RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
"अरे वो सब करने के लिए ये सही जगह नही है..."मुझे दूर धकेलते हुए निशा बोली"एक बात पुच्छू..."
"क्या..."
"पहले प्रॉमिस करो कि बुरा नही मनोगे...."
"ओये...ये पकाऊ लड़कियो वाली हरकत मत कर मतलब कि जो पुच्छना है पुच्छ और वैसे भी बुरा वो मानता है जिसके पास ......."बोलते हुए मैं बीच मे ही रुक गया
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"वो तुम्हारे मोबाइल मे एक वीडियो है,जिसमे तुम एक लड़की से अजीब सी लॅंग्वेज मे कुच्छ कह रहे हो और फिर वो लड़की ,जो तुमने कहा है,उसे रिपीट करती है लेकिन वो बार-बार ग़लत बोलती है जिसके बाद तुम अपना सर पकड़ लेते हो और फिर एक कागज मे उसे क्या बोलना है ,वो लिखकर देते हो...."
"वो...वो कुच्छ नही है,वो तो बस ऐसे ही कॉलेज की एक फ्रेंड थी...जिसे मैं तीन अलग-अलग लॅंग्वेज मे सॉरी बोल रहा था...."बड़ी आसानी से बिना एक पल हिचकिचाए मैने,निशा से तुरंत झूठ बोल दिया...क्यूंकी सच बताने पर वो और भी बहुत कुच्छ पूछती या फिर कहे कि सब कुच्छ पूछती....
"अरमान...."
"यस..."निशा के कंधे पर अपना हाथ रखकर उसे अपने पास लाते हुए मैने कहा...
"अरमान , मुझे मालूम है कि तुम उस लड़की को सॉरी नही बल्कि आइ लव यू बोल रहे थे...."
इतना बोलकर निशा चुप हो गयी और मेरी तरफ मासूम सी नज़रों से देखने लगी और मैं उसकी मासूम सी आँखो मे देखते हुए एक नया बहाना ढूँढ रहा था और फिर मुस्कुराते हुए मैने कहा....
"ऐसा कुच्छ भी नही है,आक्च्युयली उस दिन मैने अपने एक दोस्त से शर्त लगाई थी कि मुझे उस वीडियो वाली लड़की को आइ लव यू बोलना है और वो लड़की मेरे आइ लव यू बोलने पर बिल्कुल भी नाराज़ ना हो....इसलिए मैने तीन अलग-अलग लॅंग्वेज मे उसे आइ लव यू बोला जिसकी भनक उस लड़की को नही लगी और मैं शर्त जीत गया.."
"ओह ! टू फन्नी...गुड ट्रिक टू से आइ लव यू तो सम्वन...मुझे भी तुम वो तीन लाइन्स बोलो और फिर मैं उन्ही तीन लाइन्स को रिपीट करूँगी..."
"क्या बात है बड़े ही रोमॅंटिक मूड मे लग रही है "
"अरे तुम बोलो ना..."
मैं कुच्छ देर चुप रहकर उन तीन लाइन्स को याद करने लगा और जब मेरे ध्यान मे वो तीनो लाइन्स आ गयी तो मैने कहा जिसके बाद निशा ने उन्ही तीन लाइन्स को रिपीट किया...आख़िरी लाइन बोलते हुए निशा इतनी ज़्यादा खुश हो गयी कि उसने मुझे गले लगा लिया और मैं....मेरा क्या ,मैं तो हमेशा ही इन सब कामो के लिए तैयार रहता हूँ
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निशा को कसकर पकड़े हुए मेरा दिमाग़ एक बार फिर घुमा और मैं फिर से कुच्छ सोचने लगा बिना इसकी परवाह किए कि निशा मुझसे कुच्छ कह रही है...और पहले कि तरह इस बार भी मैं होश मे तब आया जब निशा ने अपना नाख़ून मेरे पीठ पर गढ़ाया....
"तुम उस वीडियो वाली लड़की से प्यार करते थे ना..."मुझसे दूर होते हुए निशा ने मेरी आँखो मे देखा....
