Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:26 PM,
#23
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
और लगभग उसकी कमर तक वो पहुँच चुका था वो धीरे से आरती के बिस्तर पर बैठ गया और आरती कि दोनों टांगों को अपने दोनों खुरदुरे हाथों से
सहलाने लगा था कितना मजा आ रहा था रामू को यह वो किसी को भी बता नहीं सकता था उसके पास शब्द नहीं थे उस एहसास का वर्णन करने को उसके हाथ धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठ-ते और फिर आरती की जाँघो की कोमलता का एहसास करते हुए नीचे उसकी टांगों पर आकर रुक जाते थे वो अपने को रोक नहीं पाया और उस सुंदरता को चखने के लिए वो धीरे से नीचे झुका और अपने होंठों को आरती के टांगों पर रख दिया और उन्हें चूमने लगा बहुत धीरे से और अपने हाथों को भी उन पर घुमाते हुए धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठने लगा वो अपने जीवन का वो लम्हा सबकुछ भूलकर आरती की जाँघो को समर्पित कर चुका था उसे नहीं पता था कि इस तरह से वो आरती को जगा भी सकता था पर वो मजबूर था और अपने को ना रोक पाकर ही वो इस हरकत पर उतर आया था उसकी जीब भी अब आरती की जाँघो को चाट चाट कर गीलाकर रहे थे और होंठों पर इतनी कोमल और चिकनी काया का स्पर्श उसे जन्नत का वो सुख दे रही थी जिसकी कि उसने कभी भी कल्पना भी नहीं की थी वो अपने मन से आरती की तारीफ करते हुए धीरे-धीरे अपने काम में लगा था और अपने हाथों की उंगलियों को ऊपर-नीचे करते हुए आरती की जाँघो पर घुमा रहा था

उसके उंगलियां आरती की जाँघो के बीच में भी कभी-कभी चली जाती थी वो अपने काम में लगा था कि अचानक ही उसे महसूस हुआ कि आरती की जाँघो और टांगों पर जब वो अपने हाथ फेर रहा था तो उनपर थोड़ा सा खिंचाव भी होता था और आरती के मुख से सांसों का जोर थोड़ा सा बढ़ गया था वो चौंक कर थोड़ा सा रुका कही आरती जाग तो नहीं गई और अगर जाग गई थी तो कही वो चिल्ला ना पड़े वो थोड़ा सा रुका पर आरती के शरीर पर कोई हरकत ना देख कर वो धीरे से उठा और आरती की कमर के पास आ गया और अपने हाथों को उसने उसकी कमर के चारो ओर घुमाने लगा था और एक हाथ से वो आरती की पीठ को भी सहलाने लगा था वो आज अच्छे से आरती को देखना चाहता था और उसके हर उसे भाग को छूकर भी देखना चाहता था जिसे वो अब तक तरीके से देख नहीं पाया था शायद हर पुरुष की यही इच्छा होती है जिस चीज को भोग भी चुका हो उसे फिर से देखने की और महसूस करने की इच्छा हमेशा ही उसके अंदर पनपती रहती है


वही हाल रामू का भी था उसके हाथ अब आरती की पीठ और, कमर पर घूम रहे थे और हल्के-हल्के वो उसकी चुचियो की ओर भी चले जाते थे पर आरती जिस तरह से सोई हुई थी वो अपने हाथों को उसकी चूची तक अच्छी तरह से नहीं पहुँचा पा रहा था पर फिर भी साइड से ही वो उनकी नर्मी का एहसास अपने हाथों को दे रहा था लेकिन एक डर अब भी उसके जेहन में थी कि कही आरती उठ ना जाए पर अपने को रोक ना पाने की वजह से वो आगे और आगे चलता जा रहा था


