RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
अरुण भगत सिंग को मानता है ,ये मुझे अभी पता चला था लेकिन सौरभ गाँधी जी का अनुयायी था,ये मुझे बहुत पहले से मालूम था और इस समय किसी एक का पक्षा लेना मतलब एक लंबी बहस को आमंत्रण देना था...यक़ीनन अंत मे जीत तो मेरी होती ,लेकिन अब साला कौन अपनी एनर्जी खपाए...ये सोचकर मैने अरुण से थोड़ा समय माँगा और फिर थोड़े समय के बाद बोला....
"मैं....मैं....दोनो को मानता हूँ..."
"ऐसा थोड़े ही होता है...या तो आस्तिक बनो या नास्तिक...ये कौन सी बात हुई कि तू आस्तिक भी है और नास्तिक भी..."सौरभ ने उंगली की और जिस बहस को मैं दबाना चाहता था, उस बहस का ओपनिंग रिब्बन काटते हुए सौरभ ने मुझसे पुछा...
मैने फिर थोड़ा समय माँगा और अपने 1400 ग्राम के दिमाग़ को दूसो दिशाओ मे दौड़ने लगा और जब मेरे हाथ सौरभ के उस सवाल का एक लॉजिकल जवाब आया तो मैं बोला...
"हे, मूर्ख मानव...मैं गाँधी जी और भगत सिंग दोनो को मानता हूँ...इसे मैं एक-एक एग्ज़ॅंपल से समझता हूँ....मान लो कि मैं अपने टकले प्रिन्सिपल के कॅबिन मे हूँ और उसने मुझे किसी बात पर एक थप्पड़ मार दिया, तब मैं गाँधी जी के सिद्धांतो का पलान करते हुए अपना दूसरा गाल आगे कर दूँगा.....
लेकिन अब सिचुयेशन मे थोड़ा चेंजस लाओ और ये मान लो कि मेरे सामने गौतम खड़ा है और उसने मुझे एक थप्पड़ मारा है ,तब मैं भगत सिंग के अनुसार उसकी माँ -बहन एक कर दूँगा...."
"वाआहह....क्या एग्ज़ॅंपल ठोका है..."मेरा हाथ पकड़ते हुए राजश्री पांडे बोला...
"हाथ हटा बे मदरजात...जिस हाथ से गान्ड धोता है ,उसी हाथ से मुझे छु रहा है..."
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अगले दिन मैं ऑडिटोरियम मे अकेले बैठा हुआ था ,क्यूंकी एश ने सुबह-सुबह मेरे मोबाइल पर मेस्सेज भेज दिया था कि वो आज नही आने वाली...मैं एश को फोन करके ना आने का रीज़न ज़रूर पुछ्ता लेकिन मेरे मोबाइल मे बॅलेन्स नही था ,इसलिए मैं एश को फोन नही कर पाया
अब जबकि मुझे मालूम था की एश आज कॉलेज नही आने वाली है तो मैने सोचा कि क्यूँ ना आज आराधना के साथ बैठकर मेरे फ्यूचर प्लान पर काम किया जाए...इसलिए मैं आगे बैठा ,लेकिन बाकी सबसे दूर और जब आराधना ऑडिटोरियम मे घुसी तो मैने उसे इशारे से अपने पास बुलाया....
"गुड मॉर्निंग अरमान..."
"अरमान बीसी दो दिन मे ही अरमान सर से अरमान पर आ गयी..."आराधना को देखते हुए मैने सोचा और फिर बोला"गुड मॉर्निंग माँ..."
"टू फन्नी, ना..."
"बैठिए, खड़ी क्यूँ है..."
"ओके..."अपना पिछवाड़ा सीट से टिककर आराधना ने मेरी तरफ देखते हुए कहा"अच्छा सुनो अरमान, तुम्हारे हॉस्टिल मे जो मेरा दूर का भाई रहता है ना...उसे कहना की आज शाम को कॉलेज के बाद मुझसे मिल ले. मेरे घर से कल मेरे पापा आए थे ,इसलिए उसका भी कुच्छ समान है..."
