Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
08-18-2019, 02:46 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
क्लास मे टोटल 12 लड़के हॉस्टिल वाले थे .उन सबको लेकर मैं आगे बढ़ा कि तभी किसी ने पीछे से पुछा...
"मारने किसको जा रहे है...कहीं हम कम ना पड़ जाए,तू कहे तो सामने वाली क्लास से 10-12 को और साथ ले लूं..."
"ले ले...अपना क्या जाता है...लेकिन बेटा ख़याल राखियो, किसी को पेलना नही है,बस हूल देने जा रहे है...."
"कौन है वो बीकेएल..."
"यशवंत...वरुण का शिश्य..."
"लेकिन वो तो अब एनएसयूआइ का प्रेसीडेंट बन चुका है, बीसी कही उसने भी लड़के लाकर खड़े कर दिए तो..."
"दाई छोड़ देंगे उसकी भी और उसके लड़को के भी..."अरुण ने कहा....
.
कॉलेज से निकलकर हम लोग पैदल ही मेन गेट की तरफ चलने लगे कि मुझे कुच्छ याद आया....
"रूको बे, ऐसे पैदल जाने से इंप्रेशन खराब होगा, जाओ अपने क्लास के लौन्डो के बाइक की चाभी उधार माँग कर लाओ और जो मेच-8थ सें. मे जा रहा है,वो मेरे बॅग से मेरा गॉगल भी ले आना..."
.
मेरे इतना बोलते ही कुच्छ लड़के भागकर गये और 5 मिनिट मे ही बाइक की चाभीया और मेरा गॉगल लेकर आ गये...मैने अपना गॉगल लगाया और एक बाइक की चाभी अपने हाथ मे ली...
"तू चला लेगा बे,या मैं चलाऊ...कही उस दिन की तरह ठोक मत देना"अरुण ने मुझसे कहा...
"तू बैठ पीछे, चलने को तो मैं एरोप्लेन चला लूँ,फिर ये बाइक क्या चीज़ है...."
"यशवंत कॉलेज के मेन गेट के बाहर अभी है ,पहले ये तो कन्फर्म कर ले...नही तो फालतू मे वहाँ जाकर चूस लेंगे..."
"गुड..."
मैने तुरंत अपना मोबाइल निकाला और मेन गेट के बाहर बने फोटोकॉपी के दुकान संभालने वाले लड़के को कॉल किया और उससे यशवंत के बारे मे पुछा....
"खुशख़बरी है बे...वो यश वही है,चलो चोदते है बीकेएल को..."
"चल्ल्ल्ल्लूऊ....."बाइक पर सवार होकर सब चिल्लाए....
.
पार्किंग से कॉलेज के गेट तक पहुचने मे हमे चाँद मिनिट्स ही लगे.जैसा की फोटोकॉपी वाले ने बताया था, वैईसिच ही वहाँ का सीन था...यानी की यशवंत एक चाय-समोसे के दुकान पर बैठा सिगरेट पी रहा था और उसके साथ 6-7 लड़के थे.....
"अरुण,शूटिंग की शुरुआत कर..."उस चाय-समोसे के दुकान के पास पहुच कर मैने कहा...
"मूवी -यशवंत की चुदाई, टेक नंबर-1...आक्षन...."
"अबे ओये चुस्वन्त, इधर आ बे बीसी..."अरुण के आक्षन बोलने के बाद मेरी मुँह से पहली लाइन यही निकली....
यशवंत वैसे तो था बड़ा तगड़ा और जिस हिसाब से उसकी रेप्युटेशन कॉलेज मे थी उसके अनुसार उसे मुझे बिल्कुल नज़र-अंदाज़ कर देना चाहिए था...लेकिन वो उस वक़्त थोड़ा कन्फ्यूज़ दिखा और थोड़ी देर तक चारो तरफ देखने के बाद चाय का ग्लास दुकान मे रखकर हमारी तरफ बढ़ा.....

