Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:24 PM,
#12
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
आरती के ऊपर-नीचे होने से वो और भी ख़ूँखार हो गया था वो रामु को परेशान कर रहा था वो अपने जगह पर रह-ही नहीं रहा था अब तो उसे आजाद होना ही था और रामु को यह करना ही पड़ा

आरती ऊपर से रामु के होंठों से जुड़ी हुई अपने हाथों को वो भी रामु के शरीर पर चला रही थी उसके हाथों में बालों का गुछा आ रहा था जहां भी उसका हाथ जाता बाल ही बाल थे और वो भी इतने कड़े कि काँटे जैसे लग रहे थे पर आरती के नंगे शरीर पर वो कुछ अच्छे लग रहे थे यह बाल उसकी कामुकता को और भी बढ़ा रहे थे । रामु की आखें बंद थी पर आरती ने थोड़ी हिम्मत करके अपनी आखें खोली तो रामु के नंगे पड़े हुए शरीर को देखती रह गई कसा हुआ था मास पेशिया कही से भी ढीली नहीं थी थुलथुला पन नहीं था कही भी उसके पति की तरह । रामु में कोई कोमलता भी नहीं थी कठोर और बड़ा भी था बालों से भरा हुआ और उसके हाथ तो बस उसकी कमर के चारो और तक जाते थे कुछ जाँघो के बीच में गढ़ रहा था अगर उसका लण्ड हुआ तो बाप रे इतना बड़ा भी हो सकता है किसी का उसका मन अब तो रामू के लण्ड को आजाद करके देखने को हो रहा था वो अपने को रामू पर जिस तरह से घिस रही थी उसका पूरा अंदाज़ा रामु को था वो जानता था कि आरती अब पूरी तरह से तैयार थी पर वो क्या करे उसका मन तो अब तक इस हसीना के बदन से नहीं भरा था वो चाह कर भी उसे आजाद नहीं करना चाहता था पर इसी उधेड़ बुन में कब आरती उसके नीचे चली गई पता अभी नहीं चला और वो कब उसके ऊपर हावी हो गया नहीं पता वो आरती की पीठ को जकड़े हुए उसके होंठों को अब भी चूस रहा था


आरती के शरीर पर अब वो चढ़ने की कोशिश कर रहा था आरती की पैंटी में एक हाथ ले जाते हुए उसको उतारने लगा उतारने क्या लगभग फाड़ ही दी उसने बची कुची उसके पैरों से आजाद करदी पेटीकोट तो कमर के चारो और था ही जरूरत थी तो बस अपने साहब को आजाद करने की रामू होंठों से जुड़े हुए ही अपने हाथों से अपनी धोती को अलग करके अपने बड़े से अंडरवेयार को भी खोल दिया और अपने लण्ड को आजाद कर लिया और फिर से गुथ गया आरती पर अब उसे कोई चिंता नहीं थी वो अब अपने हर अंग से आरती को छू रहा था



अपने लण्ड को भी वो आरती की जाँघो के बीच में रगड़ रहा था उसके लिंग की गर्मी से तो आरती और भी पागल सी हो उठी अपने जाँघो को खोलकर उसने उसको जाँघो के बीच में पकड़ लिया और रामू से और भी सट गई अपने हाथों को रामू की पीठ के चारो ओर करके रामू काका को अपनी ओर खींचने लगी और आरती की इस हरकत से रामु और भी खुल गया जैसे अपनी बेटी को ही भोग रहा हो वो झट से आरती के शरीर पर छा गया और अपनी कमर को हिलाकर आरती के अंदर घुसने का ठिकाना ढूँडने लगा। आरती भी अब तक सहन ही कर रही थी पर रामु के झटको ने उसे भी अपनी जाँघो को खोलने और अपनी योनि द्वार को रामू के लण्ड के लिए स्वागत पर खड़े होना ही था सो उसने किया पर एक ही झटके में रामु उसके अंदर जब उतरा तो ....


