनकर मुझे आज सुबह की याद आई ,जब अरुण दिव्या का नाम लेते हुए नींद से जागा था...मैने उसकी तरफ देखा,उसका चेहरा इस वक़्त कुच्छ ऐसा था
"ये है मेरा दोस्त ,अरुण..."अरुण को सामने लाते हुए मैने दिव्या से कहा...
एश ,दिव्या से थोड़ी दूर खड़ी थी...
"आइ नो हिम..."शरमाते हुए वो बोली"हम दोनो फ़ेसबुक मे फ्रेंड्स है..."
"वो सब तो ठीक है,लेकिन ये बताओ कि इतना शर्मा क्यूँ रही हो..."
"तुम बहुत अच्छा खेलते हो..."
"तो फिर तुम क्यूँ शर्मा रही हो,शरमाना तो मुझे चाहिए ..."
"दिव्या,इसे बॅस्केटबॉल खेलना मैने सिखाया है...."अरुण ने चुपके से कोहनी मारा ,जिसका मतलब मैं समझ गया था..
"हां,ये सही बोल रहा है..."
"फिर तो तुम अरमान से भी ज़्यादा अच्छा खेलते होगे..."खुश होते उसने अपनी चेहरा अरुण की तरफ घुमाया...
"ओफकौर्स एस..."अरुण तुरंत बोला...
इसके बाद अरुण और दिव्या एक दूसरे मे भीड़ गये, दिव्या उसे बता रही थी कि उसने कल अपना एक फोटो फ़ेसबुक मे अपलोड किया है...और उसके एक हान्फते पहले भी उसने एक फोटो अपलोड किया था.....
"दिव्या..."एसा ने दिव्या को वापस आने के लिए कहा, लेकिन दिव्या तो अरुण के साथ फेस तो फेस चॅट करने मे बिज़ी थी...उसे एश की आवाज़ सुनाई ही नही दी...
खुद को मज़बूत करके मैं एश की तरफ बढ़ा....
"तुम दिव्या हो..."
"नही..."
"तो फिर तुम यहाँ क्यूँ टपक पड़े, मैने तो दिव्या को आवाज़ दी थी..."
"तुम्हारी सहेली मेरे दोस्त के साथ भिड़ी हुई है तो क्यूँ ना हम दोनो भी भीड़ जाए..."
"क्या "
"कुछ नही...कॅंटीन मे तुमने मेरी बात का ग़लत मतलब निकाल लिया था..."
"तुमने मुझे सॉरी भी नही बोला था..."
"किसलिए सॉरी बोलू..."
"तुमने मुझे कहा था कि आइ आम लाइक युवर पेट..."
"करेक्ट है...तो इसमे सॉरी बोलने वाली क्या बात...तुम बिल्कुल मेरी बिल्ली जैसी दिखती हो..."
ये सुनकर एश का पारा फिर आसमान च्छुने लगा तो मैने कहा"मेरे कहने का मतलब था कि तुम्हारी आँखे बिल्कुल मेरी बिल्ली की तरह है...एक दम मस्त भूरी-भूरी...सेक्सी...सॉरी सेक्सी नही स्वीट-क्यूट "
"तो तुम्हारा कहने का मतलब मैं तुम्हारी बिल्ली हूँ..."
"ये तो तू ही बोल रही है..."
"मैं कुउछ नही जानती,सॉरी बोलो..."
"चल फुट.."
"फिर दोबारा मुझसे बात मत करना..."
"अरे जा ना,भेजा मत खा..."
.
गुस्से से अपने पैर पटक कर एश वहाँ से जाने लगी तब मैने उसे चुड़ैल की जगह बिल्ली कहकर पुकारा जिसके बाद वो और भी जल्दी वहाँ से काट ली...अरुण और दिव्या अब भी एक-दूसरे से बात कर रहे थे....एश जब आँखो से दूर हो गयी तो मैं उन दोनो के पास पहुचा...
"अरमान...तुम मेरी फ्रेंड लिस्ट मे हो क्या..."
"याद नही..."
