Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:29 PM,
#39
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
रवि- अरे यार वो धरम पाल जी है ना उनके बारे में

आरती- यह धरम पाल कौन है

रवि- अरे वो फैक्टरी वाले काम में में पार्टनर बनाया है

आरती- तो

रवि- वो चाहते है कि उनके लड़के को भी शामिल किया जाए

आरती- तो क्या कर लो

रवि- हाँ कर तो लो वो नहीं तो उनका लड़का ही सही पर साला झल्ला है

आरती- झल्ला ....................

रवि- हाँ यार ढीला है

आरती- हाँ… हाँ… हाँ… हूँ हीही

रवि- हाँ… देखोगी तो हँसोगी

आरती- क्यों

रवि- अरे कुछ भी कहो समझ ही नहीं आता से डील की बातें करो तो बगले झाँकने लगता है अरे कुछ तो सिखाया पढ़ाया हो तब ना

आरती- अरे तुम तो जबरदस्ती परेशान हो रहे हो ऐसा है तो अच्छा ही है उसे कुछ समझ नहीं आएगा और तुम अपना काम करते जाना और क्या

रवि आरती की ओर आश्चर्य से देखने लगा उसके होंठों में एक हँसी थी एक आँख दबाकर वो आरती के नजदीक आया और झट से अपने होंठों से आरती के होंठों को कस कर चूम लिया

रवि- अरे वाह मेडम सच ही तो कहा तुमने साले को ले लेता हूँ हाँ यार लेकिन परेशानी एक है

आरती- क्या

रवि- वो दिन भर तुम्हारे पीछे पड़ा रहेगा

आरती- मेरे पीछे क्यों

रवि--- अरे वो जो फैक्टरी बन रही है ना उसमें भी उन्होंने फाइनेंस किया है और एक्सपोर्ट में भी उनका पार्ट्नर शिप है इकलौता बेटा है थोड़ा मेंटल प्राब्लम है दो या तीन लड़कियों के बाद है ना साला वो भी लड़कियों जैसा ही हो गया है।
आरती- तो क्या हुआ में संभाल लूँगी कौन सा मुझे उसे हाथों से खिलाना है दौड़ा दूँगी दिन रात और वो कितने साल का है

रवि- है तो 23 24 साल का पर बहुत ही दुबला पतला है और लड़कियों जैसा है बड़ा लचक कर चलता है हिहीही

आरती- धात तुम तो ना चलो। जल्दी से तैयार हो जाओ सोनल वेट करती होंगी।
और दोनों झट पट तैयार होने लगे थे। जब वो नीचे पहुँचे तो सोनल नहीं आई थी। डाइनिंग टेबल पर खाना लगा था आरती और रवि के बैठने के बाद सोनल भी आ गयी और सभी खाना खा के बाहर की ओर निकल गये

इसी तरह से दो तीन दिन निकल गये कोई बदलाब नहीं आया आरती के जीवन में रोज सुबह वो सोनल के साथ ही निकल जाती और शाम को अपने पति और सोनल के साथ ही वापस आती और रात को भी वो अपने पति के साथ ही रहती
हर रात वो अपने शरीर की संतुष्टि के लिए अपने पति को उकसाती और अपनी ओर से कोई भी कमी नहीं रखती पर रवि हर बार दो बार में सिर्फ़ एक बार ही आरती को साथ दे पाता था हर बार पहले झड़ जाता और दूसरी बार में थोड़ा बहुत आरती को संतुष्ट कर देता

पर आरती को यह प्यार कुछ जम नहीं रहा था पर वो एक पति व्रता नारी की तरह अपने पति का साथ देती रही वो एक सेक्स मशीन बन चुकी थी रवि भी उसे उकसाता था वो उसे अपने साथ होते हुए हर खेल को बहुत ही अच्छे तरीके से अपना लेता था वो आरती को खुश देखना चाहता था और उसे किसी भी तरह से मना नहीं करता था

आरती जब उसका लण्ड व फिर उसके शरीर को किस करती तो वो उसे खूब प्यार से सहलाता और उसे और भी करने को उकसाता था आरती को मालूम था कि रवि को यह सब अब अच्छा लगने लगा था सो वो अपने तरीके से रवि के साथ खेलती और अपने को पतिव्रता स्त्री के रूप में रखती जा रही थी

