Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
08-27-2019, 01:40 PM,
#90
RE: Kamvasna आजाद पंछी जम के चूस.
सोनल रात को उठकर दो बार अपनी चड्डी बदलने लगी।

रात को उसे नींद भी नहीं आती, बस करवटें बदलती रहती... और आहें भरते रहती... रात को फिर सोनल ने एक बार पलंग से नीचे उतर कर मुठ्ठ मार ली। पानी निकालकर उसे कुछ राहत सी मिली और उसे नींद भी आ गई।
अगले दिन सब नॉर्मल रहा रवि और सोनल दोनो ओफिस और स्कूल के लिए निकल गए। अभी आरती ने सेक्स से अपना ध्यान हटा लिया था। वो उनदोनो के जाते ही पास के एक मंदिर में चली जाती थी ताकि दोबारा उसके कदम न बहके। वो खुद को अकेले नही रखना चाहती थी, शोरूम या फैक्टरी भी जाना छोड़ दिया क्योंकि वहा जाती तो भोला से टकरा जाती, फिर उसका रुकना मुमकिन नही था, लेकिन होनी को कोन टाल स्का है जो आरती टाल सकती। आज एक जबरदस्त झटका उसके लिए तयारी कर रहा था।
उस दिन आरती मंदिर से जल्दी घर आ गई.

आरती जब घर में आई तो घर में काफ़ी खामोशी थी.
जया और मोनिका कहि नही दिख रही थी।
आरती काफ़ी थकि हुई थी इसलिए वो घर के उपर वाली मंज़िल पर अपने रूम की तरफ चल पड़ी.

ज्यूँ ही आरती अपने रूम के पास पहुँची तो उसे अपने रूम से अजीब सी आवाज़े सुनाई दी. जिस को सुन कर आरती थोड़ी हेरान हुई.

आरती ने कमरे के बंद दरवाज़े को आहिस्ता से हाथ लगाया तो पता चला कि दरवाज़ा तो अंदर से बंद है.

आरती को कुछ शक हुआ कि ज़रूर कोई गड़बड है. उस ने की होल से कमरे के अंदर देखने की कोशिश की पर उसे कुच्छ नज़र नही आया.

इतनी देर में आरती को ख़याल आया कि कमरे के दूसरी तरफ एक खिड़की बनी हुई है.जिस पर एक परदा तो लगा हुआ है मगर वो कभी कभी हवा की वजह से थोड़ा हट जाता है. और अगर वो कोशिश करे तो उस जगह से वो कमरे के अंदर झाँक सकती है.

आरती ने इधर उधर नज़र दौड़ाई तो उसे एक कोने में एक पुरानी कुर्सी पड़ी हुई नज़र आई.

आरती फॉरन गई और उस कुर्सी को कमारे की खिड़की के नीचे रखा और फिर खुद कुर्सी पर चढ़ गई.

ये आरती की खुशकिस्मती थी या फिर बदक़िस्मती कि खिड़की का परदा वाकई थोड़ा सा हटा हुआ था. जिस वजह से आरती को कमरे के अंदर झाँकने का मोका मिल गया.

कमरे में नज़र डालते ही अंदर का मंज़र देख कर आरती की तो जैसे साँसे ही रुक गई.

आरती ने देखा कि कमरे में उस के सुहाग वाले बेड पर उस का पति रवि जया काकी को घोड़ी बना कर पीछे से चोद रहा था.

हालाँकि आरती ने अपने पति की इन हरकतों के बारे में बहुत पहले सुन तो बहुत कुछ रखा था. मगर आज तक वो इन बातों को सुन कर दिल ही दिल में जलती रही थी.

ये हक़ीकत है कि किसी बात या काम के बारे में सुनने और उस उस काम को अपनी आँखों के सामने होता हुआ देखने में बहुत फरक होता है.

इसलिए आज अपनी आँखो के सामने और अपने ही बेड पर जया काकी को अपने पति से चुदवाते हुए देख कर आरती के सबर का पैमाना छलक गया और वो गुस्से से पागल हो गई. खुद यह बुढ़िया को चोद रहा है और उस दिन मुझे शिक्षा दे रहा था।

“रवि ये आप क्या कर रहे हैं” आरती ने गुस्से में फुन्कार्ते हुए रवि को खिड़की से ही पुकारा.

