RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
फौर्त सेमेस्टर के एंड तक वो सारी आग बुझ चुकी थी जिसकी शुरुआत थर्ड सेमेस्टर से हुई थी. मैने अपने सारे दुश्मनो से अपना बदला ले लिया था,चाहे वो गौतम हो या फिर नौशाद...चाहे वो दीपिका हो या फिर फर्स्ट एअर मे मेरी रॅगिंग लेने वाला वो सीनियर जो आज हॉस्पिटल मे पड़ा हुआ था. मुझे ये जानकार उस दिन बहुत सुकून मिला जब मुझे ये इन्फर्मेशन मिली कि नौशाद और वो सीनियर 4थ सेमिस्टर. का एग्ज़ॅम नही दे पाएँगे और फाइनली हमारे कॉलेज को दीपिका मॅम से छुटकारा मिल ही गया. मेरे ख़याल से दीपिका मॅम को कॉलेज से निकलवाने के कारण जहाँ एक तरफ मेरा बदला पूरा हुआ वही दूसरी तरफ मैने कयि सारे लड़को को बिगड़ने से बचा लिया था.(मुझे तो नोबल प्राइज़ मिलना चाहिए ).दीपिका मॅम कॉलेज से भले चली गयी थी लेकिन इतना तो श्योर था कि उनका नाम इस कॉलेज मे अमर हो चुका था क्यूंकी कॉलेज के लड़के अब उसके नाम पर डिफरेंट वेराइटी के जोक बनाने वाले थे और जब लड़के इंजिनियर हो तो जोक और भी ज़्यादा गहरा और ख़तरनाक हो जाता है
गौतम के बाप के गुन्डो ने मुझे बहुत धोया ,मैं इससे इनकार नही करता....लेकिन मैने गौतम को बुरी तरह धोया ,इसको भी कोई इनकार नही कर सकता. इसलिए मन ही मन मे मैने ये मान लिया कि इसमे भी जीत मेरी ही हुई है.मुझसे बुरी तरह मार खाने के बाद गौतम मे अचानक से बहुत बड़ा बदलाव आ गया था. अक्सर कॉलेज मे जब हम ना चाहते हुए भी एक-दूसरे के सामने आ जाते तो वो चुप-चाप वहाँ से निकल लेता था, अब उसका रोल कॉलेज मे सिर्फ़ बॅस्केटबॉल की वजह था.गौतम एक हॅंडसम लौंडा था इसे मैं मानता हूँ लेकिन कॉलेज की बहुत सी लड़किया उसके पीछे सिर्फ़ उसका बॅस्केटबॉल का गेम देखकर पड़ी थी और लड़कियो मे उसका क्रेज़ आज भी वही था जो पहले के दिनो मे हुआ करता था लेकिन एक सवाल यहाँ भी पैदा होता है कि आख़िर कब तक...क्यूंकी जिस भी दिन मैं बॅस्केटबॉल कोर्ट मे दोबारा कदम रखूँगा उस दिन मेरे ख़याल से उसका वो रोल भी ख़तम हो जाएगा और फिर कॉलेज की आधी लड़किया मेरे पीछे पागल होगी. लेकिन मेरा ऐसा कुच्छ भी करने का कोई मूड नही था ,जिसकी दो वजह थी...पहली वजह ये कि मैं खुद अब बॅस्केटबॉल नही खेलना चाहता था और दूसरी वजह ये कि अब मैं इस लड़ाई-झगड़े से तंग आ चुका था...मैं नही चाहता था कि बॅस्केटबॉल के गेम से गौतम की धाक ख़तम करके मैं एक नये विवाद को जानम दूं,जिससे एक बार फिर वही सब कुच्छ हो...जो पिछले कुच्छ महीने मे हुआ था.
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वैसे एक हिसाब से देखा जाए तो कॉलेज का ये साल मेरे लिए बहुत अच्छा भी रहा क्यूंकी मैने कॉलेज के उन बड़े से बड़े लौन्डो को पेला,जो शेर बने फिरते थे और उन सबको मारने के बाद कॉलेज मे अब सिर्फ़ एक शेर ही बचा था और वो मैं था .मेरी कॉलेज मे एंट्री होते ही लड़के ऐसे बिहेव करते जैसे मैं कोई सूपर हीरो हूँ और अभी-अभी दुनिया को बचा कर आ रहा हूँ...अब मेरे आस-पास अक्सर बहुत से लड़को का झुंड रहने लगा था. सारे लड़के अक्सर मुझसे पुछते रहते कि मैने कैसे सबको पेला और मैं मिर्च मसाले लगाकर उन सबको अपने बहादुरी के किस्से ऐसे सुनाता कि वो लोग मेरे फॅन बन जाते थे.
