RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
"ये भी हो सकता है और ये भी हो सकता है कि मैं शुरू से ही ग़लत रहूं...बोले तो दिव्या अंदर से भी वही बेवकूफ़ लड़की हो,जो वो बाहर से दिखती है....होने को क्या नही हो सकता,कुच्छ भी हो सकता है, होने को तो ये भी हो सकता है कि आज रात जब तू गान्ड उठाकर सोया होगा तो तेरी कोई गान्ड मार कर चला जाएगा"
"चूस ले फिर, जब तुझे खुद पर ही कॉन्फिडेन्स नही है तो फिर हमारा इतना समय क्यूँ बर्बाद किया...लवडे"
"टेन्षन मत ले,..मुझे इस एक्सपेरिमेंट का ऑब्जेक्ट,रिक्वाइयर्ड अप्रटस, थियरी और प्रोसीजर मालूम है...बस दिव्या पर एक्सपेरिमेंट करना बाकी है ,जो कि मैं बहुत जल्द करूँगा और रिज़ल्ट तुम दोनो को बता दूँगा...लेकिन फिलहाल तो मैं उस एमबीबीएस वाली के बारे मे सोच रहा हूँ कि उसके दिल पर उस वक़्त क्या बीती होगी ,जब वेटर ने उसे बिल थमाया होगा..."
"पक्का तुझे,माँ-बहन की गालियाँ बाकी होगी "सौरभ बोला.
जैसा कि मैने पहले भी कहा था कि 'लड़कियो के बारे मे मेरी थियरी अक्सर ग़लत हो जाती है..'. जिसकी वजह शायद ये थी कि मैं कभी इन ब्रेनलेस हमन्स के झमेले मे नही पड़ा था...यानी कि आज तक मेरी कोई गर्लफ्रेंड नही बनी थी..जिसके कारण मैं उन्हे ठीक से समझ सकूँ.
स्कूल के दीनो मे मैने किसी भी लड़की को अपनी गर्लफ्रेंड केवल इसलिए नही बनाया क्यूंकी तब मैं बेहद शरीफ हुआ करता था और मैं नही चाहता था कि एक दिन कोई मेरे घर आए और मेरे घरवालो को 'मेरा किसी लड़की के साथ चक्कर चल रहा है'इसकी इन्फर्मेशन दे...
आज तक कोई लड़की ना तो मेरी गर्लफ्रेंड बनी और ना ही किसी लड़की ने मुझे कभी प्रपोज़ किया,जबकि मुझे हमेशा से यही लगता था कि 'मोस्ट एलिजिबल बाय्फ्रेंड ' तो मैं ही हूँ....फिर ये सारी लौंडिया मुझे 'आइ लव यू' क्यूँ नही कहती .
ये सब तो मैं फिर भी बर्दाश्त कर लूँ लेकिन मुझे लड़कियो के उपर जोरो का गुस्सा और जबर्जस्त हैरानी तब होती है ,जब मैं हमारे 'कल्लू कंघी चोर' जैसे लड़को को एक दम से माल लेकर घूमते हुए देखता हूँ और तब अंदर से एक ही आवाज़ आती है की 'बीसी ,हमारे लंड मे काँटे गढ़े थे,जो इस कल्लू से पट गयी..." उस कल्लू ,कंघी चोर का नाम मैने यहाँ इसलिए लिया क्यूंकी रीसेंट्ली मिली इन्फर्मेशन के मुताबिक़ कल्लू अब तक दो जूनियर को भस्का चुका था और यहाँ कॉलेज मे इतना पॉपुलर होने के बावजूद कोई जूनियर लौंडिया अपुन को फ्रेंड रिक्वेस्ट तक नही भेजती .
कॉलेज मे पॉपुलर होने से मेरा मतलब था बदनामी से...क्यूंकी पिछले दो सालो मे मैने जो-जो कांड कॉलेज मे किए थे वैसा कांड सिर्फ़ एक निहायत ही बर्बाद लड़का कर सकता था. खैर मुझे मेरी बदनामी की कोई परवाह नही क्यूंकी कॅप्टन जॅक स्पेरो ने कहा है कि'यदि बदनाम होंगे तो क्या नाम ना होगा...'