और उधर आरती जो कि अब पूरी तरह से जागी हुई थी जैसे ही रामू काका उसके कमरे में घुसे थे तभी वो जाग गई थी और बिल्कुल बिना हीले डुले वैसे ही लेटी रही उसके तन में जो आग लगी थी रामू काका के कमरे में घुसते ही वो चार गुना हो गई थी वो अपनी सांसों को कंट्रोल करके किसी तरह से लेटी हुई थी और आगे के होने वाले घटना क्रम को झेलने की तैयारी कर रही थी वो सुनने की कोशिश कर रही थी कि रामु काका कहाँ है पर उनके पदछाप उसे नहीं सुनाई दिए हाँ… उसके नथुनो में जब एक महक ने जगह ली तो वो समझ गई थी कि रामू काका अब उसके बिल्कुल पास है वो उस मर्दाना महक को पहचानती थी उसने उस पसीने की खुशबू को अपने अंदर इससे पहले भी महसूस किया था उसके शरीर में उठने वाली तरंगे अब एक विकराल रूप ले चुकी थी वो चाहते हुए भी अपने को उस हालत से निकालने में आसमर्थ थी वो उस सागर में गोते लगाने के लिए तैयार थी बल्कि कहिए वो तो चाह ही रही थी कि आज उसके शरीर को कोई इतना रौंदे कि उसकी जान ही निकल जाए पर वो अपने आपसे नहीं जीत पाई थी इसलिए वो चुपचाप सोने की कोशिश करने लगी थी पर जैसे ही रामू काका आए वो सबकुछ भूल गई थी और अपने शरीर को सेक्स की आग में धकेल दिया था


वो अपने शरीर में उठ रही लहर को किसी तरह रोके हुए रामू काका की हर हरकत को महसूस कर रही थी और अपने अंदर उठ रही सेक्स की आग में डूबती जा रही थी उसे रामू काका के छूने का अंदाज बहुत अच्छा लग रहा था वो अपने को समेटे हुए उन हरकतों का मजा लूट रही थी उसे कोई चिंता नहीं थी वो अपने को एक सुखद अनुभूति के दलदल में धकेलती हुई अपने जीवन का आनंद लेती जा रही थी जब भी काका का हाथ उसके पैरों से उठते हुए जाँघो तक आता था उसकी चुत में ढेर सारा चिपचिपापन सा हो जाता था और चुचियाँ अपने ब्लाउज के अंदर जगह बनाने की कोशिश कर रही थी आरती अपने को किसी तरह से अपने शरीर में उठ रहे ज्वार को संभाले हुए थी पर धीरे-धीरे वो अपना नियंत्रण खोती जा रही थी