कॉलेज मे मेरी पॉप्युलॅरिटी का ग्रॅफ एक दम मॅग्ज़िमम लेवेल पर जा पहुचा था,जिसका अंदाज़ा मैने फ़ेसबुक से लगाया. जब मैने पहले क़ी तरह वापस फ़ेसबुक पर आक्टिव हुआ और अपनी आइडी लोग इन की तो गेट वेल सून के ना जाने कितने मेससेजस, कितने कॉमेंट मेरी प्रोफाइल पर थे. और कॉलेज के कयि सारे लड़को की फ्रेंड रिक्वेस्ट भी पेंडिंग मे थी. मैं जब भी कोई स्टेटस या फोटो फ़ेसबुक मे चिपकाता तो उनपर 100-150 लाइक तो आम सी बात हो गयी थी और कॉमेंट्स की तो पुछो ही मत
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मुझे एक नुकसान भी मेरी इन हरकतों की वजह से उठाना पड़ा और वो नुकसान ये था कि कॉलेज की लगभग सभी लड़कियो ने मुझे अनफ्रेंड कर दिया था.... ये नुकसान उठाने वाला मैं अकेला नही था . सौरभ और अरुण को भी कॉलेज की लगभग सारी आइटम्स ने अनफ्रेंड कर दिया था ,जिसका रीज़न सिर्फ़ इतना सा था कि मैं उन दोनो का खास दोस्त था....
मुझपर कॉलेज की लड़कियो की इस हरकत का कोई खास असर तो नही पड़ा लेकिन सौरभ और अरुण की तो जैसे ज़िंदगी भर की फ़ेसबुक मे कमाई हुई लड़किया लूट गयी थी.बेचारे इन्ही लड़कियो की वजह से वो दोनो ना जाने कितने दिन फ़ेसबुक मे ब्लॉक रहे थे
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यदि इस साल किसी चीज़ ने मेरा दिल दुखाया तो वो था मेरा एग्ज़ॅम ना दे पाना...क्यूंकी सेमेस्टर मे 6 पेपर ही बड़े मुश्किल से क्लियर होते थे और अब फोर्त सेमेस्टर मे मुझपर डाइरेक्ट 12 पेपर का लोड आ गया था, जो कि बहुत ही ज़्यादा मेरा दिल दुखा रहा था. दूसरी चीज़ जिसने मेरा दिल दुखाया था ,वो थी एश का मुझसे बात ना करना....ना जाने उस भूरी आँख वाली लड़की मे ऐसा क्या था कि इतने सारे झमेले होने के बावजूद,इतने सारे टेन्षन होने के बावजूद...उसकी तस्वीर आज भी दिल और दिमाग़ मे एक दम क्लियर थी. जब भी मैं अकेले होता ,जैसे कि रात को सोते समय, थोड़ी-बहुत पढ़ाई करते समय और बाथरूम मे नहाते समय उसकी याद आ ही जाती थी. लेकिन अभी कुच्छ दिनो पहले जब मैने फ़ेसबुक पर लोग इन किया तो पाया कि उसने मुझे ब्लॉक करके रखा हुआ है...यानी कि बात करने का आख़िरी रास्ता भी क्लोस्ड !
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तीसरी चीज़ जो मेरा दिल दुखाती है ,वो है सीडार की मौत....ये एक ऐसी घटना थी,जिसका असर सबसे ज़्यादा हुआ था.मुझे अभी भी कभी-कभी लगता कि सीडार की मौत एक झूठ है, धोखा है...ज़िंदगी का छलावा है...अक्सर उसकी कही हुई बाते मेरे कानो मे गूंजने लगती और तब मुझे लगता कि जैसे मैने अपने इस चार साल के सफ़र के एक बहुत ही अहम ,एक बहुत ही खास हमसफ़र को खो दिया था.....
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एग्ज़ॅम ख़त्म हुए और मेरे सारे पेपर अनएक्सपेक्टेड गये, क्यूंकी जहाँ मैने एक तरफ उम्मीद लगा रखी थी कि मेरे हज़ारो बॅक लगेंगे वही दूसरी तरफ मैं दस पेपर मे श्योर था कि ये तो क्लियर ही होंगे...बाकी के दो पेपर मे 50-50 का चान्स था...लेकिन फिर भी एक उम्मीद थी कि मैं इस बार फुल एसी के साथ निकलूंगा और सबकी फाड़ दूँगा...एग्ज़ॅम के बाद मेरे मन मे एक विचार आया कि यदि मैं अभी भी पढ़ना शुरू कर दूं तो मैं क्लास मे टॉप मार सकता हूँ...
थर्ड एअर शुरू होने से पहले मैने बहुत सारे प्लान बनाए...जैसे कि रोज सुबह 6 बजे उठना ,फिर पढ़ाई करना ,फिर नहा धोकर कॉलेज जाना,शाम को 5 बजे कॉलेज से आने के बाद दो घंटे आराम करना ,फिर 3-4 घंटे पढ़ाई करना और आख़िर मे बाक़ायदा मूठ मारकर सोना....मैने सोचा कि अब नो फाइट,नो पंगा...मैने तय किया कि अब मैं भी एक नॉर्मल स्टूडेंट की लाइफ जीऊँगा मतलब कि खूब दिल लगाकर पढ़ुंगा और एग्ज़ॅम मे अच्छे मार्क्स लाकर घरवालो को खुश करूँगा...
