Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:24 PM,
#13
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
मिरर के सामने खड़ी होकर अपने को देखा तो बिल्कुल फ्रेश लग रही थी चेहरा खिला हुआ था और आखें भी नींद के बाद भी खिली हुई थी अपना ड्रेस और बाल को ठीक करने के बाद वो नीचे जाती कि दरवाजा नॉक हुआ

सोनल-- मम्मी जी, चाय नहीं पीनी क्या

आरति- आती हूँ सोनल। चलो।

और भागती हुई नीचे चली गई रामू काका का कही पता नहीं था शायद किचेन में थे। सोनल डाइनिंग टेबल पर थी और आरती का ही इंतजार कर रही थी। आरती भी जाकर सोनल के पास बैठ गई और दोनों चाय पीने लगे

सोनल- मम्मी, पापा का फोन आया था कह रहै थे कि कोई पार्टी में जाना है

आरती--- हां बात हुई थी मेरी भी।

सोनल- हाँ पापा कह रहै थे कि मम्मी फोन नहीं उठा रही है

आरती- सो रही थी सुनाई नहीं दिया

सोनल- हाँ… मैंने भी यही कहा था (कुछ सोचते) थोड़ा बहुत घूम आया करो मम्मी जी पूरा दिन घर में रहने से आप भी पुम्मी आंटी जैसे मोटी हो जाएगी

आरती- अच्छा जी कहाँ जाऊ

सोनल- देखो मम्मी पापा को तो कमाने से फुर्सत नहीं है पर आप तो पढ़ी लिखी है घर के चार दीवारी से बाहर निकलो और देखो दुनियां में क्या चल रहा है और कुछ खर्चा भी किया करो, क्या करेंगे इतना पैसा जमा कर कोई तो खर्चा करे । मुझे तो करने देते नही।हीहीही हीहीही।

आरती- अच्छा दादी अम्मा जी ही ही ही ही

दोनों माँ और बेटी में हँसी मजाक चल रहा था और एक दूसरे को सिखाने में लगे थे
पर आरती का मन तो आज बिल्कुल साफ था आज का अनुभव उसके जीवन में जो बदलाब लाने वाला था उससे वो बिल्कुल अंजान थी। बातों में उसे दोपहर की घटना को वो भूल चुकी थी या फिर कहिए कि अब भी उसका ध्यान उस तरफ नहीं था वो तो सोनल के साथ हँसी मजाक के मूड में थी और शाम की पार्टी में जाने के लिए तैयार होने को जा रही थी। बहुत दिनों के बाद आज वो कही बाहर जा रही थी
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josef
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Re: आजाद पंछी जम के चूस
Post by josef » 22 Jan 2019 11:00

चाय पीने के बाद सोनल अपने कमरे की ओर चली गई और आरती अपने कमरे की ओर तैयार जो होना था वारड्रोब से साडियो के ढेर से अपने लिए एक जड़ी की साड़ी निकाली और उसके साथ ही मैचिंग ब्लाउस रवि को बहुत पसंद था एक ड्रेस

यही सोचकर वो तैयारी में लग गई 9 तक रवि आ जाएगा सोचकर वो जल्दी से अपने काम में लग गई

करीब 9 15 तक रवि आ गया और अपने कमरे में पहुँचा कमरे में आरति लगभग तैयार थी । रवि को देखकर आरती ड्रेसिंग टेबल छोड़ कर खड़ी हो गई और मुस्कुराते हुए अपने आपको रवि के सामने प्रेज़ेंट करने लगी

रवि जो कि उसका दिमाग़ कही और था, आरती की सुंदरता को अपने सामने खड़े इस तरह की साड़ी में देखता रहता । आरती इस समय एक महीन सी साड़ी पहने हुए थी स्लीव्ले ब्लाउज था और चूचियां को समझ के ढका था पर असल में दिखाने की ज्यादा कोशिश थी साड़ी का पल्लू भी दाई चुचि को छोड़ कर बीच से होता हुआ कंधे पर गया था उससे दाई चूची बाहर की और उछलकर मुँह उठाए देख रहा था

लेफ्ट चुचि ढका क्या था सामने वाले को निमंत्रण था कि कोशिश करो तो शायद कुछ ज्यादा दिख जाए क्लीवेज साफ-साफ नीचे तक दिख रहे थे मुस्कुराते हुए आरती ने पलटकर भी रवि को अपना हुश्न दिखाया पीछे से पीठ आधे से ज्यादा खुले हुए थे पतली सी पट्टी ही उसे सामने से पकड़ी हुई थी और वैसे ही कंधे पर से पट्टी उतरी थी