कॉलेज मे रेप्युटेशन बनाना बहुत आसान है लेकिन उसे बरकरार रखना उतना ही मुश्क़िल.इसके बहुत सारे एग्ज़ॅंपल मेरे पास है जैसे की वरुण, गौतम...दोनो की रेप्युटेशन शुरुआत मे एक दम फाडू थी लेकिन बाद मे जो हुआ ,वो सब जानते है...वही दूसरी तरफ सीडार भाई का जो दर्ज़ा कॉलेज मे उनके रहते हुए था वो उनके जाने के बाद भी था...सीडार भाई ,अब कहाँ होंगे ,ये कोई नही जानता लेकिन हर साल हॉस्टिल मे आने वाला हर बंदा उनके बारे मे ज़रूर जानेगा और ऐसा तब तक चलता रहेगा ,जब तक हमारा कॉलेज चलता रहेगा....और अगर मेरी बात की जाए तो, मेरी तो बात ही अलग है
.
यशवंत के साथ उसके साथ के भी लड़के उसके पीछे-पीछे हमारे पास आ पहुँचे . बहुत देर तक हम मे से कोई कुच्छ नही बोला, सब अपने-अपने ऑपोसिशन को मौन व्रत धारण किए हुए निहारे जा रहे थे....

"अबे ओये, यहाँ एक-दूसरे को प्रपोज़ करने आए हो क्या जो कब से एक-दूसरे को देखे जा रहे हो...."सबका मौन व्रत तोड़ते हुए मैं चीखा....

"हां बोल ,क्या हुआ....और नाम ज़रा इज़्ज़त से ले..."छुस्वन्त ने अकड़ कर कहा...
"इज़्ज़त लायक कुच्छ किया होता तो मैं तेरे चरण धोता लेकिन हक़ीक़त ये नही है...तो फिर तूने ये कैसे सोच लिया कि मैं तुझसे अच्छे से बात करूँगा बे चुस्वन्त...चुस्सू..चूसैल...चूतिए..."
"रुक लवडा..."अपना मोबाइल निकालकर यशवंत बोला"यदि जिगर है तो दस मिनिट यही रुक..."
"देख बे अखंड चूतिए...यहाँ मॅटर ये नही है कि मैं यहाँ कब तक रुकुंगा, बल्कि मॅटर ये है कि तू यहाँ कब तक रुकेगा...."कहते हुए मैं बाइक से उतरा और यशवंत के कान पर जोरदार झापड़ मारा ,जिससे उसका मोबाइल नीचे गिरा और यशवंत सन्ना गया.....
"मारो बे ,लवडो इन पप्पू को..."बोलते हुए मैने यशवंत का बाल पकड़ा और उसका सर उपर अपनी तरफ करते हुए कहा"अभी समझा रहा हूँ ,सुधर जा...वरना अगली बार मारूँगा...कल से यदि किसी ने भी कंप्लेंट किया की तूने किसी भी लड़की पर कॉमेंट किया तो फिर ऐसा फोड़ूँगा की यहाँ बैठकर कॉमेंट करना तो दूर फ़ेसबुक मे भी कॉमेंट करने लायक नही रहेगा....अब चल जा.."

यशवंत को छोड़ कर मैं पीछे मुड़ा ,लेकिन मालूम नही मेरा क्या मूड हुआ ,जो मैं एक दम से पीछे पलटा और यशवंत के दूसरे कान को भी झन्ना दिया....

"साले अभी तक गया नही..."

मेरे इतना बोलते ही सौरभ एक डंडा लिए हुए आया और घुमा कर यशवंत के पीठ मे जड़ दिया.....
"अबे, मारना नही है...समझना है..."

"लाड मेरा समझना है...इस बीसी को तो फर्स्ट एअर से ताड़ रहा था मैं,..."बोलते हुए सौरभ ने एक बार फिर यशवंत को पेला.....
जब से मैने यशवंत को पहला झापड़ जड़ा था तब से वो बस खड़े होकर मुझे देखे जा रहा था...जब सौरभ ने उसको डंडे से ठोका तब भी वो वैसा ही खड़ा रहा...

"मदरलंड घूरता क्या है बे...मारेगा क्या, ले मार....बेटा जितने तेरे पास लड़के नही होंगे ना उससे अधिक तो मेरे पास बाइक है और हर बाइक मे मिनिमम तीन लड़के सवार रहते है...मॅग्ज़िमम तू कितने भी ले ले और इतना दुखी क्यूँ हो रहा है.तेरे आत्म-सम्मान को धक्का पहुचा क्या...अबे दिल पे मत ले, तेरे गुरु ,वरुण तक को चोद कर बैठा हूँ ..."

