RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
"बाहर निकल साली..."
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उस समय मुझे पता नही क्या हो गया था जो मैं इतने सारे लोगो के बीच ऐसी हरकते कर रहा था..,रह-रह कर मुझे सिर्फ़ वो पल याद आता,जब दिव्या के बाप की वजह से मैं तीन महीने तक हॉस्पिटल मे रहा था.....
"मुझे मार, ज़्यादा दम आ गया है तुझमे...ले मार मुझे."हमारे हॉस्टिल का वॉर्डन सीधे मेरे सामने खड़ा होकर ज़ोर से चीखा"गुंडा गर्दि करने आया है तू यहाँ..."
वॉर्डन को सामने देखकर मैं रुक गया और आस-पास देखा तो पाया कि ना सिर्फ़ मेरे कॉलेज वाले,बल्कि एमबीबीएस कॉलेज के भी स्टूडेंट्स , इस हंगामे से वहाँ आ चुके थे....और तब जाकर मुझे होश आया.
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"सॉरी..."वॉर्डन को बोलकर मैं अपने कॅंप की तरफ मुड़ा....लेकिन एमबीबीएस कॉलेज के कुच्छ लड़को की हँसी की गूँज ने मेरे खून को फिर से गरम करने का काम कर दिया"क्या है बे, यहाँ कोई सर्कस चल रहा है क्या...सीधे से निकल लो बेटा वरना सारी हँसी निकाल दूँगा..."
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मेरे दोस्त मुझे पकड़ कर कॅंप के अंदर लाए.जिसके बाद गर्ल्स हॉस्टिल की केर्टेकर और हमारे वॉर्डन ने मुझे खूब सुनाया और मेरे घर का नंबर माँगा....मैने अपने घर का नंबर देने से सॉफ मना कर दिया जिसके बाद वॉर्डन ने मुझे बहुत सारी धमकिया दी और पनिशमेंट के तौर पर नीचे ,जहाँ सब खाना खाने जा रहे थे...वहाँ मेरे जाने पर बॅन लगा दिया....जब वॉर्डन वहाँ से चले गये तो मेरे दोस्त अंदर आए...बहुत देर तक तो हम मे से कोई कुच्छ नही बोला लेकिन फिर कुच्छ देर बाद मेरे सारे दोस्त अचानक हँसने लगे.....
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"क्या हुआ..."
"कुच्छ नही...लवडा क्या चोदुपना किया है आज तुम दोनो ने...ज़िंदगी भर याद रहेगा "
"म्सी,भूख लगी है...कुच्छ जुगाड़ है क्या."उन सबकी तरफ देखकर मैने पुछा...
"बेटा तेरे चक्कर मे ,हमे भी नीचे नही जाने दिया गया..."
"ऐसा क्यूँ..."
"वॉर्डन बोला कि ,सबके लिए पनिशमेंट है...और तो और उसने दिव्या,एश और मेघा को भी नीचे नही जाने दिया..."
"अरे गजब... "एक दम से खड़ा होते हुए मैं बोला"एश को पटाने का एक सॉलिड आइडिया आएला है बीड़ू...चल जल्दी..."
"कहाँ..."
"नीचे...खाना खाकर आते है..."
"इसके पहले मैं क्या एलीयेन्स की लॅंग्वेज मे बोला क्या कि...वॉर्डन ने नीचे जाने के लिए मना किया है..."
"वॉर्डन के माँ की फिल इन दा ब्लॅंक्स....भागकर चलते है..."
'गर्ल' जिसे हिन्दी मे लड़की ,गुजराती मे 'छोकरि' ,मराठी मे 'मुलगी' और हम जैसे नौजवान 'आइटम' या 'माल ' कहते है...ये बड़ी ही कश -मकश पैदा करने वाली प्रजाति है...लड़किया उलझन मे बहुत डालती है...जैसे किसी लड़की ने एक-दो बार किसी लड़के को देख क्या लिया बंदा ज़िंदगी भर इसी उलझन मे रहता है कि वो मुझे लाइन दे रही थी या सिर्फ़ ऐसे ही मज़े लूट रही थी...लड़किया इतना उलझन पैदा करती है कि एक-दो बार भगवान भी कन्फ्यूषन हो जाता होगा कि इसे नीचे भेजू या यही अपने पास रख लूँ
और हम जैसे लौन्डो का तो पुछो ही मत...जिस बंदे ने एक लड़की क्या पटा ली साला बिहेव ऐसे करता है जैसे पूरी दुनिया जीत ली हो. उसका खाना-पीना, नहाना-धोना ,सब कुच्छ एक लड़की के चक्कर मे शटडाउन हो जाता है.....अब हमी लोग को देख लो...मैं यहाँ नीचे इसलिए नही आया था कि मुझे भूख लगी थी बल्कि इसलिए ताकि मैं लड़किया ताड़ सकूँ....मेरे दोस्त जो नीचे आते समय हर-कदम मुझे वॉर्डन का डर दे रहे थे...वो भी इस समय मेरे साथ नीचे इसलिए थे ताकि वो लड़कियो को देख सके. बोले तो 'नयंदर्शन' या 'नयनसुख'.
