RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
मेरी बेरूख़ी और दीपिका मॅम को देखने की वरुण की चाह काम कर गयी....मैं अभी थोड़ी ही दूर आगे आया था कि वरुण ने कार आगे बढ़ा कर मेरे बगल मे रोक दी...
"अब जा ना लवडे,अपना आर्टिकल पूरा कर...यहाँ क्या मरवाने आया है..."वरुण को धिक्कार्ते हुए मैने अपना सीना ताना और बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ा"जब मोबाइल नही था तब भी लौन्डे ,लौन्डियो से मिलने जाते थे...जब उन्हे कोई डर नही था तो फिर मुझे काहे का दर...दाई चोद दूँगा निशा के बाप की यदि साला बीच मे आया तो..."
"ओये रुक...."
"चूस..."
"अरमान रुक बे..."
"मन तो नही है तेरा मोबाइल लेने का लेकिन जब तू मुझसे इतनी मिन्नतें कर ही रहा है तो...ला दे मोबाइल,तू भी क्या याद रखेगा कि किस महान पुरुष से पाला पड़ा था..."
"मैने कब कहा कि मैं तुझे मोबाइल देने के लिए रोक रहा हूँ...और साले मैने मिन्नत कब की तेरे सामने...."कार से निकल कर वरुण मुझे धक्का देते हुए बोला....
"बेटा,मैं आसमान मे उड़ती हुई चिड़िया को देखकर ये बता सकता हूँ कि वो अब किस तरफ मुडेगी...फिर तू चीज़ ही क्या है...और यदि तुझे मुझे मोबाइल नही देना होता तो ,मोबाइल तेरे जेब मे होता ना कि तेरे हाथ मे..."
मेरे इस वर्ड वॉर से वरुण ने अपना मोबाइल वाला हाथ पीछे करते मुझसे कहा कि उसने मोबाइल टाइम देखने के लिए निकाला था....
"ये ले...इसका मतलब तो यही हुआ कि तू न्यूटन को ग्रॅविटी और आइनस्टाइन महोदय को रेलेटिविटी पढ़ा रहा है,वो भी कॉमर्स का होकर....तेरे हाथ मे बँधी घड़ी क्या खराब हो गयी है जो तूने टाइम देखने के लिए मोबाइल निकालने का कष्ट किया....अब सीधे से मोबाइल मुझे दे और यहाँ से चलता बन...बोर मत कर..."
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इसके बाद वरुण की और कुच्छ बोलने की हिम्मत नही हुई, वो मेरे द्वारा अपनी इस घोर बेज़्जती पर गुस्सा तो बहुत था...लेकिन वो अब जान गया था कि आगे कुच्छ बोलने का मतलब ,खुद की और भी बेज़्जती कराना था...इसलिए वरुण अपने सारे गुस्से को दारू की तरह पी गया और चुप चाप मोबाइल मुझे देकर कार के अंदर गया, कार स्टार्ट की और स्लोली-स्लोली वहाँ से जाने लगा.....तभिच मैने सोचा कि जब लपेटे मे इसे ले ही लिया है तो पूरा नंगा किया जाए...क्यूंकी क्या पता दोबारा ऐसा मौका कब आए, इसलिए मैने वरुण के अंदर की आग भड़काने के लिए ज़ोर से चिल्लाया....
"सुन बे, खाना बना कर रखना...वरना इस महीने की पगार नही दूँगा..."
मेरे इन शब्दो ने वरुण के तपते जिस्म मे घी का काम किया और वरुण तुरंत जल उठा...उसने अपनी कार रोकी और बाहर निकल कर दौड़ते हुए मेरे पास आया....
"गान्ड मे बॅमबू डालकर एक लाख आर.पी.एम. की स्पीड से घुमाउन्गा...."
"ऐसा क्या...ले फिर आर.पी.एम. का फुल फॉर्म बता ,बेटा इंजिनियर के साथ रहकर कोई इंजिनियर नही बन जाता...इंजिनियर बनने के लिए चार साल तक टापना पड़ता है,तब ये काबिलियत आती है...तेरे जैसा कॉमर्स सब्जेक्ट का लौंडा ये नही समझ सकता"बोलते ही मैं वहाँ से भाग खड़ा हुआ,क्यूंकी मुझे मालूम था कि यदि एक पल और मैं वहाँ खड़ा रहता तो मेरा मर्डर हो जाता....
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वरुण के पास से खिसकने के बाद मैं निशा के घर से थोड़ी दूर पर आकर रुक गया और नंबर. डाइयल किया.....
मैने कयि बार कोशिश की ,लेकिन निशा थी कि फोन उठाने का नाम ही नही ले रही थी,...
"इसकी तो...फिर इसे मोबाइल देने का फ़ायदा ही क्या हुआ,जब टाइम पे बात ही नही होनी है तो...."मोबाइल से बात करते हुए मैने कहा और कॉल लोग मे जाकर निशा के नंबर के नंबर पर मोबाइल की हरी बत्ती दबा दी....लेकिन नतीजा इस बार भी पहले वाला ही रहा...घंटी तो जा रही थी लेकिन मेरी घंटी(निशा ) कॉल रिसीव ही नही कर रही थी...इसके बाद मैने 5-6 बार और ट्राइ मारा और जब कोई कामयाबी नही मिली तो किसी थके -हारे हुए इंसान की तरह निशा के घर की तरफ देखा...तो मुझे निशा के घर के बाहर दो कार खड़ी दिखाई दी और जहाँ तक मैं जानता था ,वो दोनो कार मेरे ससुराल वालो की नही थी...यानी कि निशा के घर मे कोई बाहरी आदमी आया हुआ था और कार देखकर ही लग रहा था कि साला बहुत रहीस होगा.....