अपनी चोरी पकड़े जाने पर रवि और जया काकी की तो सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गई.और उन दोनो के जिस्मों में से तो जैसे जान ही निकल गई.और उन दोनो ने अपनी चुदाई फॉरन रोक दी.

रवि को तो समझ ही नही आ रहा था कि वो क्या कहे और क्या करे.

“आप दरवाजा खोलिए में अंदर आ कर आप से बात करती हूँ” आरती ये कहती हुई कुर्सी से नीचे उतर कर कमरे की तरफ चल पड़ी.

जितनी देर में आरती चक्कर काट कर कमरे के दरवाज़े पर पहुँची .रवि जया काकी को उस के कपड़े दे कर कमरे से रफू चक्कर कर चुका था.

रवि ने आरती के कमरे में आने के बाद उस से अपने किए की माफी माँगनी चाही.

मगर आरती आज ये सब कुछ अपनी नज़रों के सामने होता देख कर आरती रवि को किसी भी तौर पर माफ़ करने को तैयार नही थी.
रवि बात न बनती देख वहां से खिसक लिया। आज आरती ने जो मंजर देखा उसे देख कर उसकी दबी आग फिर से भड़क गई, उसने ठान लिया कि वो क्यो अपनी इच्छाओं का गला घोटे।
शाम तक आरती अपने कमरे में रहती है और बस दिन की बातों को सोचती रहती है, सोनल शाम को जब स्कूल से वापिश आती है तो आरती हाल में ही बैठी होती है और सोनल उसे उदास और चुपचाप दिखती है।

क्योकी सोनल की नजरें अब रवि में कुछ ओर ही देख रही थी, उसके जिस्म को टटोल रही थी। उसकी नजरें अब अपने पापा रवि में सेक्स ढूंढने लगी थी। सोनल की जवानी अब बल खाने लगी थी,हर समय लण्ड खाने को जी चाहने लगा था। उसकी यह सोच चूत पर असर डाल रही थी, वो बात बात पर गीली हो जाती थी।

स्कूल में भी उसका मन नहीं लगता था, घर में भी गुमसुम सी रहने लगी। कैसे किसी से चुदाई निवेदन किया जाये... बाबा रे! मर जाऊँगी मैं तो... भला क्या कहूँगी उसे... यही सोचती रहती सारा दिन सोनल।

"क्या हुआ बेटी... कोई परेशानी है क्या?" आरती ने गुमसुम देख कर पूछा

"हाँ... नहीं तो... वो स्कूल में कल टेस्ट है...!"

"तो तैयारी नहीं है...?"-- आरती

"नहीं मम्मी... सर दुख रहा है... कैसे पढूँगी?" ---सोनल

"आज तो सो जा... यह सर दर्द की गोली खा लेना... कल की कल देखना।"--- आरती

"अच्छा मम्मी..."

सोनल ने गोली को देखा... उसे एक झटका सा लगा... वो तो नींद गोली थी। आरती ने उसे ये गोली क्यो दी थी... अभी तो आरती ने आप को सुधार लिया था पर अभी गोली क्यों?

मेटासिन काफ़ी थी... पर उसे सर दर्द तो था नहीं, सो सोनल ने उसे रख लिया।

"जरूर खा लेना और ठीक से सो जाना... सर दर्द दूर हो जायेगा..."

