Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:25 PM,
#15
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
आरती- उूुुुुउउम्म्म्मममम आआआआआआआअह्ह
और रामू के होंठ उसकी आवाज को दबाने को तैयार थे उसके होंठों ने आरती के होंठों को सील दिया और अब खेल शुरू हो गया दोनों एक दूसरे से बिना किसी ओपचारिकता से गुथ गये थे रामु कब बिस्तर पर उसके ऊपर गिर गया पता ही नहीं चला वो आरती को अपने बाहों में जकड़े हुए निचोड़ता जा रहा था और उसकी दोनों चुचियों को अपने हाथों से दबाते जा रहा था आरती जो कि नीचे से रामु को पूरा समर्थन दे रही थी अब अपनी जाँघो को खोलकर रामु को अपने बीच में लेने को आतुर थी वो सेक्स के खेल में अब देरी नहीं करना चाहती थी उसकी जाँघो के बीच में जो हलचल मची हुई थी वो अब उसकी जान की दुश्मन बन गई थी वो अब किसी तरह से रामु को जल्दी से जल्दी अपने अंदर समा लेना चाहती थी पर वो तो अब तक धोती में था और ऊपर भी कुछ पहने हुए था अब तो आरती भूखी शेरनी बन गई थी वो नहीं चाहती थी कि अब देर हो रामु को अपने ऊपर से पकड़े ही उसने हिम्मत करके एक हाथ से उसकी धोती को खींचना चालू किया और अपने को उसके साथ ही अड्जस्ट करना चालू किया रामु जो कि उसके ऊपर था बहू के इशारे को समझ गया था और आश्चर्य भी हो रहा था कि बहू आज इतनी उतावली क्यों है पर उसे क्या वो तो आज बहू को जैसे चाहे वैसे भोग सकता था यही उसके लिए वरदान था वो थोड़ा सा ऊपर उठा और अपनी धोती और अंदर अंडरवेअर को एक झटके से निकाल दिया और वापस बहू पर झुक चुका क्या झुका लिया गया नीचे पड़ी आरती को कहाँ सब्र था वो खुद ही अपने हाथों से रामु को पकड़कर अपने होंठों से मिलाकर अपनी जाँघो को खोलकर रामू को अड्जस्ट करने लगी थी रामु का लण्ड उसकी चुत के आस-पास टकरा रहा था बहुत ही गरम था और बहुत ही बड़ा पर उससे क्या वो तो कल भी इससे खेल चुकी थी उसको उस चीज का मजा आज भी याद था वो और ज्यादा सह ना पाई
आरती- आआआआआआह्ह उूुउउंम्म काका प्लीज़ करो ना प्लीज
और रामु काका के कानों में एक मादक सी घुल जाने वाली आवाज़ ने कहा तो रामु के अंदर तक आग सी दौड़ गई और रामु का लण्ड एक झटके से अंदर हो गया और

आरति- ईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई उूुुुुुुुउउम्म्म्मममममममम आवाज रामु काका के गले में कहीं गुम हो गई
रामू का लण्ड बहू के अंदर जाते ही जैसे कमरे में तूफान सा आ गया था बिस्तर पर एक द्वंद युद्ध चल गया था दोनों एक दूसरे में समा जाने की कोशिस में लगे थे और एक दूसरे के हर अंग को छूने की कोशिश में लगे हुए थे आरति तो जैसे पागल हो गई थी कल की बातें याद करके आज वो खुलकर रामु के साथ इस खेल में हिस्सा ले रही थी वो अपने आपको खुद ही रामु काका के हाथों को अपने शरीर में हर हिस्से को छूने के लिए उकसा रही थी वो अपने होंठों को रामु के गालों से लेकर जीब तक को अपने होंठों से चूस-चूसकर चख रही थी और रामु तो जैसे अपने नीचे बहू की सुंदर काया को पाकर समझ ही नहीं पा रहा था वो अपने हाथों को और अपने होंठों को बहू के हर हिस्से में घुमा-घुमाकर चूम भी रहा था और चाट चाट कर उस कमसिन सी नारी का स्वाद भी ले रहा था और अपने अंदर के शैतान को और भी भड़का रहा था