"आज रिक्वेस्ट भेज देना..मैं आक्सेप्ट कर लूँगी...वो क्या है ना की मैं अननोन लड़को की रिक्वेस्ट आक्सेप्ट नही करती "
"साली लेज़्बीयन..."दिव्या को देखकर मैने हां मे गर्दन घमायी...अरुण उसमे इंट्रेस्टेड था इसलिए मैं उसे झेल रहा था ,वरना कबका बेज़्जती करके भगा दिया होता...
"तुम्हारा ट्विटर पर अकाउंट है..."
"नही..."मैने रूखा सा जवाब दिया...
"तो आज जाकर ट्विटर पर ए/सी बना लेना और अरुण से मेरी ट्विटर आइडी पुच्छ कर फॉलो कर लेना...मैं बहुत अच्छे स्टेटस अपडेट करती हूँ...."
अब तक तो मैं उसे अरुण की खातिर झेल रहा था लेकिन अबकी बार मैं खुद को रोक नही पाया...
"ओये चल जा ना ,काहे को दिमाग़ का ढोकला बना रही है...कुच्छ काम-धाम नही है क्या फ़ेसबुक और ट्विटर के सिवा...तू इतनी फ्री रहती होगी लेकिन मुझे जाकर पढ़ाई भी करनी होती है....पक्का तेरी 10-12 बॅक लगी होगी...चल भाग यहाँ से..."
.
मेरे इस बर्ताव से डर कर दिव्या ने उसी वक़्त पतली गली पकड़ ली और अब अरुण मेरा भेजा खा रहा था...वो मुझे गालियाँ बक रहा था क्यूंकी मैने उसकी फ़ेसबुक पर दिव्या के पीछे किए गये घंटो की मेहनत पर पानी फेर दिया था....
"मालूम नही, मैं जब भी बॅस्केटबॉल कोर्ट मे आता हूँ तो कुच्छ हो सा जाता है..."
"हुआ कुच्छ नही है ,तू साले आज ज़्यादा उड़ रहा है...कोच के सामने भी तू बहुत उचक रहा था..."
"वो तो सिर्फ़ बहाना था खुद को बॅस्केटबॉल से दूर रखने का और अब रीज़न मत पुच्छ लेना..."
"नो प्राब्लम , चल चलकर फोटो खिचवाते है...एग्ज़ॅम फॉर्म की कल लास्ट डेट है ...."
.
सेकेंड सेमेस्टर के एग्ज़ॅम ,फर्स्ट सेमेस्टर से लाख गुना अच्छे गये...क्यूंकी इस बार थोड़ी बहुत तैयारी पहले से थी...लेकिन एग्ज़ॅम के दौरान जिन दो सब्जेक्ट मे एक-एक हान्फते की छुट्टी मिली,उसी मे लटकने का डर था...लेकिन एक बात का सुकून था कि इस बार मेरे मार्क्स इनक्रीस होने वाले थे...
एग्ज़ॅम के बाद दो हफ्ते की छुट्टी मिली लेकिन मैं एक हफ्ते बाद ही वापस हॉस्टिल आ गया था...और घर मे ये बहाना मारा था कि एक ही हफ्ते की छुट्टी है...ऐसा करने वाला मैं अकेला नही था कयि लड़के तो मुझसे भी पहले वापस हॉस्टिल आ गये थे और अरुण तो घर ही नही गया था
हम कभी एक जैसे नही रह सकते और ना ही हमारे हालत हमेशा एक रहते है...वक़्त के साथ सब कुच्छ धीरे-धीरे बदलने लगता है और हमारा जीवन वक़्त के अनेक रंग वाले शिला पर चलने लगता है.....मैं ज़िंदगी के इस परिवर्तन का किसी भी तरह से विरोध नही कर रहा और ना ही मैं इसके खिलाफ हूँ...लेकिन जब धरती ,आकाश और आकाश ,धरती मे बदल जाए तो ये परिवर्तन बहुत बड़ा झटका देता है...क्यूंकी हम हमेशा होने वाले परिवर्तन का विरोध करते है और यही हम इंसानो की फ़ितरत है...हम यही चाहते है कि सब कुच्छ...सारी चीज़े वैसी ही रहे जैसे हम चाहते है,लेकिन ऐसा नही होता और ना ही कभी ऐसा होगा
.