"अबे ये तो हद ही हो गयी, मैं कुच्छ बोल नही रहा हूँ इसका मतलब ये थोड़ी ही हुआ कि तू मेरे कान मे अरमान-अरमान चिल्लाएगी...माना कि मुझे तुझसे बहुत ज़्यादा प्यार है लेकिन प्यार अपनी जगह और इज़्ज़त अपनी जगह...."
"सॉरी, अरमान भैया..."
"भैया...तेरी तो...भैया किसको बोला...भैया होगा तेरा पापा, तेरी मम्मी, तेरी बहन....तेरा भाई..."
"दिल पे क्यूँ ले रहे हो सर...वैसे ई फील सो एरॉटिक..."
"बीसी, इसे क्या हो गया है....ज़रूर किसी ने इसकी चूत मे उंगली की है कल रात, जो ऐसे अश्लील शब्दो का प्रयोग कर रही है..."आराधना का ऐसा रंग-रूप देखकर मेरा रंग-रूप उड़ गया , वैसे तो क़ायदे से मुझे उसी वक़्त आराधना का दूध दबा देना चाहिए था, लेकिन मैं एक शरीफ लड़का था,इसलिए मैने वैसा नही किया....मैं बोला
"कितनी अभद्र हरकते कर रही है तू आराधना...मैं एक लड़का होकर भी ऐसा नही कहता और तू...तू....कुच्छ तो शरम कर.."
"मज़ाक कर रही थी ,आपने तो सीरियस्ली ही ले लिया...वैसे आपकी थोड़ी मदद चाहिए..."
"ऐसा भी कोई मज़ाक करता है क्या, मैं सच मे एरॉटिक फील करने लगा था...चल बोल क्या हेल्प चाहिए..."
"मुझे सबके सामने खड़े होकर बोलने मे हेसिटेशन होती है...मैने छत्रपाल सर के बताए हुए सारे टिप्स यूज़ किए लेकिन डर और हेसिटेशन जाने का नाम ही नही ले रहा..."
"मूर्ख है छत्रु...वैसे उसकी टिप्स क्या थी "
"उन्होने कहा कि स्टेज पर जाने के बाद ऐसा फील करो जैसे यहाँ तुम्हारे सामने कोई नही है...मैने ट्राइ किया लेकिन कुच्छ खास काम नही बना..."
"चूतिया है फला...कुच्छ भी बोलते रहता है...तू एक काम कर, अगली बार जब भी स्टेज पर जाए तो ये सोचना कि तेरे सामने भूत-प्रेत बैठे है .यदि तूने एक बार उन भूत-प्रेत के सामने बोल दिया तो फिर कभी भी, कही भी डर नही लगेगा..."बोलते हुए मैं पीछे मुड़ा तो ये देखकर दंग रह गया कि एश ठीक उसी जगह पर बैठी है, जहाँ अक्सर वो बैठा करती थी....
पहले-पहल तो मुझे लगा कि ये एश का मेरे मन द्वारा बनाया गया सिर्फ़ एक प्रतिबिंब है...क्यूंकी मैने फ़िल्मो मे अक्सर देखा है कि प्यार करने वालो को अक्सर ऐसे अपने प्रेमी/प्रेमिकाओ के प्रतिबिंब दिखाई देते है....
"ये एश हो ही नही सकती, उसने तो मुझे मेस्सेज करके कहा था कि वो आज नही आएगी...ये ज़रूर एश के लिए मेरा प्यार है "
लेकिन जब एश के उस प्रतिबिंब ने मेरी तरफ गुस्से से देखा तो मेरा माथा ठनका और मैने आराधना को शाम को मिलने का कहकर ,एश के प्रतिबिंब की तरफ बढ़ा....
