RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
"तूने आज किसे मारा है, पता है..."
"ह्म्म..."गर्दन अप-डाउन करते हुए मेरी मुँह से सिर्फ़ इतना ही निकला....
"जब तुझे पता है कि तूने किसे मारा है तो ये बता कि किसके बल पर तूने ऐसा किया....कौन है तेरे पीछे..."
"मेरे पीछे....कोई नही..."
"तुझे क्या लगता है कि मैं यहाँ क्यूँ आया हूँ...."
"केस को दबाने के लिए और मुझे पक्का यकीन है कि आपके यहाँ से जाने के थोड़ी देर बाद ही हम लोग भी निकल जाएँगे...."
"अरमान...तूने उस दिन जिस सूपरिंटेंडेंट ऑफ पोलीस को देखा था उसका बर्ताव कुच्छ अलग था और तू आज जिस सूपरिंटेंडेंट ऑफ पोलीस को देखेगा उसका भी बर्ताव कुच्छ अलग ही होगा, मेरे कहने का मतलब है कि उस दिन तूने मुझे अच्छा-भला कहा होगा लेकिन आज के बाद बुरा-भला कहेगा...इसको पकड़कर डाल दे अंदर और ठीक ढंग से मेहमान नवाज़ी करो इन सालो की...."कहते हुए डांगी महाशय खड़े हुए और फिर कॉन्स्टेबल की तरफ देखकर बोले"पहले तो इन सबकी खूब धुलाई करो और जब इनकी धुलाई हो जाए तो मुझे कॉल कर देना...."
"इस मेहरबानी की कोई खास वजह ,सर..."
"खास वजह...ह्म्म..."पीछे पलटकर डांगी बोला"खास वजह ये है कि कलेक्टर मेरा बहुत अच्छा दोस्त है और उसके लड़के को मैं अपना बेटा मानता हूँ..."
"ऐसे तो मैं भी खुद को नारायण भगवान का अवतार मानता हूँ तो मैं क्या सच मे अवतार हूँ...ये सब दकियानूसी बातें है और एक इंसान को इन सब बातो मे बिल्कुल नही पड़ना चाहिए...समझदार इंसान को तो बिल्कुल भी नही...."
"सबसे ज़्यादा इसे ही मारना और इसे इसका अहसास ज़रूर दिलाना कि दकियानूसी बातें भी दकियानूसी नही होती"
"अबे एमसी...साथ नही देना था तो मत देता...कौन सा हमलोग तुझसे मदद मॅगने गये थे बे झक़लेट...लेकिन ऐसे अपने चम्चो को हमे ठोकने के लिए बोलकर तूने बहुत ग़लत किया....रुक लवडा...मुझे बनने दे एस.पी. फिर तुझे और तेरे उस कलेक्टर को एक साथ चोदुन्गा...."स.प. को वहाँ से जाता हुआ देख मैं बड़बड़ाया....
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एस.पी. के जाने के बाद कॉन्स्टेबल ने मुझे वापस मेरे गॅंग के पास पहुचा दिया और सबको खड़े होने के लिए कहा.....
अब हमलोग शादी मे तो आए नही थे, जो पोलीस वेल नाश्ता-पानी पुचहते ,सालो ने हाथ मे डंडा लिया और जिसको पाया उसको पेलना शुरू कर दिया...बीसी मुझे टाइम ही नही मिल रहा था की कुच्छ सोच साकु...क्यूंकी मैं जब भी कुच्छ सोचने के लिए दिमाग़ पर ज़ोर डालता ,तब तक मेरे बॉडी का कोई ना कोई पोर्षन डंडे से लाल हो जाता.....शुरू-शुरू मे तो मैने दो-चार डंडे सह लिए ,लेकिन अगली बार जब कॉन्स्टेबल ने अपना डंडा उठाया तो मैने डंडा पकड़ लिया.....
"मेरे खिलाफ एक तरफ कलेक्टर और दूसरी तरफ एस.पी. है तो क्या हुआ..मेरा मामा भी एमएलए है ,इसलिए अपनी ये लाठी चार्ज अब बंद करो, वरना तुम सबकी दाई-माई एक कर दूँगा...बीसी चूतिया ,समझ कर रखे हो का बे...."मुझे मार रहे कॉन्स्टेबल पर चीखते हुए मैने कहा...."रुक क्यूँ गया , मार....तू तो बेटा ख़तम है अब....बस पता लगने दे मेरे मामा को"
मेरे मामा एमएलए है इसका उनपर जोरदार असर हुआ और थोड़ी देर तक एक-दूसरे की शक्ल देखकर वो सब लॉक अप से बाहर निकल गये....