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"मैं सोच रहा था कि उन तीनो के लिए भी खाना वगेरह पॅक कर के ले जाते है..."एक प्लेट उठाते हुए मैने कहा और पेलम-पेल सलाद प्लेट मे भर लिया.
"कौन तीनो..."आगे-पीछे नज़र मारकर सौरभ ने भी पेलम-पेल सलाद भर लिया और बोला"हम सब तो है यहाँ...."
"अबे,हम लोग यदि मार रहे हो और इससे एक ग्लास पानी की फरियाद करे ,तब भी ये हमे एक ग्लास पानी लाकर नही देगा और बोलेगा कि'लवडे,उपर जाकर डाइरेक्ट जलपान करना'....ऐसा लौंडा है ये..."मेरे और सौरभ की तरह अरुण ने भी रेलम-पेल सलाद अपनी प्लेट मे भरा और कहा"ये तो उन तीनो के लिए है..जिन्हे वॉर्डन ने नीचे आने के लिए माना किया है..."
"वो तीनो... "अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालते हुए सौरभ ने पुछा"कहीं तू,दिव्या...एश और मेघा की बात तो नही कर रहा..."
"एक दम सही जवाब..."
"सच "मेरी तरफ आँखे फाड़-फाड़ कर देखते हुए सौरभ ने चम्मच उठाया और अपने प्लेट मे रखते हुए बोला"तू लड़कियो के सामने कब से हार मानने लगा,अब ये मत बोल देना कि तुझे अपनी ग़लती का अहसास हो गया है और तू अब उसे सॉरी बोलने जा रहा है...."
"अरे लवडे,सॉरी तो हमने तब भी नही बोला जब ग़लती हमारी थी...तो अब क्या बोलूँगा..."
"ये...यही जुनून अंत तक बनाए रखना और चाहे जो हो जाए लंड को चूत के सामने झुकने मत देना क्यूंकी लंड कट सकता है लेकिन झुक नही सकता "
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बातो ही बातो मे जब सौरभ ने मेघा का नाम लिया तो मेघा के नये-नवेले आशिक़ सुलभ को बेचैनी हुई और उसने हम तीनो के बीच मे अपना सर घुसेड कर जो डिस्कशन चल रहा था...उसका टॉपिक पुछा....
"कुच्छ खास नही,बस सोच रहा था कि उन तीनो के लिए खाना पॅक करके ले जाएँ..."
"सच "
"यस, और तू ही वो लौंडा है जो तीनो के लिए डिन्नर पॅक करेगा..."
"घंटा,इस पूरी भीड़ मे तुझे एक अकेला मैं ही दिखा जो ये काम करूँगा...बेटा ये बड़े शहर की बड़ी पार्टी है ना कि तेरे गाँव की शादी ,जहाँ पूरे खानदान के लिए खाना पॅक करवा लिया जाएगा...यहाँ तो साला ये भी सॉफ नही है कि मुझे खाना मिलेगा या नही...और एक बात पुच्छू तुम तीनो ने ये जनवरो की तरह सलाद क्यूँ भर लिया है..."
"बेटा, वो एमबीबीएस वेल भूक्खड़ो की भीड़ देख और उस भीड़ को देखकर मेरा 1400 ग्राम का दिमाग़ कहता है कि अच्छी तरह से प्लेट भरने मे कम से कम 10-15 मिनिट तो लगेंगे ही..."
"तो.."
"तो तब तक हम लोग सलाद खाकर टाइम पास करेंगे..."
"सही है..."कहते हुए सुलभ ने भी अपनी प्लेट मे पेलम-पेल सलाद भर लिया.
