Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:31 PM,
#47
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
रवि की बातों में आरती का बिल्कुल ध्यान नहीं था वो तो बस अपने बारे में सोच रही थी क्यों आखिर क्यों उसी के साथ ऐसा होता है वो कितना अपने पति के साथ रहने की कोशिश करती है पर रवि है कि हमेशा ही उसे नजर अंदाज कर देता है उसका गुस्से में बुरा हाल था

वो रवि के साथ शोरूम से बाहर तो निकली पर एक बात भी नहीं की जिसे कि रवि को समझने में जरा भी देर नहीं हुई गाड़ी में बैठते ही
रवि- अरे यार गुस्सा मत हो यार क्या करू काम है तो नही तो मैंने कहा ही तो था कि आज जल्दी घर चलेंगे हाँ… प्लीज यार

आरती- नहीं में खाली यह सोच रही थी कि एक में ही हूँ जिसके लिए आपके पास टाइम की कमी है और हर एक के लिए टाइम ही टाइम है

रवि- अरे टाइम ही टाइम कहाँ कौन सा में रोज धरमपाल जी का काम करें चला जाता हूँ या फिर शोरुम में ही बैठा रहता हूँ कि तुम्हें टाइम नहीं दे पाता हूँ पर क्या करे काम तो करना ही पड़ेगा ना

आरती- हूँ काम ही करो और मुझे जंगल में छोड़ आओ तो कोई नहीं कहेगा आपको

रवि- जंगल में अरे बाप रे कितने दिनों के लिए

अब रवि थोड़ा मजाक के मूड में आ गया था उसे पता था कि आरती के गुस्से को शांत करना है तो एक बार उसे हँसा दो फिर सब ठीक

आरती- हमेशा के लिए

रवि- फिर वो सब करने के लिए मुझे जंगल आना पड़ेगा हाँ… ही ही ही हाँ… हाँ… हाँ…

आरती- मजाक मत करो
गुस्से में थोड़ा सा मुस्कुराहट को रोकती हुई वो जानती थी कि रवि क्या कह रहा था

रवि- फिर तो मुझे भी शोरुम बंद करने के बाद अपना ड्रेस चेंज करके तुमसे मिलने आना पड़ेगा है ना

आरती सिर्फ़ गुसे में रवि की ओर देख रही थी हँसी को रोक कर कपड़े चेंज करके क्यों , अपने मन में सोचा

रवि- है ना पत्ते बाँध कर आना पड़ेगा ही ही

आरती- फालतू बातें मत करो ना प्लीज क्यों जा रहे हो आज। कल चले जाते हमेशा ही पूरे प्लान की ऐसी तैसी कर देते हो
रवि- अरे मेडम मुझे तो कल ही जाना था और धरम पाल जी को आज पर क्या करे उनकी बेटी से रोका नहीं गया सो आज ही बेटा पटक दिया लो नानाजी बना दिया सेठ जी को

आरती-- बोर कर देते हो तूम
अब आरती का गुस्सा हवा हो गया था वो अपने पति की स्थिति को समझ रही थी क्या करे उसे समझना ही था और कोई चारा नहीं था वो जब तक घर पहुँचे तब तक थोड़ा बहुत अंधेरा हो गया था जल्दी बाजी मच गई थी अपने कपड़े और सारा समान भी रखना था सँपल और बहुत कुछ


