Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
08-18-2019, 02:35 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
दूसरे दिन मैं कॉलेज तो पहुचा लेकिन थर्ड पीरियड मे और तब तक विभा की क्लास जा चुकी थी और ये क्लास उसकी आख़िरी क्लास थी....जब कॉलेज पहुचा तो दोस्तो ने बताया कि आज विभा मॅम की क्लास मे कोई पढ़ाई नही हुई...वो लोग पूरे एक घंटे विभा मॅम से सिर्फ़ हँसी मज़ाक करते रहे और क्लास के एंड मे सभी लौन्डो-लौन्डियो ने विभा मॅम को उनकी आगे की लाइफ के लिए ऑल दा बेस्ट कहा ,जिसके बाद विभा ने भी पूरी क्लास को ऑल दा बेस्ट कहा.....साला मैं ही इस मौके पे चौका मारने से रह गया, यदि कल रात दारू नही पी होती तो....खैर अब पछ्ताये हॉट क्या ,जब चिड़िया चुग गयी खेत और वैसे भी आइ लव दारू मोर दॅन गर्ल्स....
.
"क्या सोच रहा है बे अरमान...चल कॅंटीन से आते है..."लंच होने के बाद भी जब मैं अपनी जगह पर बैठा रहा तो अरुण बोला...
"कुच्छ नही,बस विभा जानेमन के बारे मे सोच रहा हूँ....मेरे पास फुल मौका था उसे पटाने का,लेकिन मैं तो लंड हिलाता रहा...कभी ट्राइ ही नही किया और आज जब वो जा रही है तो एक दम खराब लग रहा है...अब क्लास मे वही बदसूरत टीचर रहेंगे,जिनकी सूरत देखते ही पढ़ने का मन नही करता..."

"चल कॅंटीन मे फर्स्ट एअर की लौन्डियो को ताड़ते है...इस बार तो पूरी मिस इंडिया आ गयी है कॉलेज मे..."

"वो सब छोड़ और ये बता कि विभा इस वक़्त कहाँ होगी ,तेरे हिसाब से..."

"इस वक़्त...."अंदाज़ा लगाते हुए अरुण बोला"मेकॅनिकल डिपार्टमेंट मे होगी और कहाँ होगी..."

"एक काम कर तू जा, मैं आज कॅंटीन नही जा रहा....विभा से मिलकर आता हूँ..."विभा से मिलने का इरादा करके मैं अपनी जगह से उठा ,तो अरुण ने मेरा कंधा पकड़ कर मुझे वापस बैठा दिया...

"तुझे लगता है कि वो तुझसे मिलेगी...अबे लोडू ,वो इस वक़्त मेकॅनिकल डिपार्टमेंट मे होगी...और वहाँ अपने सारे खड़ूस टीचर होंगे..."

"तो क्या हुआ..."

"तो क्या हुआ.....बेटा तू मेकॅनिक्लल डिपार्टमेंट मे तो उससे बात कर नही पाएगा इसलिए तू उसे बाहर आने के लिए ही कहेगा...ऐसे मे वो साले ,म्सी टीचर्स पक्का कुच्छ ना कुच्छ ग़लत समझ लेंगे....जाते-जाते तो उसे बदनाम मत कर..."

"तू होशियारी मत छोड़ और जा अपना काम कर...मुझे मालूम है कि क्या करना है, बड़ा आया मुझे सलाह देने वाला..."

"मरवा फिर...मुझे क्या..."बोलकर अरुण तुरंत क्लास से बाहर निकल गया...और मैं मेकॅनिकल डिपार्टमेंट की तरफ बढ़ा....
.
वैसे तो कुच्छ देर पहले मैने अरुण को गाली देकर भगा दिया था,लेकिन उसने सही ही कहा था कि डिपार्टमेंट मे जाकर विभा को सीधे बाहर बुलाना ,ख़तरनाक साबित हो सकता था...इसलिए मैं अपने डिपार्टमेंट के बाहर जाकर रुक गया और विभा के मोबाइल पर एक मेस्सेज टपका दिया कि मुझे उससे मिलना है....