"चलो बे..आज टाइम खराब है..."इतनी देर मे पहली बार यशवंत कुच्छ बोला और अपने दोस्तो के साथ वहाँ से जाने लगा...लेकिन थोड़ी दूर जाकर वो बोला"अरमान, तेरा गेम मैं बजाउन्गा...बस कुच्छ दिन रुक जा.."
"म्सी...ज़्यादा बोलेगा तो शहीद कर दूँगा यही..."अरुण चिल्लाया....

"अरमान तू अपने दिन गिनने शुरू कर दे..."

"मेरे जैसे ही एक महान व्यक्ति ने कहा था कि 'डॉन'ट काउंट दा डेज़, मेक दा डेज़ काउंट'....दिन तुम जैसे चुसाद गिना करते है, हम जैसे लोग तो हर दिन को यादगार बनाते है और जा, जितने पप्पू इकट्ठा कर सकता है कर ले ,मेरा वादा है तुझसे,जिस दिन भी तू आएगा, पूरी तरह चुद के जाएगा....ऑल दा बेस्ट , चुषवंत"
.
यशवंत और उसके दोस्तो के वहाँ से जाने के बाद हम लोग वापस कॉलेज की तरफ बढ़े....लंच के बाद वाली क्लास आधा निकल चुकी थी ,इसलिए पार्किंग मे बाइक खड़ी करके सब इधर-उधर चल दिए और मैं भी हॉस्टिल जाने के लिए अपने दोस्तो से विदा लेकर हॉस्टिल की तरफ चल दिया.....
"अरमान रुक..."पीछे से अरुण ने मुझे आवाज़ लगाई तो मैं रुका...
"क्या हुआ ,लंड चुसेगा क्या..."
"मॅटर क्या था ,यशवंत को मारने का..."
"कुच्छ खास नही ,ऐसे ही मूड हुआ तो ठोक दिया..."
"बेटा बिना भूक के तो इंसान खाना भी नही ख़ाता, फिर तुझ जैसे सेल्फिश और फटतू बिना किसी मतलब के ऐसे ही किसी को नही मार सकता, वो भी ये जानते हुए कि सामने वाला बाद मे तेरी ले भी सकता है...इसलिए मुँह खोल और सच-सच बक की मॅटर क्या था..."
"मॅटर...वेल मॅटर ईज़ दा ऑब्जेक्ट्स दट टेक अप स्पेस आंड हॅव मास आर कॉल्ड मॅटर. एवेरितिंग अराउंड यू ईज़ मेड अप ऑफ मॅटर. चॉक्लेट केक ईज़ मेड अप ऑफ मॅटर. यू आर मेड ऑफ मॅटर. "

