RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
मैने पीछे पलट कर रूम के अंदर देखा ,अरुण और वरुण इस समय गहरी नींद मे थे...मैने जल्दी-जल्दी सिगरेट के चार-पाँच कश लिए और बाल्कनी से डाइरेक्ट नीचे कूद गया और अंधेरे मे ही निशा के घर की तरफ चल पड़ा...निशा के घर से कुच्छ दूरी पर आकर मैं रुक गया और निशा के घर पर एक नज़र डाली..वैसे कहने को तो निशा का घर इस कॉलोनी का सबसे बड़ा और आलीशान घर था...लेकिन इस वक़्त रात के अंधेरे मे निशा का घर सबसे भयानक लग रहा था,..पूरे घर की लाइट्स ऑफ थी ,वहाँ रोशनी के नाम पर निशा के घर का चौकीदार जिस रूम मे रहता था,सिर्फ़ उसी रूम की लाइट जली हुई थी....सबसे खूबसूरत चीज़ सबसे बदसूरत भी हो सकती है ,ये मैं अभी देख रहा था इसलिए मैने खुद को यहाँ आने के लिए कोसा और चुप-चाप वहाँ से खिसक लिया...मैं अब अपने फ्लॅट की तरफ आ रहा था ये सोचते हुए कि निशा के दिमाग़ मे इस वक़्त आख़िर चल क्या रहा है और उससे भी ज़्यादा ये कि मेरे दिमाग़ मे इस वक़्त क्या चल रहा है...क्या सोचकर मैं इतनी रात को निशा के घर की तरफ गया कि वो रात के 3 बजे छत पर खड़े होकर पतंग उड़ा रही होगी...उसके बाद मैं ठीक उसी रास्ते से फ्लॅट के अंदर घुसा ,जिस रास्ते से मैं बाहर आया था...अंदर पहुचने मे थोड़ा टाइम लगा, मुश्किले भी आई पर दरवाजे के बाहर खड़े होकर घंटो दरवाजा पीटना और वरुण को आवाज़ देने से ये अच्छा ही था....मैने पीसी ऑन करके अपनी ईमेल भी चेक की ,लेकिन निशा का कोई मैल अभी तक नही आया था....
"कहीं उसके बाप को मालूम तो नही चल गया कि ,निशा और मेरा चक्कर चल रहा है...यदि ऐसा हुआ तो फिर मेरा तो उपरवाला ही मालिक है..."
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आधे से अधिक रात तो मैने सिगरेट पीने मे बीता दी थी और बचा हुआ समय बिस्तर पर पड़े-पड़े करवटें बदलने मे गुजर गया और सुबह 6 बजे जाकर नींद लगी लेकिन 2 घंटे बाद ही मुझे अरुण ने जगा दिया....
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"उठ बे, 12 बज गये..."
"क्या ? 12 बज गये...धत्त तेरी की..."मैं एक दम से उठकर बैठते हुए बोला और घड़ी पर नज़र डाली"अभी तो 8 बजे है बे "
"चल आगे बता क्या हुआ..."चाय का एक बड़ा सा कप मेरे सामने रखते हुए वरुण बोला...
"अभी नींद आइंग..."बोलते हुए मैं वापस बिस्तर पर लुढ़क गया...
"अबे 10 बजे मुझे ऑफीस जाना है...इसलिए सोच रहा हूँ कि तेरी बकवास सुनता चालू...ले पी.."
मैने कप उठाया और ज़ुबान से लगाया "अबे ये तो दारू है..."शकल बिगाड़ते हुए मैं बोला
"उससे क्या फरक पड़ता है..वैसे यदि तेरा मन नही तो रहने दे..मैं पी लूँगा..."
"ना मुन्ना ना...यू नो दट आइ लव दारू मोर दॅन टी....."