सोनल को आश्चर्य हुआ, सोनल ने कमरे में जाकर ठीक से देखा... वो नींद की गोली ही थी। सोनल ने उस गोली को एक तरफ़ रख दिया और आँखें बन्द करके लेट गई। दिल में हरिया का लण्ड उसके शरीर में गुदगुदी मचा रहा था। पता नहीं कितनी देर हो गई। रात को आरती उसके कमरे में आई और उसे ठीक से सुला दिया और चादर ओढ़ा कर लाईट बन्द करके कमरे बन्द करके चली गई। सोनल ने धीरे से चादर हटा दी और उछल कर बाहर आ गई। उसने आरती को उप्पेर जाते देखा,
सोनल मन मे ---- क्या रामु काका वापिश आ गया है, और वो घर मे क्या कर रहा है, जबकि पापा ने उसे मना किया हुआ है।
सोनल उप्पेर कमरे की खिड़की तक पहुचती है।

वहा रामु अपनी लुंगी पहने शायद शराब पी रहा था। उसका यह रूप भी सोनल के सामने आने लगा था। अपना लण्ड मसलते हुये वो धीरे धीरे शराब पी रहा था। सोनल को लगा कि अब वो मुठ्ठ मारेगा।

"उसे नींद की गोली दे दी है... गहरी नींद में सो गई है वो!"

सोनल को उसके कमरे से अपनी मम्मी की आवाज आई। वो अभी तो उसे नजर नहीं आ रही थी।

"बहु ! बस मेरी एक बात मान जाईये... सोनल को एक बार चुदवा दीजिये!"

सोनल का दिल धक से रह गया। सोनल यानि कि इसने अभी तक मम्मी को नही बताया है मेरी चुदाई का। मुझे... ईईईई ईईई... मजा आ गया... ये साला तो मुझे चोदने की बात कर रहा है। सोनल की तो खुशी से बांछें खिल गई। अब साले को देखना... कहाँ जायेगा बच कर बच्चू?

तभी आरती सामने आ गई। वो बस एक ऊपर तक तौलिया लपेटे हुई थी। शायद स्नान करके ऊपर से बस यूं ही तौलिया लपेट लिया था।

"अरे! मम्मी ऐसी दशा में..?"

सोनल को चोदना है तो खुद कोशिश करो... मुझे कैसे पटाया था याद है ना? उसे भी पटा लो..."

"उईईईईई... राम... मैं तो यारां! अब पटी पटाई हूँ... एक बार कोशिश तो कर मेरे राजा...!!! अब खुद नही रोकोगी तुम्हे"

सोनल का दिल बल्लियों उछलने लगा था- अरे हराम जादे मुझसे कहा क्यों नहीं? इसमें मम्मी क्या कर लेगी। इतने दिन से गायब था, अगर पहले आता तो मैं खुद ही चुदवा लेती।

तभी सोनल की धड़कन तेज हो गई। रामु काका ने आरती के तौलिया के नीचे से आरती की गाण्ड को दबा दिया। आरती ने अपनी टांग कुर्सी पर रख दी... ओह्ह्ह तो जनाब ने आरती की गाण्ड में अंगुली ही घुसेड़ दी है।

वो अपनी अंगुली गाण्ड में घुमाने लगा... आरती भी अपनी गाण्ड घुमा घुमा कर आनन्द लेने लगी। तभी आरती का तौलिया उनके शरीर से खिसक कर नीचे फ़र्श पर आ गिरा।

आरती का तराशा हुआ जिस्म... गोरा बदन... ट्यूब लाईट में जैसे चांदी की तरह चमक उठा। उनकी ताजी चूत की फ़ांकें... सच में किसी धारदार हथियार से कम नहीं थी। कैसी सुन्दर सी दरार थी। चिकनी शेव की हुई चूत। उफ़्फ़्फ़! बहुरानी... आप भी ना... अभी किसी घातक बम से कम नहीं हो।

आरती उससे घूम घूम कर बातें कर रही थी। कभी तो वो सोनल की नजरों के सामने आ जाती और कभी आँखों से ओझल हो जाती थी। तभी रामु ने आरती का हाथ पकड़ कर अपने सामने खींच लिया और उनके सुडौल चूतड़ों को दबाने लगा।

उफ़्फ़! आरती ने गजब कर दिया... उन्होंने रामु की लुंगी झटके उतार दी...

"क्यूं राजा! मेरे सामने शर्म आ रही है क्या? अपने लण्ड को क्यूं छुपा रखा है?"