रामू काका अब उसकी कमर के पास बहुत पास बैठे हुए थे और और उनके शरीर की गर्मी को वो महसूस कर रही थी उसका पूरा शरीर गरम था और पूरा ध्यान रमु काका के हाथों पर था रामू काका उसकी पीठ को सहलाते हुए जब उसकी चुचियों की तरफ आते थे तो वो अपने को तकिये से अलग करके उनके हाथ को भर देना चाहती थी पर कर ना पाई रामु अब उसके पेट से लेकर पीठ और फिर से जब वो उसकी चुचियों तक पहुँचने की कोशिश की
तो आरती से नहीं रहा गया उसने थोड़ा सा अपने तकिये को ढीला छोड़ दिया और रामू काका के हाथों को अपने चुचियों तक पहुँचने में मदद की और रामू का हाथ जैसे ही आरती की चुचियों तक पहुँचे वो थोड़ा सा चौंका अपने हाथों को अपनी जगह पर ही रोके हुए उसने एक बार फिर से आहट लेने की कोशिश की पर आरती की ओर से कोई गतिविधि होते ना देखकर वो निश्चिंत हो गया और अपने आपको उस खेल में धकेल दिया जहां सिर्फ़ मज ही मजा है और कुछ नहीं वो अपने हाथों से आरती की चुचियों को धीरे दबाते हुए उसकी पीठ को भी सहला रहा था और अपने हाथों को उसके नितंबों तक ले जाता था वो आरती के नथुनो से निकलने वाली सांसों को भी गिन रहा था जो कि अब धीरे-धीरे कुछ तेज हो रही थी पर उसका ध्यान इस तरफ कम और अपने हाथों की अनुभूति की ओर ज्यादा था वो अपने को कही भी रोकने की कोशिश नहीं कर रहा था वो अपने मन से और दिल के हाथों मजबूर था वो अपने हाथ में आई उस सुंदर चीज को कही से भी छोड़ने को तैयार नहीं था।
अब धीरे-धीरे रामु काका की हरकतों में तेजी भी आती जा रही थी उसके हाथों का दबाब भी बढ़ने लगा था उसके हाथों पर आई आरती की चूची अब धीरे-धीरे दबाते हुए उसके हाथ कब उन्हें मसलने लगे थे उसे पता नहीं चला था पर हाँ… आरती के मुख से निकलते हुए आअह्ह ने उसे फिर से वास्तविकता में ले आया था वो थोड़ा सा ढीला पड़ा पर आरती की ओर से कोई हरकत नहीं होते देखकर उसके हाथ अब तो जैसे पागल हो गये थे वो अब आरती के ब्लाउज के हुक की ओर बढ़ चले थे वो अब जल्दी से उन्हे आजाद कंराना चाहता था पर बहुत ही धीरे-धीरे से वो बढ़ रहा था पर उसे आरती के होंठों से निकलने वाली सिसकारी भी अब ज्यादा तेज सुनाई दे रही थी जब तक वो आरती के ब्लाउसको खोलता तब तक आरती के होंठों पर से आआअह्ह और भी तेज हो चुकी थी वो अब समझ चुका था कि आरती जाग गई है पर वो कहाँ रुकने वाला था उसके हाथों में जो चीज आई थी वो तो उसे मसलने में लग गया था और पीछे से हाथ लेजाकर उसने आरती की चुचियों को भी उसके ब्रा से आजाद कर दिया था वो अपने हाथों का जोर उसकी चुचियों पर बढ़ाता ही जा रहा था और दूसरे हाथ से उसकी पीठ को भी सहलाता जा रहा था वो आरती के मुख से सिसकारी सुनकर और भी पागल हो रहा था उसे पता था कि आरती के जागने के बाद भी जब उसने कोई हरकत नहीं की तो उसे यह सब अच्छा लग रहा था वो और भी निडर हो गया और धीरे से आरती को अपनी ओर पलटा लिया और अपने होंठों को आरती की चुचियों पर रख दिया और जोर-जोर से चूसने लगा उसके हाथों पर आई आरती की दोनों चूचियां अब रामू के रहमो करम पर थी वो अपने होंठों को उसकी एक चुचि पर रखे हुए उन्हें चूस रहा था और दूसरे हाथों से उसकी एक चुची को जोर-जोर से मसल रहे थे इतना कि आरती के मुख से एक लंबी सी सिसकारी निकली और निरंतर निकलने लगी थी आरती के हाथों ने अब रामू के सिर को कस कर पकड़ लिया था और अपनी चुचियों की ओर जोर लगाकर खींचने लगी थी




वो अब और सह नहीं पाई थी और अपने आपको रामू काका की चाहत के सामने समर्पित कर दिया था वो अपने आपको रामू काका के पास और पास ले जाने को लालायित थी वो अपने शरीर को रामू काका के शरीर से सटाने को लालायित थी वो अपनी जाँघो को ऊपर करके और अपना पूरा दम लगाके रमु काका को अपने ऊपर खींचने लगी थी और रामू जो की अब तक आरती की चुचियों को अपने मुख में लिए हुए उन्हें चूस रहा था अचानक ही अपने सिर पर आरती के हाथों के दबाब को पाते ही और जंगली हो गया वो अब उनपर जैसे टूट पड़ा था वो दोनों हाथों से एक चुचि को दबाता और होंठों से उसे चूसता और कभी दूसरे पर मुख रखता और दूसरे को दबाता वो अपने हाथो को भी आरती के शरीर पर घुमाता जा रहा था और नीचे फँसे हुए पेटीकोट को खींचने लगा था जब उससे नाड़ा खुल गया तो एक ही झटके में उसने उसे उतार दिया पैंटी और, पेटीकोट भी और देखकर आश्चर्य भी हुआ की आरती ने अपनी कमर को उठाकर उसका साथ दिया था वो जान गया था की आरती को कोई आपत्ति नहीं है वो भी अपने एक हाथ से अपने कपड़ों से लड़ने लगा था और अपने एक हाथ और होंठों से आरती को एंगेज किए हुए था आरती जो की अब एक जल बिन मछली की भाँति बिस्तर पर पड़ी हुई तड़प रही थी वो अब उसे शांत करना चाहता था वो धीरे से अपने कपड़ों से बाहर आया और आरती के ऊपर लेट गया अब भी उसके होंठों पर आरती के निप्पल थे और हाथों को उसके पूरे शरीर पर घुमाकर हर उचाई और घराई को नाप रहा था तभी उसने अपने होंठों को उसके चूचियां से आलग किया और आरती की और देखने लगा जो की पूरी तरह से नंगी उसके नीचे पड़ी हुई थी वो आरती की सुंदरता को अपने दिल में या कहिए अपने जेहन में उतारने में लगा था पर तभी आरती को जो सुना पन लगा तो उसने अपनी आखें खोल ली और दोनों की आखें चार हुई .
रामू आरती की सुंदर और गहरी आखों में खो गया और धीरे से नीचे होता हुआ उसके होंठों को अपने होंठों से दबा लिया। आरती को अचानक ही कुछ मिल गया था तो वो भी अपने दोनों हाथो को रामू काका की कमर के चारो ओर घेरते हुए अपने होंठों को रामू काका के रहमो करम पर छोड़ दिया और अपने जीब को भी उनसे मिलाने की कोशिश करने लगी थी उसके हाथ भी अब रामू काका के बालिस्त शरीर का पूरा जाएजा लेने में लगे थे खुरदुरे और बहुत से उतार चढ़ाव लिए हुए बालों से भरे हुए उसके शरीर की गंध अब आरती के शरीर का एक हिस्सा सा बन गई थी उसके नथुनो में उनकी गंध ने एक अजीब सा नशा भर दिया था जो कि एक मर्द के शरीर से ही निकल सकती थी वो अपने को भूलकर रामू काका से कस कर लिपट गई और अपनी जाँघो को पूरा खोलकर काका को उसके बीच में फँसा लिया