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एश और दिव्या पर मुझे भरोसा नही था कि वो दोनो मेरी बात मानेगी और अपना मुँह बंद करके रखेगी...इसलिए मुझे हर दिन थोड़ा सा डर ज़रूर रहता कि कही वो कॅंटीन वाली बात किसी को बता ना दे...कॅंटीन वाले कांड के बाद कयि दिनो तक दिव्या और एश कॉलेज मे नही दिखी और अपने पास अब इतना टाइम भी नही होता था कि उनके क्लास के बाहर खड़े होकर उनका इंतज़ार करता रहूं....इधर वर्कशॉप वाला फ़ौजी हम पर गोली पे गोली फाइयर किए जा रहा था...उसका कहना था कि हर एक शॉप की एक अलग प्रॅक्टिकल कॉपी बनानी पड़ेगी और 2 फिगर फ्रेम करवाने होंगे...इधर फ़ौजी तो उधर थर्ड सेमेस्टर के एग्ज़ॅम भी कुच्छ हफ्ते बाद दस्तक देने वाले थे....इसलिए समय का मानो अकाल सा पड़ गया था...बड़ी मुश्किल से हम बाथरूम को स्पर्म डोनेट कर पाते...क्यूंकी प्रॅक्टिकल और असाइनमेंट के पन्नो ने हमे सब कुच्छ लगभग भुला सा दिया था...कभी-कभार आते-जाते..एश से मेरी मुलाक़ात हो जाती थी और अब वो मुझे देखकर इग्नोर ना करके एक प्यारी सी स्माइल देती थी ,वो भी गौतम से छिप्कर.......
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जैसा कि मैने पहले बताया कि मेरी याददाश्त बहुत तेज़ है ,मैं चीज़ो को उतनी जल्दी नही भूलता और ना ही उन्हे इग्नोर करता हूँ और पोलीस स्टेशन वाला केस तो जब मेरे क्लास के लौन्डे नही भूले तो भला मैं कैसे भूल सकता हूँ...मैं फर्स्ट एअर के उन दोनो लड़को को दिखाना चाहता था कि मैं क्या हूँ और मेरी स्टेटस क्या है....मेरे ख़याल से ऐसे सिचुयेशन मे दुनिया मे सिर्फ़ दो केटेगरी के लोग होते है....
पहला वो जो बड़ी से बड़ी बात को हंस कर टाल देते है और ऐसे बिहेव करते है..जैसे कि कुच्छ हुआ ही नही...जबकि किसी ने अच्छे से खोलकर उनकी मारी होती है और दूसरे केटेगरी के लोग वो होते है जो एक बूँद जैसी छोटी से छोटी बात को समुंदर बना देते है....
मेरे अंदर ये दोनो ही खूबिया थी,जिन्हे मैं अकॉरडिंग टू सिचुयेशन ,अपने सिक्स्त सेन्स की मदद से अपनी इस खूबी का अच्छे तरीके से इस्तेमाल करता था...मैने उन दोनो को उनकी उस एफ.आइ.आर. वाली करतूत के लिए एक प्लान बनाया था और जैसा कि अक्सर होता है...इस प्लान की खबर सिर्फ़ मुझे और मेरे दिमाग़ को थी...जब मामला लड़ाई-झगड़ा का हो और मेरे प्लान मे सीडार शामिल ना रहे,ये नामुमकिन ही था...इसलिए मैने अपना मोबाइल निकाला और सीडार का नंबर मिलाया....
"गुड आफ्टरनून एमटीएल भाई..."दूसरी तरफ सीडार के द्वारा कॉल रिसीव करते ही मैं बोला...
"मेरे ख़याल से तूने मुझे गुड आफ्टरनून बोलने के लिए तो कॉल नही किया है...चल जल्दी से काम बोल..."
"उन दो लड़को को तो जानते ही होगे,जिन्होने मुझपर और अरुण पर एफ.आइ.आर. किया था..."मैं सीधे पॉइंट पर आ गया,क्यूंकी अब लंच ख़तम ही होने वाला था और मैं नही चाहता था कि वर्कशॉप वाला फ़ौजी मुझपर मिज़ाइल दागे....
"हां नाम से जानता हूँ,..."
"वो दोनो बहुत उड़ रहे है,दोनो को ज़मीन पर लाने का है "
"अभी मुश्किल से तू कॅंटीन वाले केस से बचा है और अब नया लफडा...अबे तू शांति से इंजिनियरिंग क्यूँ नही करता..."
"वो क्या है एमटीएल भाई...कि जब दो अहंकारी लोग टकराते है तो ऐसा धमाका होते ही रहता है...उन्दोनो को थोड़ा सा हम हॉस्टिल वालो की पॉवर दिखानी है..."
"तो इसमे मैं क्या करूँ...लड़के तो तेरी बात मान ही लेंगे, सबको साथ लेजा कर उन दोनो को फोड़ डाल...इसमे प्राब्लम क्या है..."
"प्राब्लम ये है कि मेरी हॉस्टिल वॉर्डन से मेरी जमती नही है और जितना मुझे मालूम है उसके हिसाब से हमारा हॉस्टिल वॉर्डन आपके दोस्त की तरह है..."
"अबे सीधे-सीधे बोल कि करना क्या है....."