पहले की तरह वो अब भी एक दम मासूम सी लग रही थी और पहले की तरह मैं फिर से उसकी आँखो मे आँखे गढ़ाए कोई बहाना ढूँढ रहा था....
"इट'स ओके, मुझे कोई प्राब्लम नही...वैसे उस लड़की का नाम क्या था..."
"एश..."बिना एक पल गवाए मैने कहा..
"वो तुम्हारे लायक नही लगती ,बिल्कुल भी नही....उसकी शकल देख कर कोई भी बता सकता है कि वो एक जिद्दी और घमंडी लड़की है,अच्छा ही हुआ जो वो अब तुम्हारे साथ नही है..."
निशा का एश के बारे मे ऐसा कहने पर मैं समझ गया कि वो एश से जल रही है और इसीलिए उसने कुच्छ देर पहले तीन अलग-अलग लॅंग्वेज मे मुझसे ठीक उसी तरह 'आइ लव यू' कहलवाया...जैसा कि एक जमाने मे मैने एश से कहा था...निशा की इस जलने वाली हरकत पर मैं दिल ही दिल मे मुस्कुराया और बोला...
"निशा एक बात बता, तुझे मालूम कैसे चला कि मैने एश को सॉरी नही बल्कि 'आइ लव यू' कहा था..."
"गूगल मे सर्च किया और रिज़ल्ट सामने आ गया...बहुत इंटेलिजेंट हूँ ना मैं..."
"ह्म्म..."कहते हुए मैने निशा को पकड़ा और पार्क मे जैसे दूसरे कपल कर रहे थे ,वैसा ही मैने भी किया और निशा के होंठो को अपने होंठो मे ले लिया....
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कभी-कभी ज़िंदगी मे किसी एक के लिए अहमियत इतनी ज़्यादा हो जाती है कि दुनिया भर के सारे नियम,क़ायदे-क़ानून एक तरफ और वो एक तरफ....वो इंसान वही करता है जो उसका दिल कहता है...इस समय मैं निशा को किस कर रहा था ,लेकिन मेरा दिमाग़ एक बार फिर से अतीत मे जा पहुचा.जहाँ मैने शुरू-शुरू मे अपने प्लान के अकॉरडिंग चलते हुए पिक्निक पर जाने से मना कर दिया था,लेकिन जैसे ही मुझे पता चला कि एश उस पिक्निक मे जा रही है तो मेरे ही द्वारा बनाए गये मेरे ही सारे क़ायदे-क़ानून मुझे ग़लत लगने लगे और मैने पिक्निक मे जाने के लिए हामी भर दी.....
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पता नही मैं पिक्निक पर जाने के लिए कैसे मान गया,जबकि मुझे मालूम था कि मेरे ऐसा करने पर मेरे तीनो प्लान ,जिनका पालन करना मेरे लिए उस वक़्त बेहद ज़रूरी था,वो बेकार हो जाएँगे...लेकिन फिर भी मैं गया और अपने होंठो मे मुस्कान और दिल मे नये-नये अरमान लेकर गया....
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"आज तुम थोड़ा अजीब बर्ताव कर रहे हो..."मेरे कान के पास निशा ने धीरे से कहा"कोई प्राब्लम है क्या..."
निशा की आवाज़ सुनकर मैं जैसे अपनी बीती दुनिया से वापस आया
"नही...कोई प्राब्लम नही है,एवेरीथिंग ईज़ ओके..."
"तुम्हे देखकर तो ऐसा नही लगता..."
"दिमाग़ का इलाज करवा,आज तू कुच्छ ज़्यादा ही सोच रही है और अब चल रात होने वाली है...कहीं ऐसा ना हो कि अंकल जी हम दोनो को रास लीला करते हुए देख ले और मेरी खटिया खड़ी कर दे..."
"डॅड हमे नही देख पाएँगे..."एक दम से बहुत ज़्यादा खुश होते हुए वो बोली"उनकी तबीयत अब भी थोड़ी डाउन है..."
