RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
इसकी भनक मुझे तब लगी जब छत्रपाल सर डेली हमसे अब्राहम लिंकन की जीवनी हमे स्टेज मे बुलाकर पढ़वाते थे .क्यूंकी ना तो लिंकन जी के उपर हमे कोई एसे लिखना था और ना ही गोल्डन जुबिली के मौके पर लिंकन जी का कोई टॉपिक था....आक्च्युयली छत्रपाल इन 7 दिनो मे ये अब्ज़र्व कर रहा था कि किस स्टूडेंट्स का इंटेरेस्ट कितना है और यदि मेरी सोच सही है तो वो उन्ही स्टूडेंट्स को सेलेक्ट करेगा जिन्होने पूरे हफ्ते फुल इंटेरेस्ट के साथ अपनी स्पीच दी हो....
मैं छत्रपाल के इस ट्रिक को भाँप गया था या फिर दूसरे शब्दो मे कहूँ तो ऐसी ही सेम टू सेम ट्रिक मेरे स्कूल मे भी मेरे टीचर अप्लाइ करते थे और यदि तीसरे शब्दो मे कहूँ तो ' आंकरिंग करने का ये महा फेमस तरीका है' जो हर उस बंदे को मालूम होगा ,जिसने गूगल मे थोड़ी सी मेहनत की होगी.....
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आराधना को काउंट करके अब टोटल 12 स्टूडेंट्स हो गये थे,जिनमे से 6 को सेलेक्ट करना था और 6 को ऑडिटोरियम से बाहर का रास्ता दिखाना था...कुच्छ लड़के जो खुद को ओवरस्मार्ट दिखाते थे वो पिछले एक-दो दिनो से लिंकन जी के बारे मे बोलते वक़्त जमहाई ले लेते थे तो कभी-कभी अपना हाथ-पैर खुजलाने लगते थे. उन ओवर-स्मार्ट लड़को मे कुच्छ लड़के ऐसे भी थे,जो एक-दो दिनों से छत्रपाल सर से ये पुछने लगे थे कि ,वो उन्हे 2-2 के ग्रूप मे डिवाइड क्यूँ नही करते....मतलब सॉफ था कि इन सबको छत्रपाल बट्किक करने वाला था.
जिस दिन मैने एश से सवाल पुछा उस दिन भी तक़रीबन 4-5 स्टूडेंट्स ने लिंकन जी के बारे मे वही पुरानी स्पीच देने मे आना कानी की...कुच्छ ने तो बोरिंग तक का दर्जा दे डाला...लेकिन उनमे कुच्छ ऐसे भी स्टूडेंट्स थे जो छत्रपाल के दिए-हार्ड फॅन थे और उन्होने ऑडिटोरियम मे कभी अपना मुँह नही खोला और उनमे मैं भी शामिल था....
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उस दिन लास्ट पीरियड मे मेरे मोबाइल मे एश ने एक मेस्सेज टपकाया कि वो छुट्टी के बाद पार्किंग मे मेरा इंतज़ार करेगी...एश के इस मेस्सेज के तुरंत बाद मैं ये समझ गया कि मुझे पिछले कयि दिन की तरह आज भी अरुण को चोदु बनाकर ,सौरभ के साथ भेजना है....
"अरुण, तेरे मोबाइल मे मेस्सेज पॅक है क्या..."
"ये मेस्सेज तुम जैसे गीदड़ करते है, भाई शेर है इसलिए डाइरेक्ट कॉल करता है...."
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अरुण से ना मे जवाब मिलने के बाद मैने अपने ही मोबाइल से एश को मेस्सेज सेंड करने का सोचा और लिखा कि 'दिव्या को अपने साथ मत रखना,वरना मैं वापस लौट जाउन्गा...'
कॉलेज ख़त्म होने बाद मैं पार्किंग की तरफ बढ़ा ,जहाँ एश अपनी कार के बाहर खड़े होकर मुझे इधर-उधर ढूँढ रही थी और दिव्या जा चुकी थी....
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"हेलो..."एक प्यारी सी स्माइल मारते हुए मैने कहा"तो बिना समय गँवाए सीधे पॉइंट पर आ जाओ..."