"भू कहा है बे, घर से नही आया अभी तक..."कॉलेज के लिए तैयार होते हुए मैने अरुण से पुछा,
आज हमे थर्ड सेमेस्टर मे कॉलेज जाते हुए एक हफ्ते से भी ज़्यादा समय हो गया था लेकिन भू अभी तक घर से नही लौटा था....
"तुझे नही पता क्या..."
"क्या नही पता और तू मुँह तो ऐसे फाड़ रहा है जैसे हमारे जंगल का राजा भोपु स्वर्ग सिधार गया हो..."
"ऐसा ही कुच्छ समझ..."
"आबे सीधी तरह बोल..."मैने सीरीयस होते हुए कहा...
"वो अब इस कॉलेज मे नही पढ़ेगा...उसने अपना ट्रान्स्फर करा लिया है..."
"क्या बोला तूने कि उसने अपना कॉलेज बदल लिया है अबे ये स्कूल नही है जो जब मन आए ट्रान्स्फर करा लिया..."
"सरकारी. तो सरकारी. कॉलेज मे आफ्टर वन एअर ये सुविधा है...."और फिर उसने भू के न्यू कॉलेज का नाम,पता भी बता...
"ओह ! मैं ये नही जानता था...लेकिन उसने ऐसा क्यूँ किया...सब ठीक-ठाक तो है.."
"दुनिया मे बहुत तरह के लोग होते है अरमान सर..."
अरुण सच कह रहा था, मैं अभी तक नही समझ पा रहा था कि भूपेश ने ऐसा क्यूँ किया...क्यूंकी जिस कॉलेज मे वो अब था वो कॉलेज हमारे कॉलेज से अच्छा नही था एक्सेप्ट बिल्डिंग , और ना ही उसका वहाँ होमटाउन था,जो घर के मोह मे वो यहाँ से वहाँ चला गया हो...खैर बात जो भी हो ये सच था कि अब भू कभी हमारे साथ क्लास मे नही बैठेगा.....एक और चीज़ जो बदली वो ये कि नवीन अब हम दोनो से अलग हो गया था...उसकी ब्रांच माइनिंग थी इसलिए सेकेंड एअर से उसकी क्लास अलग हो गयी थी....मुझे ज़्यादा तो नही थोड़ा बुरा लगा ,क्यूंकी मैने उसके साथ एक साल का वक़्त एक ही क्लास मे गुज़ारा था और अब वो हमारे साथ नही था....सेकेंड एअर मे बहुत लंबे-चौड़े परिवर्तन होते है ,जैसे कि टीचर्स का चेंज हो जाना....एक तरफ जहाँ हमे "आप फिज़िक्स के खिलाफ नही जा सकते..."डाइलॉग के जन्मदाता कल्लू कुर्रे से इस साल मुक्ति मिली वही दंमो रानी हमे मॅतमॅटिक्स-3 पढ़ाने के लिए अब भी हमारे साथ थी...एक और चीज़ जो बदली वो ये कि इस बार हमारे टीचर्स मे सिर्फ़ 1 मेल था बाकी सब फीमेल थी....लेकिन माल एक भी नही शुरू-शुरू के दिनो मे रिसेस के वक़्त नवीन हमारी क्लास मे आता और हम तीनो बकर्चोदि करते हुए अपने पिछले दिनो को याद करते,....लेकिन जैसे-जैसे वक़्त बीता नवीन ने हमारी क्लास मे आना कम कर दिया, उसने अपने ब्रांच मे ही कयि दोस्त बना लिए थे और अब वो उन्ही के साथ घूमता था...उसको देखकर हम दोनो ने भी डिसाइड किया कि अब हमे भी कुच्छ धमाल मचाना चाहिए, अभी तो तीन साल बाकी है...इसे हमलोग ऐसे ही नही गवाँ सकते...और वो सेमेस्टर ऐसा था,जिसने मुझे दोस्तो के साथ मस्ती करने का असली मतलब समझाया....या फिर कहे कि मैं ,मेरे ज़िंदगी के सबसे अच्छे लौन्डो से मिलने वाला था...जिनमे से कुच्छ ऐसे थे जो हमारे क्लास के टॉपर तक को क्लास के दौरान पानी पिला देते थे तो कुच्छ इतने रिलॅक्स लड़के थे कि एग्ज़ॅम मे पासिंग मार्क्स के आन्सर लिख कर एग्ज़ॅम हॉल से बाहर आ जाते थे,भले ही उनसे आगे के सारे क्वेस्चन्स के आन्सर आते हो....उनमे से एक शायर भी था..जो अक्सर वेलकम और फेरवेल की पार्टी मे हमारा नाम एड करके अपनी पोयम्स बनाता था....