"लवडे बोला था...मत मार उस कलेक्टर के लौन्डे को और चूतिए तेरा मामा ,एमएलए है ,ये तूने पहले ही बता दिया होता तो इतना सब कुच्छ होता ही नही..."
"मेरा कोई मामा-वामा नही है बे...वो तो ये साले पेलते ही जा रहे थे ,इसलिए हवा से एक एमएलए का कॅरक्टर लाना पड़ा...."
"वाह बेटा ,अब तो और ढंग से पेल्वा दिया तूने...जब इनको पता चलेगा कि तू इनसे झूठ बोल रहा था तब तो ये और प्यार से हमारी बॅंड बजाएँगे.....एक बार मैं यहाँ से निकल जाउ, कसम ख़ाता हूँ,तेरी सूरत ज़िंदगी मे कभी नही देखूँगा...."अरुण बोला...
"टेन्षन मत ले...जब तक इनको सच पता चलेगा तब तक तेरा वो लॉयर हमे यहाँ से निकाल ले जाएगा....मुझे तो डर इस बात का है कि कहीं ये लोग मेरे घर खबर ना पहुचा दे कि मैं यहाँ लॉक अप मे बंद पड़ा हूँ, वरना मेरा राम-राम सत्य हो जाएगा...मुझे बहुत शरीफ मानते है मेरे घरवाले..."
"तू कुच्छ भी बोल अरमान...लेकिन आज के बाद तेरी-मेरी दोस्ती ख़तम..."बोलते हुए अरुण जहाँ खड़ा था ,वही अपना सर पकड़ कर बैठ गया.....
जब से मैने एमएलए वाला झूठ बोला था, तब से मुझे सिर्फ़ आड्वोकेट भारत का इंतज़ार था कि वो आए और जल्दी से हमे निकाल ले जाए....भारत के इंतज़ार करते-करते शाम हो गयी, लेकिन वो नही आया....शाम से रात हुई, तब भी वो नही आया, उपर से अरुण मुझसे रूठा हुआ था ,जिसके कारण मैं उससे कुच्छ बात भी नही कर पा रहा था....
उस दिन हमलोग आधी रात तक जागते रहे इस आस मे कि अभिच अरुण के पहचान वाला लॉयर आएगा और हमलोगो को छुड़ा कर चलता करेगा ,लेकिन बीसी वो रात को भी नही आया....रात को क्या, वो तो लवडा सवेरे भी नही आया और तब मेरी फटनी शुरू हुई....
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"अरुण...तेरे वो भैया कहाँ रह गये..."
"गान्ड मरा तू...मुझसे क्या पुच्छ रहा है. कोई आए चाहे ना आए लेकिन यदि इन लोगो ने मुझे फिर मारा तो लवडा मैं सॉफ बोल दूँगा कि इसमे तेरा हाथ था, हमलोग को छोड़ दो..."
"दिखा दी ना अपनी औकात..."
"ह्म लवडा ,दिखा दी अपनी औकात...अब तू हर जगह अपना चूतियापा करेगा तो कहाँ तक हमलोग सहेंगे...हज़ार बार बोला था कि कलेक्टर के लड़के को हाथ मत लगा लेकिन नही यदि तू ऐसा करता तो ये दा ग्रेट अरमान की शान मे गुस्ताख़ी होती...खुद तो चूसा ही ,हमलोग को भी चुस्वा दिया...तुउउउ....बात मत कर मुझसे, वरना लवडा आज लड़ाई हो जाएगी...."
"चल बे फट्टू...इतनी ही फटी मे रहता है तो जाकर चाट ले कलेक्टर का..."
"अरमान मैं, बोल रहा हूँ...चुप हो जा..."
"अरे चल बे...तुम जैसो की बात मैं मानने लगा तो हो गया मेरा बंटाधर..."
बाकी के लौन्डो ने हम दोनो की बढ़ती लड़ाई को रोका और दोनो को एक-एक कोने मे फेक दिया....
मैं उस वक़्त कयि कारणों से परेशान था...पहला कारण कलेक्टर की पवर थी ,जिसके ज़रिए वो मेरी ऐसी-तैसी कर सकता था...दूसरा कारण ऐन मौके पर एस.पी. का मेरे खिलाफ हो जाना...तीसरा कारण आराधना थी...जिसके बारे मे ना चाहते हुए भी मुझे सोचना पड़ रहा था और चौथा कारण जो मुझे परेशान कर रहा था ,वो ये कि कल दोपहर से मेरे पेट मे खाने का एक नीवाला तक नही गया था ,जिसके चलते मेरे दिमाग़ की डोर खाने से जुड़ी हुई थी....अब खाली पेट ऐसे सिचुयेशन मे कुच्छ सोचना ठीक वैसा ही था ,जैसे की बिना लंड के चुदाई के कॉंपिटेशन मे हिस्सा लेना....