वहाँ पहूचकर मैने अपनी एक उंगली धीरे-धीरे एश की तरफ बढ़ाई और उसके हाथ को टच किया, जिसके बाद एश मुझे घूर कर देखने लगी...
"एक और बार कन्फर्म कर लेता हूँ....."बोलते हुए मैने एश के हाथ को छुआ, लेकिन एश गायब नही हुई, जैसा कि फ़िल्मो मे होता है...
"एक आख़िरी बार..."बोलते हुए मैने एश के गाल पर चिकोटी काट दी, क्यूंकी मुझे यकीन था कि ये पक्का एश ना होकर एश की छाया-प्रति है...लेकिन जब एश ने मेरा हाथ पकड़ कर सामने वाली चेयर पर दे मारा तो जैसे मेरा भ्रम टूटा और मैं अपना हाथ सहलाते हुए बोला...
"तू असली है..."
"क्या मतलब..."
"मतलब-वत्लब बाद मे समझाता हूँ, चल पहले खिसक उधर...मुझे भी बैठने दे..."
"अरे खिसक ना..."
"नही...तुम जाओ उस साइड..."
"चल...तू जा..."
"मैं क्यूँ जाउ...मैं पहले आई इसलिए ये जगह मेरी है..."
"यहाँ क्या 'पहले आओ ,पहले पाओ' कॉंटेस्ट चल रहा है और ये तू मुझे इतनी देर से घूर क्यूँ रही है...क्या कर लेगी बोल..."
"नॉनसेन्स..."
"बिल्ली...मियाऊ..."
"अरमान ओवर हो रहा है..."
"मयाऊ..मयाऊ..."
"अरमान, दिस ईज़ टू मच..."
"मयाऊ...मयाऊ..मयाऊ...दिस ईज़ थ्री मच..."
हमारे बीच का ये वर्ल्ड वॉर फाइनली ख़त्म हुआ और एश साइड वाली चेयर पर जाकर बैठ गयी....
"पहले ही चली जाती,इतना ड्रामा करने की क्या ज़रूरत थी....मयाऊ.."
"अरमान, मैं बोल रही हूँ...ये कॅट की आवाज़ मत निकालो...नही तो "
"चल शांत हो जा...नही करता अब...और ये बता कि तूने मुझसे झूठ क्यूँ बोला कि तू आज कॉलेज नही आएगी ,लेकिन फिर टपक पड़ी"
"हर बात तुम्हे बताना ज़रूरी है क्या..."
"हर बात नही लेकिन ये बात बताना ज़रूरी है..."
"वो मुझे एक फॉर्म भरना था, जिसकी लास्ट डेट आज ही है...."
"फॉर्म...कौन सा फॉर्म..."
"अब ये मैं नही बताने वाली तुमको...ओके.."
"ओके..."
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गोल्डन ज्व्बिल का फंक्षन नज़दीक था और छत्रपाल हम सबकी तैयारी देखकर खुश भी था .इसलिए वो हमारी तरफ से थोड़ा बेफिकर हो गया था...इसीलिए अब छत्रु कभी-कभी लेट आता था या फिर कभी-कभी आता ही नही था....छत्रपाल की गैरमौज़ूदगी मे भी हम पेलम-पेल प्रॅक्टीस किया करते थे और अब तो लंच तक के सारे पीरियड्स हम ऑडिटोरियम मे प्रॅक्टीस करते हुए बिताते थे....
"अरमान..."एश अचानक से चीखी और उसके इस तरह चीखने से मैं थोड़ा भयभीत हुआ की अब ये मयाऊ क्या करने वाली है...
"चीखती क्यूँ है रे...सामने देख सब इधर ही देख रहे है..."
"मैं भूल गयी थी,लेकिन अब मुझे याद आ गया है..."
"क्या याद आ गया है..."