मेरे मेस्सेज करने के 10 मिनिट बाद तक जब विभा मेकॅनिकल डिपार्टमेंट से बाहर नही निकली तो मैने ये मान लिया कि अब वो बाहर नही आएगी ,इसलिए मैं वापस जाने के लिए मुड़ा...लेकिन तभी पीछे से विभा जानेमन ने मुझे आवाज़ दी....
.
"मुझे लगा नही कि आप आओगी...इसलिए वापस जा रहा था..."विभा को बाहर देख मैं उसकी तरफ बढ़ा...

"लंच मे बिज़ी थी...अब फ्री हूँ,बोलो क्या बात है..."

"आज बड़ी धाँसू लग रही हो....बोले तो यू आर लुकिंग ब्यूटिफुल..."

मेरी इस तारीफ भरे शब्दो का विभा ने कोई जवाब नही दिया जबकि आम तौर पर लड़किया अपने लिए ऐसे वर्ड सुनकर सामने वाले को स्माइल के साथ थॅंक्स कहती है...लेकिन विभा मॅम की अपनी ही एक खास आदत है ,जो ये कि मैं जब भी उसे खूबसूरत कहता था तो उसका मुँह ऐसे बन जाता था जैसे मैने उसकी तारीफ नही बल्कि बेज़्जती की है...खैर ये हमारा पर्सनल मॅटर है...तुम लोगो को इन्वॉल्व होने की ज़रूरत नही

"दिल से बोल रहा हूँ मॅम कि यू आर लुकिंग सो ब्यूटिफुल...अब तो जा रही हो ,कम से कम जाते-जाते तो थॅंक्स बोल जाओ...."

"थॅंक्स...लेकिन तुमने अभी तक ये नही बताया कि मुझसे ,तुम्हे ऐसी कौन सी बात करनी थी..."

विभा के ये कहते ही मैं सोच मे पड़ गया...क्यूंकी मैं ये सोच के ही नही आया था कि विभा से मुझे क्या बात करनी है...इसलिए मैं वहाँ खड़ा रहकर कुच्छ देर तक तो इधर-उधर झाँकता रहा और फिर बोला "यहाँ से कही दूर चले "

"चलो..."

"क्या..."मेरे साथ चलने के उसके जवाब से मैं थोड़ा नर्वस सा हो गया...क्यूंकी मुझे अभी तक समझ नही आया था कि विभा से आक्च्युयली मैं बात क्या करूँ ?

हम दोनो वहाँ से दूर आए और फिर एक जगह जाकर विभा रुक गयी और मेरी तरफ देखने लगी....जिससे मैं और भी नर्वस हो गया...मेरे अंदर इस वक़्त तूफान उठा हुआ था ,जो शब्दो के रूप मे मेरे अंदर से बाहर निकलकर विभा के कानो तक जाना चाहता था....इस वक़्त मेरे अंदर काई ख़यालात आ रहे थे, जैसे कि विभा को 'आइ लव यू' कहना या फिर 'आइ वॉंट टू फक यू' कहना....लेकिन इन सभी के बीच मैने वो टॉपिक छेड़ा जिसकी उम्मीद ना तो विभा को थी और ना ही मुझे....वो तो बस एक सेकेंड के अंदर ही मेरे दिल मे आया और मैने कह दिया....
"सीडार को तो जानती ही होंगी...बोले तो वही अपने एमटीएल भाई..."बोलने के साथ ही मेरे अंदर एक दुख का अनुभव हुआ...और ऐसा ही कुच्छ-कुच्छ रिक्षन विभा का भी था...

"उसे कौन नही जानता...लेकिन सीडार के बारे मे मुझसे क्या बात करनी है...हम दोनो तो कभी दोस्त तक नही थे...."

"एग्ज़ॅक्ट्ली...इसी के बारे मे तो बात करनी है...."विभा की आँखो मे आँखे गढ़ाते हुए मैं बोला"उन्होने मुझसे कहा था कि वो आपसे...मतलब...वो ,आपसे..."