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"चलो बे ,बाहर निकलो सब...एस.पी. साहब आए है..."अपना डंडा ठोक कर एक कॉन्स्टेबल ने दूर से ही हम सबको बाहर आने के लिए कहा...
"एस.पी. आ गया है, सब लोग उसके सामने अपनी गर्दन झुका कर खड़े रहना और सिर्फ़ मुझे ही बात करने देना..."अपनी जगह पर खड़ा होते हुए सौरभ बोला"और अरमान तू ,सबसे पीछे रहना..."
"ये दुनिया बड़ी ज़ालिम है मेरे भाई..जितना दबोगे उतना अधिक ही दबाए जाओगे.अब कल रात का मामला ही ले ले...यदि मैं इन कॉन्स्टेबल्स को अपनी अकड़ नही दिखाता तो साले सुबह तक मारते रहते लेकिन ऐसा...."
"रहम करके अब कोई फिलॉसोफी मत झाड़ क्यूंकी बाहर जो तेरा बाप बैठा है ना उसके सामने गर्दन झुकाने मे ही भलाई है इसलिए प्लीज़ अब कोई नया बखेड़ा खड़ा मत करना...."मेरी बात ख़त्म होती उससे पहले ही सौरभ मुझ पर घायल शेर की तरह टूट पड़ा...
"मुझे पता होता कि तुम लोग ऐसे रोंदू हो तो कभी तुम लोग के साथ नही रहता..."
"कहे का रोंदू बे....भूल मत कि कॉलेज मे तेरी जो ये गुंडागर्दी चलती है ना वो हमी लोगो की बदौलत चलती है...एक बार तेरे उपर से हॉस्टिल का टॅग हट गया ना तो फिर तेरी कोई औकात नही...इसलिए अब शांत रहना..."
"किसी महान पुरुष ने सच ही कहा है कि......"
"अबे ओये महान पुरुष....ये आपस मे बात-चीत करना बंद करो और बाहर आओ...साहब बुला रहे है."मुझे बीच मे ही रोक कर कॉन्स्टेबल ने एक बार फिर अपना डंडा ज़मीन पर ठोका....
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हमारे लॉकप से बाहर निकलते ही कॉन्स्टेबल ने अपने हाथ मे पकड़े हुए डंडे से हमे बाहर जाने का इशारा किया ,जहाँ एस.पी. एक चेयर पर आराम से बैठकर कुच्छ पी रहा था और दो कॉन्स्टेबल उसके साथ वही पर खड़े थे.....सब लौन्डे अटेन्षन की पोज़िशन लेकर एस.पी. के सामने खड़े हो गये. सौरभ के प्लान के मुताबिक़ सौरभ सबसे आगे खड़ा था और मैं सबसे पीछे....
"जाओ , उसे लेकर आओ..." ग्लास टेबल पर रखकर एस.पी. ने अपने पास खड़े कॉन्स्टेबल से कहा और फिर हम लोगो की नज़र उस कॉन्स्टेबल पर अड़ गयी कि बीसी अब कौन आया है...कही कलेक्टर महाशय खुद तो नही पधारे है ,ये देखने के लिए कि हमलोगो को बराबर मार पड़ी है या नही.....
"नही लवडा...कलेक्टर आता तो महॉल ही कुच्छ अलग होता.ये कोई दूसरा झन्डू है, कही मेरा कोई फॅन तो नही..." बाहर खड़ी लाल बत्ती वाली गाड़ी की तरफ टकटकी लगाए मैने धीरे से कहा और कलेक्टर के लड़के को कॉन्स्टेबल का सहारा लेकर लन्गडाते हुए चलता देख मैं भौचक्का रह गया....
"ये लवडा....ये इतनी जल्दी कैसे होश मे आ गया, कल ही तो मारा था इसको....साले को जान से मार देना चाहिए था"
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"पहचाना इसे...इसी की वजह से तुमलोग यहाँ पर हो..."टेबल पर रखी ग्लास को हाथ मे लेकर हिलाते हुए एस.पी. बोला"इसने मुझे बताया कि इसे सिर्फ़ एक ने मारा है और मुझे पक्का यकीन है कि वो एक तुम मे से ही है ,इसलिए अपने आप बता दो कि वो कौन था...."