रवि- (सिटी बजाते हुए) क्या बात है आज कुछ ज्यादा ही तैयार हो हाँ… कहाँ बिजली गिराने वाली हो
आरती- हीही और कहाँ जहां गिर जाए यहां तो कुछ फरक नहीं पड़ता क्यों है ना
रवि- हाँ… फिर आज नहीं जाते यही बिजली गिराती रहो ठीक है
आरती- ठीक है
रवि हँसते हुए बाथरूम में घुस गया और आरती भी वापस अपने आपको मिरर में सवारने का अंतिम टच दे रही थी
रवि भी जल्दी से तैयार होकर आरति को साथ में लेकर नीचे की चल दिया। रवि के साथ आरती भी नीचे की जा रही थी डाइनिंग रूम के पर करते हुए वो दोनों सोनल के कमरे की तरफ चल दिए ताकि उसको बोल कर जा सके
रवि- सोनल बेटा हम जा रहे है
सोनल- ठीक है पापा जी
रवि- बेटा जी, खाना खाकर जल्दी सो जाना।
सोनल--- ठीक है पापा जी। अंदर से ही आवाज दे रही थी।
रवि और आरती मुड़े और पलटकर वो बाहर की ओर चले
रवि- अरे रामु काका दरवाजा बंद कर लेना ।
आरती के शरीर में एक सिहरन सी फेल गई जैसे ही उसने रामू काका का नाम सुना उसने ना चाह कर भी पीछे पलटकर किचेन की ओर देख ही लिया शायद पता करना चाहती हो कि रामु काका ने उसे इस तरह से तैयार हुए देखा की नहीं
क्यों चाहती थी, आरती की रामू काका उसे देखे क्यों? पर आरती थोड़ा सा रुक गई । रवी आगे की ओर निकल गया था पलटकर आरती ने जब किचेन की ओर देखा तो पाया कि किचेन के पीछे के दरवाजे से कोई बाहर की ओर निकलते हुए भागा है।
किचेन में एक दरवाजा पीछे की तरफ भी खुलता था जिससे रामु कचरा बाहर फैंकता था या फिर नौकरो के आने जाने का था । बाहर निकलने वाला शायद कौन होगा
पर जो भी था इस समय किचेन में क्या कर रहा था शायद पानी या फिर कुछ खाने आया होगा जैसे ही वो बाहर को निकला वैसे ही रामू किचेन के दरवाजे पर दरवाजा बंद करने को डाइनिंग स्पेस पर निकलकर आया
अब रामु और आरती एकदम आमने सामने थे। रवि बाहर निकल गया था। आरती ड्राइंग रूम के बीच में खड़ी थी फुल्ली ड्रेसअप बिजली गिराती हुई कामसुख और मादकता लिए हुए सुंदर और सेक्सी दिखती हुई और किसी भी साधु या फिर सन्यासी की नियत को हिलाने के लिए ,

जैसे ही रामु और आरती की नजर आपस में टकराई दोनों जैसे जमीन में धस्स गये थे दोनों एक दूसरे को देखते रह गये। रामु की नजर तो जैसे जम गई थी। आरति के ऊपर नीचे से ऊपर तक एकटक निहारता रह गया वो आरती। को क्या लग रही थी किसी अप्सरा की तरह और रामू को देखकर आरती को दोपहर का वाकया याद आ गया कि कैसे रामू ने उसे रोंदा था और कैसे उसके हाथ और होंठों ने उसे छुआ और चूमा था हर वो पहलू दोनों के जेहन में एक बार फिर ताजा हो गई थी दोनों के आँखों में एक सेक्स की लहर दौड़ गई थी । आरती का पूरा शरीर सिहर गया था उसके जाँघो के बीच में हलचल मच गई थी निपल्स ब्रा के अंदर सख़्त हो गये थे

रामू का भी यही हाल था उसके धोती के अंदर एक बार फिर उसके पुरुषार्थ ने चिहुक कर अपने अस्तित्व की आवाज को बुलंद कर दिया था वो अपने को आजाद करने की गुहार लगाने लग गया था दोनों खड़े हुए एक दूसरे को देखते रह गये किसी ने भी आगे बढ़ने की या फिर नजर झुका के हटने की कोशिश नहीं की
पर बाहर से रवि की आवाज ने आरती और रामु को चौंका दिया। आरति पलटकर जल्दी से गाड़ी की ओर भाग गयी।
बाहर रवि गाड़ी के अंदर बैठ चुका था और गाड़ी का गेट खुला था । आरती ने अपने पल्लू को संभाल कर जल्दी से गाड़ी के पास आई और गाड़ी में बैठ गयी।