वो किसी वन मानुष की तरह से बहू को अपने नीचे रोंध रहा था और उसे अपनी बाहों में भरकर निचोड़ता जा रहा था उसके धक्कों में कोई कमी नहीं आई थी बल्कि तेजी ही आई थी और हर धक्के में वो बहू को अपनी बाहों में और जोर से जकड़ लेता था, ताकि वो हिल भी ना पाए और उसके नीचे निस्चल सी पड़ी रहे और आरती की जो हालत थी उसकी वो कल्पना भी नहीं कर पा रही थी रामु के हर धक्के पर वो अपने पड़ाव की ओर बढ़ती जा रही थी और हर धक्के की चोट पर रामु काका की गिरफ़्त में अपने आपको और भी कसा हुआ महसूस करती थी उसकी जान तो बस अब निकल ही जाएगी सोचते हुए वो अपने मुकाम की ओर बढ़ चली थी और वो रामु काका के जोर दार झटको को और नहीं सह पाई और वो झड़ गई थी झरना इसको कहते है उसे पता ही नही चला लगा कि उसकी चुत से एक लंबी धार बाहर की ओर निकलने लगी थी जो कि रुकने का नाम भी नहीं ले रही थी और रामू तो जैसे पागलों की तरह अपने आपसे गुम बहू को अपनी बाहों में भरे हुए अपनी पकड़ को और भी मजबूत करते हुए लगा तार जोरदार धक्के लगाता जा रहा था वो भी अपनी पीक पर पहुँचने वाला था पर अपने नीचे पड़ी बहू को ठंडा होते देख कर वो और भी सचेत हो गया और बिना किसी रहम के अपनी गति को और भी बढ़ा दिया और अपने होंठों को बहू के होंठों के अंदर डाल कर उसकी जीब को अपने होंठों में दबाकर जोर्र दार धक्के लगाने लगा था। आरती जो कि झड कर शांत हो गई थी रामु काका के निरंतर धक्कों से फिर जाग गई थी और हर धक्के का मजा लेते हुए फिर से अपने चरम सीमा को पार करने की कोशिश करने लगी थी उसके जीवन काल में यह पहली बार था कि वो एक के बाद दूसरी बार झड़ने को हो रही थी रामु काका की हर एक चोट पर वो अपनी नाक से सांस लेने को होती थी और नीचे से अपनी कमर और योनि को उठाकर रामू को और अंदर और अंदर तक उतर जाने का रास्ता भी देती जा रही थी उसके हर एक कदम ने उसका साथ दिया और रामु का ढेर सारा वीर्य जब उसकी योनि पर टकराया तो वो एक बार फिर से पहली बार से ज्यादा तेजी से झड़ी थी उसका शरीर एकदम से सुन्न हो गया था पर रामु कका की पकड़ अब भी उसके शरीर पर मजबूती से कसा हुआ था वो हिल भी नहीं पा रही थी और नाही ठीक से सांस ही ले पा रही थी हाँ अब दोनों धीरे-धीरे शांत हो चले थे । रामू भी अब बहू के होंठो को छोड़ कर उसके कंधे पर अपने सिर को रखकर लंबी-लंबी सांसें ले रहा था और अपने को सयम करने की कोशिश कर रहा था उसकी पकड़ अब बहू पर से ढीली पड़ती जा रही थी और उसके कानों में आरति की सिसकारियां और जल्दी-जल्दी सांस लेने की आवाज भी आ रही थी जैसे वो सपने में कुछ सुनाई दे रही थी रामु अपने आपको संभालने में लगा था और अपने नीचे पड़ी हुई बहू की ओर भी देख रहा था उसके बाल उसके नीचे थे बहू का चेहरा उस तरफ था और वो तेज-तेज सांसें ले रही थी बीच बीच में खांस भी लेती थी उसकी चूचियां अब आज़ादी से उसके सीने से दबी हुई थी। रामु की जाँघो से बहू की जांघे अब भी सटी हुई थी उसका लण्ड अब भी बहू के अंदर ही था वो थोड़ा सा दम लगाकर उठने की चेष्टा करने लगा और अपने लण्ड को बहू के अंदर से निकालता हुआ बहू के ऊपर ज़ोर ना देता हुआ उठ खड़ा हुआ या कहिए वही बिस्तर पर बैठ गया बहू अब भी निश्चल सी बिस्तर पर अपने बालों से अपना चेहरा ढके हुए पड़ी हुई थी रामु ने भी उसे डिस्टर्ब ना करते हुए अपनी धोती और अंडरवेर उठाया और उस सुंदर काया के दर्शन करते हुए अपने कपड़े पहनने लगा



उसके मन की इच्छा अब भी पूरी नहीं हुई थी उस अप्सरा को वैसे ही छोड़ कर वो नहीं जाना चाहता था वो एक बार वही खड़े हुए बहू को एक टक देखता रहा और उसके साथ गुजरे हुए पल को याद करता रहा बहू की कमर के चारो ओर उसका पेटीकोट अब भी बिखरा हुआ था पर ब्लाउस के सारे बटन खुले हुए थे और उसके कंधों के ही सहारे थे उसकी चूचियां अब बहुत ही धीरे-धीरे ऊपर और नीचे हो रही थी नाभि तक उसका पेट बिल्कुल बिस्तर से लगा हुआ था जाँघो के बीच काले बाल जो कि उस हसीना के अंदर जाने के द्वार के पहरेदार थे पेट के नीचे दिख रहे थे और लंबी-लंबी पतली सी जाँघो के बाद टांगों पर खतम हो जाती थी


