Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:34 PM,
#59
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
सोनल की ओर देखते हुए वो कुछ कहती पर
सोनल- अरे रामु। सोनल अब रामु को काका या दादा नही कहती थी, डायरेक्ट नाम से बुलाती थी।
एक उची आवाज गूँज उठी थी रामु जो की किचेन में था दौड़ता हुआ बाहर आया और नजर नीचे किए वहां हाथ बाँधे खड़ा हो गया

रामु- जी बिटिया,
सोनल- यह फूल कौन लाया

रामू- जी वो फूल वाला दे गया था बिटिया कह रहा था मेमसाहब के लिए भिजवाया है

सोनल- अच्छा हाँ…
और वो अपने कमरे की ओर चल दी पर आरती वही खड़ी रही मेमसाहब मतलब वो नजर उठाकर एक बार रामु की ओर देखा तो वो गर्दन नीचे किए

वापस किचेन की ओर जाते दिखा वो जल्दी से उन फूलो के पास पहुँची और किसने भेजा था ढूँढने लगी थी कही कोई नाम नहीं था पर एक प्रश्न उसके दिमाग में घर कर गई थी किस ने भेजा उसे फूल आज तक तो किसी ने नहीं भेजा है कौन है

इसी उधेड़ बुन में वो अपने कमरे में पहुँची और चेंज करने लगी थी बाथरूम से जल्दी से तैयार होकर निकली थी कि नीचे जाकर खाना खाना है पर मोबाइल पर रिंग ने उसे एक बार फिर से जगा दिया शायद रवि का फोन है सोचते हुए उसने फोन उठा लिया पर वो किसी अजनबी नंबर से था

अरे यार यह कंपनी वाले भी ना रात को भी परेशान करने से नहीं चूकते, बिना कुछ सोचे ही उसने फोन काट दिया पर फिर वो बजने लगा क्या है कौन है वो हाथों में सेल लिए सीढ़ियो तक आ गई थी नीचे डाइनिंग स्पेस पर सोनल भी आती दिख रही थी।
आरती ने आखिर फोन उठा लिया
आरती- हेलो
- फूल कैसे लगे मेमसाहब
आरति-
जैसे थी वैसे ही जम गई थी यह और कोई नहीं भोला था इतनी हिम्मत तो सिर्फ़ वही कर सकता था और फोन भी, राक्षस है शैतान है वो वही खड़ी हुई सकपका गई थी और कुछ सूझ नहीं रहा था पर नीचे से सोनल की आवाज उसके कानों में टकराई तो वो संभली और झट से फोन काट कर जल्दी से डाइनिंग रूम में आ गई थी खाने खाते समय वो सिर्फ़ भोला के बारे में ही सोच रही थी क्या चीज है वो और कितनी हिम्मत है उसमें

जरा भी डर नहीं कि मुझे फोन कर ले रहा है वो भी रात में पर आरती के शरीर में एक तरंग सी दौड़ गई थी जैसे ही भोला का नाम उसके जेहन में आया था वो खाना तो खा रही थी पर उसे उस समय की घटना फिर से याद आ गई थी ना जाने क्यों बार-बार मन को झटकने से भी वो सब फिर से उसके सामने बिल्कुल किसी पिक्चर की तरह घूम रहा था

वो खाते खाते अपने आपको भी संभाल रही थी और अपने जाँघो के बीच में हो रही हलचल को भी दबाने की कोशिश करती जा रही थी पर वो थी कि धीरे-धीरे रात के घराने के साथ ही उसके शरीर में और गहरी होती जा रही थी वो एक बार फिर से कामुक होने लगी थी खाना खाना तो दूर अब तो वो अपने सांसों को कंट्रोल तक नहीं कर पा रही थी उसका दिल धड़क कर उसके धमनियो से टकराने लगा था पर किसी तरह से अपना खाना पूरा करके वो भी सोनल के साथ ही उठ गई थी
सोनल- कुछ सोच रही हो मम्मी
आरती- नहीं क्यों
सोनल- नहीं खाना नहीं खाया ठीक से तुमने
आरती- वो भूख नहीं थी पता नहींक्यों
सोनल---वो मम्मी चलते समय काफी पी ली थी ना शायद इसलिए
आरती- हा शायद।
आरती ने सोनल को झूठ बोला था पर क्या वो सच बता देती छी क्या सोचती है वो पर अब क्या वो तो अपने कमरे में जाने लगी थी पर क्या करेगी वो कमरे में जाकर रवि तो है नहीं फिर

