RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
जब मैं और अरुण इतनी भारी-भारी छोड़ रहे थे तो भला हमारे पांडे जी इन सबमे कैसे पीछे रहते.हमारे पांडे जी एक कदम आगे बढ़ाते हुए अपनी पॅंट वही उतार दी और दूसरे कॉलेज के कुच्छ लड़के(जो लड़ाई मे शामिल नही थे) जो अभी तक वहाँ खड़े थे, उन्हे संबोधित करते हुए बोले"चुसेगा क्या...काट ले इधर से,वरना लंड सीधे मुँह मे पेल दूँगा...."
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"चलो बे सब पापा बोलो मुझे..."पुल की तरफ चलते हुए मैने कहा.
वहाँ जब लड़ाई हुई तो हम लोग फिशिंग वाली जगह से आगे नही बढ़े और पुल की तरफ आ गये. पहले जहाँ हमारा प्लान राप्पेल्लिंग करने का था वही अब प्लान बदलकर कॉफी हाउस मे जाकर शहर की टकटक आइटम देखने का बन गया था...मुझे पहले से ही किसी लफडे का अंदेशा था इसलिए मैं लगभग 15 लड़को को लेकर कॉफी हाउस की तरफ बढ़ रहा था, इस शर्त पर की उन सबका बिल मैं दूँगा. पर असल मे ऐसा कुच्छ नही होने वाला था ,मतलब कि मैं किसी का बिल नही देने वाला था , मैं तो बस उन सबको चोदु बनाकर अपने साथ ला रहा था.....
"मज़ा आ गया अरमान भाई,उन एमबीबीएस वाले लौन्डो की गान्ड फाड़ दी हमने..."
"वो सब तो ठीक है लेकिन तू यार,हर जगह नन्गराइ मत किया कर...जहाँ देखो पॅंट खोलके खड़ा हो जाता है..."
"ठीक है,आप बोलते हो तो आगे से ऐसा नही करूँगा....लेकिन अभी क्या करे..."पुल मे चढ़ते हुए पांडे जी ने कहा"आज भी इन प्रेमी जोड़ो को परेशान करे या रहने दे..."
"आज रहने दे बे..."मैने कहा...
मैने ऐसा इसलिए नही कहा क्यूंकी मेरा ऐसा करने का मन नही था बल्कि इसलिए क्यूंकी मैने अभी-अभी आंजेलीना को उसकी दो सहेलियो चिन्कि और पिंकी के साथ कॉफी हाउस की तरफ जाते हुए देखा था.
"अरुण, चल अब उस आंजेलीना की भी लेते है, साली बहुत उचक रही है दो दिन से..."
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पी.एस.मेडिकल फील्ड वाले अपडेट को दिल पे मत लेना
मैने हमेशा से एक सपना देखा था कि जब मैं कॉलेज मे पहुचूँगा तो मैं भी एक लड़की पटाउंगा , दिन-रात मोबाइल मे डे-नाइट पॅक डाला-डाला कर उससे बाते करूँगा. ना खाने की फिक्र रहेगी और ना ही सोने की खबर.
वहाँ दम के उपर बने पुल पर कपल्स को देखकर मुझे याद आया कि मैने भी बचपन से एक ऐसा सपना देखा था कि जिसमे मेरे साथ एक खूबसूरत लड़की होगी और मैं इसी तरह उसके साथ किसी ऐसी ही जगह पर बात कर रहा होऊँगा. लेकिन कॉलेज के तीसरे साल मे भी मेरा ये सपना अब तक अधूरा ही था,इसकी वजह चाहे जो हो ,लेकिन मेरे वो अरमान आज भी मेरे दिल मे क़ैद थे,वो अरमान आज भी मेरे दिल मे ज़िंदा थे.
ऐसा नही है कि मैं आज तक किसी लड़की के दिल मे जगह नही बना पाया ,इसलिए मेरा ये सपना अब तक अधूरा था बल्कि इसलिए क्यूंकी मैं उसके दिल मे जगह नही बना पाया ,जिसे मैं चाहता था. जिसे मैं चाहता था कि वो मेरे साथ ऐसे ही किसी पुल पर बैठकर मुझसे बात करे और जब हम दोनो बाते करके थक जाए तो मैं उसकी गोद मे सर रख कर लेटा रहूं और उसका सर नीचे अपनी तरफ झुका कर एक प्यारी सी किस.....