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दिव्या पर मेरा जो शक़ था ,वो सही भी हो सकता था और साथ ही साथ इसकी भी संभावना थी कि मैं इस बार पूरी तरह ग़लत साबित हो जाउ...संभावना इसकी भी थी कि एश ,दिव्या के साथ मिली हुई हो या फिर उस बिल्ली को कुच्छ पता ही ना हो....सच चाहे जो भी हो...लेकिन मुझे इस बार दिव्या और गौतम के बिच्छाए जाल को जला कर राख करना था पर उससे पहले ये जानना ज़रूरी था कि एश उनके साथ शामिल है या नही....
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"अरमान ,मैं सोच रहा हूँ कि कहीं वो सब इत्तेफ़ाक़ भी तो हो सकता है..जैसे बस मे सुलभ का लड़कियो के पास जाना और तुझे गौतम से बॅस्केटबॉल खेलने का चॅलेंज मिलना..."कॅंप से बाहर निकलते वक़्त अरुण ने अपनी शंका जाहिर की...
"बेटा, आज कल इत्तेफ़ाक़ से इत्तेफ़ाक़ कुच्छ ज़्यादा ही हो रहे है...इसलिए मैं इसे महज एक इत्तेफ़ाक़ नही मान सकता...."आसमान मे मौजूद चाँद-तारो को देखने के लिए ,जिधर टेलिस्कोप रखा हुआ था उस तरफ जाते हुए मैने कहा...
'स्काइ विषन' बोले तो आकाश दर्शन करने के लिए तीन टेलिस्कोप का इंतज़ाम किया गया था.जो हमारे कॉलेज और एमबीबीएस कॉलेज के कॅंप के बीच मे सिचुयेटेड था.हम लोग'स्काइ विषन' के लिए थोड़ा लेट पहुँचे थे इसलिए वहाँ उतनी भीड़ नही थी जितनी भीड़ होने की मैं कल्पना की थी क्यूंकी बहुत से लोग या फिर कहे कि आधे से अधिक लोग आकाश दर्शन करके इधर-उधर घूम रहे थे...
"लास्ट वाला टेलिस्कोप एक दम खाली है,चल उसपर चलते है..."उबाई मारते हुए सौरभ ने कहा"साला अभी से नींद आने लगी जबकि खाना तक नही खाया अभी तो..."
"लास्ट वाले टेलिस्कोप पे नही ,पहले वाले पर चलो..."एश को सबसे पहले वाले टेलिस्कोप के पास देखकर मैने कहा....
"तू ऐसा इसलिए बोल रहा है ताकि तू एश से मिल सके,उससे बात कर सके...चोदु समझ रखा है क्या..."
"अबे ऐसी बात नही है, बाकी के दोनो टेलिस्कोप खराब है ,इसीलिए वहाँ कोई नही है...."झूठ बोलते हुए मैं आगे बोला"और तुम लोग ऑलरेडी चोदु हो,इसमे समझने का सवाल कहाँ से आ टपका..."
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यदि कोई मुझसे पुच्छे कि मैने आज तक किसे सबसे अधिक बार उल्लू बनाया है तो मेरा जवाब होगा-1.अरुण 2.सौरभ....और इन दोनो को उल्लू बनाने की संख्या मे +1 अभी-अभी हुआ था..