रामु मंत्रमुग्ध सा आरती के यौवन को निहारता रहा

और अपने आँखों में उसकी सुंदरता को उतारता रहा कामया ने एक बार ओर रामू काका की ओर देखा और चुपचाप दरवाजे से अंदर जाकर अपनी सीट पर बैठ गई । रामु भी लगभग दौड़ता हुआ दरवाजा बंद करने लगा। बाद में उसे पता ही नहीं चला था कि कैसे दो घंटे बीत गये थे और वो सिर्फ़ बहू के बारे में ही सोचता रहा गया था वो अपने अंदर एक ग्लानि से पीड़ित हो गया था छि छी वो क्या सोच रहा था जिनका वो नमक खाता है उनके घर की बहू के बारे में वो क्या सोच रहा था रवि को उसने दो साल का देखा था और तब से वो इस घर का नौकर था । नहीं उसे यह सब नहीं सोचना चाहिए यह गलत है वो कोई जानवर तो नहीं है वो एक इंसान है जो गलत है वो उसके लिए भी गलत है वो बाहर गार्डन में बैठा था।

पर उसका दिमाग पूरा समय इसी सोच में डूबा था। पर उसके मन का वो क्या करे वो चाह कर भी अपनी नजर बहू के ऊपर से नहीं हटा पाया था पर घर लौटते समय उसने एक बार भी बहू की ओर नहीं देखा था उसने अपने मन पर काबू पा लिया था इंसान अगर कोई चीज ठान ले तो क्या वो नहीं कर सकता बिल्कुल कर सकता है उसने अपने दिमाग पर चल रहे ढेर सारे सवाल को एक झटके से निकाल दिया और फिर से एक नमक हलाल नोकर के रूप में आ गया और गाड़ी घर के अंदर की ओर तेजी से दौड़ चलो थी अंदर बिल्कुल सन्नाटा था घर के गेट पर चौकी दार खड़ा था गाड़ी आते देखकर झट से दरवाजा खुल गया गाड़ी की आवाज से अंदर से रामू भी दौड़ कर आया और घर का दरवाजा खोलकर बाजू में सिर झुकाए खड़ा हो गया।

आरती भी जल्दी से अपनी नजर को नीचे किए रामू काका को पार करके सीधे सीडियो की ओर भागी और अपने रूम में पहुँची रूम में जाकर देखा कि रवि बाथरूम में है तो वो अपनी साड़ी उतारकर सिर्फ़ ब्लाउस और पेटीकोट में ही खड़ी होकर अपने आपको मिरर पर निहारती रही

वो जानती थी कि रवि के बाहर आते ही वो उसपर टूट पड़ेगा इसलिए वो वैसे ही खड़ी होकर उसका इंतजार करती रही हमेशा रवि उसे घूमके आने के बाद ऐसे ही सिर्फ़ साड़ी उतारने को ही कहता था बाकी उसका काम था आग्याकारी पत्नी की तरह आरती खड़ी रवि का इंतजार कर रही थी और बाथरूम का दरवाजा खुला । आरती को मिरर के सामने देखकर रवि भी उसके पास आ गया और पीछे से आरती को बाहों में भरकर उसके चूचियां को दबाने लगा

आरती के मुख से एक अया निकली और वो अपने सिर को रवि के कंधों के सहारे छोड़ दिया और रवि के हाथों को अपने शरीर में घूमते हुए महसूस करती रही वो रवि का पूरा साथ देती रही और अपने आपको रवि के ऊपर न्योछाबर करने को तैयार थी। रवि के हाथ आरती की दोनों चुचियों को छोड़ कर उसके पेट पर आ गये थे और अब वो आरती की नाभि को छेड़ रहा था वो अपनी उंगली को उसकी नाभि के अंदर तो कभी बाहर करके आरती को चिढ़ा रह था । अपने होंठों को आरती के गले और गले से लेजाकर उसके होंठों पर रखकर वो आरती के होंठों से जैसे सहद को निकालकर अपने अंदर लेने की कोशिश कर रहा था। आरति भी नहीं रहा गया वो पलटकर रवि की गर्दन के चारो और अपनी बाहों को पहना कर खुद को रवि से सटा लिया और अपने पेट और चुत को वो रवि से रगड़ने लगी थी उसके शरीर में जो आग भड़की थी वो अब रवि ही बुझा सकता था