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मैं कल भी इस जगह आया था और आज भी यहाँ था.लेकिन कल मुझे ऐसा कुच्छ भी फील इसलिए नही हुआ क्यूंकी कल मेरे सामने एश नही थी ,जबकि अभी वो मेरे आँख के ठीक सामने थी....बोले तो थोड़ी दूरी मे.
एश को सामने से आता देख पहले मेरे पैर रुके और फिर मेरे रुक जाने के कारण मेरे दोस्त भी रुक गये....सामने से एश ,दिव्या और उनका पूरा ग्रूप आ रहा था.
"तू जानता है अरुण ,मैं हमेशा से यही चाहता था कि...."एश पर अपनी नज़रें टिका कर मैं अरुण से बोला
"रहने दे....रहने दे,मुझे मालूम है अब तू अपनी और उस बिल्ली की 'थे अमेज़िंग लव स्टोरी' के कुच्छ सीन बयान करके मुझे बोर करेगा..."
"देख बे,क्या मस्त नज़ारा है...नीचे पानी, उपर आसमान और सामने एश....बस कमी है तो इसकी की अभी दिन नही रात होनी चाहिए थी."
"मैं दिव्या से बात करूँ..."अरुण ने मुझे रोक कर पुछा...
"नही...ये लड़की ठीक नही है"
"तो फिर मैं बात करता हूँ इससे ,फिर आज रात को ही इसे छोड़ दूँगा...."
"एक बार ना बोलने मे समझ नही आता क्या...."मैने थोड़ी उँची आवाज़ मे कहा...
"मैं इससे क्यूँ ना बात करूँ..."अरुण भी चीखा...
"क्यूंकी यही लड़की उन सबकी वजह थी ,जो कुच्छ महीने पहले हुआ....यदि ये लड़की ना होती तो मैं तीन महीने कोमा मे नही रहता...."
"भूल जा बीती बातो को..."
"सॉरी मैं नही भूल सकता,क्यूंकी जो ग़लती तुम दोनो ने की थी उसका खामियाज़ा तुम दोनो को छोड़ कर बाकी सबको भुगतना पड़ा....तुम दोनो तो बच गये लेकिन बाकी सब नही बचे..."
"ये क्या बोल रहा है..."
"मैं सच बोल रहा हूँ और एक सच तुझे और बताऊ , तू यकीन नही करेगा..."अरुण की तरफ अपना फेस करके मैं बोला"दिव्या जितनी बेवकूफ़ दिखती है उतना ही वो लोमड़ी के माफिक चालक भी है. उसने तेरा प्रपोज़ल ,जो मैने मेस्सेज के ज़रिए भेजा था ,वो उसने गौतम के कहने पर आक्सेप्ट किया....तेरा दिव्या के करीब जाना, दिव्या और गौतम की फुल प्लॅनिंग थी...."
बोलते हुए मैं रुका और अरुण की शकल पर ध्यान दिया तो पाया कि उसके शकल पर तो 12 बजे है....मैने जो कुच्छ भी अरुण को बताया उसपर यकीन करना मुश्किल तो था,लेकिन ये सच था और ये सच मैने इसी मौके के लिए बचा रखा था.....
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"क्यूँ शॉक लगा ना मेरे लाल ! "
"तू पक्का सच बोल रहा है ना या मुझे चोदु बना रहा है...यदि तेरी कही गयी बाते सच है तो फिर उस हरामजादी को मैं अभी पुल से नीचे फेक दूँगा...." गुस्से से काँपते हुए अरुण बोला...
"अभी कंट्रोल कर...बाद मे तुझे सब समझाता हूँ और अब समझ आया कि मैं क्यूँ बोल रहा था इस लौंडिया से दूर रहने को..."