"ये ले मुक्का, दिस पंच ईज़ ऑल्सो मेड अप ऑफ मॅटर ,नाउ टेल मी दा रियल मॅटर..."एक घुसा मेरे पेट मे जड़ कर अरुण बोला...
"कुच्छ नही बे...हूओ...वो आराधना को उल्टा -सीधा बोला था उसने....आहह, बोसे ड्के, थोड़ा धीरे मारा कर..."
"आराधना, मतलब लौंडिया...ये तो हॉस्टिल के नियमो के शख्त खिलाफ है...सीडार भाई ने कहा था कि लड़की के लफडे मे कोई किसी का साथ नही देगा..."
"देख अलुंड(अरुण ) ,मैं खुद भी सीडार की इज़्ज़त करता हूँ लेकिन वो रूल उनके जमाने का था और अब दूसरा जमाना है....वैसे भी तेरे सिवा किसको मालूम है कि मैने ये सब किसी लड़की के पीछे किया है..."आँख मारते हुए मैं बोला...
"अरमान,अपने लौन्डो से झूठ बोलना बुरी बात है..."
"नही रे अलुंड, झूठ बोलना बुरी बात नही है मतलब अच्छी तरह से झूठ ना बोलना बुरी बात है...अब तू ही देख, हॉस्टिल वाले इस वक़्त ये सोच रहे है कि मैने सज्जन पुरुष वाला काम किया है ,यशवंत को मारकर....क्यूंकी यशवंत से कॉलेज की सारी लड़किया परेशान थी...इनफॅक्ट अब तो वो लड़किया मुझे अपना भगवान बना लेंगी....बेटा ,अरुण...दुनिया मे महान बनने के सिर्फ़ दो रास्ते है, पहला या तो महानों वाला काम करो या फिर छोटा-मोटा काम करके उसे महान तरीके से सबके सामने पेश करो...अब निकलता हूँ, मेरी दारू की बोतल मेरा इंतज़ार कर रही होगी...."
.
उस दिन पूरे हॉस्टिल मे सबसे 100-100 लेकर महोत्स्व का आयोजन किया गया था...हॉस्टिल मे पेल के दारू आई थी, जिसे जो ब्रांड जितनी भी चाहिए थी ,उसे दे दिया गया और सब को देने के बाद हम भी गला तर करने के लिए बैठे.....
"अरमान भाई,एक बात पुच्छू"राजश्री पांडे ने अपनी फरमाइश पेश की...
"पुच्छ...पुच्छ, धरती से लेकर आसमान तक कुच्छ भी पुच्छ डाल...सबका जवाब देगा रे तेरा फ़ाज़ल..."
"आराधना को आपने कैसे सेट किया..."
"आराधना...."पहले तो मैं जोरो से हंसा ,फिर अचानक सीरीयस हो गया और फिर कुछ देर तक सोचने के बाद बोला"इट'स आ लोंग स्टोरी ब्रो...सौ साल लग जाएँगे इसे बयान करने मे..."
"ठीक है कोई बात नही, अब मैं सोने जाता हूँ...बहुत चढ़ गयी है मुझे..."बोलकर पांडे जी लड़खड़ाते हुए उठे और दो कदम चलने के बाद धडाम से गिर पड़े...
"यहाँ ग्रॅविटी की वॅल्यू ज़्यादा कैसे है, जो मैं अपने आप गिर गया..."ज़मीन मे लेटे-लेटे पांडे जी बोले"अरमान भाई, कुच्छ ग्यान क़ी बाते बताओ, जिससे मुझे गिल्टी फील ना हो कि मैने इतनी ज़्यादा क्यूँ पी ली..."
"ग्यान की बाते...मैं बताता हूँ.."मेरे मुँह खोलने पहले अरुण बोल पड़ा"देख, कट..आइरन, आइरन..नही, आइरन कट आइरन, डाइमंड कट डाइमंड. अग्री..."
"अग्री..."
"ठीक इसी तरह दारू कट दारू, इसलिए यदि दारू का नशा हटाना है तो और पियो...बोले तो खूब पियो, खूब जीिइईयूऊऊऊ...."बोलते हुए अरुण भी लुढ़क गया....
राजश्री पांडे और अरुण के लुढ़कने के बाद मैने सौरभ को देखा, वो भी खर्राटे भर रहा था...
"आइ आम दा लास्ट मॅन ऑन दिस प्लॅनेट....साला ज़िंदगी बर्बाद कर दी मैने अपनी....लेकिन फिकर नोट , कल से दारू को हाथ तक नही लगाउन्गा....अबे उठो ना, मुझे बात करने का मन कर रहा है..."
मैने अरुण,सौरभ और राजश्री पांडे को बहुत उठाने की कोशिश की लेकिन वो तीनो उठे नही...थक हार कर मैं दीवार की टेक लेकर वापस बैठा और डाइरेक्ट बोतल को मुँह से लगा लिया...
"अमिताभ बच्चन कहता है कि दारू पीने से लिवर खराब होता है, लेकिन साला यहाँ तो लिवर ही खराब नही हो रहााआआ...जबकि...जबकि..जब....एश आइ लव यू, यार..पट जेया ना यार..छोड़ दे उस गौतम को,..साला बहुत बड़ा कमीना है, मुझसे प्यार कर फिर देख कि प्यार किस चीज़ का नाम है.साला मेरी तो किस्मत ही झंड है, मुझे प्यार भी उस लड़की से हुआ, जो दूसरे के प्यार मे जान देने की कोशिश कर चुकी है...आइ..लव यू, एश...लव यू...ल्ल्लूव्ववी यू..ल्लूव्वी...."इसी के साथ मेरा भी बँटा धार हो गया.....
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RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू - by sexstories - 08-18-2019, 02:46 PM

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