"यही कि तुम्हारे बर्तडे के दिन मैं पार्किंग मे आधे घंटे तक खड़ी रही, ताकि तुम्हे बर्तडे विश कर सकु...लेकिन तुम नही आए...व्हाई "
"ह्म.....?............. मुझे तो तूने बताया ही नही था कि तू पार्किंग मे मेरा इंतज़ार करेगी...वरना मैं दारू छोड़ कर आता..."बहाना मारते हुए मैने कहा...
"लेकिन मैने तो तुम्हे मेस्सेज किया था..."एसा बोली...अब उसकी सूरत थोड़ा अचंभित टाइप की हो चली थी...
"मेस्सेज...मैं मेस्सेज नही पढ़ता , मेरे पास टाइम नही रहता ,बहुत बिज़ी पर्सन हूँ...."
"मतलब तुमने सच मे मेरा मेस्सेज नही पढ़ा,कितने बुरे हो तुम...."
"एक मिनिट...अभी दिखाता हूँ, "बोलते हुए मैने अपना दस हज़ार का मोबाइल जेब से निकाला और चेयर पर तन्कर थोड़ा पीछे हो गया ,ताकि एश मेरी करामात ना जान पाए .इसके बाद मैने एश वाले मेस्सेज को 'अनरेड' कर दिया और पहले वाली पोज़िशन मे वापस आया..."एश , ये देखो तुम्हारा मेस्सेज मैने अभी तक नही पढ़ा है..."
"पर तुमने तो रिप्लाइ भी किया था शायद..."
"एक बात बता...तू आज शाम को क्या कर रही है..."
"कुच्छ नही, क्यूँ..."थोड़ा रोमॅंटिक होते हुए एश पुछि...
"तो फिर सीधे डॉक्टर के पास जाकर अपना इलाज़ करवा...बहुत ज़रूरत है तुझे...मयाऊ..."
"अरमान बात को ख़त्म करने का तुम्हारा तरीका बिल्कुल ग़लत है...तुम्हे दूसरो की फीलिंग्स, एमोशन्स का ज़रा सा भी ख़याल नही रहता....इंसान बनो ,हैवान नही..."
मैं थोड़ी देर चुप रहा ताकि एश को कुच्छ जवाब दे सकूँ ....थोड़ी देर बाद मैं बोला...
"एक बात बता, दूसरो की एमोशन्स, फीलिंग्स का ख़याल करके क्या मैं उनका आचार डालूँगा और बुराई सबमे होती है,लेकिन इसका मतलब ये तो नही की सब बुरे है...और वैसे भी मुझमे सिर्फ़ एक ही बुराई है..दारू पीना और एक बात बताऊ ,ये मुझे बहुत पसंद है....अब चल स्टेज पर, हमारी बारी आ गयी "
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एश चुप चाप उठी और मेरे बगल मे चलते हुए आगे बढ़ने लगी...
"तुमने पुछा था ना कि ,वो फॉर्म कौन सा है,जिसके लिए मैं यहाँ आई थी..."
"हां..."
"तुम्हे तोड़ा अजीब लगेगा पर वो एक स्कॉलरशिप फॉर्म था, जिसके ज़रिए मेरी सारी फीस रिटर्न हो जाती है...क्यूंकी मैं सीएस की ब्रांच ओपनर थी..."
"सुनकर वाकाई मे अजीब लगा...तो भर दिया फॉर्म..."
"नही...वो प्रिन्सिपल ऑफीस के बाहर रहने वाले पीयान से मेरी कहा-सुनी हो गयी आते वक़्त....हैसियत एक चपरासी की है और अकड़ ऐसे रहा था ,जैसे की वो खुद प्रिन्सिपल हो....मैने भी अच्छी तरह से उसकी इज़्ज़त को सबके सामने नीलाम किया...लेकिन फिर भी वो दो कौड़ी का पीयान नही सुधरा और जब मैने उसे फॉर्म सब्मिट करने के लिए कहा तो मुझसे माफी माँगने के लिए कहने लगा..फूल कही का..."