वो अपने आपको रवि के और भी नजदीक ले जाना चाहती थी और अपने होंठों को वो रवि के मुख में घुसाकर अपनी जीब को रवि के मुख में चला रही थी रवि का भी बुरा हाल था वो भी पूरे जोश के साथ आरती के बदन को अपने अंदर समा लेना चाहता था वो भी आरती को कस्स कर अपने में समेटे हुए धम्म से बिस्तर पर गिर पड़ा और गिरते ही रवि आरति के ब्लाउसपर टूट पड़ा जल्दी-जल्दी उसने एक झटके में आरति के ब्लाउसको हवा में उछाल दिया और ब्रा भी उसके कंधे से उसी तरह बाहर हो गई थी । आरति के ऊपर के वस्त्र के बाद रवि ने आरति के पेटीकोट और पैंटी को भी खींचकर उत्तार दिया और बिना किसी देरी के वो आरती के अंदर एक ही झटके में समा गया


आरती उउउफ तक नहीं कर पाई अऔर रवि उसके अंदर था अंदर और अंदर और भी अंदर और फिर रवि किसी पिस्टन के तरह आरति के अंदर-बाहर होता चला गया । आरती के अंदर एक ज्वार सा उठ रही थी और वो लगभग अपने शिखर पर पहुँचने वाली ही थी। रवि जिस तरह से उसके शरीर से खेल रहा था उसको उसकी आदत थी वो रवि का पूरा साथ दे रही थी और उसे मजा भा आ रहा था उधर रवि भी अपने आपको जब तक संभाल सकता था संभाल चुका था अब वो भी रवि के शरीर के ऊपर ढेर होने लग गया था अपनी कमर को एक दो बार आगे पीछे करते हुए वो निढाल सा आरती के ऊपर पड़ा रहा और आरति भी रवि के साथ ही झड चुकी थी और अपने आपको संतुष्ट पाकर वो भी खुश थी वो रवि को कस्स कर पकड़े हुए उसके चेहरे से अपना चेहरा घिस रही थी और अपने आपको शांत कर रही थी जैसे ही रवि को थोड़ा सा होश आया वो लुढ़क कर आरति के ऊपर से हाथ और अपने तकिये पर सिर रख कर आरति की ओर देखते हुए
रवि- स्वीट ड्रीम्स डार्लिंग

आरती- स्वीट ड्रीम्स डियर और उठकर वैसे ही बिना कपड़े के बाथरूम की ओर चल दी। तभी उसे खिड़की के बाहर फिर से साया नजर आया। आज फिर वो न्नगी थी खिड़की पर जा नही सकी। वो सोचतेहुए बाथरूम में गुस गयी। जब वो बाहर आई तो रवि सो चुका था और वो अपने कपड़े जो कि जमीन पर जहां तहाँ पड़े थे उसको समेट कर वारड्रोब में रखा और अपनी जगह पर लेट गई और सीलिंग की ओर देखते हुए रवि की तरफ नज़रें घुमा ली जो कि गहरी नींद में था। आरति अपनी ओर पलटकर सोने की कोशिश करने लगी और बहुत ही जल्दी वो भी नींद के आगोस में चली गई।

सुबह रोज की तरह वो लेट ही उठी। रवि बाथरूम में था वो भी उठकर अपने आपको मिरर में देखने के बाद रवि का बाथरूम से निकलने का वेट करने लगी

जब रवि निकला तो वो भी बाथरूम में घुस गई और कुछ देर बाद दोनों चेंज करके नीचे सोनल के साथ चाय पीरहे थे। आरती और रवि एक दूसरे से बातों में इतना व्यस्त थे कि सोनल का ध्यान किसी को नहीं था और न हीं सोनल को कोई इंटेरस्ट था इन सब बातों में वो तो बस अपने आप में ही खुश रहने वाली लड़की थी और कोई ज्यादा अपेक्षा नहीं थी उसे किसी से।
अपने घर वालों से एक तो किसी बात की बंदिश नहीं थी उसे यहां और ना ही कोई रोक टोक और नहीं ही कोई काम था तो क्या शिकायत करे । वो बस अपने मे खुश रहती थी। न ही स्कूल में किसी से ज्यादा मेलजोल। सबकी चाय खतम हुई और सब अपने कमरे की ओर चल दिये। पूरे घर में फिर से शांति सब अपने कमरे में जाने की तैयारी में लगे थे। आरती वही बिस्तर बैठी रवि के बाथरूम से निकलने की राह देख रही थी और उसके कपड़े निकालकर रख दिए थे वो बैठे बैठे सोच रही थी कि रवि बाथरूम से निकलते ही जल्दी से अपने कपड़े उठाकर पहनने लगा
रवि-् हाँ… आरती आज तुम क्या गाड़ी चलाने जाओगी