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ये सब करने के लिए सबसे पहला काम जो मुझे करना था वो था अपने टीचर्स की रेस्पेक्ट करना और क्लास मे एक भी बक्चोदि ना करके एक दम सिन्सियर रहना..क्यूंकी मेरा ऐसा मानना है कोई भी स्टूडेंट अपने टीचर से तभी कुच्छ सीख सकता है,जब वो उस टीचर की रेस्पेक्ट करे...इसलिए मेरा काम ये था कि किसी भी टीचर को कोई भी गाली नही बकुँगा...फिर चाहे वो विभा डार्लिंग ही क्यूँ ना हो...
दूसरा काम जो मुझे करना था वो ये कि मैं पढ़ने वाले लड़को के साथ रहूं इसलिए मैं भी वो करू जो 3 ईडियट्स मे राजू रस्तोगी ने किया था...यानी कि अपना रूम बदल कर किसी चतुर जैसे लड़के के रूम मे शिफ्ट हो जाए...लेकिन मेरे हॉस्टिल मे ना तो कोई चतुर जैसा था और ना ही मैं राजू रस्तोगी था ,इसलिए इस प्लान को मैने तुरंत अपने माइंड से डेलीट मार दिया...
तीसरा काम जो मुझे करना था वो ये कि हर नॉर्मल स्टूडेंट की तरह फाडू तरीके से डिसिप्लिन मे रहना..बोले तो ड्रेस एक दम सॉफ हो और चप्पू किस्म की हो....लेकिन दूसरे प्लान की तरह इसमे भी दिक्कते थी...पहली दिक्कत ये कि मैं कोई चप्पू ड्रेस नही पहनने वाला था और दूसरी दिक्कत ये कि अब साला कौन रोज-रोज अपनी कॉलेज ड्रेस धोए,इसलिए मैने इस प्लान को भी माइंड से डेलीट किया और सोचा कि बाद मे सोचेंगे,जब कॉलेज शुरू हो जाएगा फिलहाल अभी जो छुट्टी मिली है उसको एंजाय करते है और घर का बढ़िया खाना खाते है
लंबी छुट्टी और ट्रैनिंग के बाद आख़िरकार कॉलेज शुरू हो ही गया और हॉस्टिल मे आकर जो सबसे पहला ख़याल मेरे दिमाग़ मे आना चाहिए था ,वो पढ़ाई के बारे मे होना चाहिए था. लेकिन मेरे दिमाग़ मे जो ख़याल आया वो पढ़ाई के बारे मे ना होकर मेरी सीनियारिटी के बारे मे था. मैं अब थर्ड एअर मे आ चुका था यानी कि प्री-फाइनल एअर और नॉर्मली कॉलेज के न्यू स्टूडेंट्स थर्ड एअर और फाइनल एअर के लड़को से बहुत डरते है.इसलिए कॉलेज के हॉस्टिल मे अंदर घुसते ही मैने अपना सीना चौड़ा किया और अपने रूम मे गया....
जब मुझे कोई फर्स्ट एअर और सेकेंड एअर मे नही रोक पाया तो थर्ड एअर मे कोई क्या रोकेगा...ये सोचते हुए मैं दूसरे दिन कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रहा था.
"यार ,अरमान...अब तो हम लोग थर्ड एअर मे आ गये है,बोले तो अब एक दम फाडू मस्ती करेंगे क्यूंकी अब हमे रोकने से टीचर्स की भी गान्ड फटेगी..."मुझे आईने के सामने से हटाते हुए अरुण बोला
"यो...बेटा अरुण ,आज कॉलेज का पहला दिन है..इसलिए मेरे पैर छुकर मेरा आशीर्वाद ले ले..पूरा साल अच्छा जाएगा..."
"तू अब सुबह-सुबह मत खा और ला कंघी दे..."
"कंघी......उम्म्म..."याद करते हुए मैं बोला"साला कोई आया था रूम मे कंघी माँगने,फिर मैने उसे दिया..."
अभी मैं याद ही कर रहा था कि कंघी किसके पास है,तभी अरुण ने तेज़ आवाज़ मे मुझे टोका...
"तो जा लेकर आ...मना किया था ना किसी को कंघी देने से..."
"देख..वो क्या है कि मैं दानवीर कर्ण की तरह हूँ,इसलिए सुबह-सुबह मुझसे यदि कोई मेरी जान भी माँग ले तो मैं मना नही कर सकता.उसने तो फिर भी एक कंघी माँगी थी..."
"बेटा यदि ,दानवीर बनने का इतना ही शौक है तो अपनी चीज़े दान किया कर,वरना मुँह मे लवडा पेल दूँगा और क्या कहा तूने...कि सुबह-सुबह तुझसे कोई भी आकर कुच्छ भी माँगे तो तू उसे मना नही करता..."
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