"एक मिनिट....मुझे सोचने दो....हां, याद आ गया. यू नो अरमान ,यू आर आ हॉट टॉपिक ऑफ डिस्कशन इन और कॉलेज ऐज वेल ऐज इन और होम....."
"मेरी इंग्लीश उतनी बुरी भी नही है लेकिन कसम से कुच्छ भी समझ नही आया...."
"तुम मेरे घर मे और गौतम के घर मे डिसकस करने का एक हॉट टॉपिक हो...और जिस दिन देविका ने तुम्हे कॉल किया उसके एक दिन पहले ही मैं तुम्हारे बारे मे उससे बात कर रही थी...इस तरह से वो तुम्हारे बारे मे जान गयी..."
"सच...."मैं बस इतना कह पाया क्यूंकी जो बात एश ने मुझे बताई थी ,वो मेरे लिए बिल्कुल नयी थी.इसलिए उसपर यकीन करना मुश्किल हो रहा था.
ए ~लंगर~ फुटबॉल मॅच
मुझे इतना तो मालूम था कि मैं अपने बुरे करमो के चलते कॉलेज मे बहुत फेमस हूँ लेकिन मैं इतना फेमस हूँ कि इस शहर के सबसे रहीस घरो मे मेरे बारे मे बात होती है ,ये मैं नही जानता था.....एश के उस जवाब पर मैने यकीन तो नही किया था,लेकिन अंदर ही अंदर खुद पर गर्व भी कर रहा था....
एश की बात सुनकर मेरा सीना तुरंत दो इंच चौड़ा हो गया और दिल किया की गॉगल लगाकर कोई डाइलॉग मारू लेकिन फिर कुच्छ सोचकर मैने अपना ये गॉगल लाकर डाइलॉग मारने का विचार छोड़ दिया और एसा से आगे पुछा....
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"मैं इतना ज़्यादा पॉपुलर हूँ ,जानकार खुशी हुई....वैसे मेरे बारे मे क्या डिसकस करते हो तुम लोग...."
"मेरे और गौतम के घर मे ऐसा कोई दिन नही होता,जब तुम्हे बुरा-भला ना कहा गया हो...तुम यकीन नही करोगे पर सब लोग तुमसे बे-इंतेहा नफ़रत करते है..."
"मुझे भी कुच्छ ऐसी ही उम्मीद थी... "
उस दिन पार्किंग प्लेस मे एश को अपने शब्दो के जाल मे फँसा कर मैने बहुत कुच्छ जान लिया.जैसे कि बीच-बीच मे एश की मॉम एश से पूछती है कि 'वो लफंगा सुधरा या अब भी वैसी मार-पीट करता है....'
मुझे लेकर एश और गौतम के घर मे सेम सिचुयेशन रहती है ,बोले तो मेरा नाम जेहन मे आते ही उनके मुँह से मेरे लिए गालियाँ बरसती है....खैर ये सब दिल पे लेनी की बात नही है और ना ही बुरा मानने की बात है क्यूंकी ये सब तो हमान नेचर की प्रॉपर्टीस है....
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"वो सब तो ठीक है एश, लेकिन क्या तुम्हे नही लगता कि ऐसे ही किसी के भी सामने अपने घर की प्राइवेट बातें शेयर करना ग़लत है...."
जब मैं अपनी बुराई सुनकर पक गया तो मैने एश को रोकने के लिए कहा,क्यूंकी वो नोन-स्टॉप मेरे दिल पर डंडे पे डंडे मारे जा रही थी.मेरे टोकने के बाद एश को जैसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ और उसने अपना हाथ अपने होंठो पर रख लिया.....
"तुम्हारे घरवालो के मेरे प्रति उच्च विचारो की जानकारी तो मुझे हो गयी, लेकिन अब ये बताओ कि मेरे बारे मे तुम्हारा क्या सोचना है...मतलब कि क्या तुम भी अपना दिल खोलकर मुझे बुरा-भला कहती हो..."
"मैं नही बताउन्गी...अब मैं एक लफ्ज़ भी आगे नही बोलूँगी..."
"बता दे बिल्ली, वरना मैं.....मैं...."
"वरना क्या...तुम मुझे फिर से धमकी दे रहे हो..."
"चल ठीक है जा..."
"मैं क्यूँ जाउ, तुम जाओ..."