आरती- आप बताइए

रवि- नहीं नहीं मेरा मतलब है कि शायद मैं थोड़ा देर से आऊँगा तो अगर तुम भी कही बीजी रहोगी तो अपने पति की याद थोड़ा कम आएगी हीही

आरति- कहिए तो पूरा दिन ही गाड़ी चलाती रहूं

रवि- अरे यार तुमसे तो मजाक भी नहीं कर सकते

आरती- क्यों आएँगे लेट

रवि- काम है यार

आरती- ठीक है पर क्या मतलब कब तक चलाती रहूं

रवि- अरे जब तक तुम्हें चलानी है तब तक और क्या मेरा मतलब था कि कोई जरूरत नहीं है जल्दी बाजी करने की
आरती- ठीक है पर क्या रात को इतनी देर तक में वहां ग्राउंड पर मनोज अंकल के साथ मेरा मतलब

रवि- अरे यार तुम भी ना , मनोज अंकल हमारे बहुत ही पुराने जानकार है अपनी जान दे देंगे पर तुम्हें कुछ नहीं होने देंगे

आरती- जी पर

रविवि- क्या पर वर छोड़ो मैं छोड़ दूँगा तुम तैयार रहेना ठीक है जब भी आए चली जाना

आरति- जी
और दोनों नीचे की ओर चल दिए डाइनिंग रूम में खाना लगा था। रवि के बैठ-ते ही आरति ने प्लेट मे खाना लगा दिया और पास में बैठकर रवि को खाते देखती रही । रवि जल्दी-जल्दी अपने मुख में रोटी और सब्जी ठूंस रहा था और जल्दी से हाथ मुँह धोकर बाहर को लपका रवि के जाने के बाद आरती भी अपने रूम की ओर चल दी पर जाते हुए उसे रामु काका डाइनिंग टेबल के पास दिख गये वो झूठे प्लेट और बाकी का समान समेट रहे थे। आरती के कदम एक बार तो लडखडाये फिर वो सम्भल कर जल्दी से अपने कमरे की ओर लपकी और जल्दी से अपने कमरे में घुसकर दरवाजा लगा लिया पता नहीं क्यों उसे डर लग रहा था अभी थोड़ी देर में ही सोनल भी चली जाएँगी और तब वो क्या करेगी अभी आते समय उसने रामू काका को देखा था पता नहीं क्यों उनकी आखों में एक आजीब सी बात थी की उनसे नजर मिलते ही वो काप गई थी उसकी नजर में एक निमंत्रण था जैसे की कह रहा था कि आज का क्या आरति।
बाथरूम में जल्दी से घुसी और जितनी जल्दी हो सके तैयार होकर नीचे जाने को तैयार थी जब उसे लगा कि सोनल डाइनिंग टेबल पर पहुँच गयी होगी तो वो भी सलवार कुर्ता पहने हुए डाइनिंग टेबल पर पहुँच गई और सोनल के पास बैठ गई । सोनल को भी कोई आपत्ति नहीं थी या फिर कोई शक या शुबह नहीं। रामु काका ने भी आरती का प्लेट लगा दिया और आरती ने नज़रें झुका कर अपना खाना शुरू रखा ।


और सोनल की ओर देखते हुए

आरती- हाँ…सोनल बेटा आज मुझे जाना है गाड़ी सीखने, तुम शाम को घर पर रहना।

सोनल- जी मम्मी जी, रामु काका है ना और मोनिका दी को बुला लुंगी।

और आरति के सोए हुए अरमान फिर से जाग उठे थे जिस बात को वो भूल जाना चाहती थी । सोनल ने एक बार फिर से याद दिला दिया था वो आज अकेले नहीं रहना चाहती थी और ना ही रामु काका के करीब ही आना चाहती थी कल की गलती का उसे गुमान था वो उसे फिर से नहीं दोहराना चाहती थी पर ना जाने क्यों जैसे ही सोनल ने रामु काका का नाम लिया तो उसे कल की दिन की घटना याद आ गई थी और फिर खाते खाते रात की बात