अब तो आरती बिज़नेस में भी थोड़ा बहुत इन्वॉल्व होने लगी थी लोग बाग अब उसे थोड़ा सीरियस्ली लेने लगे थे और बहुत कुछ बताने भी लगे थे कॉंप्लेक्स के काम के बारे में भी उसे रिपोर्टिंग करने लगे थे उसे पता था कि स्टोर में क्या शार्ट है क्या मंगाना पड़ेगा कौन सा स्टाफ क्या करता है और किसकी क्या रेपोंसिबिलिटी है कौन सा काम धीरे चल रहा है और कौन सा काम आगे

कौन कहाँ जाता है और कौन छुट्टी पे है और भी बहुत कुछ अब रवि आरती को बहुत से डीलर से भी मिला चुका था और बहुत सी बातें भी समझा चुका था आरती अब एक निपुण बिज़नेस विमन की तरह रेएक्ट करने लगी थी उसकी चाल में एक कान्फिडेन्स आ गया था जो पहले नहीं था अब वो बहुत ही कॉनफीदेंतली बातें करती कोई इफ’स आंड बॅटस नहीं होते थे। सोनल सुबह हमेशा उसके आस-पास होती, कभी रवि भी जाता उसके साथ और दुपहार को जब वो शोरुम पहुँचती तब भी वो शोरुम मे बहुत से बदलाब ले आई थी ड्रेस कोड जारी कर दिया था और शोरुम में गानो की धुन हमेशा बजती रहती थी कोल्ड ड्रिंग्स कस्टमर्स के लिए सर्व होने लगी थी एक कोने को बच्चो के लिए डेवेलप किया था जहां कष्टमर के बच्चे खेल सके बड़े-बड़े सेट भी लगा दिया था शोरुम में और भी बहुत कुछ कर दिया था आरती ने जो कि उसके पति और सोनल को बहुत ही पसंद आया


आरती का जीवन अब बहुत ही संतुलित सा हो गया था बीच में उसकी मम्मी का फोन भी आया तो उन्होंने भी आरती को बहुत बधाई दी और अपने काम को ठीक से करने की नसियात भी दी। रवि और सोनल को आरती का इस तरह से बिज़नेस में इन्वॉल्व होना बहुत ही अच्छा लगा था और वो दोनों ही आरती को और भी सजेशन्स देने को उकसाते रहते थे उनका शोरुम उस इलाके का एक ऐसा शोरुम हो गया था जिसे देखकर बड़े दुकान दार अपने हिसाब से अपनी दुकान को रेनवेट करने लगे थे पर आरती के सामने वो कुछ नहीं कर पाते थे उसका दिमाग हमेशा कुछ ना कुछ अलग करता रहता था
इसी तरह आरती का जीवन आगे चलता जा रहा था

पर यह कहानी तो कुछ और ही कहने को बनी है तो अब वो बातें करते है ठीक ओके…

तो हमेशा की तरह आज भी आरती रवि और सोनल के साथ ही तैयार थी शोरुम जाने को। खाने के बाद रवि तो चला गया पर आरती और सोनल जब बाहर निकले तो आज वो रवि के साथ ही फैक्टरी का काम देखने चली गई और रवि का दिन आज कल थोड़ा बहुत व्यस्त सा हो गया था वो शोरुम पर कम टाइम दे पा रहा था उसका ज्यादा ध्यान फैक्टरी की ओर था और वहां की मशीनों को सेट करने का काम भी सोनल और आरती ने संभाल लिया था
रवि- आरती अब सोच रहा था कि शोरुम में आना बंद कर दूं

आरती- क्यों

रवि- अरे यहां आने से बाहर का काम थोड़ा सा सफर हो रहा है और कुछ परचेजर्स भी जब देखो तब बुला लेते है इसलिए

आरती- आप देखो जो ठीक लगे

रवि- तुम क्या कहती हो

आरती- ठीक है पर वहां के डील्स जो होते है वो सोनल कर लेंगी उसे इंटरेस्ट भी है।

रवि- अरे तुम तो हो तुम डील करना शुरू करो

आरती- अरे मुझसे नहीं बनेगा रोज तो प्राइस उप्पर नीचे होते है।
आरती- अरे तो क्या जब बढ़ते है तो रुक जाओ और जब घट-ते है तो खरीद लो और क्या है इसमें

आरती- पता नहीं

रवि- अरे तुम चिंता मत करो सोनल तो है सीख जाओगी
और रवि की गाड़ी तब तक फैक्टरी के अंदर पार्क हो गई थी