"कमाल है यार, तू अपने ही डॅड की तबीयत खराब होने पर खुश हो रही है..."
ये बात मैने निशा को कुच्छ ऐसे कहा जैसे कि मैं उसे धिक्कार रहा हूँ, जैसे की उसने बहुत ही बड़ा गुनाह कर दिया हो...और मेरे ऐसे आक्षन पर उसका रिक्षन कुच्छ यूँ था....
सबसे पहले उसकी आँखे टाइट हुई,गाल गुस्से के कारण लाल हो गये और माथे पर सलवटें पड़ गयी...
"मेरे कहने का मतलब वो नही था...जो मतलब तुमने निकाला..तुम ऐसा कैसे कह सकते हो.."
"देख अब जो बोल दिया ,सो बोल दिया...तू आक्सेप्ट कर ले कि तू ससुरजी की तबीयत खराब होने से बहुत ज़्यादा खुश है..."निशा को और जलाने के लिए मैने कहा और खड़ा हुआ...
"अरमान,मैं बोल रही हूँ ना कि मेरा वैसा मतलब नही था...मैं तो सिर्फ़ तुम्हे ये बताना चाह रही थी कि डॅड हम दोनो को नही देख सकते..."बोलते हुए निशा भी ताव मे खड़ी हो गयी
"अरे मान ले ना अपनी ग़लती,मैं थोड़े ही तेरे बाप को बताने जाउन्गा..."
"क्या...तुमने मेरे डॅड को बाप कहा..तुम ऐसा कैसे कह सकते हो, ही ईज़ माइ फादर..."
"मैने ऐसा कब कहा...तेरे कान बज रहे है...डॉक्टर के पास जाकर अपने दिमाग़ के साथ-साथ अपने कान का भी चेक अप करवा लेना...."
"आइ हेट यू..."दूसरी तरफ घूम कर वो बोली...
"खा माँ कसम कि यू हेट मी... "
"मैं आज के बाद तुमसे कभी बात नही करूँगी..."
"ऐसा क्या...फिर ,वापस कर मेरा मोबाइल...ख़ामखा मेरा दस हज़ार के मोबाइल को बोर करेगी..."निशा की तरफ हाथ बढ़ाते हुए मैने कहा...
"लो...आइ हेट यू..."मेरे हाथ मे मेरा मोबाइल देकर निशा वहाँ से जाने लगी....
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शुरू मे लगा कि अपना मोबाइल सीधे जेब मे डालकर यहाँ से चलता बनू,लेकिन फिर जैसे दिल ही नही माना कि निशा बिना मोबाइल के रहे...
घमंड और अहम तो मुझमे कूट-कूट कर भरा था,लेकिन उस एक पल मे ना जाने मुझे क्या हुआ की मैं पार्क से बाहर जाते हुए निशा की तरफ लपका और उसके ठीक सामने जा खड़ा हुआ...लड़कियो की बात-बात पर रूठ जाने की यही अदा तो साली दिल चीर देती है
"किधर जा रेली है ,आइटम...चलती क्या कोने मे ..."
"हटो मेरे सामने से..."दूसरी तरफ देखते हुए निशा ने कहा...उसका गुस्सा अब भी उसकी नाक पर फुल जोश के साथ सवार था...
"मज़ाक कर रहा था यार,तू भी ना हर छोटी से छोटी बात को दिल पे ले लेती है..."उसकी हाथ मे मोबाइल रखते हुए मैने सॉरी कहा...
"इट'स ओके..."हल्के गुस्से के साथ वो बोली....
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जिस पार्क मे मैं और निशा कुच्छ देर पहले बैठकर बाते कर रहे थे,वो पार्क हमारी कॉलोनी के अंदर ही बना हुआ था. वरुण के किसी काम पर जाने के बाद मैने निशा को कॉल किया तो पता चला कि वो एक दम फ्री है मतलब कि उसके डॅड की तबीयत खराब होने की वजह से वो बिस्तर पर पड़े है,इसलिए वो अपनी माँ से कोई ना कोई बहाना मारकर मुझसे मिलने आ सकती है...जिसके बाद हम दोनो आधे घंटे के अंदर ही पार्क मे पहुच गये थे.