.
एक तरफ जहाँ मैं काई नये दोस्त बनाने वाला था वही काई पुराने दोस्तो से मेरा साथ छूटने भी वाला था,जिसका मुझे अंदाज़ा तक नही था....
.
"कुल मिलाकर आप सबको 5 प्रेक्टीकल कॉपी बनानी है वर्कशॉप की...5 से कम प्रेक्टिकल कॉपी जो भी जमा करेगा उसके 5 नंबर पर कॉपी के हिसाब से काटेंगे..ईज़ दट क्लियर..."
"यस सर..."आर्मी के जवान की तरह हमने एक साथ जवाब दिया...
"खा-पी के नही आए हो क्या...ज़ोर से बोलो.."
"यस सर..."वर्कशॉप मे एक बार फिर हमारी आवाज़ गूँजी....
"ग्रूप बाँट दे रहा हूँ, 3-3 स्टूडेंट्स का ग्रूप होगा और सब जाकर अपना जॉब कंप्लीट करेंगे...."
"यस सर..."हम एक बार फिर चीखे
"और एक बात ,कोई भी मेरे पास अपना ग्रूप चेंज करवाने नही आएगा...चाहे वो लड़का हो या लड़की..."
"यस सर..."इस बार भी मैं चीखा,लेकिन सारे लौन्डे अबकी बार शांत रहे और पता नही सबको मेरी उस "यस सर"वाली आवाज़ मे क्या कॉमेडी दिखी कि ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे...शेरीन को कुच्छ ज़्यादा ही हँसी आ रही थी...
"ज़्यादा मत हँस,वरना थोबड़ा निकल कर सामने वाले टेबल पर गिर जाएगा..."उसके बाद मैने धीरे से कहा"साली रंडी,म्सी"
"और एक बात....सबको एक-एक डाइयग्रॅम एक दम करेक्ट डाइमेन्षन मे बनाना होगा...ना एक इंच छोटा और ना ही एक इंच बड़ा...ना एक इंच लंबा और ना ही एक इंच चौड़ा...ईज़ दट क्लियर..."
"यस सर..."इस बार मुझे छोड़ कर सबने नारा लगाया...
"और शुरुआत तुमसे होगी...क्या नाम है तुम्हारा..."
"अरमान..."
"क्या.."
"अरमान..."मैने आवाज़ उची करके कहा...
"तुम अपना नाम नही बता पा रहे ,देश की सेवा क्या करोगे..."
"ये तो हमारा तकिया कलाम था..."मैने खुद से कहा और फिर ज़ोर से आर्मी वाली स्टाइल मे बोला..."नेम-अरमान, रोल नंबर.11 ,फ्रॉम मेकॅनिकल सेकेंड एअर..."
"अभी तुम किस बटालियन मे हो..."जोश मे आते हुए उन्होने पुछा..लेकिन फिर अपनी ग़लती का अहसास होने पर दोबारा कहा"आइ मीन ,तुम इस वक़्त किस शॉप पर हो..."
"टर्निंग शॉप पर...सर.."
"वेरी गुड, तुम जाओ और दुश्मनो को अंदर मत घुसने देना..."
"हााईयईईईन्न्णणन् "
"आइ मीन , अपने जॉब पर एक भी ग़लती मत करना..."
|