RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
सोनम कुच्छ देर तक वहाँ चुप चाप खड़ी सोचती रही और फिर दीवार की तरफ जाकर नाख़ून से दीवार को खरोचने लगी....
.
"पुछो...क्या पुछना चाहते हो..."मेरी तरफ पलट कर उसने कहा..
"सबसे पहले ये बताओ कि क्या तुम अब भी निशा के घर जाकर उससे मिल सकती हो..."
"नो...यदि मैने ऐसा किया भी तो उसके माँ-बाप मेरी खटिया खड़ी कर देंगे..."
"मैने ठीक ऐसा ही सोचा था,अब ये बताओ कि क्या तुम सोनम के साथ कॉलेज मे पढ़ती थी..."
"हां,हम दोनो एक दूसरे के बेस्ट फ्रेंड थे..."
"तो फिर मुझे ये बताओ कि विश्वकर्मा और निशा का क्या रीलेशन था..."
"तुम विश्वकर्मा को जानते हो..."
"कल ही उसे जाना है..."
"निशा हमेशा से ही अकेली रही थी,उसके माँ-बाप सिर्फ़ नाम के माँ-बाप थे...वो अक्सर मुझसे कहती कि उसे कोई प्यार नही करता...जबकि उसने किसी के साथ कभी ज़रा सा भी ग़लत नही किया और फिर उसकी ज़िंदगी मे विश्वकर्मा नाम का एक तूफान आया ,जिसने पहले शांति से निशा को अपने जाल मे फसाया और फिर निशा को बदनाम करने लगा...उसने पूरे क्लास के सामने निशा को रंडी कहा था, विश्वकर्मा के धोखे से निशा लगभग पूरी तरह मर चुकी थी...लेकिन कॉलेज के आख़िरी दिनो मे कुच्छ चमत्कार सा हुआ, निशा को देखकर ऐसा लगने लगा...जैसे कि उसे जीने की कोई वजह मिल गयी है,जैसे कि उसने अपने लिए एक सहारा ढूँढ लिया हो,वो सहारा तुम थे अरमान...यदि तुम निशा से ना मिले होते तो शायद वो अब तक ज़िंदा नही बचती...यदि तुम उसकी ज़िंदगी मे नही आए होते तो शायद अबतक वो घुट-घुट कर मर गयी होती या फिर स्यूयिसाइड कर लेती..."
"फिर उसने मुझसे झूठ क्यूँ कहा कि उसकी ज़िंदगी मे मैं पहला लड़का हूँ..."निशा के अतीत ने जब मेरे दिल को चीर डाला तब मैने अपना अगला सवाल किया...
"अरमान,कोई शक्स नही चाहेगा कि उसकी एक ग़लती की वजह से उसके आज और आने वाला कल पर बुरा प्रभाव पड़े और शायद इसीलिए निशा ने तुमसे ऐसा कहा...विश्वकर्मा,निशा की ज़िंदगी की सबसे बड़ी ग़लती थी जिसकी सज़ा वो भुगत चुकी है...और अब वो नही चाहेगी कि उसकी ज़िंदगी का सबसे बुरा दौर उसके आज के अच्छे दौर को ख़त्म कर दे..."
"थॅंक्स,अब तुम जा सकती हो..."बाल्कनी के बाहर आसमान की तरफ देखते हुए मैने सोनम को जाने के लिए कहा...
"अरमान..."वहाँ से जाते हुए सोनम बोली"यदि तुमने ज़िंदगी मे कभी कोई ग़लती की होगी तो तुम्हे इसका अहसास ज़रूर होगा...आगे तुम्हारी मर्ज़ी..."
.
सोनम के जाने के बाद मैं बहुत देर तक आसमान को निहारता रहा...आज बहुत दिन बाद सूरज ने अपने दर्शन दिए थे,बादलो को भेदती सूरज की किरण मेरे अंदर एक नया जोश ,एक नया उत्साह भर रही थी...मैने टेबल पर रखे उस कागज को उठाया जिसपर निशा का ईमेल अड्रेस था और तुरंत निशा को मैल कर दिया कि, मैं सोनम से मिल चुका हूँ.....
अब मुझे वो सब बीते पल याद आ रहे थे,जब निशा हर वक़्त मेरे पीछे पागलो की तरह पड़ी रहती थी...मैं समझ चुका था कि उसका वो रुबाब सिर्फ़ एक दिखावा,सिर्फ़ एक छलावा था...ताकि मैं ये ना जान पाऊ कि वो मुझे दिल-ओ-जान से प्यार करती है...शायद उसे डर था कि कही मैं उसकी मज़बूरी का विश्वकर्मा की तरह फ़ायदा ना उठाऊ...लेकिन मैं ऐसा नही था..बेशक मुझमे कयि बुराई है लेकिन मैं दूसरो के अरमानो की कद्र करना जानता हूँ..इसीलिए शायद मेरा नाम अरमान पड़ा या फिर यूँ कहे कि मेरा नाम अरमान होने की वजह से मैं इस शब्द की परिभाषा,इस अरमान शब्द का मतलब समझ पाया...और मुझे मालूम ही नही बल्कि इसका अहसास भी है कि अधूरे अरमानो का गम क्या होता है.... पहले जहाँ मैं निशा की कॉल को इग्नोर करता था वही अब मैं चाहता था कि अब वो मुझे एक कॉल करे तो मैं उसकी आवाज़ सुन लूँ...पहले जहाँ मैं किसी ना किसी बहाने निशा के मेस्सेज को टाल देता था अब मैं वही कंप्यूटर स्क्रीन के सामने पिछले एक घंटे से अपनी ईमेल आइडी खोलकर उसके मेस्सेज का इंतज़ार कर रहा था...मैं देखना चाहता था कि वो अपनी खुशी को शब्दो मे कैसे बयान करती है...मेरे लिए अपने लेफ्ट साइड मे धड़क रहे दिल की धड़कनो को वो किस तरह शब्दो मे उतारती है...और यदि इन शॉर्ट कहे तो "नाउ,आइ आम मॅड्ली लव हर "
.