उसके शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई थी वो ना चाहते हुए भी एक जोर की सांस छोड़ी और अपने जाँघो को आपस में जोड़ लिया और नज़रें झुका के खाने लगी पर मन था कि बार-बार उसके जेहन में वही बात याद डालती जा रही थी वो आपने आपसे लड़ने लगी थी अपने मन से या फिर कहिए अपने दिमाग से बार-बार वो अपनी निगाहे उठाकर की ओर देखने लगी थी कि शायद कोई और बात हो

तो वो यह बात भूलकर कहीं और इन्वॉल्व हो जाए पर कहाँ सेक्स एक ऐसा खेल है या फिर कहिए एक नशा है कि पेट भरने के बाद सबसे जरूरी शारीरिक भूक पेट की भूख बुझी नहीं कि पेट के नीचे की चिंता होने लगती है और,,,,
आरती तो एक बार वो चख चुकी थी और उसका पूरा मजा भी ले चुकी थी वो तो बस उसको अवाय्ड करना चाहती थी वो यह अच्छे से जानती थी, कि अगर वो ना चाहे तो रामू क्या रामू का बाप भी उसे हाथ नहीं लगा सकता था और वो तो इस घर का नौकर है किसे क्या बताएगा एक शिकायत में तो वो घर से बाहर हो जाएगा इसलिए उसे इस बात की चिंता तो बिल्कुल नहीं थी की रामु उसके साथ कोई गलत हरकत कर सकता है पर वो अपने आपको कैसे रोके यही सोचते हुए ही तो वो आज सोनल के साथ ही खाना खाने को आ गई थी अभी जब रवि गया था तब भी उसकी आखें रामु से टकराई थी उसने रामु काका की आखों में वही भूख देखी थी या फिर शायद इंतजार देखा था जो कि उसके लिए खतरनाक था अगर वो नहीं संभली तो पता नहीं क्या होजायगा

यही सोचते हुए वो अपनी निगाहे झुकाए खाना खा रही थी। सोनल का नास्ता हो गया तो वो जल्दी-जल्दी करने लगी
सोनल- अरे अरे मम्मी आराम से ख़ालो ।

आरती- बस हो गया और आखिरी नीवाला किसी तरह से अपने मुँह में ठूँसा और पानी के ग्लास पर हाथ पहुँचा दिया
सोनल भी हँसते हुए उठ गई और आरति भी
दोनो उठकर हाथ मुँह धोया और बाहर निकल कर बस का इंतजार करने लगे ।

सोनल के जाते ही आरती पीछे-पीछे अपने कमरे की ओर बढ़ गई थी ना जाने क्यों वो अपने को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी या फिर डर था कही कोई फिर से गलत कदम ना उठा ले या फिर अपने शरीर की भूख को संभालने की चेष्टा थी यह जो भी हो वो सोनल के जाते साथ ही अपने कमरे में आ गई थी आते समय जब उसका ध्यान डाइनिंग टेबल पर गया तो देखा कि डिननिग टेबल साफ था मतलब रामू काका ने आज जल्दी ही टेबल साफ कर दिया था नहीं तो वो हमेशा ही सबके अपने कमरे में पहुँचने का इंतजार करता था और फिर आराम से डाइनिंग टेबल साफ करके वर्तन धो कर रख देता था अंदर किचेन से वर्तन धोने की आवजे भी आ रही थी वो कुछ और ज्यादा नहीं सोचते हुए जल्दी से कमरे में घुस गई फिर मुड़ कर वपिश आयी,
एक लंबी सी सांस फेक कर रूम के बाहर आते ही वो थोड़ा सा सचेत हो गई थी उसकी नजर अनायास ही डाइनिंग रूम और फिर उसके आगे किचेन तक चली गई थी पर वहां शांति थी बिल्कुल सन्नाटा वो थोड़ा रुकी और थोड़ा धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ाते हुए सीडियो की ओर चली पर उसे कोई भी आहट सुनाई नहीं दी कहाँ है रामू काका किचेन में नहीं है क्या या फिर अपने कमरे में चले गये होंगे ऊपर या फिर सोचते हुए आरति सीडियो पर चढ़ती हुई अपने कमरे की ओर जा रही थी पर ना जाने क्यों उसका मन बार-बार किचेन की ओर देखने को हो रहा था शायद इसलिए कि कल दोपहर को जो घटना हुई थी क्या वो रामू कका भूल गये थे या फिर घर छोड़ कर भाग गये थे या फिर कुछ और ......