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"वरुण अभी तक नही आया..."रूम के अंदर आते ही मैने अरुण से पुछा, जो कि वरुण के लॅपटॉप मे कोई मूवी देख रहा था....
"पता नही..."
"तू जाकर खाना बना..."कहते हुए मैने उसकी आँखो के सामने से लॅपटॉप को हटाया और बोला"साले,कुच्छ काम-धाम नही है क्या...जो इतने दिन बीत जाने के बावजूद यही पड़ा है..."
"दो-तीन दिन और रुक जा लवडे,फिर मैं खुद यहाँ से चला जाउन्गा..."
"जल्दी से जा बे,फालतू मे हमारा खर्चा बढ़ा रहा है.."
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खर्चा शब्द सुनते ही अरुण एक झटके मे उठा और सीधे मेरे उपर कूद पड़ा,लेकिन तभी हमारे रिपोर्टर साहब ने एंट्री मारी....
"अरमान...एक लड़का तेरा अड्रेस पुच्छ रहा था..."
"मेरा अड्रेस..."अरुण को दूर फैंकते हुए मैने वरुण की तरफ अपना रुख़ किया"कौन था वो ? "
"पता नही...कॉलोनी के बाहर एक ने मेरी कार रुकवाई और पुछा कि अरमान कहाँ रहता है..."
"और फिर..."
"फिर क्या,मैने उसे उल्टा सीधा अड्रेस बता दिया क्यूंकी मुझे लगा कि इससे तेरी प्राइवसी को ख़तरा है..."
"अबे उल्लू...इस पूरी कॉलोनी मे मैं क्या अकेला ही अरमान हूँ...ये भी तो हो सकता है कि वो किसी दूसरे अरमान के बारे मे पुच्छ रहा हो..."
"पता नही...बाकी तू समझ...मुझे जो करना था,वो मैने कर दिया"सोफे पर गिरते हुए वरुण ने मुझसे कहा"अरमान फिर पिक्निक मे क्या हुआ ,मेरा मतलब कि वहाँ कोई धमाल किया या ऐसे ही लंड पकड़ कर वापस आ गये...."
"पिक्निक..."मुस्कुराते हुए मैने कहा"पिक्निक का नाम तो बस कॉलेज स्टाफ के लोगो और स्टूडेंट्स के पेरेंट्स को दिखाने के लिए दिया गया था..असलियत तो कुच्छ और थी"
"क्या कॉलेज के टीचर्स भी साथ थे..."
"अबे स्कूल समझ रखा है क्या,जो टीचर्स साथ रहेंगे..."
जो दिन पिक्निक के लिए तय हुआ था, वो दिन आते-आते तक कॉलेज के लौन्डो का प्लान पिक्निक से बदल कर 2-3 दिन के कॅंप की शकल ले चुका था जिससे बहुत से स्टूडेंट ने अपना नाम वापस ले लिया. क्यूंकी जो स्टूडेंट्स हॉस्टिल मे रहते थे उन्हे तो कोई प्राब्लम नही थी,लेकिन जो स्टूडेंट्स लोकल थे ,उनमे से अधिकतर के माँ-बाप ऑर केर्टेकर ने उन्हे 2-3 दिन घर से बाहर रहने की अनुमति नही दी और इस पर हमारे कॉलेज के प्रिन्सिपल ने फाइनल एअर के स्टूडेंट्स पर बॅन लगाकर चार-चाँद लगा दिए...जिसका नतीजा ये हुआ कि जहाँ पहले 4 बस बुक करने का प्लान था वहाँ कॅंप के लिए रवाना होने वाले दिन तक आते-आते बस की संख्या चार से कम होकर सिर्फ़ दो रह गयी....इतना सब कुच्छ होने के बावजूद मुझे कोई फ़र्क नही पड़ा,क्यूंकी मेरे साथ मेरे सारे दोस्त जा रहे थे. जिस दिन हमे कॅंप के लिए रवाना होना था, उसके एक दिन पहले हमारे प्रिन्सिपल ने एक और धमाका किया,जिसकी खबर मेरे खास दोस्तो मे शुमार सुलभ ने दी....सुलभ पिछले दो दिन से अपने रूम ना जाकर हमारे हॉस्टिल मे ही पड़ा था,जिसकी वजह से कयि बार मेरी और अरुण की वॉर्डन से बहस भी हो चुकी थी.सुलभ ने एक रात पहले बताया कि प्रिन्सिपल ने हमारे साथ गर्ल्स और बाय्स हॉस्टिल के वॉरडन्स को जाने के लिए कहा है....