रामु ने मुस्करा कर आरती के दुद्दू अपने मुख में समा लिये और पुच्च पुच्च करके चूसने लगा। आरती धीरे से नीचे बैठ गई और उसका लण्ड सहलाने लगी। आरती उसका लण्ड अपने मुख में लेकर उसे चूसने लगी। सोनल ने तो एक बार अपनी आँखें ही बन्द कर ली। रामु कभी तो आरती के गाल चूमता और कभी उनके बालों को सहलाता।

"जोर से चूसो बहुरानी... उफ़्फ़ बहुत मजा आ रहा है... और कस कर जरा..."

अब आरती जोर जोर से पुच्च की आवाजें निकालने लग गई थी। रामु की तड़प साफ़ नजर आने लगी थी। फिर आरती ने दूसरा गजब कर डाला। आरती उसकी कुर्सी के सामने खड़ी हो गई। अपनी एक टांग उसके दायें और एक टांग रवि के बायें ओर डाल दी। उसका सख्त लण्ड सीधा खड़ा हुआ था। दोनों प्यार से एक दूसरे को निहार रहे थे। आरती उसके तने हुये लण्ड पर बैठने ही वाली थी... उसके दिल से एक आह निकल पड़ी।
सोनल मन मे---- मम्मी प्लीज ये मत करो... प्लीज नहीं ना... पर आरती तो बेशर्मी से उसके लण्ड पर बैठ गई।

मम्मी घुस जायेगा ना... ओह्हो समझती ही नहीं है!!! पर सोनल उसके लण्ड को कीले तरह घुसते देखती ही रह गई... कैसा चीरता हुआ उसकी मम्मी की चूत में घुसता ही जा रहा था। फिर आरती के मुख से एक आनन्द भरी चीख निकल गई।

उफ़्फ़्फ़! कहा था ना घुस जायेगा। पर ये क्या? उसकी मम्मी तो रामु से जोर से अपनी चूत का पूरा जोर लगा कर उससे लिपट गई और और अपनी चूत में लण्ड घुसा कर ऊपर नीचे हिलने लगी। अह्ह्ह! वो चुद रही थी... सामने से रामु आरती की गोल गोल कठोर चूचियाँ मसल मसल कर दबा रहा था। उसका लण्ड बाहर आता हुआ और फिर सररर करके अन्दर घुसता हुआ सोनल के दिल को भी चीरने लगा था। उसकी चूत का पानी निकल कर उसकी टांगों पर बहने लगा था।

आरती तो रामु से जोर से अपनी चूत का पूरा जोर लगा कर उससे लिपट गई और और अपनी चूत में लण्ड घुसा कर ऊपर नीचे हिलने लगी।



आरती को चुदने में बिलकुल शरम नहीं आ रही थी... शायद अपनी जवानी में उन्होंने कईयों से लण्ड खाये होंगे...

तभी आरती उठी और मेज पर अपनी कोहनियाँ टिका कर खड़ी हो गई। उनके सुडौल चूतड़ उभर कर इतराने लगे थे। पहले तो सोनल समझी ही नहीं थी... पर देखा तो लगा छी: छी: उसकी मम्मी कितनी गन्दी है।

रामु ने आरती की गाण्ड खोल कर खूब चाटी। आरती मस्ती से सिसकारियाँ लेने लगी थी। तब रामु का सुपाड़ा आरती की गाण्ड से चिपक गया।
सोनल--जाने मम्मी क्या कर रही हैं? अब क्या गाण्ड में लण्ड घुसवायेंगी...
अरे हाँ... वो यही तो कर रही है...

रामु काका का कड़का कड़क मोटा और गधे जैसा लंड ने आरती की गाण्ड का छल्ला चीर दिया और अन्दर घुस गया। सोनल तो देख कर ही हिल गई। आरती का तो जाने क्या हाल हुआ होगा... इतने छोटे से छल्ले में लण्ड कैसे घुसा होगा... सोनल ने तो अपनी आँखें ही बन्द कर ली। जरूर आरती की तो बैण्ड बज बज गई होगी।

पर जब सोनल ने फिर से देखा तो उसकी आँखें फ़टी रह गई। रामु का लण्ड उसकी मम्मी की गाण्ड में फ़काफ़क चल रहा था। आरती खुशी के मारे आहें भर रही थी... जाने क्या जादू है?