उस वक़्त एस.पी. के सामने जाने के सिवाय मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नही था ,क्यूंकी यदि मैं खुद सामने नही जाता तो फिर कलेक्टर का वो चूतिया लड़का अपनी टूटी हुई उंगली मेरी तरफ कर देता...इसलिए मैं अपना सर झुकाए आगे गया और मुझे अपनी तरफ आता देख एस.पी. को ये समझने मे बिल्कुल भी मुश्क़िल नही हुई कि वो महान पुरुष मैं ही हूँ, जिसने उसके मुंहबोले बेटे का ये हश्र किया था.
"तू....तूने मारा इसे..."
जवाब मे मैं एक दम मूर्ति के माफ़िक़ खड़ा रहा .कलेक्टर का लड़का तक़रीबन 5 मिनिट मे हमारे पास कछुए की चाल से चलते हुए नही बल्कि मैं कहूँ तो रेंगते हुए पहुचा और जब वो हमारे पास पहुचा तो उसे चेयर मे बैठने के लिए ही कयि मिनिट लग गये....
मैने कलेक्टर के लड़के पर नज़र डाली...माथे पर कही जगह गहरा निशान था और लवडे का आधा नाक छिल गया था और हाथ-पैर का तो पुछो मत ,साला लुला-लंगड़ा हो गया था कुच्छ हफ़्तो के लिए या फिर कुच्छ महीनो के लिए....लेकिन एक बात जो मुझे अंदर से खाए जा रही थी वो ये कि ये चूतिया(एस.पी.) अपने साथ इस दूसरे चूतिए को क्यूँ लाया है...कहीं ये हमे मुज़रा तो नही दिखाने वाला....
"ये था वो..."मुझे पास आने का इशारा करते हुए एस.पी. ने अपनी उंगलिया हवा मे घुमाई और मैं जैसे ही उसके पास गया ,उसने मेरा शर्ट अपने हाथो मे पकड़कर कलेक्टर के लड़के से एक बार फिर पुछा"यही था ना वो...."
"ह...ह..हां...."मरी हुई आवाज़ के साथ मेरे दुश्मन ने मुझपर मुन्हर लगा दिया.
"चल नीचे बैठ...घूरता क्या है बे , बैठ नीचे ज़मीन पर..."
"ये मैं नही करूँगा सर..."दबी हुई आवाज़ मे मैं बोला...
"अरे बैठ जा ना ज़मीन पर...सर से ज़ुबान क्यूँ लड़ा रहा है..."सौरभ एस.पी. का पक्ष लेते हुए बोला...
"कुच्छ भी कर लो, मैं ज़मीन पर नही बैठने वाला...."
"ओये, बैठाओ साले को मारकर ज़मीन पर..."
एस.पी. के मुँह से इतना सुनते ही एक कॉन्स्टेबल मेरे पास आया और दो-चार मुक्के मुझे झड़कर ,मुझे जबर्जस्ति ज़मीन पर बैठने के लिए मज़बूर कर दिया....
"अब चल साले माफी माँग मेरे बेटे से..."
अबकी बार मैने कोई मूव्मेंट नही किया...ना तो हाँ कहा और ना ही ना कहा...कोई इशारा तक नही किया कि मैं ये करूँगा भी या नही...बस जैसे ज़मीन पर बैठा था,वैसे ही बैठा रहा....
"जाओ ,जाकर सबको बाहर बुला लाओ और यदि ये माफी ना माँगे तो साले को घेरकर मारना...."
मेरा ज़मीर तो ये करने की इज़्ज़ज़त नही दे रहा था लेकिन फिर भी मैने ये किया और साला दूसरा कोई रास्ता भी तो नही था...क्यूंकी यदि मैं उस वक़्त उनकी बात नही मानता तो वो बीकेएल मुझे जान से ही मार देते....कलेक्टर के लड़के से माफी माँगने के बाद मैं जब खड़ा हुआ तो एस.पी. मुस्कुराते हुए बोला....
"तुझ जैसे लड़को को बहुत अच्छी तरीके से जानता हूँ, मैं...तुम लोगो को मारने-पीटने से कुच्छ नही होता,बल्कि तुम लोगो को तुम्हारी ही नज़र मे गिरा देना ही असली ज़ख़्म देना होता है...जो मैने तुझे अभी-अभी दिया है.अब तू ज़िंदगी भर अपना सर नही उठाएगा क्यूंकी जब-जब तू अपना सर उठाने की कोशिश करेगा ,तब-तब तुझे मैं और ये पोलीस स्टेशन तुझे याद आएगा....अब चल निकल जा यहाँ से क्यूंकी तेरे प्रिन्सिपल से मैने तुम लोगो को जल्दी छोड़ने का वादा किया है..."