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याद है मैने एक बार कहा था कि एक लड़की की खूबसूरती उसे तभी तक बचा सकती है,जब तक वो लड़की सामने वाले को पसंद हो क्यूंकी जिस दिन भी उस लड़की के लिए उस सामने वाले शक्स के अंदर नफ़रत पैदा हुई तो फिर सारी खूबसूरती गयी तेल लेने.....और इसी थियरी को अरुण इस वक़्त प्रूव कर रहा था...जब पुल मे दिव्या और अरुण आमने-सामने हुए तो अरुण ने उसकी तरफ देखा तक नही ,जबकि पहले वो अक्सर दिव्या के सीने और पिछवाड़े को तकता रहता था.अरुण ने दिव्या को ऐसे इग्नोर मारा जैसे सामने वाला इंसान कोई इंसान नही बल्कि एक बदबूदार जानवर हो और इसी के साथ अपुन ने एक ही तीर से दो निशाने लगाए....मेरा पहला निशाना था अरुण को दिव्या के बारे मे सच बताना ,जिसके लिए मैं ना जाने कब से मौका देख रहा था और मेरा दूसरा निशाना था अरुण के अंदर दिव्या के लिए बे-इंतेहा नफ़रत पैदा करना...जो की मेरे इस सच ने पैदा कर दी थी.
"कितना स्मार्ट हूँ मैं "पुल पर आगे बढ़ते हुए मैने खुद से कहा....
"खा दारू कसम की तू सच बोल रहा है और यदि तूने झूठी कसम खाई तो आज के बाद तुझे दारू की एक बूँद भी नसीब नही होगी "
"तू तो जानता ही है कि मैं कभी झूठ नही बोलता .लेकिन यदि फिर भी तुझे यकीन ना हो रहा हो तो दारू की कसम ,मैने कुच्छ देर पहले जो कहा ,वो सब 99.99 % सच था...."
"बाकी का 0.01% कहा है..."
"वो यदि मेरी संभावनाए ग़लता हुई तब के लिए....खैर तू फ़िकरा मत कर"
"कसम से यार,मुझे तो अब भी यकीन नही हो रहा की दिव्या ऐसा करेगी...."
पुल पर आगे बढ़ते हुए मैं और अरुण बाकियो से थोड़ा आगे चल रहे थे,जिससे हम दोनो के बीच जो बात-चीत हो रही थी ,वो हम दोनो तक ही सीमित थी.हमने पुल पार किया और पुल के दूसरी तरफ बने कॉफी हाउस की तरफ बढ़ने लगे.....
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"तुझे कैसे पता चला कि वो सब दिव्या और गौतम की मिली भगत थी ,क्यूंकी दिव्या की हरकतों से ऐसा लगता नही कि वो इतना भयंकर कांड सोच सकती है...."
"दिव्या तो सिर्फ़ एक ज़रिया थी, थर्ड सेमेस्टर के खूनी कांड की....असली गेम तो गौतम खेल रहा था,जो मैं तुझे कभी और बताउन्गा....."कॉफी हाउस के अंदर आंजेलीना को एक टेबल पर बैठा हुआ देख मैने अरुण से कहा"और एक बात बताऊ..."
"क्या..."
"यही की गौतम मेरे जितना होशियार नही है ,ये अलग बात है कि वो खुद को आइनस्टाइन या न्यूटन की औलाद समझता है....अब तू सबको लेकर उस किनारे वाली टेबल पर बैठना...."
"क्यूँ तू कहाँ जा रहा है...याद है ना सबका बिल तुझे ही भरना है..."
"वो देख सामने ,एमबीबीएस वाली छम्मक छल्लो बैठी है...ज़रा उससे मिलकर आता हूँ..."मैने उस टेबल की तरफ आँखो से इशारा करते हुए कहा,जिस पर आंजेलीना अपने दोनो सहेलिया चीखी और पिंकी के साथ बैठी हुई थी....
"ठीक है मैं सबको लेकर दूसरी तरफ जाता हूँ और आंजेलीना से कहना कि वो यदि चाहे तो मेरी गर्ल फ्रेंड बन सकती है,मुझे कोई ऐतराज़ नही "
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अरुण और बाकी सबको कॉफी हाउस के दूसरे तरफ भेजकर मैने खुद का हुलिया सही किया और आंजेलीना की तरफ बढ़ा...जिस टेबल पर वो तीनो बैठी थी उसपर दो चेयर अब भी खाली थी और मेरे ख़याल से वो खाली ही रहने वाली थी क्यूंकी आंजेलीना को कल शाम से मैने सिर्फ़ दो लोगो के साथ देखा था जो उस समय वहाँ मौजूद थे...इसलिए मैं उनसे बिना पुछे कि'क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ', मैने एक चेर खींची और उसपर बैठ गया...आंजेलीना के ठीक सामने बैठने के बाद मैने एक वेटर को इशारा किया....
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