वो सीडिया चढ़ती जा रही थी और सोच रही थी क्या रामु काका उससे एक बार खेल कर ही उसे भूल गये है पर वो तो नहीं भूल पाई तो क्या वो जितनी सुंदर और सेक्सी लगती थी वो अब नहीं रही। क्या रामू काका भी एक बार के बाद उसे फिर से अपने साथ सेक्स के लिए लालायित नहीं होंगे मैंने तो सुना था कि आदमी एक बार किसी औरत को भोग ले तो बार-बार उसकी इच्छा करता है और वो तो इतनी खूबसूरत है और उसने इस बात की पुष्टि भी की थी उसे रामू काका की नज़रों में ही यह बात दिखी थी पर अभी तो कही गायब ही हो गये थे वो सीढ़ियाँ चढ़ना भूल गई थी वही एक जगह खड़ी होकर एकटककिचेन की ओर ही देख रही थी

कुछ सोचते हुए वो फिर से नीचे की ओर उत्तरी और धीरे-धीरेकिचेन की ओर चल दी उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था पर फिर भी हिम्मत करके वो किचेन की ओर जा रही थी पर क्यों क्या पता नहीं पर आरती के पैर जो कि अपने आप ही किचेन की ओर जा रहे थे किचेन के दरवाजे पर पहुँचकर उसने अंदर देखा वहाँ शांति थी वो थोड़ा और
आगे बढ़ी तो उसे रामू काका के पैर देखे वो शायद नीचे फ्लोर पर पोछा लगा रहे थे उसे अपने को इस स्थिति में पाकर आगे क्या करे सोचने का टाइम भी ना मिला कि तभी रामु की नजर आरति पर पड़ गई वो आरती को दरवाजे पर खड़ा देखकर जल्दी से उठा और अपने धोती को संभालते हुए हाथ पीछे करके खड़ा हो गया
और
रामू- जी बहू रानी कुछ चाहिए

आरती -- जी वो पानी

रामू- जी बहू रानी

उसकी नजर अब भी नीचे ही थी पर बहू के इस समय अपने पास खड़े होना उसके लिए एक बहुत बड़ा बरदान था वो नजरें झुकाए हुए आरती की टांगों की ओर देख रहा था और पानी का ग्लास फिल्टर से भरकर आरती की ओर पलटा आरती ने हाथ बढ़ाकर ग्लास लिया तो दोनों की उंगलियां आपस में टच हो गये आरती और रामु के शरीर में एक साथ एक लहर सी दौड़ गई और शरीर के कोने कोने पर छा गई वो एक दूसरे को आखें उठाकर देखने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे

पर किसी तरह आरती ने पानी पिया पिया वो तो अपने आपको रामू के सामने पाकर कुछ और नहीं कह पाई थी तो पानी माँग लिया था और झट से ग्लास प्लतेफोर्म में रख कर पलट गई और अपने कमरे की ओर चल दी

रामू वही खड़ा-खड़ा अपने सामने सुंदरी को जाते हुए देखता रहा वो चाहता था कि आरती रुक कर उससे बात करे कुछ और नहीं भी करे तो कम से कम रुक जाए और वही खड़े रहे वो उसको देखना चाहता था बस देखना चाहता था नजर भर के पर वो तो जा रही थी उसका मन कर रहा था कि जाके रोक ले वो बहू को और कल की घटना के बारे में पूछे कि कल क्यों उसने वो सब किया मेरे साथ पर हिम्मत नहीं हुई वो अब भी आरती को सीडिया चढ़ते देख रहा था किसी पागल भिखारी की तरह जिसे सामने जाती हुई राहगीर से कुछ मिलने की आसा अब भी बाकी थी

तभी आरती आखिरी सीढ़ी में जाकर थोड़ा सा रुकी और पलट कर किचेन की ओर देखी पर रामू को उसकी तरफ देखता देखकर जल्दी से ऊपर चली गई रामू अब भी अपनी आखें फाड़-फाड़कर सीडियो की ओर यूँ ही देख रहा था पर वहाँ तो कुछ भी नहीं था सबकुछ खाली था और सिर्फ़ उसके जाने के बाद एक सन्नाटा सा पसर गया था उसे कोने में