"प्यार करता था...."मेरे आधूरे वाक्य को पूरा करते हुए विभा ने कहा"लेकिन मैने तो उससे कभी प्यार नही किया...."

"वही तो पुछने आया हूँ कि क्यूँ नही किया...कोई खास दुश्मनी थी क्या उनसे..."

"जिससे दुश्मनी ना हो ,इसका मतलब ये तो नही होता कि उससे प्यार किया जाए....और वैसे भी अब वो नही है तो इस बारे मे बात करने का कोई फ़ायदा नही....मैं चलती हूँ..."
.
"ये क्या कर दिया मैने... ये तो नाराज़ हो गयी..."विभा को वहाँ से जाते देख मैं खुद पर चीखा और तेज कदमो के साथ आगे बढ़ते हुए विभा के ठीक सामने खड़ा हो गया....

"सॉरी...वैसे मैं ये पुछने आया था कि यहाँ से जा कब रही हो...मेरा मतलब ट्रेन कितने बजे की है..."

"तुम्हे कैसे पता कि मैं ट्रेन से जाउन्गी.... "

"अब प्लेन से तो जाओगी नही और राजस्थान तक यहाँ से कोई बस जाती नही...इसलिए जाओगी तो ट्रेन से ही...अब बताओ कितने बजे की ट्रेन है..."

"11:30 पीएम....लेकिन ये क्यूँ पुच्छ रहे हो..."

"बस ऐसिच जनरल नालेज के लिए...क्या पता इंडियन इंजिनियरिंग सर्विस(आइस) के एग्ज़ॅम मे ये क्वेस्चन आ जाए "
"तो मैं चलूं..."

"जा ऐश कर..."

"सुधरोगे नही तुम..."

"कोई सुधारने वाली मिली नही...वरना बंदे हम उतने बिगड़े हुए भी नही थे...आप ट्राइ मार सकती हो "

"अपना ये जादू उसपर चलाया करो,जिसपर चलता हो....और हां ,यदि रात को रेलवे स्टेशन आ रहे हो तो 11 बजे पहुच जाना....कुच्छ इंपॉर्टेंट काम है...मुझे आने मे थोड़ा बहुत लेट हो जाएगा तो वहाँ से भाग मत जाना,मेरा इंतज़ार करना....अब सामने से हटो..."

"जानेमन, इंतज़ार तो हम सिर्फ़ दो चीज़ का करते है...पहला 'पाइरेट्स ऑफ दा क्रिब्बीयन' के नेक्स्ट पार्ट का और दूसरा सचिन की बॅटिंग का...."गॉगल्स लगाते हुए मैने कहा"इसलिए टाइम पर पहुच जाना "
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विभा से मिलने के बाद मैने टाइम देखा तो मालूम हुआ कि रिसेस ख़तम होने मे अब भी 20 मिनिट बाकी थे और पेट मे भूख के मारे जो खलबली मची हुई थी उसके बाद तो सिर्फ़ कॅंटीन ही एकमात्र सहारा था...इसलिए मैं कॅंटीन की ओर चल पड़ा...पेट मे भूख के कारण मची खलबली के अलावा एक और कारण था,जिसकी वजह से मैं कॅंटीन जा रहा था...वो कारण ये था कि लास्ट सेमेस्टर से कॉलेज के कुच्छ लड़को ने अपना एक अलग ग्रूप बना लिया था...जो आए दिन किसी ना किसी को पेलते रहते थे...मुझे पांडे जी ने इसकी इन्फर्मेशन कुच्छ दिन पहले ही दी थी और ये भी कहा था कि वो रिसेस के वक़्त पूरा टाइम कॅंटीन मे रहते है....इसलिए कॅंटीन मे जाकर उस ग्रूप को ठीक करना था और वैसे भी जब से मैने अपने चारो प्लान को डीक्टिवेट किया है,तब से मैं जब चाहू,जिसे चाहू, जहाँ चाहू...ठोक सकता हूँ...

चॅप्टर-45:ए कॉर्नर ऑफ दा पास्ट
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