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"इस बीसी ,प्रिन्सिपल ने सारे इंटेन्षन पर मूत दिया...अब ये चोदु वॉर्डन हमारे साथ कॅंप पर जाकर क्या करेंगे....."सिगरेट के पॅकेट से आख़िरी सिगरेट निकाल कर अरुण ने पॅकेट ज़ोर से रूम के बाहर फैंकते हुए कहा.
"करेंगे क्या साले....बस दिन भर हमे इन्स्ट्रक्षन देते रहेंगे कि ,ये मत करो,वो मत करो...."अपने बॅग मे अपना समान भरते हुए सौरभ बोला"मेरा वश चले तो सालो का वही मर्डर कर दूं.."
"मुझे तो इसकी फिक्र हो रही है कि ये वॉरडन्स ,हमे दारू नही पीने देंगे "उदास सा चेहरा बनाते हुए मैने भी अपना बॅग आल्मिराह के उपर से निकाला और पॅकिंग करने लगा....
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"एक और बुरी खबर है या फिर कहे तो सबसे बुरी खबर है..."सुलभ ने फिर कहा,जिसके बाद हम तीनो वो दूसरी बुरी खबर सुनने के लिए उसका मुँह तकने लगे.
"बोसे ड्के,दूसरी बुरी खबर बताएगा या फिर कोर्ट का नोटीस भेजू तब बकेगा..."जब कुच्छ देर तक सुलभ बिना कुच्छ बोले हम तीनो को ही देखते रहा तो मैं चिल्लाया...
"प्रिन्सिपल ने इन्स्ट्रक्षन दिया है कि लड़के और लड़किया अलग-अलग बस मे बैठेंगे...."
"दाई चोद दूँगा उस टकले की...."अरुण गुस्से से तनटनाते हुए भड़क उठा...
दिल तो मेरा भी किया कि अपने कॉलेज के प्रिन्सिपल को दिल खोलकर गालियाँ दूं ,लेकिन जब मैं ये सूभ काम करने के लिए मुँह खोल ही रहा था कि मेरा दिमाग़ मुझपर चिल्लाया"रेस्पेक्ट युवर टीचर्स..."
"अबे नही अरुण ,ऐसा नही बोलते...प्रिन्सिपल है अपना वो टकलू..और भूल मत कि गौतम वाले केस को दबाने मे उसने हम लोगो की कितनी हेल्प की थी....."ना चाहते हुए भी मैने अपने प्रिन्सिपल को इज़्ज़त देते हुए कहा....
मेरी बात मे दम था जिसका अहसास मुझे तब हुआ ,जब मेरे तीनो दोस्त मेरी बात सुनकर चुप हो गये और अपने समान की पॅकिंग करने मे लग गये....
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"अरमान ,तेरा बॅग खाली है क्या..."
मैं आवाज़ की तरफ पलटा तो देखा कि अरुण अपने हाथ मे एक जीन्स को मोड़ कर खड़ा था.
"क्यूँ क्या हुआ..."
"ले मेरा ये जीन्स अपने बॅग मे डाल ले..."