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मैं वहाँ से बिल्कुल शांत चला जाता ,जब एस.पी. ने मुझे जाने के लिए कहा था लेकिन जब मैं पीछे मुड़ा तो मुझे सबसे पहले सौरभ की शक्ल दिखी ,जो सबसे आगे खड़ा था और फिर उसके द्वारा कही गयी बातें मुझे याद आई, जो उसने मुझसे लॉक अप के अंदर कहा था....उसका जवाब मैं लॉक अप के अंदर ही दे देता यदि कॉन्स्टेबल ने अपना डंडा पीटकर हमे बाहर आने के लिए ना कहा होता तो.....
मुझे तब बहुत गुस्सा आया था ,जब मेरी नसीहत पर चलने वाला अरुण मुझे नसीहत देने लगा था,लेकिन मैने खुद को कंट्रोल किया...मुझे तब भी बहुत गुस्सा आया था जब कॉन्स्टेबल्स हमे पीट रहे थे, लेकिन मैने खुद को कंट्रोल किया...मुझे तब भी बहुत गुस्सा आया था जब सौरभ आज सुबह मुझसे मेरी औकात की बात कर रहा था,लेकिन मैने खुद पर कंट्रोल किया और मुझे तब भी गान्ड-फाड़ गुस्सा आया था जब एस.पी. ने मुझे ज़मीन पर बैठवा कर कलेक्टर के लड़के से सॉरी बुलवाया ,लेकिन अबकी बार भी मैने खुद को कंट्रोल कर लिया पर जब पीछे पलट कर मैने सौरभ को देखा और उसकी कही हुई बात मुझे याद आई कि"मेरी औकात सिर्फ़ हॉस्टिल की वज़ह से है' तो अबकी बार मैं खुद पर कंट्रोल नही कर पाया और पीछे पलट कर चेयर पर बैठे कलेक्टर के लड़के की छाती पर कसकर एक लात मारा ,जिसके परिणामस्वरूप कलेक्टर का लड़का चेयर समेत नीचे ज़मीन पर जा गिरा....
"तू आज क्या बोल रहा था बे सौरभ कि तुम लोगो के कारण मेरी पॉवर है और यदि हॉस्टिल का टॅग मेरे नाम के पीछे से हट गया तो मैं कुच्छ भी नही...तो तू देख चूतिए...मेरी अकड़ तुमलोगो की वज़ह से नही है और मेरे नाम के पीछे से हॉस्टिल का टॅग हट जाने के बाद मेरा क्या होगा, वो तो बाद मे देखेंगे ,लेकिन तुम लोगो के पीछे से यदि मेरे नाम का टॅग हट गया तब देखना कि तुम लोगो का क्या होता है और बेटा तुम लोगो के अंदर कितना दम है ये मैने आज देख लिया....इसलिए अब यहाँ से जाओ और अपने मुँह मे कालिख पोतकर छिप जाओ.अबे सालो जितने तुम्हे लोगो के नाम याद नही होंगे ना उससे ज़्यादा मुझे कबीर के दोहे याद है ,इसलिए मुझे क्रॉस करने की कोशिश कभी मत करना...."गुस्से से काँपते हुए मैने अपनी गर्दन एस.पी. की तरफ घुमाई और बोला"और तू बे लोडू...खुद को समझ क्या रखा है बे..तू मेरा घमंड कम करेगा...तो सुन, तेरे अंदर जितना खून नही है ना उससे ज़्यादा मेरे अंदर घमंड भरा पड़ा है ,जिसे तू तो क्या ,तेरा बाप भी ख़त्म नही कर सकता और अब तू मुझे याद करके अपना सर शरम से झुकाएगा कि एक मामूली से लड़के ने तुझे तेरे ही थाने मे तेरे ही लोगो के बीच ,लोडू...चूतिए ,आबे...साले कहा था.अब तुझे जो उखड़ना है ,उखाड़ ले और अपने इस बकलुंड बेटे को यहाँ से ले जा ,वरना अबकी बार मैं लात छाती पर नही बल्कि गर्दन पर रखूँगा..."एक और लात उसकी छाती पर रखते हुए मैं चीखा और पिछले कई घंटो से जो जवालामुखी मेरे अंदर धधक रहा था, वो फाइनली फुट गया साथ ही ये अहसास दिलाते हुए कि अब ये लोग मुझे बहुत फोड़ेंगे.
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