आस-पास के लोग सावधान हो गये थे और रवि और आरती की ओर देखते हुए नमस्कार करते जा रहे थे। रवि आरती के साथ आफिस की ओर बढ़ा था पर आरती थोड़ा सा रुक कर सामने से खड़े होकर एक बार ऊपर की ओर देखते हुए अपने नाम से बन रही। फैक्टरी की ओर देखा

रवि- आओ

आरती- आप चलिए में थोड़ा देखकर आती हूँ

और रवि अंदर आफिस की ओर चला गया आरती इधर उधर टहलती हुई सी लोगों को अपने काम में लगे हुए देखती जा रही थी और एक-एक करके सीढ़िया चढ़ती हुई हर फ्लोर में काम का जाएजा लेती जा रही थी जहां भी जाती लोग एक बार उसे जी भर के देखते और झुक कर सलाम भी करते अब तो आरती को यह आदत सी पड़ गई थी सो कोई ज्यादा तवज्जो नहीं देती थी वो इधर उधर देखती हुई हर फ्लोर के कोने तक देखती और फिर एक फ्लोर ऊपर चढ़ जाती

लगभग हर फ्लोर में काम अपनी तेज गति से चल रहा था और हर कोई काम में ज्यादा ही व्यस्त दिखाई दे रहा था आरती का ध्यान बारीकी से हर काम को अंजाम देते हुए देखते हुए जा रही थी। थर्ड फ्लोर तक ही बना हुआ था और उसके ऊपर छत थी इसलिए वहां सिर्फ़ लिफ्ट का टवर था और डक्ट बने हुए थे स्टेर केस का रास्ता भी था और खुली छत थी आरती चलती हुई थर्ड फ्लोर पर खड़ी होकर सामने का नजारा देखती रही बहुत ही मन भावन था हर तरफ काम से लगे हुए लोग काम से खाली होकर बाहर की ओर जा रहे थे तो कुछ लोग समान भर कर अंदर की ओर आ रहे थे

आरती ने फिफ्थ फ्लोर को धीरे-धीरे घूमकर पूरा देखा वहां लोग भी कम थे और धूल भी थोड़ा कम उड़ रही थी सो आरती को कोई दिक्कत नहीं हो रही थी जब वो सीढ़िया उतर कर नीचे की ओर जाने को हुई तो ना जाने क्यों वो ऊपर छत की ओर देखती हुई रुकी और वहां का क्या हाल है जान-ने के लिए ऊपर की ओर चल दी छत में कोई नहीं था एकदम खाली था बहुत तेज हवा चल रही थी यहां वहां थोड़ा बहुत समान फैला हुआ था पर कोई काम करता हुआ नहीं दिखा वो थोड़ी देर रुक कर वहां का हाल जानकर सामने साइन को देखती हुई वापसा नीचे की ओर जाने को पलटी ही थी कि
उसे कोई चीज गिरने की आवाज आई उसका सिर उस तरफ घूम गया वहां कोई नहीं था पर गिरा क्या वो अपने को रोक ना पाई और उस गिरने वाली चीज को देखने को वो आगे बढ़ी पर उसे कोई दिखाई नहीं दिया डक्ट और बड़े-बड़े पाइप के बीच में उसे कुछ भी ना दिखा पर फिर से किसी आहट ने उसे चोका दिया वो किसी चीज के हिलने की आवाज़ थी या फिर कुछ गड़बड़ थी जो भी हो आरती जल्दी से एक डक्ट के पीछे से जहां से वो आवाज आ रही थी वहां पहुँचने लगी थी जैसे-जैसे वो डक्ट के पीछे की ओर देखने को आगे बढ़ती जा रही थी उसे आवाज साफ-साफ सुनाई दे रही थी उसे इतना तो पता चाल गया था कि जरूर कोई गड़बड़ है पर क्या पता नहीं

आवाज से अंदाजा लगाया जा सकता था कि दो जने है पर क्या उठा रहे है या कुछ खिसका रहे है पता नहीं हाँ… हाँफने की आवाज जरूर आ रही थी आरती दबे पाँव जैसे ही वहां डक्ट के पीछे पहुँची तो चिहुक कर एकदम से पीछे की ओर हट गई जो उसने देखा उस चीज की कल्पना भी उसने यहाँ नहीं की थी।
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