आरती- ईईईईईईईईईईईईईईईई आआआआआआअह्ह कर उठी रामु का लण्ड था कि मूसल बाप रे मर गई आरती की चुत तो शायद फटकर खून निकला होगा आखें पथरा गई थी आरती कि इतना मोटा और कड़ा सा लण्ड जो कि उसके चुत में घुसा था अगर वो इतनी तैयार ना होती तो मर ही जाती पर उसकी चुत के रस्स ने रामु के लण्ड को आराम से अपने अंदर समा लिया पर दर्द के मारे तो आरती सिहर उठी। रामु अब भी उसके ऊपर उसे कस कर जकड़े हुए उसकी जाँघो के बीच में रास्ता बना रहा था। आरती थोड़ी सी अपनी कमर को हिलाकर किसी तरह से अपने को अड्जस्ट करने की कोशिश कर ही रही थी कि रामु का एक तेज झटका फिर पड़ा और आरती के मुख से एक तेज चीख निकल गई

पर वो तो रामु के गले में ही गुम हो गई रामु अब तो जैसे पागल ही हो गया था ना कुछ सोचने की जरूरत थी और नहीं ही कुछ समझने की बस अपने लण्ड को पूरी रफ़्तार से आरती की चुत में डाले हुए अपनी रफ़्तार पकड़ने में लगा था उसे इस बात की जरा भी चिंता नहीं थी कि आरती का क्या होगा उसे इस तरह से भोगना क्या ठीक होगा बहुत ही नाजुक है और कोमल भी पर रामू तो बस पागलो की तरह अपनी रफ़्तार बढ़ाने में लगा था और आरति मारे दर्द के बुरी तरह से तड़प रही थी वो अपनी जाँघो को और भी खोलकर किसी तरह से रामु को अड्जस्ट करने की कोशिश कर रही थी पर रामु ने उसे इतनी जोर से जकड़ रखा था कि वो हिल तक नहीं पा रही थी उसके शरीर का कोई भी हिस्सा वो खुद नहीं हिला पा रही थी जो भी हिल रहा था वो बस रामु के झटको के सहारे ही था रामु अपनी स्पीड पकड़ चुका था और आरति के अंदर तक पहुँच गया था हर एक धक्के पर आरति चिहुक कर और भी ऊपर उठ जाती थी पर रामु को क्या आज जिंदगी में पहली बार वो एक ऐसी हसीना को भोग रहा था जिसकी की कल्पना वो तो नहीं कर सकता था वो अब कोई भी कदम उठाने को तैयार था भाड़ में जाए सबकुछ वो तो इसको अपने तरीके से ही भोगेगा और वो सच मुच में पागलो की तरह से आरति के सारे बदन को चूम चाट रहा था और जहां जहां हाथ पहुँचते थे बहुत ही बेदर्दी के साथ दबा भी रहा था