कोने में ही नही बल्कि पूरे घर में वो भी पलटा और अपने काम में लग गया पर उसके दिमाग में बहू की छवि अब भी घूम रही थी सीधी साधी सी लगने वाली बहू रानी अभी भी उसके जेहन पर राज कर रही थी कितनी सुंदर सी सलवार कमीज पहेने हुए थी और उसपर कितना जम रहा था
उसका चेहरा कितना चमक रहा था कितनी सुंदर लगती थी वो पर वो अचानक किचेन में क्यों आई थी रामू का दिमाग ठनका हाँ… यार क्यों आई थी वो तो कमरे में थी और अगर पानी ही पीना था तो उनके कमरे में भी पानी था तो वो यहां क्यों आई थी कही सिर्फ़ उसे देखने के लिए तो नहीं या फिर कल के बारे में कुछ कह रही हो या फिर उसे फिर से बुला रही हो अरे यार उसने पूछा क्यों नहीं कि और कुछ चाहिए क्या क्या बेवकूफ है वो धत्त तेरी की अच्छा मौका था निकल गया अब क्या करे अभी भी शाम होने को देर थी क्या वो बहू को जा करके पूछे अरे नहीं कही बहू ने शिकायत कर दी तो


वो अपने दिमाग को एक झटका देकर फिर से अपने काम में जुट गया था पर ना चाहते हुए भी उसकी नजर सीडियो की ओर चली ही जाती थी

और उधर आरती ने जब पलटकर देखा था तो वो बस इतना जानना चाहती थी कि रामु क्या कर रहा था पर उसे अपनी ओर देखते हुए पाकर वो घबरा गई थी और जल्दी से अपने कमरे में भाग गई थी और जाकर अपने कमरे की कुण्डी लगाकर बिस्तर पर बैठ गई थी पूरे घर में बिल्कुल शांति थी पर उसके मन में एक उथल पुथल मची हुई थी उसने अपनी चुन्नि को उतार फेका और चित्त होकर लेट गई वो सीलिंग की ओर देखते हुए बिस्तर पर लेटी थी उसकी आखों में नींद नहीं थी उसका दिल जोरो से धड़क रहा था उसके शरीर में एक अजीब सी कसक सी उठ रही थी वो ना चाहते हुए भी अपने आपको अपने में समेटने की कोशिश में लगी हुई थी वो एक तरफ घूमकर अपने को ही अपनी बाहों में भरने की कोशिश कर रही थी

पर नहीं वो यह नहीं कर पा रही थी उसे रामू काका की नज़रें याद आ रही थी उसके पानी देते समय जो उंगलियां उससे टकराई थी वो उसे याद करके सनसना गई थी वो एक झटके से उठी और बेड पर ही बैठे बैठे अपने को मिरर में देखने लगी बिल्कुल भी सामान्य नहीं लग रही थी वो मिरर में पता नहीं क्या पर कुछ चाहिए था क्या पता नहीं हाँ… शायद रामू हाँ… उसे रामू काका के हाथ अपने पूरे शरीर में चाहिए थे उसने बैठे बैठे ही अपनी सलवार को खोलकर खींचकर उतार दिया और अपनी गोरी गोरी टांगों को और जाँघो को खुद ही सहलाने लगी थी जो अच्छी शेप लिए हुए थे उसके टाँगें पतली और सिडौल सी गोरी गोरी और कोमल सी उसकी टांगों को वो सहलाते हुए उनपर रामू काका के सख़्त हाथों की कल्पना कर रही थी उसकी सांसें अब बहुत तेज चलने लगी थी।
उसके हाथ अपने आप ही उसके कुर्ते के अंदर उसकी गोलाईयो की ओर बढ़ चले थे जैसे की वो खुद को ही टटोल कर देखना चाहती थी कि क्या वो वाकई इतनी सुंदर है या फिर ऐसे ही हाँ वो बहुत सुंदर है जब उसके हाथ उसके कुर्ते के अंदर उसकी गोलाईयों पर पहुँचे तो खुद को रोक नहीं पाई और खुद ही उन्हें थोड़ा सा दबाकरदेखा उसके मुख से एक आआह्ह निकली कितना सुख है पर अपने हाथों की बजाए और किसी के हाथों से उसे मजा दोगुना हो जाएगा । रवि भी तो कितना खेलता है इन दोनों से पर अपने हाथों के स्पर्श का वो आनंद उसे नहीं मिल पा रहा था उसने अपने कुर्ते को भी उतार दिया और खड़े होकर अपने को मिरर में देखने लगी थी।
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RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस. - by sexstories - 08-27-2019, 01:24 PM

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