आरती ने तो आज शरम की सारी हदें तोड़ दी... कैसे बेहरम हो कर चुदा रही थी। सोनल का तो बुरा हाल होने लगा था। चूत बुरी तरह से लण्ड खाने को लपलपा रही थी... उसका तन बदन आग होने लगा था... क्या करती। बरबस ही सोनल के कदम कहीं ओर खिंचने लगे।

सोनल वासना की आग में जलने लगी थी। भला बुरा अब कुछ नहीं था। जब उसकी मम्मी ही इतनी बेशरम है तो फिर उसे किससे लज्जा करनी थी। सोनल रामु काका के कमरे के पास आ गयी। एक बार सोनल ने अपने सीने को दबाया एक सिसकारी भरी और रामु के दरवाजे की ओर चल पड़ी।

दरवाजा खुला था, सोनल ने दरवाजा खोल दिया। उसकी नजरों के बिलकुल सामने उसकी मम्मी अपना सर नीचे किये हुये, अपनी आँखें बन्द किये हुये बहुत तन्मयता के साथ अपनी गाण्ड मरवा रही थी... जोर जोर से आहें भर रही थी।

रामु काका ने सोनल को एक बार देखा और सकपका गया। फिर उसने सोनल की हालत देखी तो सब समझ गया। सोनल ने वासना में भरी हुई चूत को दबा कर जैसे ही सिसकी भरी... उसकी मम्मी की तन्द्रा जैसे टूट गई। किसी आशंका से भर कर उन्होंने अपना सर घुमाया। वो सोनल को देख कर जैसे सकते में आ गई। लण्ड गाण्ड में फ़ंसा हुआ... रामु काका तो अब भी अपना लण्ड चला रहा था।

"रामु... बस कर..." आरती की कांपती हुई आवाज आई।

"सॉरी सॉरी मम्मी... प्लीज बुरा मत मानना..." सोनल ने जल्दी से स्थिति सम्हालने की कोशिश की।

आरती का सर शरम से झुक गया। आरती का इस तरह से करना सोनल के दिल को छू गया। शरम के मारे वो सर नहीं उठा पा रही थी। सोनल का दिल भी दया से भर आया... सोनल ने जल्दी से मम्मी का सर अपने सीने से लगा लिया।

"रामु काका प्लीज करते रहो... मेरी मम्मी को इतना सुख दो कि वो स्वर्ग में पहुँच जाये... प्लीज करो ना..."

आरती शायद आत्मग्लानि से भर उठी... उन्होंने रामू को अलग कर दिया। और सर झुका कर अपने कमरे में जाने लगी। सोनल ने रामु को पीछे आने का इशारा किया... आरती नंगी ही बिस्तर पर धम से गिर सी पड़ी।

सोनल भी अपनी मम्मी को बहलाने लगी- मम्मी... सुनो ना... प्लीज मेरी एक बात तो सुन लो...

उन्होंने धीरे से सर उठाया- ...मेरी बच्ची मुझे माफ़ कर देना... मुझसे रहा नहीं गया था...... उफ़्फ़्फ़ मेरी बच्ची तू नहीं जानती... मेरा क्या हाल हो रहा था...

"मम्मी... बुरा ना मानिये... मेरा भी हाल आप जैसा ही है... प्लीज मुझे भी एक बार चुदने की इजाजत दे दीजिये। जवानी है... जोर की आग लग जाती है ना।"

आरती ने सोनल की तरफ़ अविश्वास से देखा... सोनल ने भी सर हिला कर उन्हें विश्वास दिलाया।

"मेरा मन रखने के लिये ऐसा कह रही है ना?"

"मम्मी... तुम भी ना... प्लीज... रामु से कहो न, बस एक बार मुझे भी आपकी तरह से..." सोनल कहते कहते शरमा गई।

आरती मुस्कराने लगी, फिर उन्होने रामु की तरफ़ देखा। उसने धीरे से लण्ड सोनल के मुख की तरफ़ बढ़ा दिया।

"नहीं, छी: छी: यह नहीं करना है..." उसका लाल सुर्ख सुपारा देख कर सोनल एकाएक शरमा गई।

आरती ने मुरझाई हुई सी हंसी से कहा- ...बेटी... कोशिश तो कर... शुरूआत तो यही है...