अपने भार से आरति को इस तरह से दबा रखा था कि आरती क्या आरती के पूरे घर वाले भी जमा होकर रामु को हटाने की कोशिश करेंगे तो नहीं हटा पाएँगे और आरती जो कि रामु के नीचे पड़े हुए अपने आपको नर्क के द्वार पर पा रही थी अचानक ही उसके शरीर में अजीब सी फुर्ती सी आ गई । रामु की दरिंदगी में उसे सुख का एहसास होने लगा उसके शरीर के हर अंग को रामु के इस तरह से हाथों रगड़ने की आदत सी होने लगी थी यह सब अब उसे अच्छा लगने लगा था वो अब भी नीचे पड़ी हुई रामु के धक्कों को झेल रही थी और अपने मुख से हर चोट पर चीत्कार भी निकालती पर वो तो रामु के गले मे ही गुम हो जाती अचानक ही रामु की स्पीड और भी तेज हो गई और उसकी जकड़ भी बहुत टाइट हो गई अब तो आरति का सांस लेना भी मुश्किल हो गया था पर उसके शरीर के अंदर भी एक ज्वालामुखी उठ रहा था जो कि बस फूटने ही वाला था हर धक्के के साथ आरति का शरीर उसके फूटने का इंतजार करता जा रहा था और रामू के तने हुए लण्ड का एक और जोर दार झटका उसके अंदर कही तक टच होना था कि आरती का सारा शरीर काप उठा और वो झड़ने लगी और झड़ती ही जा रही थी आरति रामु से बुरी तरह से लिपट गई अपनी दोनों जाँघो को ऊपर उठा कर रामु की कमर के चारो तरफ एक घेरा बनाकर शायद वो रामु को और भी अंदर उतार लेना चाहती थी और रामु भी एक दो जबरदस्त धक्कों के बाद झड़ने लगा था वो भी आरती के अंदर ढेर सारा वीर्य उसके लण्ड से निकाला था जो कि आरति की योनि से बाहर तक आ गया था पर फिर भी रामु आख़िर तक धक्के लगाता रहा जब तक उसके शरीर में आख़िरी बूँद तक बचा था और उसी तरह कस कर आरति को अपनी बाहों में भरे रहा, दोनों कालीन में वैसे ही पड़े रहे। आरति के शरीर में तो जैसे जान ही नहीं बची थी वो निढाल सी होकर लटक गई थी । रामु काका जो कि अब तक उसे अपनी बाहों में समेटे हुए थे अब धीरे-धीरे अपनी गिरफ़्त को ढीला छोड़ रहे थे और ढीला छोड़ने से आरति के पूरे शरीर में जैसे जान ही वापस आ गई थी उसे सांस लेने की आजादी मिल गई थी वो जोर-जोर से सांसें लेकर अपने आपको संभालने की कोशिश कर रही थी
रामु आरती पर से अपनी पकड़ ढीली करता जा रहा था और अपने को उसके ऊपर से हटाता हुआ बगल में लुढ़क गया था वो भी अपनी सांसों को संभालने में लगा था रूम में जो तूफान आया था वो अब थम चुका था दोनों लगभग अपने को संभाल चुके थे लेकिन एक दूसरे की ओर देखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे रामु वैसे ही आरति की ओर ना देखते हुए दूसरी तरफ पलट गया और पलटा हुआ अपनी धोती ठीक करने लगा अंडरवेर पहना और अपने बालों को ठीक करता हुआ धीरे से उठा और दबे पाँव कमरे से बाहर निकल गया आरती जो कि दूसरी और चेहरा किए हुए थी रामु की ओर ना उसने देखा और ना ही उसने उठने की चेष्टा की वो भी चुपचाप वैसे ही पड़ी रही और सबकुछ ध्यान से सुनती रही उसे पता था कि रामू काका उठ चुके हैं और अपने आपको ठीक ठाक करके बाहर की ओर चले गये है आरति के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान थी उसके चेहरे पर एक संतोष था एक अजीब सी खुशी थी आखों में और होंठों को देखने से यह बात सामने आ सकती थी पर वो वैसे ही लेटी रही और कुछ देर बाद उठी और अपने आपको देखा उसके शरीर में सिर्फ़ पेटीकोट था जिसका की नाड़ा कब टूट गया था उसे नहीं पता था और कुछ भी नहीं था हाँ… था कुछ और भी रामू के हाथों और दाँतों के निशान और
उसका पूरा शरीर थूक और पसीने से नहाया हुआ था वो अपने को देखकर थोड़ा सा मुस्कुराइ आज तक उसके शरीर में इस तरह के दाग कभी नहीं आए थे होंठों पर एक मुस्कान थी रामु काका के पागलपन को वो अपने शरीर पर देख सकती थी जो की उसने कभी भी अपने पति से नहीं पाया था वो आज उसने रामू काका से पाया था उसकी चुचियों पर लाल लाल हथेली के निशान साफ दिख रहे थे वो यह सब देखती हुई उठी और पेटीकोट को संभालते हुए अपनी ब्लाउस और ब्रा को भी उठाया और बाथरूम में घुस गई जब वो बाथरूम से निकली तो उसे बहुत जोर से भूख लगी थी याद आया कि उसने तो खाना खाया ही नहीं था

अब क्या करे नीचे जाने की हिम्मत नहीं थी रामू काका को फेस करने की हिम्मत वो जुटा नहीं पा रही थी पर खाना तो खाना पड़ेगा नहीं तो भूख का क्या करे घड़ी पर नजर गई तो वो सन्न रह गई 1: 30 हो गये थे तो क्या रामु और वो एक दूसरे से लगभग दो घंटे तक सेक्स का खेल खेल रहे थे। रवि तो 5 से 10 मिनट में ही ठंडा हो जाता था और आज तो कमाल हो गया । आरती का पूरा शरीर थक चुका था उसे हाथों पैरों में जान ही नहीं थी पूरा शरीर दुख रहा था हर एक अंग में दर्द था और भूख भी जोर से लगी थी।

थोड़ी हिम्मत करके उसने नीचे जाने का फैसला किया।

रामु की भी हालत खराब थी वो जब नीचे आया तो उसके हाथ पाँव फूले हुए थे वो सोच नहीं पा रहा था कि वो अब बहू को कैसे फेस करेगा वो अपने आपको कहाँ छुपाए कि बहू की नजर उसपर ना पड़े पर जैसे ही वो नीचे आया तो उसके मन में एक चिंता घर कर गई थी और खड़ा-खड़ा किचेन में यही सोच रहा था कि बहू ने खाना तो खाया ही नहीं