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अब जब ये क्लियर हो गया की निशा के घर मे कयि बाहरी लोग है तो दिमाग़ ने ये भी थियरी बना डाली कि निशा ,ज़रूर उन्ही लोगो के सामने होगी ,इसीलिए वो मेरा कॉल रिसीव नही कर रही है....लेकिन अब सवाल ये पैदा हुआ कि निशा के घर आया कौन है....
शुरू मे सोचा कि चलकर निशा के घर की रखवाली करने वाले गार्ड से बातो ही बातो मे पुच्छ लिया जाए,लेकिन फिर जब ढंग का कुच्छ नही सूझा तो मैने अपना इरादा टाल दिया....
"कही साला डेविड और उसकी फॅमिली तो नही आई है..."एका-एक मेरे 1400 ग्राम के भेजे मे ये ख़याल कौधा और फिर ये ख़याल बीत रहे हर सेकेंड्स के साथ प्रबल होता गया...
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निशा के घर के बाहर खड़ा मैं ,यही सोच रहा था कि यदि सच मे डेविड और उसके परिवार वाले ही अंदर होंगे तो फिर मुझे जल्द से जल्द कुच्छ सोचना पड़ेगा...वरना निशा हाथ से निकल जाएगी...
"हां बोल डायन...किस पर जादू टोना कर रही थी...जो मेरा फोन नही उठाया..."निशा ने कुच्छ समय बाद खुद मुझे कॉल किया ,तब मैं उसपर भड़कते हुए बोला"कहाँ है..."
"बाथरूम मे हूँ...बड़ी मुश्किल से कॉल कर पाई हूँ..."
"बाथरूम मे क्या कर रेली है ,ह्म्म"
"शट अप..."
"चल ठीक है,नही बताना तो मत बता ,वो तेरा पर्सनल मॅटर है...लेकिन ये बता कि अभी कौन आया हुआ है तेरे घर मे..."
"तुम्हे कैसे पता चला कि मेरे घर मे कोई आया हुआ है..."अचानक चौुक्ते हुए उसने अपनी आवाज़ तेज़ करके पुछा..
"बस ऐसे ही अंदाज़ा लगाया...क्या सच मे कोई आया है क्या..."
"हां...डेविड आया हुआ है और लंच के बाद वो मुझे शॉपिंग के लिए ले जाने वाला है...."
"डेविड....इसकी माँ का फिल इन दा ब्लॅंक्स...."फोन रखते हुए मैने आख़िरी लफ्ज़ निशा से कहे"विशिंग यू आ हॅपी मॅरीड लाइफ..."
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मैने मोबाइल गुस्से से जेब मे घुसाया और सीधे अपने रूम की तरफ बढ़ा....मुझे गुस्सा इसलिए आ रहा था क्यूंकी जिस खुशी के साथ निशा ने डेविड के उसके घर आने और उसके साथ शॉपिंग पर जाने की बात कही थी...उससे मुझे यकीन नही हो रहा था कि ये वही निशा है,जो कुच्छ दिन पहले डेविड का नाम लेकर परेशान हो रही थी....उसकी आवाज़ मे ज़रा सा भी रूखापन नही था यानी कि डेविड के आने से वो बहुत ज़्यादा खुश थी....ऐसा मैने सोचा, लेकिन हक़ीक़त कुच्छ और हो सकती थी,यदि निशा ने मेरे कॉल डिसकनेक्ट करने के बाद मुझे रिटर्न कॉल किया होता तो लेकिन उसने ऐसा नही किया....
मैं पूरे रास्ते भर निशा के रिटर्न कॉल का वेट करते हुए अपने रूम की तरफ बढ़ रहा था और अपने रूम पर भी पहुच गया,लेकिन अभी तक निशा ने एक भी रिटर्न कॉल नही की थी....
वक़्त को बदलते हुए सबने देखा होगा लेकिन कभी-कभी वक़्त नही इंसान बदल जाते है,उनकी चाह बदल जाती है,जीने की वजह बदल जाती है....और ये सीधे हमारे लेफ्ट साइड यानी की दिल पर हमले के बराबर होता है और जब आपके दिल के सबसे करीबी शक्स ऐसा करे तो मानो दिल पर किसी ने परमाणु हमला कर दिया हो.....ऐसा लगता है.
एक बार तो ये परमाणु हमला मैं झेल चुका था और आगे भी झेल सकता था....लेकिन ,साला अबकी बार चूतिया बनने का मूड नही है.
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रूम पर आया तो आज पिछले कुच्छ दिनो की तरह अरुण भी नही था ,जो गाली देकर पुच्छे कि 'कहाँ गया था लवडे...दारू लाया या ऐसे ही मुँह उठाकर आ गया ' .
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