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जब सब मेरे खाना पॅक करवाने वाले प्लान से सहमत हो गये तो एक नयी समस्या पैदा हुई और वो समस्या ये थी कि उन तीनो के लिए डिन्नर कौन पॅक करवाएगा...क्यूंकी ऐसी पार्टी ,जहाँ इतने सारे लोग हो वहाँ अपने हाथ मे प्लास्टिक लेकर खड़े रहना ,मतलब अपनी रेप्युटेशन को खुले बाज़ार मे कौड़ियो के दाम मे बेचना था और ये काम सिर्फ़ एक शक्स कर सकता था और वो थे हमारे राजश्री प्रॉडक्ट के ब्रांड अंबासडर श्री-श्री 1008 पांडे जी.....
"क्या अरमान भाई...अपुन की भी कोई इज़्ज़त है...काहे को अपुन की ऐसी-तैसी करने पर तुले हो..."
"ये काम कर दे ,10 राजश्री मेरी तरफ से फ्री..."
"रहने दो,मैने राजश्री खाना छोड़ दिया..."
"फिर एक पॅकेट गुदंग-गरम सिगरेट..."
"अपुन सिगरेट भी छोड़ देगा अरमान भाई...पर अपुन की लंगोट मत उतारो..."
"चल,फिर एक बोतल पव्वा...अब बोल "
"दारू भी छोड़ दूँगा मैं आज से..."
"तेरी तो...तू बेटा कॉलेज मे मिल.फिर तेरी इज़्ज़त वहाँ ठीक ढंग से सवारूँगा..."जब मेरे सारे लालच राजश्री पांडे पर बेअसर हो गये तो मैने उसे धमकी देने का रास्ता अपनाया आंड ऐज ऑल्वेज़ राजश्री पांडे मान गया...,पता नही क्यूँ साला मेरी धमकी से इतना डरता था....
"ठीक है अरमान भाई,जैसा आप बोलो...लेकिन ये आप ठीक नही कर रहे मेरे साथ "
"दिल पे मत ले...."राजश्री पांडे का पीठ थपथपाते हुए मैने अपने जेब से कयि सारी प्लासटिक्स निकाल कर जल्दी से उसके जेब मे डाल दी और बोला"मुँह मे ले.."
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राजश्री को उसका काम सौंप कर हमने उसे खुद से दूर किया और सलाद खाते-खाते अपनी प्लेट भरने लगे....
"मैं कोफ्ता और भिंडी लेकर अभी आया...."बोलकर सौरभ वहाँ से आगे बढ़ गया और नवीन,सुलभ पहले ही साथ छोड़ चुके थे...
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"आज देखा दिव्या कैसे उड़ रही थी ,अच्छे से बैठाया है उसको,अब कुच्छ दिन मेरे सामने अपनी ज़ुबान खोलने से पहले 3 लाख किलोमीटर/सेक. की स्पीड से सोचेगी कि कुच्छ बोलू या नही..."
"अब तू अपनी तारीफ करना शुरू मत हो जाना...."
"अबे नही..मैं तो तुझसे ये कहना चाहता हूँ कि इन लड़कियो मे दिमाग़ की जगह गोबर भरा पड़ा है..कुच्छ सोचती-समझती नही बस को-को चिल्लाती रहती है...दिव्या को ही देख ले, उसे क्या ज़रूरत थी बीच मे बोलने की ? लेकिन नही उसे तो मुझसे पंगा लेना था ,कर दिया ना नंगा...अब तू उस एमबीबीएस वाली को ही ले ले, दो बार मुझे उल्लू क्या बनाया ,खुद को अरमान से बड़ी समझने लगी...उसे भी ढंग से बत्ती दिया और ऐसा बत्ती दिया है की ज़िंदगी भर 'अरमान' शब्द सुनकर उसके दिमाग़ की बत्ती गुल हो जाएगी..."
"काफ़ी ग़लतफहमी पाल रखी है तुमने अपने अंदर...ज़मीन पर रहना सीखो वरना एक पल ऐसा आएगा जब पटल के भी नही रहोगे..."एक सेक्सी आवाज़ ने मेरा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया और जब मेरी आँखे उस सेक्सी आवाज़ की मालकिन पर पड़ी तो आँखे जैसी उस पर जम कर रह गयी...