"एक बात बोलू...इज़्ज़त सबको चाहिए होती है, फिर चाहे वो लाल किले के बाहर हर रोज झाड़ू मारने वाला एक सरकारी नौकर हो या फिर उसी लाल किले पर झंडा फहरहाने वाला हमारा प्राइम मिनिस्टर हो...फिर चाहे वो इस कॉलेज का पीयान हो या प्रिन्सिपल, इज़्ज़त सबको चाहिए होती है....अगली बार जब जाओ तो थोड़े मुस्कुरा कर बात करना...काम हो जाएगा...."
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जब लंच हुआ तो हमारी आंकरिंग की क्लास भंग हुई और सब अपनी-अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ने लगे.कोई क्लास की तरफ गया तो कोई कॅंटीन की तरफ...लेकिन मैं ,एश के साथ ही चल रहा था....
"अरमान ,परसो मेरा बर्तडे है..तुम आओगे..."
"परसो बर्तडे...मतलब पार्टी मतलब एश का घर...गौतम ,गौतम का बाप , गौतम की बहन...एश, एश की माँ, एश का बाप, मेरी खून के प्यासे सिटी मे रहने वाले लड़के, गौतम के बाप के गुंडे...और मैं अकेला... "
"क्या हुआ..."
" मेरा वो दोस्त है ना अरुण...कल मैने गुस्से मे उसके दोनो हाथ-पैर तोड़ दिए, मतलब फ्रॅक्चर कर दिए .इसलिए वो हॉस्पिटल मे अड्मिट है और हर रोज कॉलेज के बाद मैं सीधे उसी के पास जाता हूँ...इसलिए मैं तुम्हारी बर्तडे पार्टी मे नही आ पाउन्गा..."
"ओके, नो प्राब्लम"मेरे इस प्रोफेशनल तरीके से बोले गये झूठ पर अरुण के लिए शोक प्रकट करते हुए एश बोली और मैं एक बार फिर पब्लिक को एडा बनाने मे कामयाब हुआ
वैसे एश का मुझे बर्तडे पार्टी के लिए इन्वाइट करना ,वो भी तब जब मेरे सारे दुश्मन वहाँ मौज़ूद हो...ये मुझे दोगलापन लगा लेकिन फिर सोचा हटाओ यार...कौन सा फला कश्मीर मुद्दा है जो वो इतने ख़तरनाक षड्यंत्र बनाएगी...भावनाओ मे बह गयी होगी, मेरी एसा...अभी फिलहाल तो आंकरिंग मे कॉन्सेंट्रेट करते है...
चॅप्टर-53:
उन दिनो मैं कयि उलझानो मे फँसा हुआ था जिसमे से एक विपिन भैया की शादी थी...बोले तो दिल और दिमाग़ लाख कोशिशो के बावजूद उस लड़की को भाभी मान ही नही रहा था, जिसने बचपन से मेरी ज़िंदगी को किताबों और पर्सेंटेज की तराजू मे तौल कर रख दिया था...यदि मैं कॉलेज मे भी पहले की तरह ब्राइट स्टूडेंट होता तो बात अलग होती ,लेकिन सच तो ये था कि पिछले चार सालो मे मैने खुद को इस कदर बर्बाद किया था की एक बार बर्बाद लड़का भी किसी मामले मे मुझसे शरीफ दिखे....