उस समय मुझे ये नही मालूम था कि बाकी के दोनो टेलिस्कोप खराब है या सही...लेकिन एश के पास जाने के लिए मैने ऐसे ही कह दिया कि बाकी के दोनो टेलिस्कोप खराब पड़े है और उन दोनो ने मान भी लिया कितना महान हूँ मैं
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"दिव्या...मैने मंगल ग्रह देख लिया...जल्दी आ..."एश एक दम से चीखते हुए ऐसे बोली ,जैसे उसने मंगल ग्रह नही बल्कि किसी नये ग्रह की खोज कर दी हो.एश की इस हरक़त से उसकी तरफ बढ़ते हुए मेरे कदम एक पल के लिए वही रुक गये.एश ने एक और बार दिव्या को आवाज़ दी लेकिन दिव्या वहाँ नही थी,जिसके बाद एश थोड़ी सी उदास हुई और वापस टेलिस्कोप के अंदर अपनी नज़रें घुसाने लगी....
"ज़रा हट तो, मैं भी देखु मंगल ग्रह..."मैने कहा.
मेरी आवाज़ सुनकर एश ने शुरू मे कोई रियेक्शन नही किया लेकिन जब मैने अपना गोलडेन वर्ड 'बिल्ली' उसके लिए इस्तेमाल किया तो वो एक झटके मे खड़ी हो गयी और अगले ही पल थोड़ा पीछे हट गयी....
"रिलॅक्स हो जा बिल्ली,इतना कूद क्यूँ रही है..."टेलिस्कोप से स्काइ विषन करते हुए मैने एश से पुछा"तुझे कहाँ से मंगल ग्रह दिख गया,मुझे तो नही दिख रहा..."
और जैसे की मुझे उम्मीद थी एश ने आगे कुच्छ नही कहा और अपने गाल,नाक गुस्से से फुलाकर जहाँ पहले खड़ी थी,वही खड़ी रही....
"ये आजकल कैसे-कैसे लोग इंजिनियरिंग करने आ जाते है, कुच्छ मालूम होता नही है..."एश को टारगेट करते हुए मैने अरुण से कहा"तुझे पता है अरुण ,ऐसे ही स्टूडेंट्स की वजह से इंजिनीयर्स की वॅल्यू गिरती जा रही है..."
जवाब मे अरुण और सौरभ ने वही किया ,जो कि वो दोनो हमेशा करते थे. अरुण और सौरभ,दोनो खिलखिला कर हंस पड़े.
"मुझे मेरा लेवल मालूम है और हर सेमेस्टर मे तुमसे ज़्यादा मार्क्स आते है..."मुझपर अपना पूरा गुस्सा निकालते हुए एश चीख पड़ी और आसमान मे एक तरफ एक चमकते तारे(स्टार) को इंडिकेट करते हुए बोली"आँखे फाड़ कर उस लाल तारे को देखो...वही है मंगल ग्रह..."
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एश की इस बचकानी गुस्से भरी हरक़त पर दिल किया कि सीधे उसे अपने सीने से चिपका लूँ लेकिन फिर बाद मे होने वाली आफ़त को भाँपकर मैने ऐसा नही किया और चुप-चाप टेलिस्कोप से उस टिमटिमाते रेड स्टार को देखने लगा ,जिसे एश मंगल ग्रह बता रही थी.
मुझे नही मालूम था कि वो चमकता हुआ लाल तारा ,सच मे मंगल ग्रह ही है या कुच्छ और.लेकिन मुझे एश के विपरीत बोलना था ताकि वो मुझसे लड़ाई और झगड़ा करे....
"वो मंगल ग्रह नही है, तू कुच्छ भी मुँह उठा कर मत बोल दिया कर बिल्ली...क्लास 6 मे मैने पढ़ा था कि ग्रह टिमटिमाते नही..."
"वो मंगल ग्रह ही है,चाहे किसी से भी पुच्छ लो तुम बिलाव, क्यूंकी आसमान मे लाल तारा दिखा मतलब वो मंगल ग्रह है..."
"जिस तरह हर सफेद लिक्विड दूध नही होता..."मैं बोल रहा था कि अरुण मेरे कान मे बोला"कुच्छ स्पर्म भी होता है "
"जिस तरह हर पीली चीज़ सोना नही होती.."अरुण को इग्नोर करके मैने आगे बोलने की कोशिश की ही थी कि वो फिर मेरे कान मे बोल पड़ा"कुच्छ पीली चीज़ ह्यूमन शिट भी होती है..."