रामु की नजर एक बार फिर बहू पर पड़ी और वो वापस जाने को पलटा पर कुछ सोचकर वापस बिस्तर तक आया और बिस्तर के पास झुक कर बैठ गया और बहू के चेहरे से बालों को हटाकर बिना किसी डर के अपने होंठों को बहू के होंठों से जोड़ कर उसका मधु का पान करने लगा वो बहुत देर तक बहू के ऊपर फिर नीचे के होंठों को अपने मुख में लिए चूसता रहा और फिर एक लंबी सी सांस छोड़ कर उठा और नीचे रखी एक कंबल से आरती को ढँक कर वापस दरवाजे से बाहर निकल गया।
उसने लेटे हुए उसने रामु को अच्छे से देखा था उतना अच्छे से तो उसने अपने पति को भी नहीं देखा था पर ना जाने क्यों उसे रामू काका को इस तरह से छुप कर देखना बहुत अच्छा लग रहा था और जब वो जाते जाते रुक गये थे और पलटकर आके उसके होंठों को चूमा था तो उसका मन भी उनको चूमने का हुआ था पर शरम और डर के मारे वो चुपचाप लेटी रही थी उसे बहुत मजा आया था

उसके पति ने भी कभी झड़ने के बाद उसे इस तरह से किस नहीं किया था या फिर ढँक कर सुलाने की कोशिश नहीं की थी वो लेटी लेटी अपने आपसे ही बातें करती हुई सो गई और एक सुखद कल की ओर चल दी उससे पता था कि अब वो रामु काका को कभी भी रोक नहीं पाएगी और वो यह भी जानती थी कि जो उसकी जिंदगी में खाली पन था अब उसे भरने के लिए रामू काका काफी है वो अब हर तरीके से अपने शरीर का सुख रामू काका से हासिल कर सकती है
और किसी को पता भी नहीं चलेगा और वो एक लंबी सी सुखद नींद के आगोस में समा गई

दोपहर बाद 3 बजे दरवाजे पर नोक के साथ ही उसकी नींद खुली और उसने झट से आवाज दी
आरती- हाँ…

- जी वो सोनल आने वाली है, आप भी चाय के लिए नीचे आएंगी क्या।

आरती - हाँ…
लेकिन आचनक ही उसके दिमाग की घंटी बज गई अरे यह तो रामू काका थे पर क्यों अभी तो जया भी आ सकती थी

तभी उसका ध्यान अपने आप पर गया अरे वो तो पूरी तरह से नंगी थी उसके जेहन में सुबह की बातें घूमने लगी थी वो वैसे ही बिस्तर पर बैठी अपने बारे में सोचने लगी थी वो जानती थी कि आज उसने क्या किया था सेक्स की भूख खतम होते ही उसे अपनी इज़्ज़त का ख्याल आ गया था वो फिर से चिंतित हो गई और कंधे पर पड़े अपने ब्लाउज को ठीक करने लगी और धीरे से उठ कर बाथरूम की ओर चल दी

बाथरूम में जाने के बाद उसने आपने आपको ठीक से साफ किया और फिर से कमरे में आ गई थी वारड्रोब से सूट निकालकर वो जल्दी से तैयार होने लगी थी पर ध्यान उसका पूरे समय मिरर पर था उसका चेहरा दमक रहा था जैसे कोई चिंता या कोई जीवन की समस्या ही नहीं हो उसके दिमाग पर हाँ… आज तक उसका चेहरा इतना नहीं चमका था उसने मिरर के पास आके और गौर से देखा उसकी आखों में एक अजीब सा नशा था और उसके होंठों पर एक अजीब सी खुशी उसका सारा बदन बिल्कुल हल्का लग रहा था

दोपहर के सेक्स के खेल के बाद वो कुछ ज्यादा ही चमक गया था वो सोचते ही उसके शरीर में एक लहर सी दौड़ गई और उसके निपल्स फिर से टाइट होने लगे थे उसने अपने हाथों से अपनी चुचियों को एक बार सहलाकर छोड़ दिया और वो अपने दिमाग से इस घटना को निकाल देना चाहती थी वो जल्दी से तैयार होकर नीचे की ओर चली सीडियो के कोने से ही उसने देख लिया था कि सोनल अपने कमरे से अभी स्कूल ड्रेस चेंज करके निकली है अच्छा हुआ रामू ने जगा दिया था नहीं तो वो तो सोती ही रह जाती

वो जल्दी से सोनल के पास पहुँच गई और दोनों की चाय सर्व करने लगी वो शांत थी
सोनल - मम्मी आज जाओगी कार चलानी सीखने।

आरती- हां।

सोनल - अरे मनोज अंकल के साथ नहीं जाना गाड़ी चलाने

आरती- अरे हाँ… बस चाय पीकर तैयार होती हूँ।
सोनल-- ठीक है मम्मी मैं भी जा रही हु ट्यूशन।
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