मुझे अपना जीन्स देने के बाद ,अरुण ,सौरभ के पास गया और उससे भी वही सवाल पुछा,जो कुच्छ देर पहले उसने मुझसे पुछा था....जब सवाल सेम था तो आन्सर भी सेम ही होगा और ऐसा ही हुआ .
"बेटा मेरे बॅग मे जगह तो इतनी खाली है कि ,तुझे भी भर दूँगा...काम बोल"
"ले मेरा एक जीन्स और दो शर्ट रख ले...वो क्या है कि मेरा बॅग थोड़ा सा फटा हुआ है और मैं नही चाहता कि मेरी बेज़्जती हो जाए..."अपनी बकवास जारी रखते हुए अरुण बोला"तू खुद सोच बे, तुझे उस समय अच्छा लगेगा क्या...जब कॉलेज की लड़किया मुझे देख कर ये कहेंगी कि....अवववव, कॉलेज के सबसे डॅशिंग,स्मार्ट लड़के का बॅग फटा हुआ है.अववव...अवववव...."
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"सब समान भर लिया अब चलो 2-3 वर्ल्डकप लेकर आते है...."पॅकिंग करने के बाद अंगड़ाई लेते हुए मैने एक लंबी जमहाई मारी...
"इतनी जल्दी क्या है बे...आराम से चलेंगे..वर्ल्डकप लेने"
" सब काम भले ही छूट जाए,लेकिन ये काम नही छूटना चाहिए...चल जल्दी "
"वर्ल्डकप "अपना दिमाग़ पर ज़ोर डालते हुए सुलभ ने पहले मेरी तरफ देखा और फिर जब उसे समझ आ गया कि मैं किस वर्ल्ड कप की बात कर रहा हूँ तो वो बोला"अबे ,दारू पियोगे तो पेला जाओगे...प्रिन्सिपल सस्पेंड कर देगा..."
"आइ लव दारू मोर दॅन माइ इंजिनियरिंग अब अपना मुँह बंद कर"
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दूसरे दिन जब हम लोग हॉस्टिल से अपना-अपना बॅग लटकाए बाहर निकले तो राजश्री पांडे हमे हॉस्टिल के बाहर ही मिल गया...राजश्री को हॉस्टिल के बाहर देखते ही मैं समझ गया कि वो यहाँ इस वक़्त क्यूँ आया है....
"अरमान भाई,सौरभ भाई,अरुण भाई ,सुलभ भाई...अपुन को आप लोगो के साथ रहना है..."उसने कहा और सिगरेट का एक पॅकेट रिश्वत के तौर पर मेरे तरफ बढ़ा दी...
सिगरेट की एक फुल पॅकेट देखते ही मेरा दिल किया कि अभी अपना बॅग नीचे फेकू और सारे के सारे सिगरेट पी लूँ ,क्यूंकी पिछले एक दो दिनो से मैने सिगरेट को छुआ तक नही था...सिगरेट का पॅकेट लेने के लिए मैने अपना हाथ आगे बढ़ाया ही था कि मेरा 1400 ग्राम का ब्रेन मुझपर चिल्लाया"क्विट स्मोकिंग ऐज अर्ली ऐज पासिबल..." और फिर मैने राजश्री पांडे के हाथ से सिगरेट का पॅकेट लेकर अरुण को सौंप दिया.....
"ये क्या अरमान भाई,आप मुझसे नाराज़ हो क्या..."मेरी इस हरकत पर चौुक्ते हुए राजश्री पांडे ने पुछा...
जवाब मे मैं आगे बढ़ा और उसके कंधे पर एक हाथ रखकर अपना बॅग उसे पकड़ाया और बोला"नही रे पगले...तुझसे कैसी नाराज़गी ,तू तो भाई है अपना...वो तो आजकल मेरे ही दिन खराब चल रहे है...."
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कॉलेज के ठीक सामने दो बस खड़ी थी, उसमे से एक बस के अंदर मैं और मेरी छोटी सी मंडली घुसी...हमने पहले से ही डिसाइड कर रखा था कि हम लोग किस सीट नंबर पर बैठेंगे.लेकिन जब बस के अंदर पहुँचे तो हमारी सीट पर वो कल्लू कंघी चोर एक हाथ मे चना लिए बैठा हुआ था...