मैने एमटीएल भाई को क्या करना है,ये बताया और उसके बाद अपनी प्रॅक्टिकल कॉपी और ड्रॉयिंग शीट लेकर वर्कशॉप की तरफ चल पड़ा....
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"रोल नंबर 11...."
"प्रेज़ेंट सर..."बाहर से मैं चिल्लाया"मे आइ कम इन सर..."
"अंदर आओ और अपने हथियार निकाल कर जंग के लिए तैयार हो जाओ..."
"मैं तैयार हूँ सर..."
"गुड लक...."उसके बाद उस फ़ौजी ने अपने हाथ मे रखी लिस्ट पर नज़र डाली और पूरा दम लगाकर चीखा"रोल नंबर 12...."
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"तेरी हालत ऐसी क्यूँ है बे,तेरा रोल नंबर तो मेरे बाद ही आएगा..."
"उधर देख...साला वो फ़ौजी आज गोली नही मिज़ाइल फाइयर कर रहा है...एक की उसने ड्रॉयिंग रेड पेन से लाल कर दी मतलब 5 नंबर गये,...उस लड़के का ड्रॉयिंग तो मुझसे ठीक-ठाक ही था,जब उसकी ये हालत है तो मेरा क्या होगा...यही सोचकर मैं परेशान हो रहा हूँ...."
"मैं तो बच जाउन्गा "
"कैसे...अपनी ड्रॉयिंग शीट दिखा तो..."
"अबे ,तूने अभी तक एक चीज़ नोटीस की या नही..."जब अरुण ने मेरी ड्रॉयिंग शीट की तरफ अपने हाथ बढ़ाया तो मैने उसके हाथ को रोक उससे पुछा...
"अरे इधर फटी पड़ी है और तू गोल-मोल सवाल कर रहा है..."
"अपना फ़ौजी हर एक बंदे को एग्ज़ॅक्ट 15 मिनिट्स तक रेमंड पर लेता है,ना एक सेकेंड कम और ना ही एक सेकेंड अधिक...."
"तुझे कैसे पता..."
"अबकी बार जब रोल नंबर 10 वाला लड़का जाए तो टाइम देख लेना...उसकी टेबल पर रखी स्टॉप . तब चालू होती है जब कोई स्टूडेंट अपनी फाइल खोलकर रखता है और वो 15 मिनिट्स तक उस स्टूडेंट पर बॉम्ब फोड़ता है और फिर बेज़्जती करके भेज देता है और फिर बाद वाले स्टूडेंट को 10 सेकेंड्स के अंदर ही वहाँ पहुचना है,जिसके बाद उस फ़ौजी की स्टॉप . फिर चालू हो जाती है....."
"ये सब क्या उस छोटे कद वाले फ़ौजी ने तेरे सपने मे आकर कहा "
"रोल नंबर 9 तक तो वो यहीं करता आ रहा है "
"और यदि उसके पास पहुचने मे 10 सेकेंड्स से ज़्यादा वक़्त लग गया तो..."
"तो फिर वो उस लड़के/लड़की की प्रॅक्टिकल कॉपी और ड्रॉयिंग शीट को छोड़ देगा...इसलिए मर्दो की तरह लंबे-लंबे कदम बढ़ाना...वरना वहाँ पहुचने से पहले ही चुड जाएगा...समझा...."
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थोड़ी देर तक अरुण शांत रहा लेकिन फिर मेरे पास आकर बोला"यार अरमान, उसने अभी-अभी एक की राइटिंग खराब होने की वजह से सी+ ग्रेड दिया है....मेरी राइटिंग तो उससे भी खराब है मैं क्या करूँ... ,कुच्छ जुगाड़ जमा ना"
"एक जुगाड़ है..."
"क्या..."
"वो जुगाड़ क्या मैं तुझे चिल्ला-चिल्ला कर बताउन्गा... कान इधर ला..."
अरुण को जुगाड़ बताने के बाद मैं एक दम सीधा खड़ा हो गया ,क्यूंकी अगला रोल नंबर मेरा ही था.....चूतिए थे शुरू के 10 स्टूडेंट्स जो ड्रॉयिंग शीट को उपर रख कर ले जा रहे थे, मैने ड्रॉयिंग शीट को सबसे नीचे रखा और अब मुझे कैसे भी करके 15 मिनिट्स तक बिना ड्रॉयिंग शीट दिखाए उस फ़ौजी के वॉर को सहना था...क्यूंकी मेरी ड्रॉयिंग शीट तो एक दम सफेद थी...मतलब कि उसमे कोई ड्रॉयिंग ही नही थी और यदि वो फ़ौजी भूल से भी मेरा वो कारनामा देख लेता तो मुझ पर अटॉमिक अटॅक कर देता और यही वजह थी कि जब अरुण ने मेरी ड्राइंग शीट देखने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो मैने उसका हाथ रोक दिया था,क्यूंकी मैं नही चाहता था कि वो गला फाड़कर मुझपर चिल्लाए कि"अरमान तो एक दम कोरा कागज है..."