"जिस तरह इंजिनियरिंग कॉलेज मे पढ़ने वाला हर लड़का अरमान नही होता..."तीसरी बार अरुण को इग्नोर मारकर मैने अपना डाइलॉग पूरा करना चाहा लेकिन इस बार भी अरुण बाज नही आया और बीच मे ही बोल पड़ा"कुच्छ लड़के गौतम जैसे चोदु भी होते है..."
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अरुण के इस बार-बार इंटर्फियर करने वाली हरक़तो से जब मैं तंग आ गया तो मैं अरुण की तरफ पलटा...
"या तो तू बोल दे या मुझे बोलने दे..."
"तू ही बोल..."
"तो अब चुप रहना..."वापस एश की तरफ अपना चेहरा करके मैं बोला"तो मैं क्या बोल रहा था कि...जिस तरह हर वाइट लिक्विड दूध नही होता,जिस तरह हर पीली चीज़ सोना नही होती,जिस तरह इंजिनियरिंग कॉलेज मे पढ़ने वाला हर लड़का अरमान नही होता....उसी तरह आसमान मे दिखने वाला हर लाल तारा मंगल ग्रह नही होता....समझी..."
"लेकिन ये मंगल ग्रह ही है,आइ नो..."
"बहुत जानती है तू बिल्ली..हुह.तुझे शायद पता नही कि नासा वाले हर प्रोग्राम के पहले मेरी अड्वाइज़ लेते है और तू मुझे ही ग़लत साबित करने पे तुली है..."
"कुच्छ भी मैं जा रही हूँ ."वहाँ से खिसकते हुए एश बोली...
"तो जाना,कौनसा तुझे मैने यहाँ रुकने के लिए कहा है..."
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एश के जाने के बाद हम तीनो ने टेलिस्कोप से स्काइ विषन किया और तभी मैं आंजेलीना को उनके कॅंप की तरफ एक पत्थर पर बैठे हुए देखा....वो अकेली उस बड़े से पत्थर पर बैठकर रहस्यमयी नज़र से मुझे देख रही थी....उसका इस तरह से मुझे देखने से मैं थोड़ा डरा लेकिन फिर'एक लड़की मेरा क्या उखाड़ लेगी' ये सोचकर मैं उसकी तरफ बढ़ा......
"कॉफी हाउस का खाना कैसा लगा "आंजेलीना के पास पहूचकर मुस्कुराते हुए मैने उससे पुछा..
उन दिनो आंजेलीना को यूँ शांत देखकर मुझे लड़कियो के बारे मे एक और बात चली जो ये थी कि वो कभी अपनी हार स्वीकार नही कर सकती और ख़ासकर के लड़को के हाथो मिली हर उनके पूरे अस्तित्व को हिला कर रख देती है....मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकी अभी तक मैने जिस आंजेलीना को देखा था ,जिसके दिमाग़ के सामने मेरा दिमाग़ दो बार पानी पी चुका था...वो इस समय किसी घुटन मे थी.उसकी आँखे उदास थी और किसी गहरी सोच मे डूबी हुई थी....
मैं आंजेलीना को दो-तीन बार 'हाई..हेलो' बोल चुका था लेकिन वो मेरे 'ही...हेलो' का जवाब दिए बिना मुझे ऐसे घूर रही थी..जैसे अपने शिकार को अपने सामने देख शिकारी घूरता है....वो शायद मुझे ताड़ रही थी और सोच रही थी कि कैसे वो मुझे हराए पर सिल्वा डार्लिंग को ये नही मालूम था कि अपुन भी इन सब खेलो मे कोई नौसीखिया नही था
"लगता है ,इसने वो इन्सिडेंट अपने दिल पे ले लिया..."गुस्से से लाल होते हुए आंजेलीना के फेस को देखकर मैने सोचा"आइ लव यू बोल दे,माँ कसम 6000 वापस करूँगा..."