"अरे जा ना..."
"पहले तुम जाओ..."
"ऐसा क्या, ले फिर मैं नही जाता,बोल क्या करेगी बिल्ली..."
"फिर मैं भी नही जाउन्गी, बिल्लू,बिलाव,बिल्ला...."
"खिसक ले इधर से ,ये मैं लास्ट वॉर्निंग दे रहा हूँ....वरना "
"वरना क्या...हाआन्ं ,बोलो वरना क्या...क्या कर लोगे तुम..."मुझे चॅलेंज करते हुए एश एक कदम आगे बढ़ी.....
"कमाल है यार,इसे तो मुझसे डर ही नही लगता..."एश के एक कदम आगे बढ़ने के बाद मैने खुद से कहा और एश की'वरना क्या...' का जवाब सोचने लगा....
"एश ,देख अब तो चुप-चाप यहाँ से जाती है या मैं अपनी सूपर पवर दिखाऊ..."
"जब तक तुम नही जाओगे, तब तक मैं भी नही जाउन्गी..."
"तू जा यहाँ से नही तो मैं तुझे किस कर लूँगा...फिर मत बोलना कि मैने ऐसा क्यूँ किया...."
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मेरे किस करने वाले जवाब का एश के अंदर जबरदस्त रिक्षन हुआ और वो तुरंत अपनी कार मे बैठकर वहाँ से चली गयी.....
"मुझसे आर्ग्युमेंट करती है,अब आ गयी ना लाइन पे... "
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गोलडेन जुबिली के फंक्षन के लिए अब तैयारिया जोरो से चल रही थी.सिंगगिंग,डॅन्सिंग एट्सेटरा. जैसे प्रोग्राम की प्रॅक्टीस तो कॉलेज के समय ही हो जाती थी ,लेकिन स्पोर्ट्स वगेरह की प्रॅक्टीस कॉलेज के बाद शुरू होती थी...हर ब्रांच की एक-एक टीम बना दी गयी थी, जो कि एक तय किए हुए दिन मे दूसरे ब्रांच से भिड़ने वाली थी...इन शॉर्ट कहे तो कॉलेज मे इस समय कॉंपिटेटिव महॉल था, जिसमे कॉलेज के लगभग आधे से अधिक स्टूडेंट्स झुलस रहे थे....कॉलेज के उस कॉंपिटेटिव महॉल से मेरे खास दोस्त अरुण,सौरभ की तरह सिर्फ़ वो ही लोग बचे थे,जो गोल्डन जुबिली के इस गोल्डन मौके पर किसी भी फील्ड मे आक्टिव नही थे....
8त सेमिस्टर. मे आते तक मुझे और हॉस्टिल मे रहने वाले मेरे कुच्छ दोस्तो को शाम के वक़्त कोई सा गेम खेलने की आदत लग चुकी थी,जिससे हमारे शरीर मे एक नयी एनर्जी घुस जाती थी और फिर रात को हम लोग पेल के दारू पीते थे....लेकिन आजकल हम जिस भी ग्राउंड मे शाम के वक़्त एनर्जी लेने जाते वहाँ ब्रांच वाइज़ लौन्डे प्रॅक्टीस करते हुए मिलते थे,इसलिए अब हमारा ग्राउंड हमारे हॉस्टिल का कॉरिडर बना....जहाँ हम लोग क्रिकेट,फुटबॉल बड़े आराम से खेलते थे......
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"मैं,अरमान भाई की टीम मे रहूँगा..."पांडे जी को जब अरुण ने अपनी टीम मे लिया तो राजश्री पांडे एक दम से चिल्ला उठा....
"मर म्सी, जा चूस ले अरमान का..."पांडे जी का कॉलर पकड़ कर उसे अरुण ने मेरी तरफ धकेला और बोला"भाग लवडे मेरी टीम से...."
"सौरभ डार्लिंग मेरी तरफ..."मैने अपनी टीम के अगले खिलाड़ी को सेलेक्ट किया...
"तो फिर ये कल्लू कन्घिचोर मेरी तरफ..."कल्लू को हाथ दिखाते हुए अरुण ने कहा"आ जा बे कालिए..."