उसके चुत में आग लगी हुई थी और वो अपनी कमर को उठाकर रामू काका के लण्ड पर अपने आपको घिसने लगी थी उसके जाँघो के बीच में आ के लण्ड की गर्मी इतनी थी कि लगभग झड़ने की स्थिति में पहुँच चुकी थी पर काका तो बस अब तक उसके होंठो और उसकी चुचियों के पीछे ही पड़े हुए थे वो लगातार अपनी चुत को उसके लण्ड पर घिसते हुए अपने होंठों को और जीब को भी काका के अंदर तक उतार देती थी उसकी पकड़ जो कि अब काका की कमर के चारो तरफ थी अचानक ही ढीली पड़ी और एक हाथ काका के सिर पर पहुँच गया और एक हाथ उनके लण्ड तक ले जाने की चेष्टा करने लगी बड़ी मुश्किल से उसने अपने और काका के बीच में जगह बनाई और और लण्ड को पकड़कर अपनी चुत पर रखा और वैसे ही एक झटका उसने नीचे से लगा दिया। रामू काका इस हरकत को जब तक पहचानते तब तक तो आरती के अंदर थे और आरती की जाँघो ने उन्हें कस आकर जकड़ लिया था रामू अपने को एक इतनी सुंदर स्त्री के साथ इस तरह की अपेक्षा करते वो तो जिंदगी में नहीं सोच पाए थे पर जैसे ही वो आरती के अंदर हुए उसका शरीर भी अपने आप आरती के साथ ऊपर-नीचे होने लगा था वो अब भी आरती के होंठों को चूस रहे थे और अपने हाथों से आरती की चुचियों को निचोड़ रहे थे उनकी हर हरकत पर आरती की चीख उनके गले में ही अटक जाती थी हर चीख के साथ रामू और भी जंगली हो जाता था और उसके हाथों का दबाब भी बड जाता था वो पागलो की तरह से आरती को किस करता हुआ अपने आपको गति देता जा रहा था वो जैसे ही आरती के होंठों को छोड़ता आरती की सिसकियां पूरे कमरे में गूंजने लगती तो वो फ़ौरन अपने होंठों से उन्हें सील करदेता और अपनी गति को ऑर भी तेज कर देता पूरे कमरे में आचनक ही एक तूफान सा आ गया था जो कि पूरे जोर पर था कमरे में जिस बिस्तर पर रामू आरती को भोग रहा था वो भी झटको के साथ अब हिलने लगा था
Reply


Messages In This Thread
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस. - by sexstories - 08-27-2019, 01:26 PM

Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,299,357 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 522,246 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,150,801 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 871,785 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,541,976 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 1,986,686 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,796,383 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,514,300 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,825,159 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 266,133 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 5 Guest(s)