निशा के रिप्लाइ के इंतज़ार मे एक और घंटा बीता लेकिन मेरा इनबॉक्स अब तक खाली था, मैने टेबल पर एक साइड रखा हुआ वो कागज का टुकड़ा उठाया ,जिस पर निशा की ईमेल आइडी लिखी हुई थी,और उसे पढ़ने लगा....
"निशा_लव_अरमान@लाइव.कॉम" पढ़ते हुए मेरे होंठो पर एक मुस्कान छा गयी और मैने एक और ईमेल निशा को टपका दिया.....
.
"अबे ओये,4 घंटे हो गये कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठे हुए...बोल तो तुझे ही मैल कर दूं..."एक चेयर खीचकर वरुण मेरे बगल मे बैठा और खाने की प्लेट मेरे सामने रख दी"ले भर ले.."
"मैं तो खाना खाने के बारे मे भूल ही गया था..."खाने की प्लेट को लपक कर मैने कहा"अरुण कहाँ है..."
"पता नही,वो बोला कि कुच्छ ज़रूरी काम आ गया है..."
"सिगरेट-दारू लेने गया होगा साला..."
"अरुण को गाली बकना बंद कर और सामने देख ,शायद उसने रिप्लाइ कर दिया है..."
मैने तुरंत प्लेट नीचे रख कर कंप्यूटर स्क्रीन पर नज़र गढ़ाई..निशा ने रिप्लाइ कर दिया था....
"जैल मे कैसा लग रहा है,जानेमन..."
"बहुत अच्छा,मैं तो इतनी ज़्यादा खुश हूँ कि बता नही सकती...तुम सूनाओ "
"अपुन तो बस मज़े मे है...वैसे तुम्हारा नाम क्या है..."
"मेरी ईमेल आइडी मे मेरा नाम है..."
"अरे मैं तो ओरिजिनल नाम पुच्छ रहा हूँ...डायन"
"फ़ेसबुक पर आइडी है तुम्हारी..."
"नही..मैं तो अनपढ़ गावर हूँ,मेरी आइडी फ़ेसबुक मे कैसे होगी..."
"लिंक मैल करो..."
"कुच्छ लफडा है,लोग इन करते वक़्त कुच्छ एरर आता है..."
"नो प्राब्लम, अरमान मुझे तुमसे कुच्छ बात करनी है..."
"हां बोलो..."
"मेरा मोबाइल छीन लिया गया है..."
"तो मैल कर दे...लड़कियो का दिमाग़ हमेशा घुटनो मे क्यूँ रहता है "
"नही..मुझे बात करनी है..."
"तेरा वो हिट्लर बाप गला दबा देगा मेरा यदि मैं उसे तेरे आस-पास दिख भी गया तो..."
"कोई नही...रात को 12 बजे जब सब सो जाएँगे तब मैं कॉल करूँगी ,मेरे पास एक एक्सट्रा मोबाइल है अभी के लिए बाइ..."
"डायन रुक जा किधर काट रेली है"मैने जल्दी से उसे मेस्सेज भेजकर उसके रिप्लाइ का इंतज़ार करने लगा...लेकिन उसके बाद निशा का कोई मेस्सेज नही आया...और वो रात को कॉल करेगी इस उम्मीद मे मैने कंप्यूटर शट डाउन किया और बिस्तर पर लेट गया....मैं चाहता था कि जल्द से जल्द रात के 12 बजे और निशा का कॉल आए...अभी रात के 8 ही बजे थे कि मुझसे थोड़ी दूर रखा मेरा मोबाइल बजने लगा और मैं लपक कर मोबाइल के पास जा पहुचा और कॉल रिसीव की...
"हां मुर्गियो के अन्डो का सिर्फ़ एक ट्रक पहुचा है ,दूसरा अभी तक नही आया,भाई देखो माल कहाँ फसा पड़ा है..."
"रॉंग नंबर..."मैने कहा और कॉल डिसकनेक्ट कर दी...लेकिन उसके अगले ही पल एक बार फिर उसी नंबर से कॉल आया....
"अरे यार देखो माल कहाँ फसा है, यदि दोनो ट्रक नही आए तो मैं तेरी बीवी को आकर चोदुन्गा..."
"*** चुदा अपनी तू,बीसी यदि दोबारा कॉल किया तो फोन के अंदर घुसकर गान्ड मारूँगा,साले हरामी ,बक्चोद..."गालियाँ बकते हुए मैने मोबाइल बिस्तर पर पटक दिया...
"बेटा अभी तो चार घंटे बाकी है...मुझे तो डर है कि 12 बजे तक कही तू पागल ना हो जाए..."एक पैर बिस्तर से नीचे हिलाते हुए अरुण बोला
"टाइम पास कैसे करू..."
"अपुन के पास एक सुझाव है..."बीच मे वरुण बोला...
"ना..नही....नेवेर..."वरुण का इशारा समझ कर मैने कहा..
"हां...अभी...इसी वक़्त..."
"अबे हर टाइम तुझे मैं कहानी सुनाते रहूं क्या...साले मैं भी इंसान हूँ...बोलते-बोलते मेरा भी मुँह थक जाता है"
"यही तो प्यार है पगले..."
.
मन थोड़ा भारी था और बेचैन भी...इसलिए एक स्माल पेग मारकर मैं बिस्तर पर बैठा और मेरे अगल-बगल अरुण-वरुण तकिये पर टेक देकर पसर गये...
|