"आंजेलीना...ये इतना सब कुच्छ हो जाने के बाद भी मुझसे मुस्कुरा कर बात कर रही...ज़रूर ये किसी प्लान के साथ आई होगी,निकल ले बेटा..."मैने खुद से कहा और एक प्रोफेशनल मुस्कान अपने होंठो पर ले आया...जबकि आंजेलीना को देखते ही मैं थोड़ा घबरा गया था क्यूंकी वो इस समय एक घायल शेरनी की तरह थी...जो बस उस एक मौके की तलाश मे थी जिसके कारण वो मुझे,हम दोनो के बीच चल रहे माइंड-गेम मे पराजित कर सके...इस समय मैं आंजेलीना डार्लिंग से उलझना नही चाहता था...इसलिए वहाँ से भाग जाना ही बेहतर समझा...
जंग के मैदान मे बिना लड़े भागने का मेरा अपना एक अलग ही स्टाइल है,जो हमेशा ही कारगर साबित होता है और वो स्टाइल ये है"डर के कारण जंग के मैदान को भी इस तरह छोड़ो की सामने वाले को ये महसूस हो कि आप वहाँ से भाग कर उसपर बहुत बड़ा अहसान कर रहे हो...' इसके दो फ़ायदे है-पहले ये कि इस तरह से आपकी इज़्ज़त भी बच जाती है और दूसरा ये की सामने वाली की इज़्ज़त थूक जाती है.....
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"मीट माइ फ्रेंड..."एक लड़के की कमर पर हाथ रखकर आंजेलीना बोली"इसका नाम..."
"ये कोई जॉनी डेप या रॉबर्ट डाउनी इक. है क्या,जो मैं इससे मिलू....जाओ पहले मुझसे मिलने का अपायंटमेंट मेरे सेक्रेटरी से लेकर आओ..."वहाँ से खिसकते हुए मैने कहा"चल बे अरुण, कोफ्ते के काउंटर पर भीड़ कम हो गयी है.."
आंजेलीना डार्लिंग से पीछा छुड़ाकर हम लोग एक तरफ खड़े हो गये और अपने मासूम से पेट को भरने लगे...मैं और मेरे दोस्त वॉर्डन के मना करने के बावजूद नीचे आ गये है,इसकी खबर किसी ने वॉर्डन को दे दी और हाथ मे खाने की प्लेट लिए वॉर्डन हमारे पास आया....
"तुम लोगो को मना किया था यहाँ आने के लिए..."अपने दाँत चबाकर उसने हम सबको बत्ती दी और सामने से गुजरने वाले एक शक्स को बड़े ही शालीनता से बोला"हेलो, आप कैसे है..."
जब वो शक्स गुजर गया तो वॉर्डन फिर हमारी तरफ मुड़ा और हमे गालियाँ बकना शुरू कर दिया...वो भी बड़े प्यार और दुलार से, क्यूंकी हर वक़्त-बेवक़्त कोई ना कोई वहाँ से गुज़रता जिसके कारण वॉर्डन हम पर अपना गला नही फाड़ पा रहा था...एक तरफ वॉर्डन हमे हंस-हंस कर बत्ती दे रहा था तो वही हम लोग हंस-हंस कर बत्ती ले रहे थे......
"तुम लोग उपर मिलो ,फिर बताता हूँ तुम्हे.."वॉर्डन ने एक बार फिर अपना दाँत चबाए लेकिन दूसरे पल सामने से गुजर रही एक औरत को देखकर मुस्कुराते हुए बोला"कैसी है आप,डिन्नर हो गया आपका..."
"यस...यस....यस"तीन बार 'यस' बोलकर वो औरत चलती बनी और हम लोग भी मौका देखकर उसी वक़्त वहाँ से खिसक लिए....
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"पांडे जी को गुटखे का पॅकेट दो कोई,इन्होने हमारा काम जो किया है..."पहाड़ी पर उपर चढ़ते हुए मैने कहा...
"रहने दो अरमान भाई, आज सबके सामने मेरी इज़्ज़त मे जितने होल हुए है ना ,उसके बाद गुटखा,दारू सब कुच्छ भूल सा गया हूँ...दिमाग़ मे बार-बार बस वही सीन आ जाता है जब वहाँ मौजूद लोग मुझपर हंस रहे थे..."
"मर्द बन बे लवडे "पांडे जी की पीठ ज़ोर-ज़ोर से थपथपाते हुए सौरभ बोला"नाम बता उनका जिन्होने तुझपर हंसा...अभी सालो का मुँह उनके गान्ड मे घुसा कर आता हूँ..."
"मालूम नही ,कौन-कौन हंस रहा था...मैं तो बस अपना सर झुकाए खड़ा था वहाँ..."
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