यदि पहले की तरह आज भी मेरे मार्क्स पांडे जी की बिटिया से अधिक होते तो विपिन भैया की शादी के बाद मैं कम से कम अपना सीना तान कर तो चलता लेकिन हक़ीक़त और मेरे सिक्स्त सेन्स मुझे कुच्छ और ही भविष्य दिखा रहे थे...मेरे सिक्स्त सेन्स के अनुसार, जब बड़े भैया की शादी पांडे जी की बेटी से हो जाएगी तो घरवाले उसका एग्ज़ॅंपल दे-दे कर मेरी लेंगे मतलब घोर ताना....उपर से पांडे जी की बेटी खुद भी ताना मारेगी...क्यूंकी उसके लिए मेरे अंदर जो विरोधी भाव है ,वैसा ही सेम टू सेम हाव-भाव उसके अंदर भी मेरे लिए होगा...क्यूंकी मेरी तरह उसकी भी लाइफ आज तक पर्सेंटेज के टारजू मे चढ़ चुकी थी और मेरा ऐसा मानना था कि उससे नफ़रत करने का जो जुनून मेरे अंदर है ,वैसा जुनून उसके अंदर भी होगा...बोले तो ये एक तरह से महाभारत की शुरुआत होने वाली थी...
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"लाओ ,अरमान भाई...मैं पेग बना देता हूँ ,अब तो मेरे दोनो हाथ काम करने लगे है..."ज़मीन पर बैठे हुए राजश्री पांडे ने 'सिग्नेचर' की बोतल को पकड़ते हुए कहा....
"बोतल नीचे रख बे...तूने च्छू कैसे दी दारू की बोतल...अपवित्र कर दिया ना इस पवित्र चीज़ को छुकर...अब जा गंगा जल लेकर आ..."
"क्यूँ मेरी ले रहे हो अरमान भाई...अब तो मैने नवीन भाई के बाइक के 2500 भी दे दिए..."
"दर-असल बात वो नही है छोटे..."
"फिर क्या बात है..."
"आक्च्युयली बात ये है की नेपोलियन अंकल साइड दट ' इफ़ यू वॉंट आ थिंग डन वेल, डू इट युवरसेल्फ' .मतलब 'यदि आप चाहते है कि कोई काम अच्छे से हो तो उसे खुद से कीजिए,बजाय इसके की वो काम दूसरे करे...इसलिए पेग मैं ही बनाउन्गा, ताकि जोरदार असर करे..."
"अबे तू ये ग्यान छोड़ना बंद कर और ग्लास भर मेरा..."अपने खाली ग्लास को खाली देखकर अपनी पूरी भडास मुझपर खाली करते हुए अरुण ने कहा और उसके दो मिनिट बाद ही तीनो ग्लास रूम से लबालब हो गये....
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"ये बीसी, पांडे... अरमान के बर्तडे पार्टी के दिन साले ने गान्ड ही फाड़ के रख दी थी...चूतिए ने जाकर बाइक सीधे एस.पी. के गेट मे ठोक दी, वो शुक्र मनाओ कि मेरी शक्ल देख कर एस.पी. ने जाने दिया,वरना आतंकवादी घोसित करके तुम लोगो के गान्ड मे गोलिया भर देता....चलो बे पापा बोलो तुम दोनो मुझे इसी बात पे..."
"तू चुप कर बे लवडे..."अरुण के खाली ग्लास को भरते हुए मैने उससे कहा और जब अरुण की ग्लास फुल हो गयी तो पांडे जी के भी ग्लास की तन्हाई को दूर करते हुए मैने उससे पुछा...
"क्यूँ बे, तेरे हाथ मे प्लास्टर लगा था ये बात तेरे घरवालो को मालूम है क्या...."
"अब क्या बताऊ अरमान भाई...हॉस्पिटल का बिल इतना ज़्यादा था कि पापा जी को कॉल करना पड़ा और तो और दो दिन घर रहकर भी आया हूँ....क्या बतौ अरमान भाई..घर मे पापा ने इतना ख़याल रखा कि शुरू मे तो मैने सोच ही लिया था कि आज के बाद दारू को हाथ तक नही लगाउन्गा...लेकिन फिर जब कंट्रोल नही हुआ तो ये तय किया कि दारू पीने के बाद गाड़ी नही चलाउन्गा..."