"ओये चल सरक इधर से..."उसको देखकर मैने कहा और वो कल्लू अपना मुँह चलाते हुए खिड़की की तरफ खिसक गया...
"साले कंघी चोर, तुझे मैने खिड़की की तरफ सरकने के लिए नही कहा...मैने तुझे कहा कि सीट पूरी खाली कर..."
"तो फिर मैं कहाँ बैठू..."चने के एक और फेंक मुँह मे डालकर चबाते हुए वो बोला...
"साले मुझे देखकर,तुझे डर नही लगता क्या...बोला ना उठ यहाँ से..."
"तू कोई भूत है क्या, जो तुझसे डरूँ..."
"तेरी माँ की..."बोलते हुए मैने कल्लू को पकड़ा और खिचकर सीधे बाहर फेका"कंघी चोर,साला...मुझे ज़ुबान लड़ाता है..."
उस कल्लू कंघी चोर को बाहर फेकने के बाद मैं खिड़की की तरफ बैठा और कान मे हेडफोन फँसा कर अपनी आँखे बंद कर ली...
मैं बहुत कोशिश कर रहा था कि मुझे सिगरेट का ख़याल ना आए ,लेकिन जब से मैने अपनी आँखे बंद की थी...तब से मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ सिगरेट का वो पॅकेट नज़र आता...जो आज मुझे राजश्री पांडे ने दिया था और मैने अरुण को....
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"अरमान भैया,थोड़ा साइड हटना तो..."मुझे साइड करके राजश्री पांडे ने अपना सर खिड़की से बाहर निकाला और गुटखे की पीक बाहर थूक कर एक दो लौन्डो को गालियाँ बाकी और वापस अपनी जगह पर ढंग से बैठ गया.....
"लवडे यदि एक और बार तूने मुझे साइड होने के लिए कहा तो बहुत पेलुँगा...."
"सॉरी ,अरमान भाई..."बोलते हुए राजश्री पांडे ने अबकी बार राजश्री अंदर ही निगल लिया....
आँखे बंद करके फिर से मैने कोशिश कि...कि सिगरेट का ख़याल मुझे ना आए लेकिन सिगरेट पीने की तलब ब समय के साथ लगातार बढ़ती ही जा रही थी और जब मुझसे कंट्रोल नही हुआ तो मैने बाहर जाकर चुप-चाप सिगरेट पीने की सोची....
"किधर जा रहा है बे..."
अरुण के इस सवाल पर मैने अपनी फिफ्थ फिंगर(पिंकी) उठा दी और बस से बाहर आकर सीधे हॉस्टिल की तरफ भगा....हॉस्टिल मे मैने दो सिगरेट सुलगाई और जब मन को ठंडक पहुचि तो हॉस्टिल से ठंडा पानी पीकर वापस कॉलेज की तरफ बढ़ा लेकिन मैं बस के करीब पहुचता उससे पहले ही मेरे सामने ब्लॅक कलर की एक लॅंड रोवर कार रुकी.
"एक दिन साला मेरे पास भी ऐसिच कार होगी..."उस चमचमाती हुई कार को देखकर मैने मन मे कहा....
उस ब्लॅक कलर की कार को देखकर मुझे ये अंदाज़ा तो हो गया था कि उसके अंदर बैठा हुआ शक्स करोड़पति है...लेकिन मुझे जोरदार झटका तब लगा,जब उस कार के अंदर से एश एक आदमी के साथ निकली....
"ओह तेरी...ससुर जी "
एश के साथ जो आदमी था उसकी उम्र मेरे हिसाब से 45-50 के बीच रही होगी,इसलिए मैने अंदाज़ा लगा मारा कि हो ना हो ये रहीस बंदा एश के पॅपा जी है बोले तो अपुन के ससुर जी
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