आरती तो रवि का सूटकेस जमाने में लग गई रवि पेपर्स के पीछे पड़ गया आरती कमरे में बार-बार उसके आमने सामने घूमती रही पर रवि का ध्यान बिल्कुल उस ओर नहीं था और नहीं उसे इस बात का ही ध्यान आया कि आरती ने आज उसे जल्दी घर चलने को क्यों कहा था पर आरती तो चाहती थी कि रवि जाने से पहले उसके साथ कम से कम
एक बार तो करता उसके शरीर में जो आग लगी थी उसे कुछ तो ठंडक मिलती पर कहाँ रवि तो बस अपने पेपर्स में ही खोया हुआ और बीच बीच में आरती को कुछ लाने को जरूर कह देता था आखिर कार सूटकेस भी तैयार हो गया।
फिर जल्दी-जल्दी रवि भी नीचे की ओर चल दिया सूटकेस लिए हुए आरती भी पीछे-पीछे डाइनिंग स्पेस पर आ गई थी रवि जल्दी-जल्दी अपने मुँह में ठूंस रहा था कही देर ना हो जाए तभी बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई शोरूम से कोई आ गया था उसे एरपोर्ट छोड़ने को सबकुछ तैयार था सूटकेस रवि और पेपर भी और जो दोपहर से ही तैयार था उसे रवि भूल गया था और जो अभी तैयार किया था उसे लेकर वो बाहर निकल गया और आरती की ओर देखता हुआ
रवि- जाके फोन करता हूँ हाँ…

आरती- जी जल्दी आ जाना

रवि- हाँ यार फिर भी दो दिन तो लगेंगे ही ठीक है

आरती- जी
और आरती दरवाजे में खड़ी रवि को गाड़ी में बैठ-ते हुए और फिर धीरे-धीरे गाड़ी को गेट के बाहर की ओर रेगते हुए जाते हुए देखती रही वो एक बुत की भाँति दरवाजे पर खड़ी हुई शून्य की ओर देखती रही अब क्या करे जिस चीज का डर था वो ही घर में अकेली है वो और रामु भी है अब अब क्या होगा वो अंदर जाने में सकुचा रही थी दरवाजे पर ही खड़ी रही अचानक ही गेट से दौड़ता हुआ चौकीदार को आते देखा
चौकी दार- जी मालकिन कुछ काम है वो अपनी नजर नीचे झुका कर खड़ा हो गया था

आरती-- नहीं क्यों
चौकीदार- जी वो आप यहां खड़ी थी तो पूछ लिया

आरती- नहीं नहीं तुम जाओ । अचानक उसके मोबाइल पर सोनल का फोन आया
आरती- हा बेटा।

सोनल- विक्रम पहुँचा क्या

आरती- हां, तुमारे पापाजी निकल गये है

सोनल- चलो ठीक है, थोड़ी देर में मैं भी आती हूँ मम्मी अगर खाना खाना हो तो खा लेना मम्मी।

आरती- नहीं तुम आ जाओ फिर खाते है अकेले अकेले मन नहीं करता

सोनल-- ठीक है में शोरुम बढ़ाती हूँ मैं भी घर पहुँचती हूँ

और फोन कट गया वो जब अंदर घुसी तो रामु को टेबल से समान उठाते हुए देखा जो कि झुकी हुई नजर से आरती की ओर ही देख रहा था आरती के शरीर में एक बिजली सी दौड़ गई जो कि उसके जाँघो के बीच में कही खो गई वो एक बार सिहर उठी जिस चीज से वो बचना चाहती थी वो एक बार फिर उसके सामने खड़ी थी यह वही रामु है जिसने उसके साथ सबसे पहले किया था फिर मनोज अंकल, फिर लाखा काका सोचते हुए आरती डाइनिंग स्पेस को क्रॉस करते हुए सीढ़ियो के पास पहुँच गई थी कि पीछे से रामु काका की आवाज उसके कानों में टकराई थी
रामु- बहू सोनल बिटिया कब तक आयगी।

आरती- (अपनी सांसों को कंट्रोल करते हुए बिना पीछे देखे ही सीढ़िया चढ़ते हुए ) बस आती ही होंगी आप खाना लगा दो