"क्यूँ बे बहुत पापा जी के कसीदे बुन रहा है...मम्मी ने पक्का खूब धुनाई की होगी..."एक सिगरेट जला कर उसका धुआ पांडे के मुँह मे फेक्ते हुए अरुण बोला.
अरुण की इस खीचाई पर हम दोनो अपना गला फाड़ कर हँसे...वैसे तो इसमे ज़्यादा कोई हँसने वाली बात नही थी लेकिन फिर भी हम दोनो हँसे, गला फाड़ कर हँसे....
पांडे जी की हम लोग चाहे कितनी भी ले ली, चाहे तो हम मे से कोई उसे सबके सामने झापड़ भी मार दे, वो बुरा नही मानता था लेकिन अरुण के इस छोटे से मज़ाक ने जैसे राजश्री पांडे के दिल मे गहरा वार किया और वो हाथ मे रूम की ग्लास लिए गुस्से से अरुण की तरफ देखने लगा....
"आँख दिखाता है मदरजात...बोल ना ,क्या मम्मी ने बहुत मारा..."अरुण ने फिर कहा...
"अरमान भाई...अरुण भाई को समझा लो और बोलो कि मेरी मरी हुई माँ के बारे मे कुच्छ ना कहे..."
"मरी हुई माँ..."मैं और अरुण एक साथ चौके...क्यूंकी हमे आज से पहले मालूम नही था की राजश्री पांडे की माँ नही है....
राजश्री पांडे की माँ नही है ,उसके मुँह से ये सुनकर मैं चुप रहा और अरुण ने पांडे जी को सॉरी कहा...
"सॉरी यार, मालूम नही था...वरना बोलता क्या ये सब... और तेरी भी ग़लती ,जो आज तक बताया नही...वैसे ये सब हुआ कैसे..."
"ये सब हुआ कैसे..."हाथ मे रूम से भारी ग्लास को नीचे रखते हुए राजश्री पांडे बोला"मेरी माँ को लोग पागल कहते थे,अरमान भाई...कहते थे कि वो हाफ-माइंड थी...लेकिन अरमान भाई..एक बात बताऊ ,मुझे कभी ऐसा नही लगा,पता नही लोग किस बुनियाद पर मेरी माँ को पागल कहते थे.जो लोग मेरी माँ की दिमागी हालात का मज़ाक उड़ाते थे या तो उनकी बुनियाद झूठी थी या फिर मैं सब कुछ देखकर भी ना देखने का नाटक करता था...जैसे मेरी माँ कभी-कभी खाने मे शक्कर की जगह नमक मिला देती थी तो कभी नमक की जगह शक्कर...कभी-कभी वो हर घंटे मे मुझसे पूछती कि मैने खाना खा लिया है या नही...कभी-कभी वो सनडे के दिन भी हमारे लिए टिफिन बनाकर रख देती थी...ऐसी कयि आदते मेरी माँ की थी,जिसकी वजह से लोग उन्हे पागल कहते थे. उस वक़्त मैं 12थ मे था ,जब ये हादसा हुआ...तब हर दिन की तरह उस दिन भी मैं स्कूल से घर पहुचा और हर दिन की तरह मैने अपनी माँ को आवाज़ दी, लेकिन वो कही नही दिखी...घर का दरवाजा भी खुला हुआ था ,इसलिए वो कही दूर भी नही गयी होगी, ऐसा मैने अंदाज़ा लगाया....माँ आस-पास के घर मे किसी के यहाँ गयी होगी ,मैने ऐसा सोचा और खुद खाना लेने रसोई मे पहुच गया ,लेकिन उस दिन माँ ने खाना भी नही बनाया था, जबकि हर दिन मेरे आने से पहले ही खाना बन जाया करता था....अरमान भाई ,उस दिन मालूम चला कि भूख और किस्मत की मार बड़ी ज़ोर से लगती है.
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