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जब आंजेलीना की पोटेन्षियल एनर्जी मे कुच्छ देर बाद भी कोई परिवर्तन नही हुआ तो मैने वहाँ से जाना ही बेहतर समझा क्यूंकी अभी तक आंजेलीना कॉफी हाउस मे पे किए गये अपने पैसो का शोक मना रही थी, वहाँ से मैं चुप चाप चला जाना चाहता था लेकिन तभी मेरे अंदर ना जाने क्या खुजली हुई जो मैं आंजेलीना की तरफ वापस पलटकर बड़े ही अभिमान और गर्व से बोला...
"हमे अपनी हार स्वीकार करनी चाहिए और ये मान लेना चाहिए कि सामने वाला हमसे बेहतर था...."
"ऐसा नही है अरमान ! ,कभी-कभी लंगूर के हाथ मे भी अंगूर लग जाता है..."मेरे लिए ज़हर उगलते हुए आंजेलीना बोली और बनावटी मुस्कान की एक परत अपने होंठो पर ले आई....
"सही कहा...कभी-कभी लंगूर के हाथ मे भी अंगूर लग जाता है ,जैसे कि तुम्हारे हाथ शुरू मे दो बार लगा था...."मैने भी अपने अंदर का ज़हर निकाला और सीधे फेक-कर उसके मुँह मे दे मारा...'साली मुझसे डाइलॉग-बाज़ी करती है '
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आंजेलीना जिस पत्थर पर अभी तक अपनी पोटेन्षियल एनर्जी ,कॉन्स्टेंट किए हुए बैठी थी ,उस पत्थर से उठकर वो खड़ी हो गयी और तुरंत पीछे मुड़कर अपने कॉलेज के लड़को को आवाज़ लगाई....
"तुम लोगो ने कहा था कि अरमान नाम के एक लड़के से तुम लोगो की बहस हुई थी...ये रहा वो..."
आंजेलीना की इस हरकत ने मुझे जबर्जस्त झटका दिया क्यूंकी मैने एमबीबीएस कॉलेज वालो की तरफ आते हुए एक सेकेंड भी ये नही सोचा था कि ऐसा भी कुच्छ हो सकता है....
हमारे कॉलेज का कॅंप जिस जगह मैं अभी खड़ा था वहाँ से कोई 20-22 मीटर की दूरी पर था और इस समय मेरे पास दो रास्ते थे .पहला ये कि मैं अपनी पूरी ताक़त लगाकर वहाँ से अपने कॅंप की तरफ भाग जाउ और दूसरा ये कि मैं वही खड़ा रहकर अपने कॉलेज के लौन्डो को आवाज़ दूं...मेरे पास जो दो रास्ते थे उनमे से पहले वाला तरीका अपनाने पर मेरी बेज़्जती होती बोले तो एक ऐसा लड़का जो कुच्छ घंटो पहले जिन लड़को के सामने गोली ,चाकू की बात कर रहा था वो अब अकेला होने पर डर के मारे भाग रहा था और दूसरा तरीका अपनाने पर मेरी सॉलिड बेज़्जती होती ,क्यूंकी मेरे दूसरे तरीके के अनुसार मुझे अपने कॉलेज के लड़को को आवाज़ देना था और जब तक मेरे लौन्डे वहाँ पहुचते तब तक मुझे एक दो हाथ पड़ सकते थे और ये एक-दो हाथ मुझे और मेरे फॅन के दिल मे तलवार की तरह चुभते ...इसलिए मेरा दूसरा रास्ता भी फ्लॉप था....
जब दोनो रस्तो मे से मुझे कोई भी पसंद नही आया तो मैने तुरंत तीसरा रास्ता बनाते हुए आंजेलीना से कहा....
"मैं तो यहाँ तुम्हारे पैसे लौटने आया था...."
"क्या "आंजेलीना की खुशी का ठिकाना ना रहा...
"ये मेरी जेब मे रुपयो की गड्डि देखकर अंदाज़ा लगा सकती हो..."पॅंट मे पड़े मोबाइल को रुपयो की गड्डी बताकर मैने आंजेलीना पर जाल फेका...