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मैने और अरुण ने 4-4 लौन्डो की टीम बनाई और कॉरिडर मे फुटबॉल खेलने के लिए आ पहुँचे....इस बीच एक और लौंडा वहाँ आया और उसने भी खेलने की इच्छा प्रकट की....
"जा पहले अपने लिए कोई जोड़ीदार लेकर आ...ऐसे मे तो एक तरफ 5 और एक तरफ 4 लौन्डे रहेंगे..."उस लड़के से अरुण ने कहा...
"सुन बे अरुण...तू रख ले इसे, तुम जैसे गान्डुल 5 क्या 50 भी हो जाए तब भी मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता..."
"मैं क्यूँ रखू, तू ही रख ले और बेटा गान्डुल कौन है ये तो मॅच के बाद ही पता चलेगा,जब मैं तेरे हाथ-पैर तोड़ दूँगा..."
"ठीक है फिर...आजा बे,इधर खड़ा हो जा..."उस नये लौन्डे को अपनी तरफ आने का इशारा करते हुए मैने खुद से कहा"एक बार फिर से अरुण को चोदु बना दिया , आइ'म सो स्मार्ट...अब तो 100 मैं जीत के ही रहूँगा...."
जब कॉरिडर मे दोनो टीम तैनात हो गयी तो मैं सबसे पहले राजश्री के पास गया और बोला.."तू जा के गोलकीपिंग कर बे लोडू और बेटा यदि एक बार भी फुटबॉल इस पार से उस पार गयी तो सोच लेना..."
"अरमान भाई..आप फिक्र मत करो...एक बार मैं राजश्री खा लूँ,उसके बाद तो कोई माई का लाल मुझे हरा नही सकता..."
पांडे जी को गोलकीपर बनाने के बाद मैं सौरभ के पास गया और बोला"सुन बे, तू डिफेन्स करना और जो कोई भी फुटबॉल लेकर तेरे पास आए, साले का हाथ-पैर तोड़ देना....मैं फॉर्वर्ड खेलूँगा..."
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वैसे तो मुझे फुटबॉल खेलना नही आता था लेकिन जैसे हमलोग लंगर डॅन्स करते थे,वैसे ही हम लोग लंगर फुटबॉल खेल रहे थे,जहाँ कोई रूल्स नही...बस फुटबॉल गोल होनी चाहिए ,उसके लिए चाहे कोई सा भी तरीका अपनाया जाए....जब मैं अपनी टीम की तरफ से फॉर्वर्ड खेलने आया तो मुझे देखकर अरुण भी फॉर्वर्ड खेलने के लिए आगे आ गया....कल्लू कंघीचोर मुझे कवर करने के लिए मेरे पास ही खड़ा था और अरुण मेरे ठीक सामने मुझे गालियाँ दे रहा था.....
"थ्री....टू....वन...स्टार्ट"
तीन तक की गिनती समाप्त होने के बाद मैने फुटबॉल को अपनी पहली ही किक मे अरुण के थोब्डे को निशाना बनाना चाहा, लेकिन फुटबॉल से मेरा पैर ही टच नही हुआ बोले तो अरुण के थोबडे को बिगाड़ने का मैने एक सुनहरा अवसर मिस कर दिया और कल्लू फुटबॉल लेकर आगे बढ़ा...
"सौराअभ....आगे मत जाने देना, मुँह मे लात मारना इस कालिए के..." अपना पूरा दम लगाकर मैं चीखा...जिसके बाद कल्लू डर के मारे जहाँ था ,उसने फुटबॉल को वही छोड़ा और वापस लौट आया....
"ऐसे तुमलोग मार-पीट करोगे तो मैं नही खेलूँगा... "कल्लू अरुण के पास जाकर मुझसे बोला...
"अबे अरमान, 100 के लिए तू इतना नीचे गिर जाएगा...मैने कभी सोचा नही था, थू है तुझपर..."
"अभी कल के मॅच मे जब तू मेरी तरफ था ,तब तो बहुत बोल रहा था कि मार उस कालिए को....इसलिए अब अपनी ये नौटंकी बंद कर और गेम शुरू कर...."मैने कहा और पलट कर सौरभ को आवाज़ दिया "थाम ले बे फुटबॉल और यदि अब कल्लू इस एरिया मे आया तो उचकर उसके मुँह मे जूता घुसा देना...."
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