सोनल ने रामु को देखा... रामु ने जैसे उसका आत्म विश्वास जगाया। उसके बालों पर हाथ घुमाया और लण्ड को उसके मुख में डाल दिया। उसे चूसना नहीं आता था। पर कैसे करके उसे चूसना शुरू कर दिया। तब तक आरती भी सामान्य हो चुकी थी... अपने आपको संयत कर चुकी थी। उन्होंने बिस्तर की चादर अपने ऊपर डाल ली थी।

सोनल ने उसका लण्ड काफ़ी देर तक चूसा... इतना कि उसके गाल के पपोटे दुखने से लगे थे। फिर आरती ने बताया कि लण्ड के सुपारे को ऐसे चूसा कर... जीभ को चिपका चिपका कर रिंग को रगड़ा कर... और...

सोनल ने अपनी मम्मी को चूम लिया। उनके दुद्दू को भी सोनल ने सहलाया।

"मम्मी... लण्ड लेने से दर्द तो नहीं होगा ना... रामु बता ना...?"

"रामु... मेरी बेटी के सामने आज मैं नंगी हो गई हूँ... बेपर्दा हो गई हूँ... अब तो हम दोनों को सामने ही तू चोद सकता है... क्यों हैं ना बेटी... मैं तो बाथरूम में मुठ्ठ मार लूंगी... तुम दोनों चुदाई कर लो।"

रामु ने जल्दी से आरती को दबोच लिया- ...मुठ्ठ मारें आपके दुश्मन... मेरे रहते हुये आप पूरी चुद कर ही जायेंगी।

कह कर रामु ने आरती को उठा कर बिस्तर पर लेटा दिया और वो आरती पर चढ बैठा।

"यह बात हुई ना रामु काका... अब मेरी मम्मी को चोद दे... जरा मस्ती से ना..."

आरती की दोनों टांगें चुदने के लिये स्वत: ही उठने लगी। रामु उसके बीच में समा गया... तब आरती के मुख से एक प्यारी सी चीख निकल पड़ी। सोनल ने अपनी मम्मी के बोबे दबा दिये... उन्हें चूमने लगी... जीभ से जीभ टकरा दी... रामु अब शॉट पर शॉट मार रहा था। आरती ने सोनल के स्तन भी भींच लिये थे। तभी रामु भी सोनल की गाण्ड के गोलों को बारी बारी करके मसलने लगा था। सोनल की धड़कनें तेज हो गई थी। रामु का उसके शरीर पर हाथ डालना मुझे आनन्दित करने लगा था।

आरती उछल उछल कर चुदवा रही थी। अपनी मम्मी को खुशी में लिप्त देख कर सोनल को भी बहुत अच्छा लग रहा था।

"चोद ... चोद मेरे जानू... जोर से दे लौड़ा... हाय रे..."

"मम्मी... लौड़ा नहीं... लण्ड दे... लण्ड..."

"उफ़्फ़... मेरी जान... जरा मस्ती से पेल दे मेरी चूत को... पेल दे रे... उह्ह्ह्ह"

आरती के मुख से अश्लील बाते सुन कर सोनल का मन भी गुदगुदा गया। तभी आरती झड़ने लगी- उह्ह्ह्ह... मैं तो गई मेरे राजा... चोद दिया मुझे तो... हा: हा... उस्स्स्स... मर गई मैं तो राम...

आरती जोर जोर से सांसें भर रही थी। तभी सोनल चीख उठी।

रामु ने आरती को छोड़ कर अपना लण्ड सोनल की चूत में घुसा दिया था।

"मम्मी... रामु काका को देखो तो... उसने लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया..."

आरती तो अभी भी जैसे होश में नहीं थी-...चुद गई रे... उह्ह्ह...