"सच..."मुझे पकड़ कर मेरे कॅंप की तरफ लाते हुए आंजेलीना बोली"तो ये बात पहले बतानी चाहिए था ना..."
"इतनी देर से तो यही बोलना चाह रहा था मैं...खैर छोड़ो ,और अपने रुपये लो..."बोलते हुए मैने अपने जेब मे हाथ डाला....
आंजेलीना की आँखे ,जेब मे मेरे हाथ जाने से तुरंत चमक उठी,लेकिन फिर मैं आंजेलीना से बोला"तुम्हारे कॉलेज के स्टूडेंट्स की नज़र हम दोनो पर है और यदि उन सबने मुझे ,तुम्हे हज़ार-हज़ार के नोट देते हुए देखा तो ग़लत समझेंगे ,मेरे ख़याल से तुम समझ गयी होगी कि मैं क्या कहना चाहता हूँ..."
"ओके...ओके, यहाँ से थोड़ा दूर चलते है..."
"हां,ये सही रहेगा..."बोलते हुए मैने खुद को शाबासी दी....
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मैं और आंजेलीना अब मेरे कॅंप की तरफ बढ़ रहे थे और जब हम दोनो मेरे कॉलेज के कॅंप के सामने पहुच गये तो आंजेलीना के दिमाग़ की बत्ती जली,लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी....
"ये तो मोबाइल लग रहा है..."मेरे पॅंट की जेब को बाहर से दबाते हुए आंजेलीना गुर्राते हुए बोली...
"जानेमन,..आराम से.इधर-उधर हाथ मार रही हो,आख़िर इरादा क्या है.."
"ओह गॉड !"मैं आंजेलीना को सब कुच्छ समझाता उससे पहले ही वो सब कुच्छ समझ गयी और मेरी आँखो मे अपनी आँखे गढ़ाते हुए बोली"यू फूल्ड मी अगेन..."
"अभी नयी हो इसलिए ऐसा झटका लग रहा है,बाद मे आदत हो जाएगी...डॉन'ट वरी."अपनी जीत पर मैं बोला"अब तुम जाओ और मुझे हराने के लिए अपना फ्लॉप प्लान बनाओ..."
"कल देख लूँगी तुम्हे..."चुटकी बजाते हुए उसने मुझे चॅलेंज दिया.
"अपने मोबाइल से मेरी फोटो ले लो और रात भर देखते रहना..."
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आंजेलीना को वहाँ से विदा कर मैं पीछे पलटा तो मेरी मंडली सैकड़ो सवाल लिए मेरा इंतज़ार कर रही थी....
"हिसाब बराबर हो गया बे...चलो पापा बोलो सब मुझे..."
"यार,भाई,मेरे दोस्त,मेरे जिगर के टुकड़े...इसकी दिला दे ना एक बार..."आंजेलीना के बॅक साइड पर आँख गढ़ाए हुए अरुण ने लार टपकाया.
"साले,भाभी है तेरी...कुच्छ तो शरम कर झाटु "
यहाँ आने से पहले हम सबने ये सोच रखा था कि हम लोग किसी आदि मानव की तरह संघर्ष करेंगे और अपना पेट भरने के लिए खुद खाना बनाएँगे....लेकिन 'स्काइ विषन' के कार्यक्रम के बाद हमारे वॉर्डन ने हमे ये कहकर सर्प्राइज़ दिया कि हमारे खाने का इंतज़ाम, यहाँ की मॅनेज्मेंट के द्वारा ऑलरेडी किया जा चुका है....जिसमे हमारे कॉलेज के स्टूडेंट्स तो शामिल होंगे ही साथ मे वहाँ कॅमपिंग का लुत्फ़ उठा रहे एमबीबीएस कॉलेज के स्टूडेंट्स भी इन्वाइटेड थे...और आख़िर हो भी क्यूँ ना, हमारी तरह पैसे तो उन्होने भी दिए थे.
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