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"रोल नंबर. 11...."अपनी घड़ी पर 10 सेकेंड्स का समय देखते हुए उसने मेरा नाम पुकारा...
और मैं 6 सेकेंड मे ही उसके पास पहुच गया....जब फ़ौजी मेरी प्रॅक्टिकल कॉपी देख रहा था तभी मैने आर्मी वाला मॅटर छेड़ दिया...जिसके बाद उसने मेरी प्रॅक्टिकल कॉपी और ड्रॉयिंग शीट एक तरफ रखवा दी और मुझसे उसी मॅटर पर बात करने लगा...वो इस डिस्कशन मे इतना खो गया था कि मुझे ,उसको याद दिलाना पड़ा की "ल्यूटेनेंट सर,15 मिनिट्स हो गये है "
"रोल नंबर. 12...."फ़ौजी ने फिर से अपनी स्टॉप . शुरू कर दी और उसी वक़्त अरुण के पास जाकर मैने धीरे से कहा की ..."नेवी के बारे मे इससे बात कर...लेकिन पहले प्रॅक्टिकल कॉपी दिखा देना,ताकि उसे शक़ ना हो"
अरुण के पास जाकर मैने धीरे से कहा की..."नेवी के बारे मे इससे बात कर...लेकिन पहले प्रॅक्टिकल कॉपी दिखा देना,ताकि उसे शक़ ना हो"
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"अपुन को तो बस थोड़ा हिंट चाहिए था ,बाकी दिमाग़ तो मेरे पास भी है....अब तू देख इस फ़ौजी को कैसे चकमा देता हूँ..."
अरुण ने चलते-चलते अपनी सारी प्रॅक्टिकल कॉपी एक हाथ मे और ड्रॉयिंग शीट को दूसरे हाथ से पकड़ लिया और टेबल पर बैठे उस फ़ौजी के पास जाकर बोला...
"भारत माता की जय..."
"जय हो भारतमाता की..."एका एक फ़ौजी जैसे खुशी से झूम उठा और अरुण की तरफ देखकर बोला"मुझे तुम्हारे जैसे जोशीले लड़को की ज़रूरत है...खैर अपनी प्रॅक्टिकल कॉपी दिखाओ"
अरुण ने अपनी प्रॅक्टिकल कॉपी एक के बाद एक दिखानी शुरू कर दी...शुरू मे जहाँ फ़ौजी अरुण से एक दम खुश हुआ था ,वही अब अरुण की राइटिंग देखकर उसके चेहरे का रंग बदलने लगा था....
"तुम जैसे जोशीले जवान की इतनी खराब पेर्फोमन्स "अफ़सोस जाहिर करते हुए उस फ़ौजी ने अपना चश्मा उतार कर टेबल पर रख दिया....
"हाथ मे गोली लग गयी थी सर,वरना मेरी राइटिंग का पूरे क्लास मे क्या पूरे कॉलेज मे कोई शानी नही है..."
"हाथ मे गोली लग गयी थी,मतलब..."वापस अपना चश्मा लगाते हुए फ़ौजी ने पुछा...
"मतलब की मैं हॉस्टिल मे गिर गया था...और कल रात भर दर्द सहते हुए जैसे-तैसे काम कंप्लीट किया है..."
"एक्सलेंट, माइ बॉय....एक्सलेंट...मुझे तुम्हारे जैसे जोशीले लड़को को देखकर अपने दिन याद आ जाते है...."
"तो अब मैं चलूं..."
"बिल्कुल जाओ और नंबर की परवाह मत करना...."
"थॅंक यू सर..."
अपना कॉलर उपर करते हुए अरुण मेरे पास आया
"बेटा अरमान, शर्त लगा ले...वर्कशॉप मे तो तुझसे ज़्यादा नंबर पाउन्गा...."
"तूने रात भर मेहनत की ,सारा दिन प्रॅक्टिकल कॉपी को नीली स्याही से भरने मे बिताया,...फिर 4 से 5 घंटे मे तूने ड्रॉयिंग बनाया ,इसलिए यदि तू 1-2 नंबर अधिक पा जाता है तो इसमे कौन सी बड़ी बात है..."
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