नहीं वो नहीं जाएगी कही वो जल्दी से अपने कमरे में घुस गई और सारे बोल्ट लगा दिए और कपड़े चेंज करने लगी थी पर बाथरूम में घुसते ही फिर से भोला का वो वहशी पन वाला चेहरा उसके सामने था उसके लोहे जैसा लण्ड और हाथों का स्पर्श उसके पूरे शरीर में एक बार फिर से धूम मचा रहे थे वो बार-बार अपने को उस सोच से बाहर निकालती जा रही थी पर वो और भी उसके अंदर उतरती जा रही थी

वो फिर से उसी गर्त में जाने को एक बार फिर से तैयार थी जिससे वो बचना चाहती थी पर हिम्मत नहीं थी अपने कमरे में चेंज करने के बाद बैठी हुई रवि के फोन का वेट करती रही पर उसका फोन नहीं आया वो एक बार दरवाजे के पास तक हो आई कि कोई आवाज उसे सुनाई दे तो कुछ आगे बढ़े पर शायद खाने के बाद सब सो गये थे पर लाखा और रामु क्या वो भी क्या उन्हें भी इंतजार नहीं था पर क्या वो उनके पास चली जाए या क्या करे उनका इंतजार
हां इंतेजार ही करती हूँ आएँगे वो वो एक बार फिर उठी और हल्के से दरवाजे को अनलाक करके वापस आके बेड पर लेट गई और इंतजार करने लगी बहुत देर हो गई थी लेटे लेटे आरती का पूरा शरीर जल रहा था वो लेटे लेटे भोला के बारे में सोच रही थी और उसी सोच में वो काम अग्नि की आग में जलती जा रही थी और वो उसे शांत करने का रास्ता ढूँढने भी लगी थी पर कहाँ लाखा और रामु तो जैसे मर गये थे कहीं पता नहीं था आखिर थक कर आरती खुद ही उठी और अपना बेड छोड़ कर धीरे से अपने कमरे के बाहर निकली महीन सा गाउन पहने हुए अपने आपको पूरा का पूरा उजागार करते हुए वो खाली पाँव ही बाहर आ गई थी

वो सीढ़ियो पर उतरती हुई और गर्दन घुमाकर ऊपर भी
देखने की कोशिश करती रही पर कोई नहीं दिखा और नहीं कोई हलचल वो अपने आपको संभालती हुई बड़े ही भारी मन से अपने को ना रोक पाकर धीरे-धीरे अपने तन की आग के आगे हार कर सीढ़ियाँ चढ़ रही थी हर एक कदम पर वो शायद अंदर से रोती थी या फिर वापस लोटने की कोशिश करती थी पर पैरों को नहीं रोक पा रही थी वो कुछ ही सीढ़िया शेष बची थी कि पीछे से एक आहट सी हुई उसने पलटकर देखा तो रामु काका ऊपर की ओर ही आ रहे थे यानी रामु काका का काम खतम नहीं हुआ था अब ख़तम हुआ है यानी कि उसे भी जल्दी थी।
अगर थोड़ा और इंतजार करती तो हो सकता था कि वो ही उसके पास आ जाते और रामु भी एकदम से जहां था वहां ही रुक गया एक बार पीछे पलटकर देखा और धीरे-धीरे आरती की ओर बढ़ने लगा। आरती तो जैसे जम गई थी वो लगातार रामु काका को अपने पास आते हुए देखती रही और आते आते उनकी बाहों मे जैसे अपने आप ही पहुँच गई थी पीछे से जैसे ही रामु काका ने उसे बाहों में भरा एक लंबी सी सिसकारी उसके होंठों से निकली और वो रामु काका के शरीर से चिपक गई थी वो वही खड़ी रही और अपने महीन से गाउन के होते हुए भी रामु काका के शरीर की गर्मी को अपनी स्किन पर महसूस करती रही वो धीरे से अपनी हथेलियो को रामु काका के बड़े-बड़े और मजबूत हाथों के
ऊपर रखकर उन्हें सहलाने लगी थी वो धीरे से अपने सिर को पीछे करते हुए अपने समर्थन का और अपने समर्पण का इशारा दे चुकी थी हाँ… वो यहां आई ही इसलिए थी तो शरम कैसी उसे शांति चाहिए थी और परम आनंद के सागर में वो एक बार फिर से गोते लगाने को तैयार थी उसके अंदर की सारी झिझक और शरम ना जाने कहाँ हवा हो चुकी थी अब वो एक निडर आरती थी और एक सेक्स की भूखी औरत और उसके पास एक नहीं दो-दो मुस्टंडे थे उसके तन की आग को बुझाने को