मर गये अब क्या होगा मतलब आरति को खाना ना खिलाकर वो तो किचेन साफ भी नहीं कर सकता और वो बहू को कैसे नीचे बुलाए और क्या बहू नीचे आएगी कही वो अपने कमरे से रवि या फिर सोनल को फोन करके बुला लिया तो कही पोलीस के हाथों उसे दे दिया तो क्या यार क्या कर दिया मैंने क्यों किया यह सब वो अपने हाथ जोड़ कर भगवान को प्रार्थना करने लगा प्लीज भगवान मुझे बचा लो प्लीज अब नहीं करूँगा उसके आखों में आँसू थे वो सच मुच में शर्मिंदा था जिस घर का नमक उसने खाया था उसी घर की इज़्ज़त पर उसने हाथ डाला था अगर किसी को पता चला तो उसकी इज़्ज़त का क्या होगा गाँव में भी उसकी थू-थू हो जाएगी और तो और वो साहब और सोनल को क्या मुँह दिखाएगा सोचते हुए वो
खड़ा ही था की किचन के दरवाजे पे आरति को खड़े देखा, डर के साथ हकलाहट में वो सबकुछ एक साथ कह गया, बहु रानी खाना खा लो, पर दूसरी ओर से कुछ भी आवाज ना आने से वो फिर घबरा गया
रामू-- बहुऊऊ,

आरति- खाना लगा दो

आरति के पास और कुछ कहने को नहीं था अगर भूखी नहीं होती तो शायद नीचे भी ना आती पर क्या करे उसने फिर से वही सुबह वाला सूट पहना और उसे रामु काका जल्दी-जल्दी खाने के टेबल पर उसका खाना लगा रहे थे वो भी बिना कुछ आहट किए चुपचाप डाइनिंग टेबल पर पहुँची आरति को आता सुनकर ही रामु जल्दी से किचेन में वापस घुस गया आरति भी नीचे गर्दन किए खाना खाने लगी थी जल्दी-जल्दी में क्या खा रही थी उसे पता नहीं था पर जल्दी से वो यहां से निकल जाना चाहती थी किसी तरह से उसने अपने मुँह में जितनी जल्दी जितना हो सकता था ठूँसा और उठ कर वापस अपने कमरे की ओर भागी नीचे बेसिन पर हाथ मुख भी नहीं धोया था उसने
कमरे में आकर उसने अपने मुँह के नीवाले को ठीक से खाया और बाथरूम में मुँह हाथ धोकर बिस्तर पर लेट गई अब वो सेफ थी पर अचानक ही उसके दिमाग में बात आई कि उसे तो शाम को ड्राइविंग पर जाना था अरे यार अब क्या करे उसका मन तो बिल्कुल नहीं था उसने फोन उठाया और रवि को रिंग किया

रवि- हेलो

आरति- सुनिए प्लीज आज ना में ड्राइविंग पर नहीं जाऊँगी कल से चली जाऊँगी ठीक है

रवि- हहा ठीक है क्यों क्या हुआ

आरति- अरे कुछ नहीं मन नहीं कर रहा कल से ठीक है

रवि- हाँ ठीक है कल से चलो रखू

आरति- जी

और फोन काट गया
आरती ने भी फोन रखा और बिस्तर पर लेटे लेटे सीलिंग की ओर देखती रही और पता नहीं क्या सोचती रही और कब सो गयी मालूम ही नही चला।
शाम को जब वो उठी तो एक अजीब सा एहसास था उसके शरीर में एक अजीब सी कशिश थी उसके अंदर एक ताजगी सी महसूस कर रही थी वो सिर हल्का था शरीर का दर्द पता नहीं कहाँ चला गया था सोई तो ऐसी थी कि जनम में ऐसी नींद उसे नहीं आई थी

बहुत अच्छी और फ्रेश करने वाली नींद आई थी उठकर जब आरती बाथरूम से वापस आई तो मोबाइल पर रिंग बज रहा था उसने देखा रवि का था
आरती- हेलो
रवि- कहाँ थी अब तक
आरती- क्यों क्या हुआ
रवि--- देखो 6 7 बार कॉल किया
आरती- अरे में तो सो रही थी और अभी ही उठी हूँ
रवि- अच्छा बहुत सोई हो आज तुम
आरती- जी कहिए क्या बात है
रवि- पार्टी में में चलना है रात को
आरति- कहाँ
रवि- अरे बर्तडे पार्टी है मेहता जी के बेटे के बेटे का
आरति- हाँ हाँ ठीक है कितने बजे
‌रवि- वही रात को 9:30 -10 बजे करीब तैयार रहना
आरती- ठीक है
और आरती का फोन कट गया अब आरती ने फ़ोन को देखा कि 6 मिस्ड कॉल थे उसे सेल पर
कितना सोई थी आज वो फ्रेश सा लग रही थी वो
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RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस. - by sexstories - 08-27-2019, 01:24 PM

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