आरती ने अपनी आँखें बन्द कर ली और सांसों को नियन्त्रित करने लगी।

फिर रामु के नीचे सोनल दब चुकी थी। नीचे ही कारपेट पर सोनल पर रामु चढ़ बैठा और उसे चोदने लगा। सोनल ने असीम सुख का अनुभव करते हुये अपनी आँखें मूंद ली... अब किसी से शरमाने की आवश्यकता तो नहीं थी ना... मां तो अभी चुद कर आराम कर रही थी... बेटी तो चुद ही रही थी... सोनल ने आनन्द से भर कर अपनी आंखे मूंद ली और असीम सुख भोगने लगी |
जब रामु कोई जोरदार धक्का लगाता तो थोड़ा दर्द महसूस होता सोनल को पर अब उसका दिल कर रहा था कि रामु ऐसे ही जोर जोर से धक्के लगाए। उसकी चूत में सरसराहट बढ़ गई थी। लग रहा था कि जैसे कुछ चूत से निकल कर बाहर आने को बेताब हो। अभी कुछ समझ ही नहीं पाई थी कि उसकी चूत से झरना बह निकला। सोनल झड़ रही थी।

सोनल का पूरा शरीर अकड़ रहा था और सोनल ने अपने दोनों हाथो से रामु की कमर को पकड़ लिया था और उसको अपने ऊपर खींच रही थी। दिल कर रहा था कि रामु पूरा का पूरा उसके अंदर समा जाए। इसी खींचतान में रामु की कमर पर उसके नाख़ून गड़ गए।

रामु क्यूंकि अभी नहीं झड़ा था तो वो अब भी पूरे जोश के साथ धक्के लगा रहा था। पर सोनल झड़ने के बाद कुछ सुस्त सी हो गई थी। रामु के लण्ड की गर्मी और धक्कों की रगड़ ने उसे जल्दी ही फिर से उत्तेजित कर दिया और सोनल फिर से गाण्ड उठा उठा कर लण्ड अपनी चूत में लेने लगी। फिर तो करीब बीस मिनट तक रामु और सोनल चुदाई का भरपूर मज़ा लेते रहे और फिर दोनों ही एक साथ परमसुख पाने को बेताब हो उठे। रामु का लण्ड भी अब चूत के अंदर ही फूला हुआ महसूस होने लगा था।

रामु के धक्कों की गति भी बढ़ गई थी। तभी सोनल दूसरी बार पूरे जोरदार ढंग से झड़ने लगी। अभी सोनल झड़ने का आनन्द ले ही रही थी कि रामु के लण्ड ने भी उसकी चूत में गर्म गर्म लावा उगलना शुरू कर दिया। कितना गर्म गर्म था रामु का वीर्य। सोनल की पूरी चूत भर दी थी रामु ने। सोनल तो मस्ती के मारे अपने होश में ही नहीं थी, दिल धाड़-धाड़ बज रहा था। सोनल तो जैसे आसमान में उड़ रही थी, भरपूर आनन्द आ रहा था। दिल कर रहा था कि रामु ऐसे ही लण्ड को अंदर डाल कर लेटा रहे।

बाहर अब जोरदार बारिश हो रही थी। अंदर तो भरपूर बारिश हो चुकी थी, चूत भर गई थी। जैसे ही होश आया तो सोनल शर्म के मारे लाल हो गई। रामु ने अपना लण्ड बाहर निकाला और पास पड़े एक कपड़े से साफ़ कर लिया और फिर सोनल को दे दिया चूत साफ़ करने के लिए। सोनल ने भी अपनी चूत साफ़ की। चूत में दर्द हो रहा था। खड़ी होकर सोनल ने अपने कपड़े पहने। तब तक रामु भी कपड़े पहन चुका था। रामु ने सोनल की तरफ देखा तो सोनल भी शरमा कर उसकी बाहों में समा गई।



“तुम बहुत बेदर्द हो!”

लड़खड़ाते कदमो से सोनल बाहर आई तो अभी भी सावन की फुव्वारे मौसम को रंगीन बना रही थी। जब बारिश की बूँदे उसके ऊपर पड़ी तो एक नयी ताजगी सी महसूस हुई
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