बस उसे तैयारी करनी थी की कैसे और कितनी देर तक वो टिक सकती है और वो तैयार थी पूरी तरह से अपने होंठों को वो सिर को पीछे करते हुए रामु काका के खुरदुरे गालों पर अपने से ही घिसने लगी थी छोटे छोटे बालों के होते हुए भी उसे कोई चिंता नहीं थी बल्कि उसे वो अच्छा लग रहा था साफ और चिकनी त्वचा अब उसे अच्छी नहीं लगती थी उसे तो जानवरों के साथ रहने की आदत पड़ चुकी थी और अपने को उसी हाल में खुश भी पाती थी रामु काका की हथेलिया पीछे से होकर आरती के पेट से होते हुए उसकी चुचियों तक आ गई थी और धीरे धीरे उन्हें सहलाते जा रहे थे आरती के होंठ रामु के होंठों से मिलने को आतुर थे और वो अपने सिर को बार-बार घुमा कर रामु के होंठों के आस-पास अपने होंठों को घिसते जा रही थी। रामु भी आरती के इशारे को समझकर धीरे से अपने होंठों को उसके होंठों पर रखता हुआ
उसके होंठों को चूमने लगा था और बहुत ही हल्के और स्वाद लेता हुआ वो आरती के होंठों का रस अपने अंदर उतारता जा रहा था उसके हाथों पर आए आरती के शरीर के हर हिस्से को वो अपने कठोर हाथों से छूता और सहलाता हुआ ऊपर से नीचे और फिर ऊपर की ओर ले जाता था वो आरती के आतुर पन से वाकिफ नहीं था पर आज कुछ खास था वो नहीं जानता था कि क्या पर वो महसूस कर सकता था उसके किस करने की स्टाइल से और उसके शरीर से उठ रही तरंगो से उसकी सांसें फेकने के तरीके से और अपने शरीर को उसके हाथों के सपुर्द करने के तरीके से आज रामु भी कुछ ज्यादा ही उत्तेजित हो गया था अपने हाथों को ऊपर ले जाते हुए वो आरती की जाँघो के बीच से सहलाता हुआ उसके छोटे से गाउनको अपने हाथों के साथ ही उठाता चला गया और उसे नंगा करता चला गया रामु के हाथों को अपने शरीर पर से घूमते हुए जब वो आरती के उभारों तक पहुँचे तो उसके निपल्स अपनी उत्तेजना को नहीं छुपा पाए थे वो इतने कड़े हो चुके थे कि एक हल्के से दबाब से ही आरती के मुख से निकली सिसकारी और झटके से पलटने की वजह बन गये थे वो झट से पलटकर रामु के होंठों पर फिर से चिपक गई थी एक सीढ़ी ऊपर होने की वजह से आरती अपने आपकोआज थोड़ा सा उँचा महसूस कर रही थी और अपनी पूरी जान लगाकर रामु के होंठों पर टूट पड़ी थी आरती की उत्तेजना से ही लगता था कि आज की रात एक कयामत की रात होगी और बहुत कुछ बाकी है जो कि पूरा करना है हाथों के स्पर्श से रामु के हाथ उसके गाउनको उसके कंधों तक ले आए थे और धीरे धीरे उसकी गर्दन से बाहर करने की कोशिश में थे पर आरती के होंठ तो जैसे उसके होंठों से चिपक गये थे और आरती उन्हें छोड़ने को तैयार नहीं थी पर एक झटके से गाउन भी बाहर था और फिर रामु के होंठ आरती की गिरफ़्त में थे
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