रामु काका- जी बहुत अच्छा।
और पीछे से आवाज आनी बंद हो गई थी आरती सीढ़िया चड़ती हुई अपने कमरे में पहुँच गई थी और झट से डोर बंद करके बेड पर चित लेट गई थी वो फिर से उसे गर्त में नहीं गिरना चाहती थी वो नहीं चाहती थी अपने पति को धोखा देना वो बिल्कुल नहीं चाहती थी सो जल्दी से अपने आपको व्यवस्थित करते हुए वो बाथरूम में घुस गई और फ्रेश होने लगी थी चेंज करते समये उसने एक काटन का सूट निकाल लिया था जो कुछ ढीला ढाला था

मिरर के सामने खड़ी अपने को संवारते समय भी अपना दिमाग हर उस चीज से हटाना चाहती थी जिससे कि उसके मन में कोई गलत ख्याल ना आए वो कोई गाना गुनगुनाते हुए बालों को संवारते हुए माथे में सिंदूर और बिंदिया लगाना नहीं भूली फिर टीवी चालू करके अपने कमरे में ही बैठ गई थी उसे इंतजार था सोनल के आने का। खाना खाके वो सो जाएगी और फिर कल घर से बाहर और फिर पूरा दिन घर से बाहर ही रहेगी इस घर में घुसते ही उसे पता नहीं क्या हो जाता है
हमेशा ही उसे रवि की ज़रूरत पड़ती है पर अभी तो रवि है नहीं इसलिए वो भी जितना हो सके घर से बाहर ही रहेगी थोड़ी देर बाद ही घर के अंदर गाड़ी आने की आवाज हुई वो खुश हो गई थी चलो सोनल के साथ खाना खाकर वो वापस अपने कमरे में आ जाएगी टाइम बड़े ही धीरे से निकल रहा था पता नहीं क्या हुआ था आज टाइम को बहुत अकेला पन सा लग रहा था बस सोनल के डाइनिंग स्पेस में पहुँचने का ही इंतेजार था

30- 40 मिनट बाद ही कमरे का दरवाजा खड़का,वो जानती थी कि सोनल होगी। जल्दी से दरवाजा खोला, सोनल ही थी।
सोनल- चलिए मम्मी खाना खाते है।
तभी आरती के फ़ोन पर रवि का फ़ोन आता है,
मोबाइल पकड़े हुए उसने एक बार सोनल की ओर देखा जो कि नीचे डाइनिंग टेबल के पास जा रही थी।

रवि- क्या हुआ अभी भी गुस्सा हो क्या फोन क्यों नहीं उठाया

आरती- जी वो कमरे में रह गया था नीचे डाइनिंग रूम में हूँ

रवि- अच्छा चलो में तो पहुँच गया हूँ कल फोन करता हूँ और सुनो कल शाम को ही करूँगा ठीक है सुबह बहुत टाइट शेड्यूल है ओके…

आरती- जी और खाना खा लेना

रवि- हाँ यार खा लूँगा सोनल कहाँ है

आरती- जी फोन दूं

रवि- अरे रूको नहीं वो

आरती- जी क्या हुआ

रवि- अरे यार क्या सोनल को किस करू हाँ…

आरती का सारा शरीर एक बार फिर से उत्तेजना से भर गया उसके हाथों से फोन छूटते--छूटते बचा उस तरफ से एक लंबी सी किसकी आवाज आई

रवि- यह तुम्हारे होंठों के लिया था और करूँ हाँ…

आरती- रखू वो सोनल सामने ही है बता दूँगी ठीक है

और वो झट से अपनी नजर बचाकर खाँसते हुए फोन काट दिया और सोनल की ओर थोड़ी देर बाद देखते हुए

सोनल- क्या बोल रहै थे पापा।

आरती- ऐसे ही कुछ खाश नही।

आरती को नहीं समझ में आया कि क्या कहे पर किसी तरह से अपने को संभाल कर जो मन में आया कह गई और सिर नीचे करते हुए अपने खाने की प्लेट पर टूट पड़ी थी
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RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस. - by sexstories - 08-27-2019, 01:31 PM

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